लखनऊ: "रात के करीब 12 बज रहे थे और मेरी मां की तबीयत खराब होने लगी। उनका ऑक्‍सीजन लेवल 70 था और लगातार गिर रहा था। हम आनन फानन में उन्‍हें लेकर अस्‍पताल भागे, लेकिन कहीं बेड नहीं मिला। अस्‍पतालों के चक्‍कर लगाते रात के ढाई बज गए और उनकी सांस टूटने लगी। मैंने तमाम मिन्‍नतें की, सारे सोर्स लगा दिए, लेकिन मां को बचा नहीं पाया," यह कहते हुए कानपुर के रहने वाले अनुराग वर्मा (35) का गला भर आता है।

अनुराग की 65 साल की मां प्रेमलता वर्मा को कोविड था, हालांकि इसकी पुष्टि भी उनकी मौत के बाद हो पाई। अनुराग कहते हैं, "मैं पहले जांच के ल‍िए इधर-उधर भटकता रहा। जैसे-तैसे जांच हुई थी और अभी रिपोर्ट आती उससे पहले मां गुजर गई। जांच से लेकर बेड तलाशने में 3 द‍िन निकल गए। अगर यह सब जल्‍दी होता तो शायद मां जिंदा होती। मेरा इस सिस्‍टम से भरोसा उठ गया है।"

इन दिनों उत्तर प्रदेश में रोजाना इस तरह की मामले देखने को मिल रहे हैं। राज्‍य में कोरोना की दूसरी लहर पिछली बार के मुकाबले ज्यादा घातक नजर आ रही है। लोग जांच, इलाज, अस्पताल और श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए भटकते नजर आते हैं।

इंडियास्पेंड ने उत्तर प्रदेश के पिछले एक महीने के कोरोना के रिपोर्ट किये गए आंकड़ों का अवलोकन किया और पाया कि 23 मार्च को उत्तर प्रदेश में कोरोना के 638 नए मामले दर्ज किए गए। वहीं, एक महीने बाद 23 अप्रैल को हर दिन आने वाले नए मामलों की संख्‍या 37,238 से ज्‍यादा हो गई। यानी कोरोना के नए मामले करीब 5736% बढ़ गए।

वहीं, बात करें सक्रिय मामलों की तो 23 मार्च को 3,844 रिपोर्ट किये गए मामले थे, जो कि 23 अप्रैल को 2.7 लाख से ज्‍यादा हो गए। यानी एक महीने में रिपोर्ट किये गए सक्रिय मामलों की संख्‍या में करीब 7018% की बढ़त हुई। यह आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में कोरोना कितनी तेजी फैल रहा है। 17 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में रिपोर्ट की गयी पॉजिटिविटी दर 2.2, रिकवरी दर 78.1 और मृत्यु दर 1.2 है।

लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्‍पताल में एक मरीज की जांच करता जूनियर डॉक्‍टर। फोटो: सुम‍ित कुमार

उत्तर प्रदेश में जहां 37 हजार से ज्यादा मामले रिपोर्ट किए गए तो वहीं देश में 23 अप्रैल को कोरोना के रिपोर्ट किए गए नए मामलों की संख्या 3,44,949 थी, जिसमें महाराष्ट्र में 66,836, उत्तर प्रदेश में 37,238 और केरल में 28,447 मामले शामिल थे। आंकड़ों से साफ है कि देश में रिपोर्ट किए गए मामलों में से करीब 10.7% नए मामले यूपी में रिपोर्ट किए गए। भारत में 23 अप्रैल को रिपोर्ट की गई कुल रिकवरी दर 83.49% थी जो कि उत्तर प्रदेश के रिपोर्ट की गई रिकवरी दर से 5.3% ज़्यादा थी। वहीं बात करें रिपोर्ट की गयी मृत्यु दर कि तो भारत की मृत्यु दर उस दिन 1.14% थी जो कि उत्तर प्रदेश की दर से .06% कम थी।

लखनऊ का बुरा हाल

उत्तर प्रदेश में सबसे बुरे हालात लखनऊ में देखने को मिल रहे हैं, जहां लोग जांच, इलाज और श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए भी परेशानी का सामना कर रहे हैं। हालात कितने खराब हैं इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि वरिष्‍ठ पत्रकार विनय श्रीवास्‍तव (65) बलरामपुर जिला अस्‍पताल के दरवाजे पर खड़े होकर ट्विटर पर मदद मांगते रहे, लेकिन मदद नहीं मिली और उनकी मौत हो गई।

विनय श्रीवास्‍तव ने 16 अप्रैल की शाम ट्वीट किया कि उनकी उम्र 65 साल है और उनका ऑक्‍सीजन लेवल 52 हो गया है। कोई भी डॉक्‍टर फोन नहीं उठा रहा। जब रात में कोई मदद नहीं मिली तो 17 अप्रैल को द‍िन में विनय श्रीवास्‍तव अपने बेटे के साथ जिला अस्‍पताल पहुंच गए। यहां गार्ड ने उन्‍हें अस्‍पताल में नहीं जाने दिया। चंद कदमों की दूरी पर मुख्यमंत्री कार्यालय भी था, जहां वो अंदर नहीं जा सके।

कई लोगों ने जब विनय श्रीवास्‍तव के ट्वीट को आगे बढ़ाया तो उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ के सूचना सलाहकार शलभ मण‍ि त्र‍िपाठी ने ट्वीट में रिप्‍लाई कर उनकी जानकारी मांगी। जानकारी देने के काफी देर बाद भी जब मदद नहीं मिली तो विनय श्रीवास्‍तव ने लिखा मेरा ऑक्‍सीजन लेवल 50 हो गया है और बलरामपुर जिला अस्‍पताल का गार्ड मुझे अस्‍पताल में घुसने नहीं दे रहा।

इसके बाद शलभ मण‍ि त्र‍िपाठी ने फिर से रिप्‍लाई किया कि 'पूरी जानकारी भेजिए।' इसपर विनय श्रीवास्‍तव ने ट्वीट के माध्यम से फिर से जानकारी भेजी। हालांकि जानकारी भेजने के बाद भी मदद नहीं मिल सकी। व‍िनय श्रीवास्‍तव ने आख‍िर में ट्वीट किया 'मेरा ऑक्‍सीजन लेवल 31 हो गया है, मेरी मदद कब की जाएगी।' इस ट्वीट के बाद विनय का कोई ट्वीट नहीं आया, इलाज न मिलने के कारण उनकी मौत हो गई।

विनय श्रीवास्‍तव के बेटे हर्ष‍ित इंड‍ियास्‍पेंड से कहते हैं, "हमारी वक्‍त पर मदद हो जाती तो शायद पापा को बचाया जा सकता था। हम सीएमओ कार्यलय के पास खड़े थे, ट्वीट पर मुख्‍यमंत्री के सूचना सलाहकार जवाब दे रहे थे, लेकिन मदद नहीं मिल पाई। इससे बड़ा सिस्‍टम फेलियर क्‍या होगा? मैं इतना ही कहूंगा कि नेता चुनाव में वोट मांगने आते हैं, उसके बाद आपसे कोई मतलब नहीं होता।"

ऐसा नहीं कि यह एकलौता मामला है, लखनऊ में हर द‍िन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। बेड की तलाश में अस्‍पतालों के चक्‍कर काटते हुए लोगों की मौत हो जा रही है। आलम यह है कि कोविड मरीज की तबीयत ज्‍यादा खराब हुई तो मुख्यमंत्री कार्यलय द्वारा जारी एलॉटमेंट लेटर या आम बोलचाल की भाषा में 'भर्ती स्‍लिप' के बिना कोविड अस्‍पताल में एडमिट नहीं किया जाता है।

हालांकि, भर्ती स्‍लिप की प्रकिया का बहुत ज्‍यादा विरोध होने पर 22 अप्रैल को सरकार ने इसमें कुछ बदलाव किए। अब प्राइवेट कोविड हॉस्‍प‍िटल बिना भर्ती स्लिप के भी मरीजों को एडमिट कर सकते हैं। हालांकि सरकारी अस्पताल और प्राइवेट और सरकारी मेडिकल कॉलेज के 70% बेड भर्ती स्‍लिप के तहत ही दिए जाएंगे। केवल 30% बेड पर अस्पताल प्रशासन इमरजेंसी के आधार पर तय कर सकता है।

लखनऊ में कोरोना के मामले कितनी तेजी से बढ़े हैं इसका अंदाजा ऐसे लगा सकते हैं कि 23 मार्च को लखनऊ में सक्रिय मामलों की संख्‍या 954 थी। वहीं, एक महीने बाद 23 अप्रैल को सक्रिय मामलों की संख्‍या 53,475 हो गई, करीब 5505% की बढ़त। लखनऊ में फिलहाल हर द‍िन 5 हजार से ज्‍यादा नए मामले आ रहे हैं।

जांच की दुश्‍वारियां

लखनऊ के अलावा प्रदेश के अन्‍य बड़े जिलों जैसे वाराणसी, प्रयागराज, कानपुर, मेरठ और गौतमबुद्ध नगर में भी हालात खराब हैं। लोग जांच के लिए भटक रहे हैं, इलाज तो दूर की बात है।

वाराणसी के भरुइहां गांव की रहने वाली मन्‍नी देवी (70) की तबीयत अचानक खराब हुई तो परिवार के लोग उन्‍हें लेकर वाराणसी भागे। मन्‍नी देवी को कोरोना के लक्षण थे, लेकिन जांच न हो पाने की वजह से यह तय नहीं था। दो दिन तक करीब 10 अस्‍पतालों के चक्‍कर काटने के बाद एक प्राइवेट अस्‍पताल में उनका दाख‍िला हो सका।

मन्‍नी देवी के र‍िश्‍तेदार पीयूष प्रताप सिंह (40) बताते हैं, "मन्‍नी देवी मेरी बहन की सास हैं। उनको कुछ दिनों से बुखार आ रहा था, लेकिन परिवार को लगा यह मौसम बदलने की वजह से होगा, लेकिन हालात बिगड़ते गए। अभी घर में सभी लोगों की तबीयत खराब हैं, लेकिन जांच नहीं हो पा रही। ज्‍यादातर प्राइवेट लैब जांच से इनकार कर रहे हैं और सरकारी अस्‍पताल में जांच के लिए भीड़ लगी हुई है।"

वाराणसी की तरह लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर में भी जांच के लिए लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। प्राइवेट लैब जांच से साफ इनकार कर दे रहे हैं या फिर जांच के ल‍िए मोटी रकम वसूल रहे हैं। जांच में आने वाली इन दिक्‍कतों के मद्देनजर लखनऊ प्रशासन ने 24 अस्‍पतालों और प्राइवेट लैब के नाम भी सामने रखे हैं, जहां लोग जांच करा सकते हैं। जांच के ल‍िए दाम भी तय किए गए हैं। अगर कोई व्‍यक्‍ति लैब जाकर सैंपल देता है तो उसे रुपए 700 देने होंगे, वहीं अगर घर से सैंपल कलेक्‍ट किया जाता हैं तो इसके रुपए 900 देने होंगे।

हालांकि इससे पहले भी जांच के दाम करीब-करीब यही थे, लेकिन प्राइवेट लैब दाम कम होने का हवाला देकर जांच नहीं कर रहे थे। वहीं कई लैब महंगे दाम पर जांच कर रहे थे। इसके अलावा प्राइवेट लैब में सीमित संख्‍या में सैंपल ल‍िए जाते हैं, ऐसे में इसका फायदा बड़ी संख्‍या में लोग नहीं ले पाते।

उत्तर प्रदेश में 23 अप्रैल तक करीब 3.9 करोड़ सैंपल की जांच की गई है। अकेले 23 अप्रैल को 2.25 लाख सैंपल की जांच की गई, जिसमें से 1 लाख से अध‍िक जांच आरटी-पीसीआर के माध्‍यम से की गई। यह जानकारी अपर मुख्य सचिव सूचना नवनीत सहगल ने एक प्रेस कॉनफ्रेंस में दी।

ऑक्‍सीजन की किल्‍लत

इलाज और जांच की दिक्‍कत के अलावा उत्तर प्रदेश में लोग ऑक्‍सीजन की किल्‍लत से भी जूझ रहे हैं। क्‍योंकि अस्‍पताल में बेड असानी से नहीं मिल रहे, ऐसे में लोग होम आइसोलेशन में रहते हुए ऑक्‍सीजन का प्रयोग कर रहे हैं। वाराणसी के रहने वाले विद्या सागर सिंह (53) भी कोरोना पॉजिट‍िव हैं। ऑक्‍सीजन लेवल 87 के आस-पास होने पर वाराणसी के तमाम अस्‍पतालों के चक्‍कर काट द‍िए, लेकिन कहीं बेड नहीं मिला। आख‍िर में घर में ही ऑक्‍सीजन सिलेंडर के सहारे इलाज चल रहा है।

लखनऊ के नादरगंज रिफल‍िंग सेंटर के बाहर लगी ऑक्‍सीजन सिलेंडर की लाइन। फोटो: सुम‍ित कुमार

विद्या सागर सिंह के बेटे चंदन बताते हैं, "वाराणसी के दर्जनभर अस्‍पतालों के चक्‍कर काट द‍िए, कहीं बेड नहीं है तो कहीं ऑक्‍सीजन न होने का हवाला दे रहे हैं। मैंने सोचा कि ऑक्‍सीजन स‍िलेंडर खरीद लेता हूं, लेकिन उसका दाम रुपए 45 हजार बताया गया। सिलेंडर और ऑक्‍सीजन में जमकर कालाबाजारी हो रही है। एक रिश्‍तेदार ने अपना सिलेंडर दिया है, फिलहाल उसी से काम चला रहे हैं।"

ऑक्‍सीजन की बढ़ती मांग और किल्‍लत के बीच मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने आदेश दिया कि अति गंभीर परिस्थिति को छोड़कर किसी को व्यक्तिगत रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति न की जाए। केवल संस्थागत आपूर्ति ही होगी।

इस आदेश के बाद से होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों की दिक्‍कतें बढ़ गई हैं। परिजन सुबह से शाम तक सिलेंडर रिफिल कराने के लिए भटक रहे हैं, लेकिन सिलेंडर नहीं भरा पा रहे। वहीं, कुछ सप्‍लायर दोगुने-तीगुने दाम पर चोरी-छ‍िपे ऑक्‍सीजन भर रहे हैं।

लखनऊ के रहने वाले बिलाल जाफरी बताते हैं, "ऑक्‍सीजन के ल‍िए बहुत भटकना पड़ रहा है। अब तो केवल अस्‍पतालों को ऑक्‍सीजन देने का आदेश है। मेरी मां कोरोना पॉजिट‍िव हैं, उनका ऑक्‍सीजन लेवल कम रहता है, इसलिए मुझे जरूरत पड़ रही है। सरकार को सोचना चाहिए कि हर मरीज अस्‍पताल में भर्ती नहीं है, बहुत से लोग होम आइसोलेशन में हैं, उनके ल‍िए ऑक्‍सीजन ही सहारा है।"

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