नई दिल्लीः ऑक्सीजन स्तर गिरने पर अर्जुन शर्मा (परिवर्तित नाम) अपने पिता के लिए दिल्ली के अस्पतालों में बेड का इंतजाम करने निकले तो उन्हें अलग ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उनके पिता के आरटी-पीसीआर टेस्ट में कोविड-19 की रिपोर्ट नेगेटिव थी लेकिन उनमें बीमारी के कई गंभीर लक्षण दिख रहे थे मसलन उनका ऑक्सीजन लेवल गिर गया था और सीटी स्कैन में फेफड़ों में संक्रमण और निमोनिया का पता चला था।

पूर्वी दिल्ली निवासी और केंद्र सरकार के कर्मचारी शर्मा ने बताया, "हमने जिन डॉक्टरों से सलाह ली उनका कहना था कि मेरे पिता को कोरोना होने की पूरी आशंका है और उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट के लिए तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। लेकिन आरटी-पीसीआर टेस्ट नेगेटिव होने की वजह से अपने पिता के साथ वह जिन तीनों अस्पतालों में गए वे उन्हें भर्ती करने के लिए तैयार नहीं हुए। अस्पताल प्रबंधन का कहना था कि अगर उनके पिता की रिपोर्ट कोविड-19 के लिए पॉजिटिव होती तो वे उन्हें भर्ती करने की कोशिश कर सकते थे लेकिन टेस्ट में नेगेटिव होने की वजह से उन्हें बेड उपलब्ध नहीं कराया जा सकता। वे अपने बेड को केवल कोविड-19 के पॉजिटिव लोगों के लिए रख रहे हैं। कई दिनों के संघर्ष और दिल्ली में सिविल सोसाइटी के वॉलंटियर्स की मदद से शर्मा अपने पिता को पूर्वी दिल्ली स्थित एक सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने में सफल रहे और तब से वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।

ऐसे में बड़ा सवाल यह कि क्या कोविड-19 संक्रमण का पता लगाने के लिए जरूरी आरटी-पीसीआर टेस्ट में नेगेटिव रिपोर्ट गलत तरीके से आ रही है और हाल के दिनों में इसका दोष टेस्ट की नए कोविड वेरिएंट को पकड़ने में अक्षमता को दिया जा रहा है। बहुत से ऐसे लोगों का टेस्ट किया जा रहा है जिनमें कोविड-19 के लक्षण साफ-साफ दिख रहे हैं लेकिन आरटी-पीसीआर टेस्ट में रिपोर्ट नेगेटिव आ रही है। देश के कई हिस्सों में तो टेस्टिंग किट की कमी के कारण लोग टेस्ट ही नहीं करवा पा रहे हैं लेकिन उनमें कोविड-19 के लक्षण दिख रहे हैं। दोनों ही स्थितियों में आरटी-पीसीआर टेस्ट के सटीक होने की निगरानी बहुत से लोगों के लिए आफत बन रही है।

दिल्ली सरकार ने 23 अप्रैल को एक ऑर्डर जारी कर इस बात को माना था कि आरटी-पीसीआर टेस्ट में कोविड-19 के लिए नेगेटिव लोगों को दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती नहीं किया जा रहा है। ऑर्डर में यह भी कहा गया था कि चिकित्सा सहायता की जरूरत वाले किसी भी मरीज को इलाज देने से मना नहीं किया जाना चाहिए। विशेषज्ञ काफी समय से बड़े स्तर पर टेस्ट किए जाने की जरूरत लगातार बता रहे हैं। जिन लोगों को सांस की गंभीर बीमारी या इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण हैं उनकी कोविड-19 के लिए जांच की जानी चाहिए क्योंकि उनके लक्षण एक समान हैं।

क्या है कोविड-19 का पता लगाने के अन्य तरीके?

पंडित भगवत दयाल शर्मा पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, हरियाणा में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन डिपार्टमेंट की इंटेंसिव केयर यूनिट में सीनियर रेजिडेंट कामना कक्कड़ का कहना है कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों में यह बहुत सामान्य है और यह बिल्कुल भी हैरान करने वाला नहीं है कि टेस्ट के रिजल्ट में यह दिखाई नहीं देता। आरटी-पीसीआर एक अच्छा टेस्ट है लेकिन समस्याएं इस बात को लेकर हो सकती हैं कि स्वैब कैसे लिया गया है, क्या यह सैंपल लेने वक्त पर्याप्त गहराई में गया था या नहीं या फिर टेस्ट कराने में देरी हो गई हो और वायरस ऊपरी रेस्पिरेटरी रीजन से निकलकर फेफड़ों के अंदर पहुंच गया हो। तो इन सभी परिस्थितियों में आरटी-पीसीआर टेस्ट का रिजल्ट नेगेटिव आ सकता है। डॉ. कक्कड़ का कहना है कि इसी वजह से डॉक्टरों को केवल लैब रिपोर्ट से नहीं, बल्कि लक्षणों को देखकर भी बीमारियों को पहचानने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

कोविड-19 के मरीजों की अधिक संख्या और टेस्ट की कमी पर डॉ. कक्कड़ कहती हैं कि सीटी स्कैन और एक्स-रे का इस्तेमाल किया जा सकता है और डॉक्टर कोविड-19 की पहचान के लिए इन रिपोर्ट्स को आधार बना सकते हैं, खासतौर पर ऐसी स्थिति में जब लोगों को टेस्ट करवाने में मुश्किल हो रही है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि जब एक व्यक्ति बुखार और सांस लेने में परेशानी के साथ आता है, एक सीनियर रेजिडेंट के तौर पर मुझे पता है कि ये कई बीमारियों के लक्षण हैं -- यह कोविड-19, हार्ट अटैक, डेंगू, स्क्रब टाइफस, चिकनगुनिया या एसिडिटी भी हो सकता है। तो ऐसे में क्लीनिकल फैसला बहुत अहम है जिससे इन बीमारियों के अंतर को बताया जा सके। अक्सर जूनियर डॉक्टरों के फ्रंटलाइन पर होने और सिस्टम पर अधिक दबाव के कारण अधिकारी भर्ती करने के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट जैसे लैब पैरामीटर पर जोर दे रहे हैं। ये सबसे बड़ी दिक्कत पैदा कर रही है।

डॉ. कामना का यहां तक कहना है कि मान लीजिए अगर हमारे पास कोविड-19 के लिए विश्वसनीय आरटी-पीसीआर टेस्ट नहीं होता तो क्या होता? क्या एक डॉक्टर के तौर पर हम एक मरीज में बीमारी को लेकर क्लीनिकल मेजरमेंट के आधार पर इलाज नहीं करते?

गलत नेगेटिव रिपोर्ट कब और क्यों?

डायग्नोस्टिक्स की भाषा में एक 'गलत नेगेटिव' तब होता है जब किसी व्यक्ति को कोई विशेष बीमारी होती है लेकिन उसके लिए डायग्नोस्टिक टेस्ट बीमारी को पकड़ने में नाकाम रहता है। यह तब होता है जब टेस्ट में इस्तेमाल की गई तकनीक सटीक नहीं है या उस बीमारी को पकड़ने के लिए विशिष्ट या संवेदनशील नहीं है। यह ऐसी स्थिति में भी हो सकता है जब टेस्ट करने वाले लैब कर्मी कम प्रशिक्षित हों या इस्तेमाल किए गए उपकरण अच्छी क्वालिटी के नहीं हों। ऐसा भी हो सकता है कि टेक्नोलॉजी अच्छी है और सैंपल सही तरीके से लिया गया है लेकिन लैब तक सैंपल पहुंचाने में प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया हो। इसका एक बड़ा कारण जो हम ऊपर बता चुके हैं वह यह कि सैंपल संक्रमण होने के सही समय पर नहीं लिया गया हो।

वेरिएंट्स के साथ कोई अन्य जुड़ाव?

केंद्र सरकार का कहना है कि गलत नेगेटिव को नए SARS-CoV-2 v वेरिएंट्स से नहीं जोड़ा जा सकता। सरकार की ओर से 16 अप्रैल 2021 को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया जा चुका है कि आरटी-पीसीआर टेस्ट ब्रिटेन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और डबल-म्युटेंट वेरिएंट्स को पकड़ने से नहीं चूकता क्योंकि भारत में हो रहे टेस्ट दो से अधिक जीन को निशाना बनाते हैं।

कोविड-19 के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट SARS-CoV-2 वायरस पर तीन जीन की मौजूदगी को खोजते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर, शाहिद जमील ने बताया कि इन जीन में अधिक बदलाव नहीं हुआ है और इस वजह से पहले से इस्तेमाल किए जा रहे आरटी-पीसीआर टेस्ट इन जीन की पहचान करने में सक्षम हैं। वैज्ञानिक जिन नए वेरिएंट्स की स्टडी कर रहे हैं उनके आरटी-पीसीआर टेस्ट की कोविड-19 के लिए पॉजिटिव रिजल्ट देने की क्षमता पर कोई बड़ा असर पड़ने की आशंका नहीं है। हालांकि जमील का कहना है कि टेस्ट के कारगर होने की जांच के लिए क्वालिटी को लेकर बिना किसी क्रम के जांच और टेस्टिंग किट की निगरानी की जानी चाहिए।

इस बारे में देश की बड़ी डायग्नोस्टिक्स चेन, थायरोकेयर के प्रमुख अरोकिआस्वामी वेलुमणि का कहना है, ''हम भी आरटी-पीसीआर टेस्ट के कोविड-19 को पकड़ने में सटीक नहीं होने को लेकर चिंतित हैं। सरकार ने हमें हर महीने निर्धारित सरकारी लैब में 10 पॉजिटिव और नेगेटिव सैंपल भेजने के लिए कहा है जहां हमारे टेस्ट रिजल्ट की पुष्टि की जाती है। यह इन टेस्ट की लगातार होने वाली निगरानी है जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे सटीक हैं और हम सही तरीके से टेस्टिंग कर रहे हैं।''

कोविड-19 का टेस्ट कब करवाना चाहिए?

कोविड-19 टेस्ट करवाने का सही समय क्या होना चाहिए इस बात को लेकर कई भ्रांतियां हैं जिसका निराकरण किया जाना जरूरी है। कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से बताए गए तरीकों में टेस्ट कब करवाना चाहिए इस बारे में कोई विशेष दिशा निर्देश नहीं है। इंडियास्पेंड ने डब्ल्यूएचओ से इस बारे में सवाल किया तो एक प्रवक्ता ने ईमेल पर जानकारी दीः आमतौर पर आरटी-पीसीआर टेस्ट "बहुत अधिक सटीक" होते हैं लेकिन "कम वायरल लोड से गलत नेगेटिव रिजल्ट की आशंका बढ़ सकती है।"

SARS-CoV-2 का वायरल लोड कब कम होने की संभावना होती है? इस सवाल पर डब्ल्यूएचओ प्रवक्ता ने कहा कि आमतौर पर वायरल लोड लक्षणों के शुरू होने से पहले एक से तीन दिनों और कम परेशानी वाले मरीजों (पांच से सात दिन) के लिए बीमारी के शुरुआती दिनों में अधिक रहता है और गंभीर मरीजों में यह लंबी अवधि तक अधिक रह सकता है।

किसी व्यक्ति को टेस्ट कब करवाना चाहिए? इस सवाल पर प्रवक्ता का कहना था, "इसका कोई तय समय नहीं है, केवल उनमें लक्षणों के दिखने के मामले को छोड़कर, उन्हें जितना जल्दी हो सके टेस्ट करवा लेना चाहिए।" लक्षणों के दिखने में संक्रमित होने के बाद घंटों से कुछ दिन तक का समय लग सकता है और इसी कारण से टेस्टिंग का कोई समय तय नहीं किया गया है।

आसान शब्दों में कहा जाए तो व्यक्ति को अपनी समझ का इस्तेमाल करना चाहिए और अगर वह किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आया है जो कोविड-19 के लिए टेस्ट में पॉजिटिव मिला है या उसमें लक्षणों के दिखने की शुरुआत हो गई है तो उसे जितना जल्दी हो सके टेस्ट करवाना चाहिए। उसे लक्षणों के बढ़ने तक इंतजार नहीं करना चाहिए।

निकट संपर्कों के बारे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि संपर्क में आए सभी लोगों को टेस्ट करवाने की जरूरत नहीं है लेकिन उन्हें क्वारेंटाइन होना चाहिए और अगर उन संपर्कों में लक्षण नहीं दिखते तो उनका टेस्ट क्षमता होने पर करवाया जा सकता है।

प्रवक्ता ने कहा, "एक नेगेटिव टेस्ट रिजल्ट से इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकते कि उस व्यक्ति को बाद में कोविड-19 नहीं होगा।" गलत नेगेटिव का कारण "खराब सैंपलिंग या प्रोसेसिंग" हो सकता है। जब मेडिकल सिस्टम पर दबाव होता है तो मानवीय गलती होने की आशंका बढ़ सकती है।

केंद्र सरकार ने टेस्टिंग को लेकर रणनीति पर दस्तावेज जारी किए हैं। इन्हें शुरुआत में अपडेट किया जाता था लेकिन मई 2020 से ऐसा नहीं किया गया है। इस रणनीति पर राज्यों को
सितंबर 2020
में एडवाइजरी जारी की गई थी। इन दस्तावेजों में यह नहीं बताया गया है कि किसी व्यक्ति के संक्रमण का कब टेस्ट होना चाहिए।
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