वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नई स्वास्थ्य योजना - प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना की घोषणा की। जिसके लिए उन्होंने 64,180 करोड़ रुपये ($8.7 बिलियन) खर्च का लक्ष्य रखा। स्वास्थ्य मंत्रालय को 2020-21 के लिए केंद्र का आवंटन 67,112 करोड़ रुपये ($9.18 बिलियन) था। यह नई योजना सम्पूर्ण स्वास्थ्य आवंटन में 100% की वृद्धि करती प्रतीत होती है। हालांकि, सीतारमण ने यह भी कहा कि यह योजना छह सालों में शुरू हो जायेगी।

लेकिन विस्तृत बजट दस्तावेज में 2021-22 की इस योजना का कोई जिक्र नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि इस साल यह धनराशि किसी भी स्वास्थ्य व्यय में कैसे अपना रास्ता बनायेगी।

सरकार ने स्वास्थ्य सेवा के लिए अभूतपूर्व परिव्यय की घोषणा भी की है। जिसके लिए 2,23,846 करोड़ रुपये ($30.6 बिलियन) का आवंटन किया गया है। वित्त मंत्री के अनुसार यह 2020-21 के बजट में 137% की वृद्धि है।

हालांकि बजट में पारंपरिक रूप से स्वास्थ्य सेवाओं पर पूरा खर्च स्वास्थ्य मंत्रालय को ही जाता था। इस बार सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को और भी कई सारे हिस्सों में पेश किया है। जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं के उन सभी हिस्सों और योजनाओं को भी इसमें जोड़ा गया है जो कि स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन नहीं आते थे। वहीं सरल शब्दों में कहें तो पहले के मुकाबले कोई नया पैसा इस बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के खर्च के लिए नहीं दिया गया। लेकिन वर्तमान की ही अलग-अलग कई सारी योजनाओं को आपस में जोड़ा गया है। जिससे स्वास्थ्य सेवाओं के खर्च के इन आंकड़ों में 137 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी नज़र आती है।

बढ़े हुए आवंटन में निम्नलिखित बजट प्रमुख आते है: स्वास्थ्य मंत्रालय, आयुष मंत्रालय, पेयजल और स्वच्छता विभाग, वित्त आयोग द्वारा स्वास्थ्य, पानी और स्वच्छता के लिए आवंटन और कोविड-19 टीकाकरण के लिए धनराशि का नया आवंटन।

स्त्रोत: केंद्रीय बजट

स्वास्थ्य मंत्रालय को खुद कितना प्राप्त हुआ?

महामारी के बावजूद भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए वास्तविक आवंटन में कोई बढ़त नहीं हुई। 2020-21के बजट में भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय को 67,112 करोड़ रुपये ($9.18 अरब) आवंटित किए गए, जैसा कि भारत में कोविड-19 महामारी चल रही थी। वर्तमान वित्त वर्ष के लिए 82,928 करोड़ ($11.4 बिलियन) का संशोधित अनुमान या अनुमानित पैसा खर्च किया गया है।

2021-22 के लिए, भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय को 73,931.77 करोड़ रुपये ($10.12 बिलियन) आवंटित किए गए है। यह 2020-21 के अनुमानित बजट से 10.16% अधिक है, लेकिन चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से 10.84% कम है।

"स्वास्थ्य मंत्रालय का बजट यह नहीं दर्शाता है कि कोविड-19 महामारी पिछले साल से हो रही है," अकाउंटेबिलिटी इनिशियेटिव की निदेशक अवनी कपूर ने बताया।

उनका कहना है कि लोगों ने नियमित स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच खो दी है, जिसकी भरपाई के लिए और नए स्वास्थ्य मुद्दों से निपटने के लिए और अधिक आवंटन किया जाना चाहिए था । बजट इनमें से किसी को भी प्रतिबिंबित करने में विफल रहा है।

"इस साल स्वास्थ्य आवंटन में लगभग 10% का इज़ाफा हुआ है, ऐसा देश जो हमेशा स्वास्थ्य पर कम खर्च करता है, उसके लिए यह बहुत अच्छा नहीं है। दूसरी ओर महामारी को देखते हुए इस साल स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करना पूरी तरह से उचित है," कपूर ने आगे कहा।


पोषण के लिए कितना आवंटन हुआ?

दिसंबर 2020 में राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 के पहले चरण के नए आंकड़ों से पता चला है कि भारत में पोषण का स्तर गिर गया था। जैसा कि हमने रिपोर्ट किया था कि बच्चों में अल्प-पोषण, अपव्यय और कमज़ोरी के स्तर में अधिकांश राज्यों में वृद्धि दिखी है, जिसके लिए डाटा जारी किया गया था और यह भारत के दशकों से किए काम को उलट सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सर्वेक्षण में 22 में से 18 राज्यों में एक चौथाई बच्चे अविकसित थे। इस बार का बजट पोषण सेवाओं के लिए बड़ा आवंटन करने में विफल रहा, जो कि सफल हो सकता था।

"कुल मिलाकर, मैं बजट से आवंटन को पोषण संबंधी चुनौती की गंभीरता से जुड़ा हुआ नहीं देख पा रही हूं जो भारत के सामने है," अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान में पूर्णिमा मेनन ने कहा। उनका कहना है कि इस नए बजट में पोषण सेवाओं के लिए आवंटन में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया है, "जो कि समस्यात्मक भी है क्योंकि आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास सेवाएं) प्रारंभ के सालों में भी कई बच्चों तक नहीं पहुंची है।"

पिछले कुछ सालों में, सरकार पहले से ही पोषण के लिए अपने दिए गए आवंटन को कम कर रही है और फिर भविष्य में अपने आवंटन में पर्याप्त वृद्धि नहीं कर रही है, ऐसा अंबेडकर विश्वविद्यालय की प्राध्यापक दीपा सिन्हा का कहना है। उन्होंने आगे कहा कि, "हम पिछले कुछ सालों के अनुमानित संशोधित बजट से जानते है कि कई महिलाओं को उनके पोषण से संबंधित मातृत्व अधिकार नहीं मिल रहा है और आंगनबाड़ियों में घर का राशन कम स्तर पर मिल रहा है। इस कमी को बजट आंकड़े ही दर्शाते हैं ।"

पोषण के नए सरकारी आंकड़ों और महामारी के तनाव का मतलब है कि "यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि देशभर में पोषण का स्तर इस साल और भी खराब होगा", जो कि पहले से ही विकट स्थिति को और बढ़ाएगा।

सिन्हा का कहना है कि "यह साल बच्चों और परिवारों के लिए पोषण में धनराशि लगाने के लिए होना चाहिए था।"

पोषण बजट को महिला और बाल विकास मंत्रालय (जो नई माताओं और बच्चों के पोषण का ध्यान रखता है) और मानव संसाधन विकास मंत्रालय (जो स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए मिड-डे मील का ख्याल रखता है) के द्वारा संभाला जाता है। इनमें से कोई भी स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है।

मिशन पोषण 2.0 के लिए 20,105 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। यह योजना मौजूदा दो पोषण कार्यक्रमों का समावेश होगी, जो कि 112 आंकाक्षापूर्ण जिलों में पोषण परिणामों में सुधार करने के लिए गहन उपाय है।

इससे पहले, "अम्ब्रेला एकीकृत बाल विकास सेवाओं" के तहत मातृक, बच्चे और किशोर के स्वास्थ्य से संबंधित अन्य भागों के साथ पोषण को भी शामिल किया गया है। जिसे अब बजट से हटा दिया गया है। पिछले बजटों में, इस भाग को 28,557 करोड़ रुपये (2020-21), 27,584.37 करोड़ (2019-20) और 23,088.28 करोड़ (2018-19) आवंटित किए गए थे।

यह दर्शाता है कि 2021-22 में पोषण के लिए 20,105 करोड़ रुपये का आवंटन पिछले तीन सालों के आवंटन से कम है।

मिड-डे मील योजना जो स्कूल जाने वाले बच्चों की पोषण की जरूरतों को पूरा करती है, उसे वर्तमान वित्तीय वर्ष (11,000 करोड़ रुपये) की तुलना में 2021-22 (11,500 करोड़ रुपये) में 500 करोड़ रुपये अधिक आवंटित किए गए है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1160 लाख बच्चे मिड-डे मिल पर निर्भर करते है।


टीकाकरण को कैसे फंड किया जाएगा?

कोविड-19 के लिए विशेष आवंटन में, सरकार ने कोविड-19 के टीकों के लिए 35,000 करोड़ रुपये ($4.7 बिलियन) आवंटित किए है। यह पूरे स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए आवंटन का लगभग आधा है।

पूरे बजट में से कोविड-19 के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय को 11,756 करोड़ रुपये दिये गये है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के टीकाकरण की प्रक्रिया के लिए 360 करोड़ रुपये भी निर्धारित किए गए है।

"मैं उम्मीद कर रहा था कि सरकार बोर्ड में रिक्त पदों को भरने के लिए पैसे लगाए, जिससे जमीनी स्तर पर लाभ के लिए अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता टीकाकरण को संबोधित कर पाएं," पर्यवेक्षक अनुसंधान संस्था के स्वास्थ्य पहल के प्रमुख ओमन सी. कुरियन ने कहा।

उन्होंने बताया कि कोविड-19 वैक्सीन के लिए आवंटित 35,000 करोड़ रुपये वास्तविक वैक्सीन शॉट्स खरीदने के लिए लगते हैं, न कि स्वास्थ्य सेवा कर्मियों या टीकाकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आवश्यक मूलभूत संरचना के लिए।

"ये स्वास्थ्यकर्मी वह सेना होगी जिसकी जरूरत हमें इस साल महामारी को हराने में है। यह अफ़सोस की बात है कि उन्हें कम वेतन दिया जाता है और अस्थायी रूप से काम पर रखा जाता है। इस महामारी ने दिखाया है कि सार्वजनिक क्षेत्र को स्वास्थ्य सेवा का बोझ उठाना पड़ेगा। यह बजट इसे बेहतर तरीके से संबोधित कर सकता था," कुरियन ने आगे इस बारे में बताते हुए कहा।

(यह खबर इंडियास्पेंड में प्रकाशित की गई खबर का हिंदी अनुवाद है।)

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