नई दिल्ली: भारत में औसत व्यक्तिगत दान की संख्या कोविड19 महामारी के दौरान 43% से बढ़ी है, ऐसा कहना है चैरिटी ऐड फाउंडेशन (सीएएफ), एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था, की सितम्बर 24 को जारी की गयी एक रिपोर्ट का। यह रिपोर्ट विभिन्न शहरों में रहने वाले 2,000 भारतीयों पर किये गए एक सर्वे पर आधारित है।

इस सर्वे में शामिल 60% से ज़्यादा लोगों ने कहा कि सरकारों और व्यवसायों को महामारी के दौरान और ज़्यादा दान करना चाहिए था।

इंडिया गिविंग रिपोर्ट 2021 में लोगों के प्रतिदिन के दान जैसे पैसों के रूप में, सामान के रूप में, या सामाजिक कार्यों के रूप में, को देखा गया और पाया कि 85% लोगों ने "महामारी के "डायरेक्ट रिस्पांस" में समाज को सहयोग दिया। तीन में से दो लोगों ने पैसे या सामान के रूप में दान या सामाजिक योगदान दिया और 10 में से तीन लोगों ने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या पड़ोसियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जो कि भारत में एक परम्परा है।

स्टडी के अनुसार, पिछले एक साल में औसत दान की राशि साल 2019 के रुपये 10,941 से बढ़ कर साल 2020 में रुपये 15,628 हो गयी। स्टडी में देखे गए अन्य ट्रेंड्स में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की बजाए स्थानीय संस्थानों को दिए जाने वाले दान में बढ़ोतरी देखी गयी।

इस रिपोर्ट के पहले भारत के सीएएफ के वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स 2021 स्थान में सबसे बड़ी उछाल देखी गयी थी। इस इंडेक्स में भारत 10 साल के औसत में साल 2020 में 82 से 14 स्थान पर पहुँच गया था। यह उछाल भारत में व्यक्तिगत दान में बढ़ोतरी के ट्रेंड को दर्शाती है, सीएएफ इंडिया के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अविजीत कुमार ने कहा।

'पहली लहर में दान वैसे ही आया जैसे आपदा के समय आता है'

कोविड19 महामारी, जिसमें भारत में 446,081 लोगों की जान गयी है, ने देश में कई और समस्याओं को जन्म दिया है। इसने देश के स्वास्थ्य संसाधनों पर खासा बोझ डाला है, देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है और लाखों प्रवासी मजदूरों के रोज़गार छीन लिए हैं। घबराये हुए लोग जीवन रक्षक दवाओं और ऑक्सीजन की खोज में भटक रहे थे। लेकिन इन सभी व्यस्थाओं के बिगड़ने के बावजूद, लोग, स्वयं सेवक, गैर-सरकारी संस्थाएं और समुदाय आगे आये।

"पहली लहर के प्रभाव ठीक वैसे ही थे जैसे कि आप किसी आपदा के समय देखते हैं, बल्कि और बड़े स्तर पर थे," अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलानथ्रॉपी (सीएसआईपी) के निदेशक इंगरीद श्रीनाथ बताते हैं।

"जिस समय में लोगों की जानें गयी, कई लोगों के रोजगार छूट गए उस समय लोग आगे आये। और जब ये संकट ख़त्म नहीं हुआ था -- जो कि अभी भी नहीं हुआ है -- जो भी लोग, जैसे भी मदद कर सकते थे उन्होंने की। जो लोग आर्थिक तौर पर मदद नहीं कर सकते थे उन्होंने जानकारी के माध्यम से अपना योगदान दिया।"

करीब 51% दानदाताओं, जिनकी पारिवारिक आय रूपये 1 लाख से ज़्यादा है, ने सीएएफ को बताया कि उन्होंने कोरोनाकाल में सामान्य से "ज़्यादा" दान दिया है। तीन में से एक (33 %) लोग, जिनकी मासिक आय रूपये 50,000 से ज़्यादा है, ने नए और अलग कारणों के लिए दान दिया। करीब 33% जिनकी मासिक आय 30,000 से ज़्यादा है ने अपना योगदान ऐसे लोगों को दिया जो महामारी से जूझ रहे थे।

कम से कम $1.27 बिलियन का योगदान सिर्फ 52 दिनों में प्राइम मिनिस्टर सिटीजन अस्सिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन (पीएम केयर्स) फण्ड में कोविड राहत के लिए किया गया, हमारी मई 2020 की समीक्षा में पाया गया, प्राइवेट कंपनियां जो कि घाटे में चल रही हैं उन्होंने भी इसमें बड़ी धनराशियों का योगदान किया।

लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के नियमों ने भी ऑनलाइन डोनेशन को बढ़ाया। सर्वे में पाया गया कि 44% भारतीय जिनका इंटरव्यू इस सर्वे के लिए लिया गया था वो डिजिटल वॉलेट के इस्तेमाल को प्राथमिकता देते हैं, साल 2019 में ऐसे सिर्फ 28% लोग थे। गिव इंडिया, जो कि भारत के सबसे बड़े डोनेशन प्लेटफॉर्म्स में से है, ने पहले लॉकडाउन के बाद अप्रैल 10, 2020 को इंडिया कोविड रिस्पांस फण्ड बनाया। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस फण्ड, जिसमे रुपये 220 करोड़ जमा किये गए, में प्रतिदिन योगदान करने वाले लोगों की संख्या 3,50,000 थी।

इसमें एक बार किये गए योगदान जो कि रुपये 50 से रुपये 5 करोड़ तक थे। पेमेंट की वेबसाइट रेज़रपे ने भी लॉकडाउन के पहले महीने, मार्च 24 से अप्रैल 23, में ऑनलाइन डोनेशन में 180% की वृद्धि रिपोर्ट की।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों को, या तो सीधे तौर पर या फिर सामुदायिक तौर पर, प्रभावित किया। बहुत से परिवार आजीविका छिन जाने या आमदनी कम हो जाने की वजह से अपने भविष्य के प्रति असुरक्षित हो गए। ऐसे में भारतीय लोग एक दुसरे की मदद को आगे आये और प्रवासी भारतीयों ने भी कोविड 19 राहत कोषों में बड़ी संख्या में और बड़ी राशियों से मदद की, श्रीनाथ ने बताया।

दान के अनौपचारिक तरीके ज़्यादा प्रचलित

भारत में साल 2019 तक धार्मिक संस्थाओं को दिया गया दान ही परोपकार का सबसे प्रचलित तरीका था, सीएएफ सर्वे ने बताया। हालाँकि, इस साल धार्मिक संस्थानों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता दूसरे पायदान पर रही और दोस्तों, रिश्तेदारों और परिवार वालों को दिए जाने वाली सहायता इसके ऊपर रही। इस प्रकार की सहायता ने चैरिटी और गैर-लाभकारी संस्थाओं को दिए जाने वाले योगदान को पीछे छोड़ दिया।

धार्मिक और समुदायों से सम्बंधित योगदान भारत में काफी ज़्यादा हैं और ये देश की संस्कृति का एक हिस्सा भी है। चूँकि इसे कर्तव्य के तौर पर देखा जाता है न कि दान के तौर पर, इस वजह से इसका ज़िक्र सर्वे में नहीं हो पता है और व्यक्तिगत योगदान भारत में अनदेखे रह जाते हैं, हमने नवंबर 2019 में रिपोर्ट किया था। श्रीनाथ कहते हैं कि इस प्रकार के दान भारत के हर वर्ग में पाए जाते हैं।

साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस तरीके के दान को प्राप्त करने वालों में धार्मिक और सामुदायिक संस्थाएं होती हैं जो कि भारत में हर रोज़ होने वाले दान का 90% है। भारत में व्यक्तिगत दान कम दिखाई देता है, सेंटर फॉर एशियाई फिलैन्थ्रॉपी एंड सोसाइटी के डूइंग गुड इंडेक्स 2021 के अनुसार। इस इंडेक्स में भारत को 18 एशियाई देशों में 'ओके' की श्रेणी में रखा गया है।

स्थानीय स्तर की मदद में विश्वास बढ़ा

करीब तीन में से एक (33%) प्रतिभागियों ने ऐसी चैरिटी में योगदान दिया जो उनके स्थानीय समुदायों को मदद करती हो जबकि छह में से एक ने अंतरराष्ट्रीय चैरिटी में अपना योगदान कम कर दिया, सर्वे के अनुसार।

"स्थानीय स्तर पर मदद करने के तरीके को लोग ज़्यादा पसंद करते हैं क्योंकि इसमें मदद करने वाले लोग अपने योगदान का सीधा असर देख सकते हैं," कुमार कहते हैं। "यह रिपोर्ट बताती है कि यह बात सच भी है कि खासकर ऐसे लोगों के लिए जिनकी मासिक आय रुपये 50,000 और 90,000 के बीच है, पढ़े-लिखे मध्यम वर्ग वाले लोग, जो कि अपने निवेश को लेकर सजग रहते हैं।"

लोगों को ज़्यादा दान के लिए क्या प्रोत्साहित करता है? "ये भरोसा की उनका पैसा कैसे खर्च किया जा रहा है" और "गैर-लाभकारी संस्थाओं/चैरिटेबल सेक्टर में ज़्यादा पारदर्शिता" को पहले और तीसरे सबसे ज़्यादा प्रतिक्रिया मिली हैं, जबकि "एक व्यक्ति के व्यक्तिगत परिस्थितियों में सुरक्षित महसूस करने" को दूसरी सबसे ज़्यादा प्रतिक्रियाएँ प्राप्ति हुई, सीएएफ की रिपोर्ट के अनुसार।

गैर-लाभकारी संस्थाओं के नियमों और पारदर्शिता के मानक भारत में कम हैं, श्रीकांत कहते हैं। गाइडस्टार जैसे प्लेटफार्म, जो कि दानदाता को विश्वसनीय संस्थानों को ढूंढने में मदद करते हैं, होने के बावजूद भी चैरिटी संस्थानों के काम करने के तरीके में पारदर्शिता की कमी होने के धारणा बनी हुई है।

वित्तीय अस्थिरता का उदारता पर असर

अधिकतर लोग भावनाओं के कारण दान करते हैं: सर्वे में भाग लेने वाले लगभग आधे लोगों (49%) ने सीएएफ को बताया कि दान देने से उन्हें अच्छा लगता है, और पांच में से दो (40%) लोगों ने कहा कि वो सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए दान देते हैं। तीन में से करीब एक (35%) ने कहा कि वो अपने से कम सक्षम लोगों की सहायता करना चाहते हैं। इस साल कोविड 19 और इसके प्रभावों की जानकारी की वजह से लोगों ने बहुत दान दिया है, अतुल सतीजा, गिव इंडिया के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर कहते हैं।

टैक्स की बचत भी कुछ लोगों (8%) के दान की वजह थी। गैर-लाभकारी और सामाजिक प्रगति वाली संस्थाओं को दिए जाने वाले दान के बदले दिए जाने वाली कर में कम छूट भी लोगों के द्वारा दिए जाने वाले दान में कमी का एक कारण है, डूइंग गुड इंडेक्स 2021 में बताया गया।

सरकार को दानदाताओं को ऐसे मुद्दों जो प्रगति को बढ़ावा देते है के लिए दान देने ले लिए प्रोत्साहित करना चाहिए वहीं गैर-लाभकारी संस्थाओं के धनोपार्जन को और सरल करना चाहिये, कुमार कहते हैं।

हालाँकि, महामारी के दौरान हुए वित्तीय असंतुलन ने भी परोपकार के तरीकों को प्रभावित किया है: रिपोर्ट में बताया गया कि ऐसे लोगों, जिन्हें वित्तीय असुरक्षा का डर था, के सामान्य दान को बंद करने की सम्भावना अन्य लोगों की अपेक्षा दो गुनी थी।

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