ग्राउंड रिपोर्ट: शवदाह गृह भरे हुए हैं फिर भी सरकार क्यों दिखा रही हैं कोविड मौतें इतनी कम
लखनऊ में शवदाह गृहों के बाहर लम्बी कतारें लग रही हैं लेकिन कोविड से होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा काफी कम है । डॉक्टरों का कहना है कि डाटा कलेक्शन और टेस्टिंग इसके लिए ज़िम्मेदार हैं
लखनऊ: नौ अप्रैल की दोपहर के 2 ही बजे थे, लेकिन लखनऊ स्थित बैकुंठधाम विद्युत शवदाह गृह में तब तक कुल आठ शवों का अंतिम संस्कार हो चुका था। इसके अलावा 14 से अधिक शव शवदाह गृह के बाहर एम्बुलेंस में रखे हुए थे और उनके परिजन अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे।
लखनऊ के इस विद्युत शवदाह गृह में शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मोहम्मद वसीमुद्दीन उर्फ मुन्ना अपने काम में व्यस्त थे। वह अपने सहयोगी आज़ाद से पूछते हैं कि अभी कितने शव और बचे हैं? आज़ाद इसके जवाब में उन्हें बताते हैं कि बाहर 13 और शव हैं और उन्हें नहीं पता कि अभी कितने शव और आने वाले हैं।
"पिछले एक हफ्ते में इस श्मशान घाट में आने वाले शवों की संख्या में कम से कम पांच से छह गुना तक की वृद्धि हुई है। हमारा काम काफी बढ़ गया है। एक शव का अंतिम संस्कार करने के बाद हमें पूरे श्मशान स्थल को सैनेटाइज करना होता है, तभी दूसरा शव अंदर आता है," वसीमुद्दीन ने बताया।
श्मशान घाट पर क्यों लग रही यह भीड़?
वसीमुद्दीन के सहयोगी और इस विद्युत शवदाह गृह के प्रभारी आज़ाद कहते हैं, "यह भीड़ इसलिए है क्योंकि हमारे पास केवल एक बिजली की मशीन चालू हालत में है, जिससे शवों का अंतिम संस्कार होता है। दूसरी मशीन खराब पड़ी है। इसके अलावा हमारे पास स्टाफ की भी कमी है। एक शव का अंतिम संस्कार पूरा करने में लगभग 45 मिनट का समय लगता है और फिर पूरे श्मशान घाट परिसर और श्मशान घाट के कर्मचारियों को सैनिटाइज करने में 10 से 15 मिनट लग जाते हैं।"
आज़ाद ने इंडियास्पेंड को बताया कि उनके पास 6 अप्रैल को 18, 7 अप्रैल को 22, 8 अप्रैल को 19, 9 अप्रैल को 27 और 10 अप्रैल को कुल 36 शव अंतिम संस्कार के लिए आए थे। हालांकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 6 अप्रैल को लखनऊ में कोविड-19 के कारण मरने वालों की संख्या सात, 7 अप्रैल को छह, 8 अप्रैल को 18, 9 अप्रैल को 14 और 10 अप्रैल को 23 थी। ये केवल उन मृतकों की संख्या है, जो हिंदू धर्म से संबंधित हैं। अन्य धर्म के शवों का अंतिम संस्कार उनके धर्म से संबंधित श्मशान गृहों या कब्रिस्तानों में किया जा रहा है।
लखनऊ शवदाह गृह में लम्बी कतार, बाँटने लगे टोकन
लखनऊ के तालकटोरा स्थित कर्बला के मुताल्वी सय्यद फ़ैज़ी ने इण्डियास्पेंड को फोन पर बताया कि 1 अप्रैल से लेकर 13 अप्रैल तक कब्रिस्तान में आने वाले शवों की संख्या में लगभग तीन गुना इज़ाफ़ा हुआ है।
"1 अप्रैल से लेकर अब तक हमारे दोनों कर्बला में 15 शव कोविड वाले दफन किये जा चुके है और दूसरी नार्मल मौतें भी बढ़ी है। जो मौतें हो रही है उसमें से ज्यादातर बुज़ुर्ग है और ऐसा लगता है कि वो मौतें भी कोविड से ही हो रही है लेकिन क्योंकि घर मे मौत हुई है और टेस्टिंग नही हुई तो वो कोविड मौतों में नही गिनी जा रही। पहले वाली लहर में भी इतने कम समय मे इतनी मौते नही हुई थी," फ़ैज़ी ने बताया।
आपको बता दें कि विद्युत शवदाह गृह के मशीनों में केवल उन्ही शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है, जिनकी मौत कोविड-19 महामारी के कारण हो रही है।
पूरे देश की तरह उत्तर प्रदेश भी घातक कोरोना वायरस की दूसरी लहर से जूझ रहा है। हर दिन यहां कोरोना मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है और राजधानी लखनऊ इससे सबसे अधिक प्रभावित है। 11 अप्रैल तक के आंकड़ों के अनुसार भारत के सबसे अधिक आबादी वाले इस राज्य में पिछले दो हफ्तों में अब तक 71241 कोरोना के मामले दर्ज हुए हैं, जिसमें 20195 मामलों के साथ राजधानी लखनऊ हॉटस्पॉट बना हुआ है। राज्य में अब तक 9,154 मौतें हुई हैं।
कोरोना के बढ़ते मामलों के साथ-साथ उससे होने वाली मौतों की संख्या पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अस्पताल और प्रशासन मौतों की संख्या को कम करके दिखा रही हैं।
श्मशान में पहुंचने वाले शवों और अस्पताल के आंकड़ों में क्यों है अंतर?
लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के एक वरिष्ठ डॉक्टर के अनुसार, "सरकार के पास केवल उन लोगों का डाटा है, जिनकी मृत्यु सरकारी अस्पतालों में हो रही है। लेकिन जो मौतें अस्पतालों के सामने या फिर निजी अस्पतालों में हो रही हैं, उनका रिकॉर्ड रखना बहुत ही मुश्किल है।"
वह आगे कहते हैं, "इसके अलावा एक मुश्किल यह भी हो रही है कि कोरोना की इस दूसरी लहर में मरीजों के अंदर के लक्षण भी पहली लहर की तुलना में बहुत अलग है। कई मामले तो ऐसे भी आए हैं, जिसमें मरीज की कोविड आरटीपीसीआर रिपोर्ट नेगेटिव आई है, लेकिन सीटी स्कैन से पता चला है कि उनके फेफड़ों को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है, जो कि कोरोना के कारण ही संभव है। इसलिए कोरोना के मामलों का पता लगाने के लिए अब उसकी टेस्टिंग तकनीक में भी बदलाव की जरूरत है।"
केजीएमयू में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्षा प्रोफ़ेसर तूलिका चंद्रा भी कहती हैं, "कोरोना वायरस का जो नया स्ट्रेन है, वह बहुत तेज़ी से विकसित हो रहा है। इस नए स्ट्रेन का पता लगाने में वर्तमान आरटीपीसीआर किट केवल 70 से 80% तक ही प्रभावी हैं। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि जब ये किट बनाए गए थे, तब वायरस का नया म्यूटेंट स्ट्रेन सामने नहीं आया था। यदि नए स्ट्रेन के मुताबिक टेस्टिंग किट बदले जाते हैं, तो कोरोना के कारण होने वाली मौतों और सामान्य मौतों का अंतर स्पष्ट देखा जा सकेगा।"
इन दोनों चिकित्सकों के बयान के आधार पर हम यह देख सकते हैं कि मौतों की संख्या में यह अंतर तब है जब इसका मिलान सरकार द्वारा घोषित कोरोना पॉजिटिव मरीजों से किया जा रहा है। जैसा कि इन दोनों चिकित्सकों ने बताया कि कई मरीज ऐसे भी हैं, जिनमें कोरोना के पूरे लक्षण हैं लेकिन नए स्ट्रेन के कारण आरटीपीसीआर टेस्ट भी उनमें कोरोना की पुष्टि नहीं कर रहा है। अगर ऐसे मरीजों की मृत्यु हो जाती है, तो उनकी भी संख्या को कोरोना के कारण होने वाले मौत के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होती है। ऐसे में आप मौतों की वास्तविक संख्या और सरकारी डाटा में अंतर का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं।
केजीएमयू अस्पताल के बाहर अपने पिता को खोने वाले विपिन कुमार बताते हैं, "मेरे पिता को सांस लेने की तकलीफ़ थी और उन्हें हल्का बुखार भी था। हम उन्हें केजीएमयू ले गए, लेकिन उन्हें भर्ती नहीं किया गया और इसके एक घंटे बाद ही अस्पताल के बाहर ही उनकी मृत्यु हो गई। उनका कोविड टेस्ट नहीं हुआ था, लेकिन मेडिकल स्टाफ ने हमें बताया कि उनमें कोरोना के साफ लक्षण थे। हालांकि किसी भी स्वास्थ्य कर्मी ने शव के दाह-संस्कार के बारे में हमें कोई सलाह नहीं दी, इसलिए हम शव को सीतापुर स्थित अपने गांव लेकर चले आए, जहां पर उनका नियमित रूप से दाह संस्कार किया गया।"
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता डॉ. सुधीर कुमार से जब पूछा गया कि कोरोना के कारण होने वाली मौतों का रिकॉर्ड कैसे रखा जा रहा है, तो उन्होंने बताया कि कोविड-19 संक्रमण के कारण मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति का रिकॉर्ड रखा जा रहा है। यह पूछे जाने पर जिनकी मौत अस्पताल के सामने हो रही है, उनका रिकॉर्ड वे कैसे रख रहे हैं? इस सवाल के जवाब में डॉ. सुधीर कहते हैं, "अगर अस्पताल में उनका रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है, तो शवों के दाह संस्कार के दौरान श्मशान गृहों पर उनके परिजनों से मौत के कारणों के बारे में पूछा जा रहा है।"
यह पूछे जाने पर कि एक परिजन को कैसे पता चलेगा कि उनके रिश्तेदार की मृत्यु कैसे हुई, इस पर डॉ. सुधीर ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
मृत्यु प्रमाणपत्र पर भी कोविड का ज़िक्र नहीं
"हम मृत्यु प्रमाणपत्र पर मृत्यु के कारण के रूप में गुर्दा फेलियर, हॉर्ट अटैक आदि लिखते हैं। किसी की मौत कोविड के कारण हुई है, ऐसा मृत्यु प्रमाण पत्र में नहीं लिखा जाता है," केजीएमयू के प्रवक्ता ने बताया।
लखनऊ के त्रिवेणी नगर के निवासी डीसी श्रीवास्तव की 73 वर्षीय सास का निधन बीते 8 अप्रैल को कोरोना के कारण हुआ। उन्होंने इंडियास्पेंड को बताया, "मेरी सास पूरी तरह से ठीक थीं, बस उनकी पेट में कुछ गड़बड़ थी और उन्हें लूज मोशन हो रहे थे। हम उन्हें डॉक्टर को दिखाने के लिए पहले बलरामपुर अस्पताल और फिर केजीएमयू ले गए। इन दोनों अस्पतालों से हमें बिना किसी चेकअप के लोहिया अस्पताल में रेफर कर दिया गया। रेफर होने के बावजूद भी हमें लोहिया अस्पताल में भर्ती नहीं मिली। फिर कई स्थानीय मीडिया के लोगों ने हमारी खबर को दिखाया, तब जाकर हमें भर्ती मिली।"
श्रीवास्तव आगे बताते हैं, "7 अप्रैल को मेरी सास का कोविड आरटीपीसीआर टेस्ट हुआ, जिसमें वह कोरोना पॉजिटिव पाई गईं। उन्हें शाम 6:30 बजे कोविड अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां रात के 10:30 बजे उनकी मौत हो गई। हमें जो मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया, उसमें मृत्यु के कारणों का कोई ज़िक्र नहीं था, लेकिन एम्बुलेंस चालक ने हमें बताया कि मृतक का अंतिम संस्कार विद्युत श्मशान गृह में ही होगा। विद्युत श्मशान गृह पर हमें अंतिम संस्कार कराने के लिए 9 घंटे का इंतजार करना पड़ा।"
हालात से बेबस और दुःखी डीसी श्रीवास्तव बहुत निराशा से कहते हैं, "लखनऊ की स्थिति बहुत ही खराब है, लोग खुद को ही कोरोना से बचाएं।"
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