मुम्बई: साल 2022 के मार्च और अप्रैल में 'हीट वेव' ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। हमने भारतीय मौसम विभाग (IMD) से जो पिछले 12 साल के आंकड़े हासिल किए हैं उससे जाहिर होता है कि अप्रैल 2022 में कई मौसम केन्द्र ऐसे रहे जहां अत्यधिक तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को भी पार कर गया।

हालांकि 45 डिग्री सेल्सियस को पार करने वाला तापमान किसी एक क्षेत्र में हीट वेव घोषित करने का कोई एकमात्र मानदंड नहीं है।

अप्रैल 2022 में भी इनमें से अधिकांश मौसम केंद्रों में 45°C तापमान रिकॉर्ड किया गया। उदाहरण के लिए, अप्रैल 2010 में ऐसे 11 मौसम केंद्र थे जहां कुल 23 बार तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया। एक मौसम केंद्र में एक ही दिन में 45 डिग्री सेल्सियस पार करने को एक उदाहरण के तौर पर लिया जाता है। साल 2019 में 13 केंद्रों में ऐसा 37 बार गर्मी की सीमा टूटती दिखी तो 2022 में 25 केंद्रों में कुल 56 बार ऐसा होता दिखा। वो भी तब जब भारत में 2010 से अब तक देश में कुल 204 मौसम केद्रों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

अप्रैल 2022 का ही आंकड़ा देखें तो पाएंगे कि इस महीने में सबसे ज्यादा 146 बार हीट वेव और अत्यधिक हीट वेव का अनुभव किया गया। ये संख्या 2010 के बाद दूसरे नम्बर पर आती है। तब 404 बार हीट वेव और अत्यधिक हीट वेव की घोषणा की गई थी।

अप्रैल 2022 में विभिन्न मौसम केंद्रों में गर्मी ने अत्यधिक तापमान के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और अध्ययन बताता है कि अब से ये सब सामान्य सी बात हो जाएगी।

18 मई, 2022 को प्रकाशित यूनाइटेड किंगडम की नेशनल मेटरोलॉजिकल सर्विस की एक स्टडी में कहा गया है कि उत्तर-पश्चिम भारत और पाकिस्तान में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की लहर अब जलवायु परिवर्तन के कारण 100 गुना अधिक होने की संभावना है।


हीट वेव की वजह से हीट स्ट्रोक यानी लू लगने और हीट एक्जॉर्शन यानी गर्मी से होने वाली थकावट जैसी शारीरिक दिक्कतें बढ़ सकती हैं, यहां तक कि मौत भी हो सकती है, कर्मचारियों की काम करने की क्षमता और कृषि उत्पादकता पर भी इसका असर पड़ सकता है। किसी भी देश को खाद्य असुरक्षा की स्थिति का भी सामना कर पड़ सकता है।

मौसम की अन्य चरम घटनाओं के विपरीत, हीट वेव ज्यादा समय तक ठहरता है और इसका प्रभाव भी दीर्घकालिक होता है। आमतौर पर चक्रवात किसी भी क्षेत्र को एक दिन तक प्रभावित कर सकता है लेकिन हीट वेव 15 दिन तक खिंचता है, इस तरह की एक रिपोर्ट हमने जून 2020 में प्रकाशित की थी।

ऐसी गर्मी पहले कभी नहीं देखी

यदि किसी मौसम केंद्र में अधिकतम तापमान 45°C या इससे अधिक होता है, या तापमान सामान्य से 4.5°C से 6.4°C अधिक होता है, तो मौसम विभाग इसे हीट वेव घोषित करता है। एक प्रचंड हीट वेव का मानदंड अधिकतम तापमान 47 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक है, या तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है और इस प्रकार एक जगह पर हीट वेव का अनुभव किया जा सकता है, भले ही उसका पूर्ण तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से कम क्यों न हो।

मौसम विभाग के हिसाब से हीट वेव घोषित करने के लिए मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस, पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस और तटीय केंद्रों में 37 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।

देश के कई इलाकों में इस बार मार्च महीने में ही दोपहर के समय उच्च तापमान पाया गया और 33.1 डिग्री सेल्सियस के साथ 122 साल के इतिहास में पहली दफा सबसे गर्म महीना रिकॉर्ड किया गया। इससे पहले मार्च 2010 में 33.9 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया था।

यही ट्रेंड अप्रैल में भी बना रहा जब जब उत्तर पश्चिम भारत और मध्य भारत में औसत अधिकतम तापमान भी 122 वर्षों में सबसे अधिक था। यहां तक कि पूरे देश में इस साल तीसरा उच्चतम औसत अधिकतम तापमान दर्ज किया गया। इससे पहले 2010 में सबसे ज्यादा तापमान था और दूसरी बार 2016 में ऐसा हुआ था।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के रिसर्च और सर्विसेज डिविजन से प्राप्त आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि इस साल अप्रैल महीने में राजस्थान का गंगानगर 6 बार 45 डिग्री सेल्सियस तापमान को पार कर गया। तीन तो लगातार 28, 29, और 30 अप्रैल को ही थे। 20 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच महाराष्ट्र के चंद्रपुर में 5 बार 45 डिग्री सेल्सियस तापमान पार हुआ। ऐसा ही कुछ 18 से 30 अप्रैल के बीच झारखंड के डाल्टनगंज में हुआ।

अप्रैल 2022 में अप्रत्याशित गर्मी ने इस बार कई मौसम केंद्रों पर अत्यधिक तापमान के अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए जिसमें डाल्टनगंज, इलाहाबाद, झांसी, लखनऊ, धर्मशाला, अलवर, जैसलमेर और पंचमढ़ी शामिल हैं।

भारत के किसी भी मौसम केंद्र ने अप्रैल 2020 और 2021 में 45 डिग्री सेल्सियस तापमान को पार नहीं किया था। 2011 और 2015 के बीच भी बहुत कम स्टेशन ऐसे थे जो 45 डिग्री सेल्सियस तापमान को पार कर पाए थे।

मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक आर.के. जेनामणि बताते हैं कि 2020 और 2021 एकदम अलग साल था। इस दौरान एक भी स्टेशन ऐसे नहीं रहे जहां तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा रहा हो। ये ऐसे गर्मी के मौसम थे जब लगातार 2 चक्रवात आए, एक गंगा के मैदानी भागों में पूर्वी हवाओं के साथ और दूसरा पश्चिमी विक्षोभ भी काफी सक्रिय था।

यहां तक कि धर्मशाला, पंचमढ़ी और मडिकेरी के हिल स्टेशन भी अप्रैल 2022 में असामान्य रूप से गर्म थे। अपने गर्म मौसम के लिए पहचाने जाने वाले महाराष्ट्र के विदर्भ में भी अधिकतम तापमान महज चार दिनों के अलावा सभी दिनों में सामान्य से अधिक था। पिछला महीना भी दिल्ली के लिए 72 वर्षों में दूसरा सबसे गर्म अप्रैल था, जहां औसत अधिकतम तापमान 40.2 डिग्री सेल्सियस था, जो 2010 में 40.4 डिग्री सेल्सियस से 0.2 डिग्री सेल्सियस कम था।

मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने मीडिया को दी गई एक प्रस्तुति में बताया- मार्च ने 2010 के बाद से इस साल सबसे अधिक हीट वेव को झेला, लेकिन अप्रैल की बात करें तो 2010 अब तक का सबसे गर्म साल रहा है क्योंकि उस दौरान बड़े पैमाने पर देश के पूर्वी हिस्सों में ही ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई थीं। इस साल केवल उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत ने ही इसे अनुभव किया और इस तरह ये दूसरा सबसे गर्म महीना साबित हुआ।

महापात्रा ने इस असामान्य गर्मी के लिए कम बारिश को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, "पूर्व, उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत में बहुत अच्छी बारिश हुई, जिसने तापमान में वृद्धि नहीं होने दी, जबकि उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में कम बारिश हुई।

महापात्रा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की मात्रा को कोई भी निर्धारित नहीं कर सकता है, लेकिन निश्चित रूप से पिछले 50 वर्षों के आंकड़े अधिकतम तापमान में समग्र तौर पर बढ़त की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।

गर्म होती जलवायु

तापमान में वृद्धि को लेकर विज्ञान पूरी तरह से स्पष्ट है.

'भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आंकलन' शीर्षक वाली पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 21वीं सदी के मध्य (2040-2069) तक हीट वेव की अखिल भारतीय औसत आवृत्ति प्रति मौसम लगभग 2.5 घटनाओं तक बढ़ जाएगी जो 21वीं सदी (2070-2099) के अंत तक बढ़कर लगभग तीन हो जाएगी।

जलवायु संचार संगठन, क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक प्रेस ब्रीफिंग में इंपीरियल कॉलेज लंदन स्थित ग्रांथम इंस्टीट्यूट के रिसर्च एसोसिएट मरियम जकारिया का कहना है, "भारत में हाल के उच्च तापमान (अप्रैल 2022) में जलवायु परिवर्तन की संभावना अधिक थी। मानव गतिविधियों के वैश्विक तापमान में वृद्धि से पहले, हमने इस महीने की शुरुआत में 50 वर्षों में लगभग एक बार भारत में गर्मी देखी होगी, लेकिन अब यह बहुत अधिक है आम घटना जैसी। अब हम हर चार साल में एक बार इस तरह के उच्च तापमान की आशंका से इनकार नहीं कर सकते।''

उन्होंने कहा, "जब तक शुद्ध (ग्रीनहाउस गैस) उत्सर्जन बंद नहीं हो जाता, तब तक तापमान में वृद्धि और भी सामान्य होता जाएगा।"

जकारिया ने अपने सहयोगी फ्रेडरिक ओटो के साथ हीट वेव के ताजा विश्लेषण में पाया कि मानव गतिविधियों के कारण उच्च वैश्विक तापमान के परिणामस्वरूप भारत में गर्मी पहले से ही सामान्य सी बात है।

उनका यह विश्लेषण एक अन्य अध्ययन से भी मिलता है जिसे ब्रिटेन के मौसम विज्ञान कार्यालय ने 18 मई 2022 को जारी किया था।

अध्ययन से पता चलता है कि 2010 के औसत तापमान से अधिक हीट वेव की प्राकृतिक संभावना (जो कि 1900 के बाद से अप्रैल और मई को मिलाकर अत्यधिक तापमान था) 312 वर्षों में एक बार होती है। वर्तमान परिदृश्य में, जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए, हर 3.1 साल में एक बार इसके बढ़ जाने की संभावना है। वहीं, जलवायु परिवर्तन के अनुमानों के अध्ययन में ये भी पाया गया कि सदी के अंत तक यह हर 1.15 साल में एक बार बढ़ जाएगा।

ब्रिटेन की स्टडी के एक नोट में कहा गया है कि हालांकि ये नया रिकॉर्ड संभावना पर आधारित है और जलवायु वैज्ञानिकों को मई के अंत तक इंतजार करना होगा, जब अप्रैल-मई के सभी तापमान रिकॉर्डों को समेटा जाएगा, यह देखने के लिए कि क्या वर्तमान हीट वेव 2010 में अनुभव किए गए हीट वेव के स्तरों से अधिक होगी।

हीट वेव्स के संपर्क में आने से हीट एक्जॉशन हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप थकान, कमजोरी, चक्कर आना, सिरदर्द, मितली, उल्टी, मांसपेशियों में ऐंठन और पसीना भी आ सकता है। यह भी हीट वेव का कारण बन सकता है, जिसमें 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक के तापमान के साथ-साथ बेहोशी, दौरे या कोमा के लक्षण शामिल हैं, जो संभावित रूप से घातक स्थिति है। 1992 से 2015 के बीच, देश में हीट वेव से 24,223 मौतें हुईं। हमने जून 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था जिसमें इस बात का जिक्र था कि भारत हीट स्ट्रोक से होने वाली मौतों को कम कर सकता है।

इसके अलावा, भारत में जिस दिन अधिक गर्मी होती है और तापमान में 27 डिग्री सेल्सियस से 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, श्रमिकों की उत्पादकता में 4% तक की गिरावट दर्ज की जाती है। बढ़ते तापमान का असर फसलों पर भी पढ़ता है। फसलों में बदलाव (Crop Turnaround) का समय प्रभावित होता है। कुछ फसलें तेजी से भी पकती हैं और फिर अपनी पोषक सामग्री खो देती हैं जिससे संभावित रूप से अल्पपोषण या कुपोषण जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2021 की रिपोर्ट में बताया था कि कैसे 2019 में गंभीर खाद्य असुरक्षा 1.64% की दर से बढ़ी। हमने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया था कि कैसे तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से गंभीर खाद्य असुरक्षा बढ़ जाती है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने बताया- "उपलब्ध आंकड़े स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि भारत-पाक क्षेत्र के लिए आने वाले दशकों में हीट वेव की संख्या, उनकी अवधि, कवर क्षेत्र और तीव्रता सभी बढ़ने वाली हैं। हमारे पास हीट वेव को लेकर पूर्वानुमान उपलब्ध हैं जो त्वरित उपायों में मदद करते हैं लेकिन हमें कृषि, श्रम जैसे विशिष्ट क्षेत्रों के अनुरूप लंबी अवधि की नीतियों की आवश्यकता है ताकि उन क्षेत्रों में लोगों की मदद की जा सके जो हीट वेव्स से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।"

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