नई दिल्ली: भारत में 2 दिसंबर 2021 को ओमिक्रॉन का पहला मामला कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में पाया गया और उसके बाद से देश में जीनोम सीक्वेंसिंग की बात लोगों में बढ़ गयी। भारत में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के साथ देश की कोरोना वायरस के म्यूटेशन और नए-नए वेरिएंट पर निगरानी रखने की तैयारियों की खामियां भी उजागर होने लगीं।

देश में अब 2 लाख से ज़्यादा मामले आ रहे हैं जिनमे 8 हज़ार से ज़्यादा ओमिक्रॉन के मामले हैं, लेकिन इन 8 हज़ार मामलों के लिए कितने सैंपलों की सेकेंसिंग की गई है ये पता नहीं चल पाया है। जहां देश एक तरफ महामारी की तीसरी लहर का सामना कर रहा है वहीं दूसरी तरफ जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जाने वाले सैंपलों की संख्या रोज़ाना पॉजिटिव पाए जाने वाले आरटी-पीसीआर टेस्ट के अनुपात में कम होती जा रही है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने फरवरी 2021 में पॉजिटिव पाए जाने वाले आरटी-पीसीआर मामलों में से प्रति माह कम से कम 5% सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग करने के दिशा निर्देश जारी किए थे। लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार दूसरी लहर के दौरान जीनोम सीक्वेंसिंग के आंकड़ों में उतार चढ़ाव रहा। साल 2021 के जनवरी माह में 2207, फरवरी में 1321 और मार्च में 7806 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग हुई थी। अप्रैल से जुलाई के बीच 52619 सैंपल की सीक्वेंसिंग हुई। इसके बाद मई में 10488, जून में 12257, जुलाई में 6990 और अगस्त में 6458 सैंपल की सीक्वेंसिंग हुई। सितंबर में 2100 और अक्टूबर में करीब 450 सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए पहुंचे। नवंबर में 2458 और दिसंबर में 1,385* (*अभी तक अपलोड किये गए आंकड़ों के अनुसार) सैंपल की सीक्वेंसिंग हुई।

नवंबर 2020 यूके वेरिएंट B.1.1.7 के सामने आने के बाद सरकार ने जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए अपने बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी) के अधीन एक नेटवर्क तैयार किया जिसे इन्साकॉग नाम दिया गया। इन्साकॉग की 10 लैब में 27,800 सैंपल प्रति महीने की कुल क्षमता के साथ जीनोम सीक्वेंसिंग शुरू हुई और इसके आंकड़े इन्साकॉग के साप्ताहिक बुलेटिन में सार्वजनिक किये जाने लगे। चार दिसंबर 2021 तक 1,26,149 सैंपल की सीक्वेंसिंग हुई। इसके बाद इन्साकॉग बुलेटिन में सीक्वेंसिंग के आंकड़े जारी नहीं किये हैं। इसलिए इंडियास्पेंड के पास चार दिसंबर के बाद की जानकारी उपलब्ध नहीं है।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर जीनोम सीक्वेंसिंग पर आंकड़ों को जमा करने वाली संस्था ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन शेयरिंग आल इन्फ्लुएंजा डाटा (जीआईएस ऐड) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत ने पिछले 30 दिनों में 2,095 सीक्वेंस शेयर किये हैं और इस दौरान देश में पाए गए पॉजिटिव कोविड मामले 26,47,000 थे, यानी कि सीक्वेंस किये गए सैम्पल्स पॉजिटिव मामलों के सिर्फ 0.079% थे। पॉजिटिव मामलों पर सीक्वेंस किये गए सैम्पल्स के प्रतिशत में भारत दूसरे देशों से काफी पीछे दिखाई देता है। इंडोनेशिया, डेनमार्क और ब्रिटेन में यह प्रतिशत क्रमशः 8, 4 और 3 है वहीं भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका (1.73%) और बांग्लादेश (.214%) का प्रदर्शन भी इस मामले में बेहतर है।

नई दिल्ली स्थित जिनोमिक और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक और इन्साकॉग के सदस्य इस विषय में कहते हैं, ''हमें पहले दिन से इन स्थितियों के बारे में पूरी आशंका थी। जीनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया काफी लंबी है। मैं आपको यह बता दूं कि पूरा सिस्टम थक जाएगा लेकिन बड़ी आबादी की जीनोम सीक्वेंसिंग नहीं कर पाएंगे।"

वह देश में मौजूद लैब नेटवर्क के बारे में बात करते हुए कहते हैं, "हां, यह बात अलग है कि हमारे पास ओमिक्रॉन के आने से पहले लैब की संख्या अधिक होती तब भी हम कुछ फीसदी अधिक निगरानी रख पाते।''

कम लैब और राज्यों की उदासीनता

जीनोम सिक्वेंसिंग की शुरुआत 10 लैब से हुई लेकिन जनवरी 2022 तक इनकी संख्या 38 तक ही पहुंच पायी जिनमें से ज्यादातर लैब केंद्रीय संस्थानों की हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार सहित कई राज्य अब तक एक भी लैब तैयार नहीं कर पाए हैं।

इस दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कई बार राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखते हुए जीनोम सीक्वेंसिंग के इंतज़ाम करने के दिशा निर्देश भी जारी किए।


वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी एक वजह राज्यों में जीनोम सीक्वेंसिंग का बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं होना है।

उत्तर प्रदेश के कोविड नोडल अधिकारियों में से एक संजय कुमार ने बताया कि जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए बीएसएल 2 या फिर बीएसएल 3 लेवल की लैब की जरूरत पड़ती है। यूपी के हर जिले में यह व्यवस्था नहीं है और सिर्फ इसी के लिए इतना बड़ा बजट खर्च भी नहीं किया जा सकता। इसलिए बड़े महानगर आगरा, लखनऊ, मेरठ, प्रयागराज, बनारस इत्यादि को अलग अलग लैब से जोड़ा है।

इंडियास्पेंड से बातचीत में अपनी पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर इन्साकॉग के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने लैब नेटवर्क की जानकारी साझा करते हुए बताया कि 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में जीनोम सीक्वेंसिंग की दो ही लैब इन्साकॉग के नेटवर्क से जुड़ी हैं। यह दोनों लखनऊ स्थित सीडीआरआई और एनबीआरआई हैं जो कि भारत सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) का हिस्सा हैं। इसलिए भी राज्यों में जीनोम सीक्वेंसिंग कम हो पा रही है।

उन्होंने बताया कि बिहार में सिर्फ एक आईजीआईएमएस संस्थान में लैब है जिसने इसी साल जनवरी 2022 में जीनोम सीक्वेंसिंग करना शुरू किया है। इससे पहले बिहार से दिल्ली के एनसीडीसी लैब में ही सैंपल भेजे जा रहे थे।

बिहार कोविड टास्क फोर्स के डॉ. आशुतोष कुमार रंजन ने बताया कि प्रदेश में दो और लैब में यह सुविधा विकसित करने की तैयारी चल रही है लेकिन यह कब तक शुरू हो पाएगी इसके बारे में वह जानकारी नहीं दे सकते हैं। हालांकि डॉ. आशुतोष ने यह स्वीकार किया है कि दिल्ली तक सैंपल भेजने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शुरुआत में कई सैंपल लैब तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते थे। सैंपल को भेजने में भी एक बड़ा बजट खर्च हो रहा है।

मध्य प्रदेश में अभी भोपाल एम्स और इंदौर पीजीआई में जीनोम सीक्वेंसिंग चल रही है जो सितंबर 2021 के बाद शुरू की गई है। वहीं चंडीगढ़ में आईएमटीईसीएच, राजस्थान में केवल एमजीएमसी, पंजाब में जीएससी पटियाला इत्यादि ही इन्साकॉग से जुड़ पाई हैं।

पंजाब के स्वास्थ्य विभाग से कोविड 19 के नोडल अधिकारी राजेश भास्कर का कहना है कि उनके यहां से चंडीगढ़ और पटियाला दोनों जगह सैंपल जा रहे हैं। पिछले साल तक पंजाब से सैंपल दिल्ली एनसीडीसी और आईजीआईबी लैब भेजे जाते थे। यह पूछे जाने पर कि इन सैंपल को कैसे भेजा जाता था? उन्होंने बताया कि इन सैंपल को कूरियर किया जाता था। एक सैंपल पर करीब ₹500 से ₹700 तक का खर्च आता है।

दिल्ली के हालात भी अलग नहीं

देश की राजधानी दिल्ली भी अलग नहीं है। यहां चार लैब में जीनोम सीक्वेंसिंग हो रही है। इनमें से दो केंद्र सरकार के अधीन हैं। जबकि बाकी दो दिल्ली सरकार ने लोकनायक अस्पताल और वसंत कुंज स्थित यकृत एवं पित्त विज्ञान संस्थान (आईएलबीएस) में जुलाई 2021 में शुरू की।

लोकनायक अस्पताल के निदेशक डॉ. सुरेश कुमार के अनुसार उनके यहां रोज़ाना अधिकतम 100 सैंपल की सीक्वेंसिंग करने की क्षमता है। वहीं आईएलबीएस ‌के निदेशक डॉ. एसके सरीन का कहना है कि उनके यहां एक बार में 380 सैंपल को सीक्वेंसिंग में लाया जा सकता है।

इस आधार पर देखें तो दिल्ली सरकार के पास प्रतिदिन 480 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग करने की क्षमता है। जबकि केंद्र सरकार के अधीन नई दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) और सीएसआईआर के आईजीआईबी की क्षमता भी लगभग इतनी ही है।

यहां सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह दोनों ही लैब केवल दिल्ली के सैंपल पर काम नहीं करती हैं। यहां हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, लद्दाख और मध्य प्रदेश तक से सैंपल सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जा रहे हैं।

एनसीडीसी के निदेशक डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा, "हम सिर्फ एक राज्य के लिए अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। हमें सभी राज्यों को एक साथ लेकर चलना है। अब चूंकि आसपास के कई राज्यों से हमारे यहां सैंपल आ रहे हैं। ऐसे में अगर किसी राज्य को सीक्वेंसिंग बढ़ानी है तो उसे अपने यहां लैब भी विकसित करनी चाहिए।"

नई दिल्ली के आईएलबीएस अस्पताल की वायरोलॉजिस्ट डॉ. एकता गुप्ता ने इंडियास्पेंड से बातचीत में कहा कि दिल्ली में 23 दिसंबर 2021 को ही ओमिक्रॉन वेरिएंट का सामुदायिक प्रसार मिल चुका था। चूंकि करीब दो करोड़ से ज्यादा आबादी वाली राष्ट्रीय राजधानी में प्रत्येक मरीज की जीनोम सीक्वेंसिंग संभव नहीं है, ऐसे में अब 90% तक संक्रमित सैंपल को ओमिक्रॉन वेरिएंट से जोड़कर ही देखा जा रहा है। उन्होंने बताया कि 25 नवंबर से 23 दिसंबर 2021 के बीच 264 में से 31.06% सैंपल ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित थे। इस दौरान ओमिक्रॉन से संक्रमित 60.90% लोगों की न कोई ट्रैवल हिस्ट्री थी न ही ऐसे किसी क्लोज कांटेक्ट की जानकारी थी।

आईएलबीएस अस्पताल का यह चिकित्सा अध्ययन मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव पर उपलब्ध है।

भारत जैसे देश में चुनौतियां

एनसीडीसी के एक वैज्ञानिक ने बताया कि जब इन्साकॉग का गठन हुआ तब उसे तीन टारगेट दिए गए थे।

पहला, वायरस के अलग अलग वेरिएंट पर नजर रखना; दूसरा, क्षेत्रीय स्तर पर अलग अलग वेरिएंट के प्रसार का पता लगाना; और तीसरा, हर महीने अलग अलग राज्य से 5% सैंपल मंगाकर उनकी सीक्वेंसिंग करना। इन तीनों में से पहले दो लक्ष्यों को पूरा कर लिया गया लेकिन तीसरा लक्ष्य सबसे बड़ी चुनौती साबित हुआ।

नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) से मिली जानकारी के अनुसार जुलाई 2021 में सरकार ने हर राज्य में जगहों का चयन करते हुए प्रत्येक जगह से 30 सैंपल सीक्वेंसिंग के लिए भेजने का नियम बनाया। इसके तहत अगस्त 2021 में 36 राज्यों से 288 जगहों को चिन्हित कर 8614 सैंपल भेजने का लक्ष्य रखा लेकिन 19 राज्य इसमें फेल रहे। अगस्त के महीने में 8332 सैंपल ही सीक्वेंसिंग के लिए लैब तक पहुंच पाए। इसके बाद सितंबर से इसे आगे नहीं बढ़ाया।

"इस टारगेट को लेकर हमें पहले से ही शक था कि इसमें कामयाबी नहीं मिल पाएगी। सीक्वेंसिंग के सैंपल को लैब में -80º C और -20º C तापमान पर रखते हैं, अधिकांश लैब इसमें सक्षम नहीं है। इसके अलावा इन सैंपल को लैब तक पहुंचाने के लिए भी पूरा प्रशिक्षण जैसे सही तरह से उन्हें आईस बॉक्स में रखना और उन्हें 48 घंटे के अंदर लैब तक पहुंचाना इत्यादि नहीं दिया गया है।"

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के वायरोलॉजिस्ट डॉ. सुनीत कुमार सिंह का कहना है कि जीनोम सीक्वेंसिंग ना बढ़ पाने के पीछे विशेषज्ञों की कमी भी एक बड़ा कारण है।

'जीनोम सीक्वेंसिंग में मशीन ऑपरेशन होता है लेकिन इसके साथ तकनीकी मैन पावर की आवश्यकता भी बहुत होती है। इस मैन पावर को बेहतर ट्रेनिंग देनी होती है जिसमें काफी समय भी लगता है। जीनोम फार्म में डाटा आने के बाद इसी मैनपॉवर को एनालिसिस भी करना पड़ता है। चूंकि कोरोना महामारी ने हमें इतना वक्त दिया नहीं, ऐसे में भारत के लिए इसे विकसित करना एक बड़ी चुनौती शुरू से रही है,''

उन्होंने कहा, ''जब से कोरोना का आउटब्रेक हुआ है, कोई न कोई वेरिएंट हमारे सामने आ रहा है। ऐसे में साइंटिफिक तौर पर उनकी निगरानी भी बहुत जरूरी है लेकिन देश की इतनी बड़ी आबादी होने के कारण हर एक मरीज की निगरानी भी प्रैक्टिकल तौर पर संभव नहीं है।'' उन्होंने कहा।

डीबीटी ने जानकारी दी है कि देश में जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए लैब की संख्या बढ़ाने के लिए प्राइवेट और सरकारी दोनों ही क्षेत्रों में काम किया जा रहा है। हाल ही में सभी राज्यों को सरकारी मेडिकल कॉलेजों में लैब के लिए दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं। वहीं प्राइवेट सेक्टर को भी इसमें शामिल किया जा रहा है। उनके लिए भी अलग से आवेदन मांगे गए हैं। हालांकि इस स्टोरी के लिखे जाने तक कितने आवेदन उन्हें प्राप्त हुए हैं इसके बारे में जानकारी नहीं दी है।

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