भारत जलविद्युत परियोजनाओं को बंद करे, क्यों ऐसा चाहते हैं पर्यावरणविद
जलविद्युत परियोजनाओं से निकलने वाली मीथेन गैस जलवायु परिवर्तन को और बढाती है, अध्ययनों के अनुसार
मुंबई: ग्लास्गो में क्लाइमेट समिट COP26 के शुरू होने के एक महीने पहले, 69 देशों की 300 से ज़्यादा संस्थाओं ने सरकारों से जलवायु परिवर्तन की राशि यानी क्लाइमेट फण्ड को 'झूठे' या 'गलत' क्लाइमेट सोल्युशन जैसे नए जलविद्युत बाँध बनाने के लिए इस्तेमाल ना करने की गुज़ारिश की। उन्होंने अपील की कि इन बांधों को राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के लक्ष्यों, जो कि ग्लोबल वार्मिंग पर किये गए 2015 के पेरिस समझौते में किये गए थे, से निकला जाये।
इस अपील में भारत के 26 पर्यावरण संगठन शामिल थे जो कि जलविद्युत परियोजनाओं को स्वच्छ और स्थिर मानते हुए उनका समर्थन करते थे। पर्यावरणविद पिछले एक दशक में किये गए कुछ अध्ययनों (यहाँ और यहां) की और इशारा करते हैं, जो कि बताते हैं कि जलविद्युत बाँध बड़ी मात्रा में मीथेन, एक ग्रीनहाउस गैस जो कि कार्बन डाइऑक्साइड से 28-34 गुना हानिकारक है, का उत्सर्जन करते हैं।
साल 2019 में, भारत ने बड़े जलविद्युत घरों को 'अक्षय ऊर्जा' के स्त्रोतों के रूप में घोषित किया -- इसके पहले सिर्फ 25 मेगावॉट से कम की परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता था -- जिसके चलते इन परियोजनाओं के निर्माताओं को बहुत सी सुविधाएँ जैसे आसान ऋण भुगतान, सहायक सुविधाओं जैसे सड़क, बाढ़ से बचाव के लिए वित्तीय सहायता भी मिलने लगी। अगस्त 2021 में, पर्यावरण मंत्रालय ने हिमालय के क्षेत्र में कई कारणों से रुकी हुई निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं को फिर से शुरू करने की सिफारिश की।
हालाँकि, जानकारों ने इस ओर इशारा किया कि जलविद्युत बाँध प्रदूषण फैलाते हैं और साथ ही प्राकृतिक आपदाओं को भी निमंत्रण देते हैं। "जलविद्युत का साफ़, स्थिर होना और इसे कोयले के विकल्प के रूप में देखने के विचार में कोई सच्चाई नहीं है," हिमांशु ठक्कर ने कहा. ठक्कर साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के साथ कार्यरत हैं और इस अपील में शामिल भी हैं।
उच्चतम न्यायालय द्वारा 2013 की उत्तराखंड के केदार घाटी में आई बाढ़, जिसमे करीब 5,000 लोगों की जाने गयी, की जांच के लिए गठित की गयी समिति ने जलविद्युत परियोजनाओं के इस 'आपदा प्रभावित' क्षेत्र में विस्तार पर उचित पर्यावरण अध्ययन की बात की थी। समिति ने तर्क दिया कि ये बाँध प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को काफी बढ़ा देते हैं।
भारत में 4,407 बड़े बाँध हैं जो कि चीन (23,841) और अमेरिका (9,263) के बाद विश्व में तीसरी बड़ी संख्या है। इन बाँधों की स्थापित जलविद्युत क्षमता 46 गीगावॉट है जो कि महाराष्ट्र की रोज़ाना की बिजली आवश्यकता का दो गुना है। इसमें से अधिकतर (112 गीगावॉट या 78%) उत्तरी हिमालय राज्यों में स्थित हैं। इसके अलावा 38 बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं नवंबर 2020 तक निर्माणाधीन हैं।
भारत ने साल 2030 तक अपनी अक्षय ऊर्जा की क्षमता को 450 गीगावॉट तक करने का लक्ष्य रखा है और अभी तक इसमें 146 गीगावॉट, जिसमे बड़े जलविद्युत बाँध (31%), सौर और पवन ऊर्जा (69%) शामिल हैं, स्थापित की जा चुकी है।
जलविद्युत सही विकल्प नहीं
जलविद्युत बाँध मीथेन का स्रोत कैसे हैं? अध्ययनों के अनुसार, जलाशयों के नीचे सड़ने वाले वनस्पति उत्सर्जन पैदा करते हैं। साथ ही, नदियां अपने साथ ना सिर्फ बड़ी मात्रा में गाद और जैविक तत्व लाती हैं बल्कि कृषि प्रक्रियाओं से पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, उर्वरक और मानव मल भी लाती हैं जो कि शैवाल को बढ़ने में मदद करते हैं जो मीथेन बनाने में सहायक होते हैं। शोध ये भी बताते हैं कि जलाशयों में पानी का स्तर हमेशा घटता, बढ़ता रहता है और जब पानी का स्तर कम होता है तब मीथेन पर्यावरण में फ़ैल जाती है।
"भारत का जलविद्युत परियोजनाओं का पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में देखना गलत है," मंथन अध्ययन केंद्र के श्रीपद धर्माधिकारी ने कहा। "लेकिन जैसे कोयले में उत्सर्जन ताप विद्युत घर की क्षमता के अनुसार होता है उससे अलग जलविधुत बाँधों में मीथेन का उत्सर्जन बदलता रहता है। हिमालय के क्षेत्रों में बाँधों के कारण होने वाले प्रकृति के नुकसान की वजह से उत्सर्जन ज़्यादा होता है।"
केंद्रीय बिजली मंत्री राज कुमार सिंह ने मार्च 2021 में लोक सभा के एक उत्तर में कहा कि कोयले से स्वच्छ ऊर्जा की और जाने के लिए उठाये गए कदम के तौर पर सरकार ने जलविद्युत बाँधों को अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत घोषित किया है।
"साल 2020 में विश्व बैंक द्वारा स्थापित विश्व बाँध आयोग ने सबसे पहले विश्व के बड़े बाँधों की प्रभावशीलता और प्रदर्शन की जाँच की," ठक्कर ने कहा। "इस संस्था ने यह पाया कि बाँध पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं और इसमें बहुत ज़्यादा प्राकृतिक और आर्थिक सम्पदाओं का खर्च होता है।"
जहां ग्लोबल वार्मिंग में मीथेन उत्सर्जन का, कार्बन डाइऑक्साइड के बाद, दूसरा बड़ा योगदान है, वहीं इसका प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड से 28-34 गुना ज़्यादा गर्म है, इंडियास्पेंड ने अगस्त 2021 में रिपोर्ट किया। इसके अलावा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जलाशयों से पिछले आंकलन से 29% ज़्यादा है और "इस उत्सर्जन की वृद्धि अधिकतर पहले अंकित की गयी मीथेन 'डी गैसिंग' से हुई है जिसमे मीथेन बाँध से होकर आगे की धारा में बुलबुलों के रूप में ऊपर आ जाती है," वाशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी, अमरीका, और कनाडा के मोंट्रियल स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्यूबैक के एक आंकलन के अनुसार।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
उत्तराखंड के चमोली में फरवरी 2021 में आई आपदा के दौरान, ग्लेशियर के बड़े टुकड़े ऊपरी हिमालय के रोंती पीक से पहाड़ों से होते हुए 1,800 मीटर नीचे आये। इस बीच ये पत्थरों, गाद से मिलते हुए एक बड़े मलबे के बहाव में तब्दील हुए जिसने सड़कों, पुलों और जलविद्युत बांधों को तबाह कर दिया। करीब 200 लोगों की इस घटना में मौत हुई।
"हमारी 'स्वच्छ' (ऊर्जा) की समझ बहुत ही संकीर्ण धारणा कि 'बाँध धुआँ नहीं छोड़ते' से आती है," धर्माधिकारी ने कहा। "लेकिन बड़े बाँधों ने बहुत ज़्यादा सामाजिक और प्राकृतिक नुक्सान, जैसे जंगलों की कटाई, जैव विविधता का नुक्सान और उपेक्षित समुदायों की विस्थापना, पहुँचाया है।"
भारत में साल 2000 के बाद नदी पर सीधे बनाये गए कई जलविद्युत संयंत्र स्थापित किये गए। इन संयंत्रों में पारंपरिक बाँधों की तरह बड़े जलाशय नहीं होते, इसलिए ये पर्यावरण पर सीधे तौर पर कम प्रभाव डालते हैं। इन संयंत्रों की स्थापना के लिए निजी क्षेत्रों को क्योटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत आने वाले संयुक्त राष्ट्र क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (CDM) के तहत छूट मिलती है। क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो कि राष्ट्रों को ग्रीन हाउस गैसों को कम करने के लिए प्रतिबद्ध करती है, मानसी अशर, हिमधारा एनवायरनमेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव की शोधकर्ता, ने बताया।
"हिमालयी क्षेत्र में अधिकतर जलविद्युत संयंत्र जलवायु की दृष्टि से कमजोर और पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों जैसे किन्नौर, चम्बा, लाहौल-स्पीति में आते हैं। नदी पर सीधे बनाये गए इन बाँधों में बड़े स्तर पर नदी के ऊपर और अंदर निर्माणकार्य शामिल होता है जिसके लिए पहले से ही कमजोर इलाके में ड्रिलिंग मशीन से खुदाई की जाती है," अशर ने बताया। "इसमें कई स्तर पर पर्यावरण जांच से बचा गया है।"
बड़े बाँधों के निर्माण से विस्थापित होने वाले समुदायों को भी पुनर्वासित नहीं किया जाता है। पांग बांध, 1970 के दशक में भारत में बनाये गए कई बड़े बाँधों में से एक; हीराकुंड बाँध, स्वतंत्र भारत का पहला बड़ा बाँध; और नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बाँध ये सभी प्रोजेक्ट ऐसे हैं जहाँ पुनर्वास का काम अभी भी अधूरा है, इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2020 में रिपोर्ट किया।
बहुत सी परियोजनाएं बंद कर दी गयी या फिर उनमे देर हुई क्योंकि ये भूमि विवाद, वन और पर्यावरण मंजूरी, पुनर्वास, भूवैज्ञानिक अनिश्चितताओं, पैसों की कमी जैसे मुद्दों में फंस गयी, ऊर्जा पर गठित स्थाई समिति ने अगस्त 2021 में लोक सभा में बताया। समिति ने ये भी बताया कि निर्माणाधीन 24 जलविद्युत परियोजनाओं में बढ़ाया हुआ समय 12 से 189 महीने है और बढ़ी हुई लागत करीब 473%।
"भारत में निजी क्षेत्र जलविद्युत परियोजनाओं में आने वाली भारी लागत की वजह से इसके निर्माण से दूर रहता है। लेकिन सरकारी क्षेत्र इन परियोजनाओं के निर्माण के लिए आगे आता रहा है," ठक्कर बताते हैं। सितम्बर 2021 में, सरकारी कंपनी नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन ने 6000 मेगावॉट (6 गीगावॉट) की क्षमता वाली चार जलविद्युत परियोजनाओं को निजी कंपनियों से लेने का प्रस्ताव रखा।
'सस्ते, प्रकृति के अनुकूल विकल्प मौजूद'
जलविद्युत योजनाओं के पीछे मुख्य मकसद अक्षय ऊर्जा से आने वाली रुकावटों से ग्रिड को स्थिर रखना था। "बहुत से जलविद्युत संयंत्र इस काम को नहीं कर रहे हैं। ये पीक लोड के समय ग्रिड को स्थिर रखने की बजाय पूरे समय काम कर रहे हैं," मंथन अध्ययन केंद्र के धर्माधिकारी ने बताया। "सस्ते, भरोसेमंद और पर्यावरण के हितैषी विकल्प जैसे हाइड्रोजन स्टोरेज और बैटरी स्टोरेज के उपलब्ध होने के कारण हमें अब बांधों की ज़रुरत नहीं है।"
भारत के 1,115 पुराने बाँध, जो कि 2025 तक 50 पुराने हो जायेंगे, अवसादन के कारण कम कारगर हो रहे हैं और रखरखाव के लिए महंगे साबित हो रहे हैं। भारत को इन बाँधों का लागत विश्लेषण करना चाहिए, और समय के अनुरूप इनकी क्रियाशीलता और पारिस्थितिक सुरक्षा की भी समीक्षा करनी चाहिए, इंडियास्पेंड ने फरवरी 2021 में रिपोर्ट किया।
हमने बिजली मंत्रालय से बड़े बांधों को अक्षय ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में घोषित किये जाने पर जवाब मांगे हैं। जवाब मिलने पर हम इस खबर को अपडेट करेंगे।
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