कोविड टीकाकरण की धीमी रफ़्तार के लिए तैयारियों में कमी, कम सप्लाई, नीतियों की खामियां जिम्मेदार
सप्लाई कम होने के मुद्दे को लेकर कई राज्यों ने आवाज़ उठाई है। दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने वैक्सीन खरीदने के प्रयास शुरू कर दिए हैं और ग्लोबल टेंडर जारी करने की बात कही है।
नई दिल्ली: कोरोना महामारी से बुरी तरह जूझ रहे भारत में कोरोना से लड़ने वाली वैक्सीन लगाने की शुरुआत 16 जनवरी को हुई। लगभग चार महीने बाद भी कुल 17.72 करोड़ यानी भारत की कुल जनसंख्या के लगभग 13% लोगों को ही वैक्सीन लग पाई है। भारत में टीकाकरण की धीमी रफ्तार, कम सप्लाई और वैक्सीन को मिलने वाली मंजूरी में लगने वाले समय ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। दूसरी तरफ, कोरोना की दूसरी लहर में लगातार मौत होने और संक्रमण तेजी से फैलने से वैक्सीन की मांग और बढ़ने लगी है। इस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि भारत सरकार ने अपने देश में वैक्सिनेशन से पहले विदेश में अपनी छवि चमकाने के लिए दूसरे देशों को मुफ़्त में वैक्सीन बांट दी। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत सरकार ने 50 से ज़्यादा देशों को 6.6 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज सप्लाई किए। इनमें से, 3.5 करोड़ डोज़ मुफ़्त में भी दिए गए।
वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन और स्लॉट बुकिंग पूरी तरह से ऑनलाइन है, इसके बावजूद लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वैक्सीनेशन केंद्रों पर वैक्सीन खत्म होने की शिकायतें भी आम हो चली हैं।
यूपी के मऊ जिले के रहने वाले लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता दिव्येंदु राय भी जब वैक्सीन लगवाने गए तो उनको भी ऐसी ही समस्या से दो-चार होना पड़ा। दिव्येंदु अपने 86 वर्षीय नाना और 62 वर्षीय मां को वैक्सीन लगवाने के लिए 11 मई के दिन कोपागंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे तो स्टाफ ने बताया कि वैक्सीन तो है ही नहीं। इतने में दो लोग और पहुंचे और किसी व्यक्ति का नाम बताया तो उन्हें इंतजार करने को कहा गया। इस पर दिव्येंदु को गड़बड़ लगी और उन्होंने अधिकारियों को फोन किया। हालांकि, कई फोन करने के बाद भी वैक्सीन नहीं लगी और दिव्येंदु को भी निराश होकर वापस आना पड़ा। दिव्येंदु ने बताया कि उन्हें जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय से एक अधिकारी का नंबर दिया गया, जिसने बताया कि वैक्सीन की काफी कमी है, एक दिन में पूरे जिले के लिए सिर्फ 300 डोज ही मिल पा रहे हैं।
दिल्ली में रहने वाले भारत मल्होत्रा (37) ने वैक्सीन के पहले डोज़ के लिए, आरोग्य सेतु ऐप की मदद से 3 मई के लिए, अपने और अपनी 72 वर्षीय मां सरोज के लिए स्लॉट बुक किया था। भारत ने मॉडल टाउन के एक प्राइवेट अस्पताल (एम डी सिटी हॉस्पिटल) में सशुल्क वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था, लेकिन जब भारत मल्होत्रा अस्पताल पहुंचे तो बताया गया कि वैक्सीन खत्म हो गई है। उन्होंने मैसेज दिखाया कि स्लॉट बुक किया गया है और कंफर्मेशन भी है, लेकिन जवाब फिर वही मिला कि वैक्सीन खत्म हो गई है। आखिर में कोई और चारा न देखकर भारत अपनी मां को लेकर वापस लौट आए और वैक्सीन नहीं लग पाई।
ऐसी ही कई खबरें, जहां लाभार्थियों को वैक्सीन लगे बिना ही उन्हें टीका लगने का मैसेज और उसका प्रमाणपत्र भेज दिया गया था, देश के विभिन्न हिस्सों से आई।
लगातार घटती रफ्तार चिंता का विषय
वैक्सिनेशन के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 3 से 9 अप्रैल वाले हफ्ते में जहां कुल 2,47,46,755 डोज लगाए गए। वहीं, 24 से 30 अप्रैल वाले हफ्ते में यह संख्या घटकर सिर्फ 1,48,02,478 रह गई। 3 से 9 अप्रैल वाले हफ्ते में लगाई गई वैक्सीन की संख्या अब तक की सबसे ज्यादा है, उसके बाद से यह आंकड़ा लगातार घटता जा रहा है। 1 से 7 मई वाले हफ्ते में यह संख्या और कम होकर 1,21,62,520 डोज़ तक पहुंच गई। पिछले पांच हफ़्तों में यह संख्या सबसे कम है।
वैक्सीन की कम सप्लाई के बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि राज्यों से आग्रह किया गया है कि वैक्सीन लगाने में उन लोगों को प्राथमिकता दी जाए, जो पहला डोज़ ले चुके हैं। हर्षवर्धन के मुताबिक, राज्यों को चाहिए कि अपने यहां वैक्सीन की कुल सप्लाई का 70% उन लोगों को लगाएं जिन्हें पहले टीका लग चुका है और 30% टीके उन लोगों को लगाएं, जो पहली बार टीका लगवा रहे हैं।
अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविशील्ड वैक्सीन के पहले और दूसरे टीके के बीच के समय भी बढ़ा दिया है। 13 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, अब पहले और दूसरे के टीके के बीच में 12 से 16 हफ़्तों का अंतर रखा जाएगा। पहले यह अंतर 6 से 8 हफ़्तों का था। सरकार का यह कदम भी वैक्सीन की कमी को ही पुष्ट करता है।
वैक्सीन की सप्लाई को लेकर राज्यों की बढ़ी चिंता
सप्लाई कम होने के मुद्दे को लेकर कई राज्यों ने आवाज़ उठाई है। दिल्ली, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने वैक्सीन खरीदने के प्रयास शुरू कर दिए हैं और ग्लोबल टेंडर जारी करने की बात कही है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सरकारों ने क्रमश: 1 करोड़ और 4 करोड़ डोज़ का ग्लोबल टेंडर जारी किया है। हालांकि, विदेशी वैक्सीन को अनुमति मिले बिना ये कंपनियां वैक्सीन की डिलिवरी नहीं कर पाएंगी। दूसरी ओर विदेशी कंपनियों का यह भी कहना है कि पहले जिन देशों की ओर से ऑर्डर मिले हैं, उनको सप्लाई दी जाएगी। भारत में कोविड 19 टास्क फोर्स के हेड डॉ. वी के पॉल ने 13 मई को कहा कि विदेशी कंपनियों से बात की जा रही है, लेकिन ये कंपनियां तीसरी तिमाही के बाद ही कोई बात करने को तैयार हैं।
राज्यों का कहना है कि बिना केंद्र सरकार के शामिल हुए ग्लोबल टेंडर का कोई मतलब नहीं है। दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि ग्लोबल टेंडर का कोई मतलब नहीं है। केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही है, इसलिए हम अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसका जिम्मा केंद्र को उठाना ही चाहिए।
महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा, "राज्यों के ग्लोबल टेंडर जारी करने से बेवजह की प्रतियोगिता शुरू हो गई है। इससे सिर्फ कंपनियों का फायदा होगा। ऐसे में ज़रूरी है कि केंद्र सरकार एक ही ग्लोबल टेंडर जारी करे।"
विदेशी वैक्सीन को अनुमति मिलने में देरी, कंपनियों की अपनी प्रतिबद्धताओं और प्राथमिकताओं को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगले 3 से चार महीनों तक भारत को सीरम इंस्टिट्यूट की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के ही सहारे रहना होगा। ऐसे में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना ही होगा।
वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के बारे में, जन स्वास्थ्य अभियान के साथ काम करने वाले रिसर्च स्कॉलर रवि दुग्गल ने बताया, "सरकारें चाहें तो आपदा काल में पेटेंट अधिकार खत्म कर सकती हैं या उन्हें बाकी कंपनियों या संस्थानों के साथ साझा कर सकती हैं, जिससे बाकी कंपनियों को भी वैक्सीन बनाने की अनुमति मिल जाएगी। वर्तमान में वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए यह कदम बेहद ज़रूरी है। क्योंकि भारत जैसी बड़ी जनसंख्या वाले देश में सिर्फ़ दो कंपनियों और कुछ विदेशी वैक्सीन के भरोसे नहीं रहा जा सकता। चार महीने में भारत की मात्र 13% जनसंख्या तक वैक्सीन पहुंच पाई है, ऐसे हालात में हम तीसरी, चौथी या अन्य लहरों और कोरोना के अन्य वेरिएंट से लड़ाई के मामले में काफी पीछे छूट रहे हैं।
केंद्र सरकार की ओर से 13 मई को जारी आंकड़ों के मुताबिक, मई महीने में कुल 7.3 करोड़ वैक्सीन डोज मिलने हैं। मई के 31 दिनों के हिसाब से देखें तो एक दिन का औसत 24 लाख डोज़ से भी कम है। अप्रैल महीने की तुलना में यह औसत काफी कम है। अप्रैल महीने में औसतन एक दिन में 28 से 29 लाख डो़ज लगाए गए।
क्यों धीमी है रफ्तार
रफ़्तार धीमी होने की सबसे बड़ी वजह है वैक्सीन की सप्लाई कम होना है। इसके अलावा, सिर्फ़ दो कंपनियां ही वैक्सीन बना रही हैं और दोनों की क्षमता सीमित है। कोविशील्ड बनाने वाले सीरम इंस्टिट्यूट की उत्पादन क्षमता लगभग 25 लाख वैक्सीन प्रतिदिन की है। वहीं, कोवैक्सीन बनाने वाले भारत बायोटेक की उत्पादन क्षमता 4 से 5 लाख वैक्सीन प्रतिदिन की है। हालांकि, दोनों कंपनियों की ओर से उत्पादन क्षमता बढ़ाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन यह काफ़ी नहीं है। इसके अलावा, बाकी वैक्सीन को अनुमति मिलने में देरी और अन्य कंपनियों को वैक्सीन उत्पादन में शामिल न किए जाने की वजह से भी वैक्सिनेशन की रफ्तार काफी धीमी है। हाल में वैश्विक स्तर पर पेटेंट खत्म किए जाने को लेकर चर्चा ज़रूर शुरू हुई है, लेकिन अभी इस पर कोई निर्णय हो पाना काफ़ी दूर की बात लग रही है।
वैक्सीन की धीमी रफ़्तार के बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. जे ए जयलाल ने राज्यों को वैक्सीन देने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "भारत में सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बायोटेक को मिलाकर हर महीने 7 से आठ करोड़ वैक्सीन का उत्पादन हो रहा है, लेकिन मई के महीने में भी अभी तक कुल 17 करोड़ के आसपास वैक्सीन ही लग पाई हैं, इसका मतलब है कि वैक्सीनेशन में कुछ तो गड़बड़ी हो रही है। हमारे पास वैक्सीन तो है, लेकिन इसके वितरण में गड़बड़ी हो रही है।"
डॉ. जयलाल ने बाकी वैक्सीन को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया धीमी होने और इन सब में कोई स्पष्टता न होने की भी बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि रूस की स्पुतनिक-V वैक्सीन भारत में आ चुकी है, लेकिन उसका वितरण कब और कैसे होगा किसी को नहीं पता। बाकी की वैक्सीन को कब परमिशन मिलेगी, कब उनका वितरण होगा, इन सब चीजों को लेकर अलग-अलग तरह की धारणाएं है। वैक्सीनेशन तेज करने के लिए इन्हीं चीजों के बारे में स्पष्टता की जरूरत है।
'मई में 8 करोड़ वैक्सीन के उत्पादन की उम्मीद'
देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है कि मई महीने में कुल 8 करोड़ वैक्सीन के उत्पादन की उम्मीद है। वहीं, जून महीने में इसे बढ़ाकर 9 करोड़ किया जाएगा। भारत जैसे भारी भरकम जनसंख्या वाले देश के लिए यह संख्या काफी कम है। 13 मई को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 13 मई की सुबह तक देश भर में कुल 17.72 करोड़ डोज लगाए जा चुके हैं। कुल 13.76 करोड़ लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लगाया गया है और 3.96 करोड़ लोग वैक्सीन के दोनो डोज लगवा चुके हैं।
16 जनवरी से 12 मई तक कुल 117 दिन हो चुके हैं। अभी तक कुल 17.72 करोड़ डोज लगे हैं, इस हिसाब से एक दिन में औसतन 15 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। भारत की अनुमानित जनसंख्या 135 करोड़ है। अगर 15 लाख डोज की ही रफ़्तार रहती है, तो पूरे देश का वैक्सिनेशन करने में 900 दिन यानी लगभग ढाई साल का समय लग सकता है।
वैक्सीनेशन धीमा होने के अलावा कई जगहों पर लोगों में वैक्सीन को लेकर विश्वास भी नहीं है। ऐसे में वैक्सीन खराब होने के मामले भी आ रहे हैं। इस बारे में इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंस (बीएचयू) के प्रोफेसर वी एन मिश्रा ने हमें बताया कि लोगों में तरह-तरह की धारणाएं हैं। साइड इफेक्ट को लोग हाइलाइट कर रहे हैं। ऐसे में नोटबंदी और लॉकडाउन की तरह ही वैक्सिनेशन को भी कंपलसरी बनाना होगा। यह एक राष्ट्रीय स्तर का आदेश होना चाहिए और सब पर एक साथ लागू होना चाहिए।
प्रोफेसर मिश्रा के मुताबिक, "आने वाले एक दो महीनों में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ जाएगा और कुछ और वैक्सीन को मंजूरी मिल जाएगी। हालांकि, इतनी बड़ी जनसंख्या का वैक्सीनेशन काफी चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन हमें कम से कम आधी जनता के वैक्सीनेशन का लक्ष्य बनाना होगा। आधी जनता के वैक्सीनेशन के बाद ही हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो पाएगी। अगर हमने छह-सात महीनों में यह लक्ष्य पूरा कर लिया तो एक हद तक हम वायरस के स्प्रेड को रोक पाएंगे।"
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