चेन्नई: कोविड-19 से दुनियाभर में मरने वालों की संख्या को लेकर काम कर रहे 6 वैश्विक विशेषज्ञों ने इंडियास्पेंड को बताया है कि भारत सरकार ने देश में कोविड-19 से अधिक मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की कार्यप्रणाली को समझने में गलती की है। भारत का मानना है कि डब्ल्यूएचओ ने जो आंकड़े पेश किए हैं वह सही नहीं है।

महामारी के इस दौर में मृत्यु दर का सटीक अनुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है. कोविड-19 महामारी की ऐसी विषम परिस्थिति हेल्थ एजेंसियों ने अत्यधिक मृत्यु दर के आंकड़ो को आधार बनाया- यानी अपेक्षित और प्रत्यक्ष तौर पर कोविड के कारण देखी गई मौतों के बीच के अंतर पर भरोसा कर अनुमान लगाया ताकि कोविड-19 से होने वाली वास्तविक मृत्यु दर का अंदाजा लगाया जा सके.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में डेटा एंड एनालिटिक्स के निदेशक स्टीव मैकफीली ने 21 मार्च को एक ऑनलाइन चर्चा के दौरान कहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन इस सप्ताह अतिरिक्त मृत्यु दर के वैश्विक और अलग-अलग देशों के अनुमान जारी करेगा. अत्यधिक मृत्यु दर अनुमान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें दुनिया भर के देश शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सहित अन्य देश कोविड से हुई मौतों की सही संख्या को पंजीकृत करने में असफल रहे। इसकी कई वजहें रही जिसमें अपर्याप्त परीक्षण से लेकर बीमारी से होने वाली मृत्यु दरों को दबाना भी शामिल रहा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की फरवरी 2021 में शुरू हुई प्रक्रिया में उसके 194 सदस्य राज्य चर्चा शामिल थे, लेकिन भारत सरकार दिसंबर 2021 से संगठन की कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताते हुए इस प्रक्रिया रोक रही है। इंडियास्पेंड के पास भारत और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच हुए संवाद के आंतरिक दस्तावेज हैं जिसमें उसने आंकड़ा साझा करने का वादा तो किया पर अब तक उसे पूरा नहीं किया। मैकफीली का कहना है कि पूरी दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसे ये आपत्तियां हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान भारत की आपत्तियों के नोट के साथ जारी किए जाएंगे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को 2021 के अंत तक कोविड-19 से अनुमानित मृत्यु दर 40,00,000 होने की उम्मीद है जो भारत की आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट की गयी कोविड-19 की 4,80,000 मौतों का लगभग आठ गुना ज्यादा है।

इंडियास्पेंड ने इस संबंध में जब भारत सरकार का पक्ष जानना चाहा तो स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल में जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्ति साझा की। मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और सरकार के बीच तकरार पर न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख का हवाला देते हुए इस बात का दावा किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रक्रिया से जुड़े विशेषज्ञों के साथ-साथ बाहरी विशेषज्ञों ने आंकड़े जुटाने में जो भी तरीका अपनाया है वह गलत है या भ्रामक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान पर भारत की आपत्तियों के केंद्र में डेटा है- उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति, उस डेटा की उपलब्धता और उनकी उपयोगिता। जब पत्रकारों और शोधकर्ताओं को यह स्पष्ट हो गया कि भारत में कोविड-19 से होने वाली सभी मौतों की गिनती नहीं की जा रही है तो इंडियास्पेंड सहित मीडिया संगठनों ने राज्य-स्तरीय नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) पोर्टल जो एक जिले में सभी मौतों की गिनती करते हैं, तक पहुंच बनाना शुरू कर दिया। खासतौर से मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों की गिनती में अंतर दिखाई दिया। सीआरएस डेटा ने पिछले वर्षों में सीआरएस-पंजीकृत मौतों और महामारी के महीनों की मौतों के बीच काफी अंतर दिखाया। इसके साथ-साथ कोविड-19 से हुई मौतों को लेकर प्रस्तुत आंकड़ों और प्रत्यक्ष तौर पर देखी गई मृत्यु दर के बीच एक बड़ा अंतर देखने को मिला।


भारतीय पत्रकारों ने 18 राज्यों के लिए 2020 और 2021 (साथ ही पिछले वर्षों, जहां उपलब्ध हो) के लिए सीआरएस-आधारित मासिक मृत्यु दर डेटा को शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराया और यही डेटा अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमानों का आधार बने हैं। ये कम आश्चर्य की बात नहीं है कि सरकारी स्रोत से एकत्रित डेटा के उपयोग से भारत सरकार इत्तेफाक नहीं रखती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार के बीच के संवाद से पता चलता है कि सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को मासिक मृत्यु दर का अनुमान उपलब्ध कराने की पेशकश की थी, लेकिन बाद में ऐसा नहीं किया गया।

डेटा के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को 'टियर-II' देशों में वर्गीकृत कर रखा है लेकिन इस वर्गीकरण पर भारत सरकार ने आपत्ति जताई है। सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति कहती है, "इराक जैसे देश, जो एक विस्तारित जटिल आपातकाल से गुजर रहा है, का टियर-I श्रेणी में शामिल किया जाना विश्व स्वास्थ्य संगठन के टियर I / II के रूप में देशों के वर्गीकरण और इन देशों में मृत्यु दर के दावे पर संदेह पैदा करता है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वर्गीकरण किसी देश में डेटा की गुणवत्ता और उन्हें साझा करने की उसकी इच्छा दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। मैकफीली ने इंडियास्पेंड को बताया, "कुछ देशों का कहना है कि उनके पास अच्छा डेटा है लेकिन उन्होंने इसे उपलब्ध नहीं कराने का फैसला किया है। यह उनका विशेषाधिकार है, लेकिन इसी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन्हें उसी के अनुसार वर्गीकृत किया है।"

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भारत में मृत्यु दर के अच्छे आंकड़े हैं। उन्हें साझा करने से इनकार करने की वजह से इसका वर्गीकरण टियर-II के रूप में हुआ है। मसला बेहद संवेदनशील है लिहाजा भारत के साथ चर्चा जारी है। जेरूसलम में हिब्रू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्री, सांख्यिकीविद् और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोविड-19 मृत्यु दर मूल्यांकन समूह के तकनीकी सलाहकार समूह (TAG) के सदस्य एरियल कार्लिंस्की बताते हैं, "उपरोक्त कारणों से डब्ल्यूएचओ ने 18 राज्यों के डेटा का उपयोग कर विभिन्न राज्यों के बीच मौत की सामान्य दर को आधार बनाकर मृत्यु दर की गणना की गई है।"

भारत सरकार द्वारा अपनी प्रेस विज्ञप्ति में किए गए दावों के विपरीत, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान उन मॉडलों पर भरोसा नहीं करते हैं जिनमें तापमान में मौसमी बदलाव जैसे कारक शामिल हैं। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में सांख्यिकी और जैव सांख्यिकी के प्रोफेसर जॉन वेकफील्ड जिन्होंने भारत के लिए मॉडलिंग का नेतृत्व किया था TAG सदस्य के तौर पर बताते हैं, "वे मॉडल केवल उन देशों के लिए आवश्यक हैं जिनके पास मासिक मृत्यु दर डेटा नहीं है, जबकि भारत के मामले में डेटा पत्रकारों के काम के माध्यम से ये आंकड़ें उपलब्ध हैं।"

विवाद का एक अन्य बिंदु यह है कि एक वर्ष में होने वाली मौतों की बेसलाइन क्या होनी चाहिए। महामारी के बिना मृत्यु दर क्या होती, ये अनुमान लगाने की दिशा में पहला कदम होगा। इससे पता चलेगा कि महामारी के दौरान मौत की कितनी अधिकता थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के लिए आधारभूत मृत्यु दर के लिए 2019 के लिए अपने वैश्विक स्वास्थ्य अनुमान डेटासेट पर भरोसा किया है। ये वो डेटा है जिस पर भारत सरकार को आपत्ति है। सरकार ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि "भारत में डेटा संग्रह और प्रबंधन की एक मजबूत प्रणाली है"।

हालांकि भारत के लिए सबसे हालिया राष्ट्रीय मृत्यु दर का अनुमान 2019 के नमूना पंजीकरण प्रणाली के माध्यम से ही उपलब्ध है और ये अक्टूबर 2021 में सामने आया। इसके अतिरिक्त, भारत सरकार ने GHE 2019 डेटा को अपने प्रकाशित शोध और अन्य कार्यों में प्रयोग किया है। टोरंटो स्थित सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के संस्थापक निदेशक और मृत्यु दर के एक प्रमुख वैश्विक विशेषज्ञ प्रभात झा जो TAG के सदस्य भी हैं, ने इंडियास्पेंड को बताया, ''एसआरएस 2019 जीएचई 2019 की तुलना में मौतों की कम संख्या को दर्शाता है। इसका मतलब है कि यदि कुछ भी हो, तो महामारी के दौरान मृत्यु दर डब्ल्यूएचओ के अनुमानों से अधिक है।"

मिशिगन विश्वविद्यालय में बायोस्टैटिस्टिक्स और महामारी विज्ञान के अध्यक्ष प्रोफेसर भ्रामर मुखर्जी जो TAG के सदस्य भी हैं, ने इंडियास्पेंड को बताया, "मौत की रिपोर्टिंग प्रणाली को दुरुस्त करने और उसमें पारदर्शिता की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ और अन्य हितधारक भारतीय नीति निर्माताओं के साथ मिलकर भविष्य में क्राउडसोर्सिंग से बेहतर डेटा प्राप्त करने की योजना बना सकते हैं। जनगणना के घरेलू सर्वेक्षण में इस प्रश्न को जोड़ा जा सकता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य और सार्वजनिक नीति के लिए मौतों और इसके कारणों पर नज़र रखना महत्वपूर्ण है।"

अकादमिक पत्रों के अन्य अनुमानों ने इसी तरह का अनुमान पेश किया है। प्रभात झा ने भी अपने डेटा रिसर्च में जून 2020 से जुलाई 2021 के बीच 32 लाख मौतों का अनुमान जताया है।

प्रो. मुखर्जी कहते हैं, "कई डेटा स्रोतों वाले कई मॉडल समान अनुमानों के साथ आए हैं। सभी तरीकों और मॉडलों के माध्यम से तीन से चार मिलियन अतिरिक्त मौतें महामारी के वास्तविक टोल को दर्शाती हैं।" कुल मौतों के इस अतिरिक्त मृत्यु दर के अनुमान के बावजूद भारत में प्रति मिलियन मौतें काफी कम हैं और देश ने अपने टीकाकरण प्रयासों को तेज करके तीसरी लहर से बेहतर तरीके से निपटा है।"

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिसंबर 2021 के बाद से कई बार भारतीय अधिकारियों को अपनी कार्यप्रणाली के बारे में बताया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आखिरकार अगली महामारी से बचाव की तैयारियों के लिए अतिरिक्त मृत्यु दर अनुमान तो जरूरी हैं। मैकफीली कहते हैं, "ये अनुमानों के लिए उपयोग किए जाने वाले विश्वसनीय और स्थापित तरीके हैं। हम जानते हैं कि अंतिम प्रकाशन में इसका उल्लेख होगा और भारत इससे खुश नहीं होगा। लेकिन सभी देशों के हित में हमें इन संख्याओं को अभी से बाहर लाने की जरूरत है।"

नोट: इस स्टोरी को मिशिगन विश्वविद्यालय में बायोस्टैटिस्टिक्स के अध्यक्ष और महामारी विज्ञान के प्रोफेसर भ्रामर मुखर्जी की टिप्पणियों से अपडेट किया गया है। 29 अप्रैल को डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया है कि अधिक मृत्यु दर का अनुमान अगले सप्ताह जारी किया जाएगा।

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