नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी की वजह से लगातार 2 साल तक बंद रहने के बाद एक बार फिर से स्कूल खुलने को तैयार हैं, केन्द्र सरकार ने भी अहम शैक्षिक कार्यक्रम समग्र शिक्षा के लिए साल 2022-23 में साल 2021-22 के मुकाबले बजट में 20% की वृद्धि की है। पहले जहां ये ₹31,050 करोड़ का था वहीं अब यह ₹37,383 का हो गया है। हमारा विश्लेषण बताता है कि चूंकि इस कार्यक्रम के तहत राज्यों का फंड ज्यादातर वेतन देने और प्रशासनिक मद में खर्च होता है, अब इस राशि का इस्तेमाल बच्चों को स्कूल की तरफ लौटाने में, शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और उन्हें सहयोग देने में किया जाएगा। वित्त वर्ष 2021-22 के मुकाबले 2022-23 में स्कूली शिक्षा के बजट में 15.6% का इजाफा हुआ है।

कोविड-19 महामारी की वजह से बंद हुए स्कूलों ने कई चुनौतियां खड़ी की हैं जिसमें बच्चों में सीखने के लिए जरूरी क्षमता का नुकसान, स्कूलों के फिर से खुलने पर कोविड-19 के सुरक्षा मानदंडों को सुनिश्चित करना, हाइब्रिड शिक्षण मॉडल- जो इन-क्लास और डिजिटल शिक्षा को जोड़ती है को अपनाने समेत घरों के बीच डिजिटल भेद तक शामिल है।

इन चुनौतियों से पार पाने के लिए वित्त पोषण अहम है। समग्र शिक्षा योजना- भारत में स्कूली शिक्षा के लिए एक केन्द्र प्रायोजित योजना (CSS) है। बावजूद इसके 2018-19 की शुरुआत से ही योजना के लिए स्वीकृत बजट स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग या कैबिनेट समितियों द्वारा किए गए अनुमानों से बहुत कम है। आइए इसे समझते हैं।

वित्त वर्ष 2022-23 में भले ही बजट में इजाफा किया गया हो लेकिन समग्र शिक्षा में स्वीकृत राशि पिछले साल शिक्षा विभाग की मांग के मुकाबले 64.5% कम है। इस बार विभाग ने कितने की मांग रखी थी फिलहाल इसका कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है। इसके साथ ही, पिछले 2 सालों में समग्र शिक्षा का कुल बजट जिसमें राज्यों का भी हिस्सा शामिल है को कई राज्यों में घटा दिया गया है।

राष्ट्रीय शैक्षिक योजना संस्थान की प्रोफेसर मनीषा प्रियम बताती हैं कि कोविड की वजह से बंद स्कूलों ने सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों का किया है। सो इस नुकसान की भरपाई के लिए "बैक टू स्कूल" कार्यक्रमों में समग्र शिक्षा, भाषा और गणित सीखने पर विशेष ध्यान देने और शिक्षक प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से केंद्रीय खर्च को बढ़ाना महत्वपूर्ण होगा।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शिक्षा का अधिकार कानून की फंडिंग के लिए समग्र शिक्षा को चाहिए फंड

भारत में स्कूली शिक्षा के सार्वजनिक वित्तपोषण के संदर्भ में बात करें तो वित्त का एक बड़ा हिस्सा राज्य के अपने बजट से आता है। इन फंड्स का अधिकांश हिस्सा निश्चित, प्रतिबद्ध देनदारियों जैसे वेतन और प्रशासनिक मदों पर खर्च किया जाता है। इस प्रकार, सीएसएस राज्यों को शिक्षा की गुणवत्ता और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में निर्धारित राष्ट्रीय लक्ष्यों के कार्यान्वयन जैसे अन्य पहलुओं को प्राथमिकता देने के लिए सहूलियत प्रदान करते हैं।

समग्र शिक्षा भारत में स्कूली शिक्षा से संबंधित सीएसएस के भीतर का सबसे बड़ा हिस्सा है। राज्यों में इसकी हिस्सेदारी 50% से 90% तक है। सभी राज्य समान रूप से CSS पर निर्भर नहीं हैं। उदाहरण के लिए, बिहार और राजस्थान ने 2017-18 में अपनी शिक्षा की आधी से अधिक जरूरतों को सीएसएस के माध्यम से वित्तपोषित किया है तो वहीं हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य सीएसएस पर अपेक्षाकृत कम निर्भर हैं।


समग्र शिक्षा के तहत दो उप-घटक- 'गुणवत्ता हस्तक्षेप' और 'आरटीई पात्रताएं' महत्वपूर्ण हैं। 'गुणवत्ता हस्तक्षेप' के तहत शिक्षकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण के वित्तपोषण का प्रावधान है। इसमें स्कूलों में कोविड-19 से संबंधित सुरक्षा प्रोटोकॉल सुनिश्चित करना, सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल पहल, ब्लॉक और क्लस्टर अधिकारियों से शैक्षणिक सहायता प्राप्त करना और एक वार्षिक अनुदान जिसका कम से कम 10% पानी और साफ-सफाई के लिए उपयोग किया जाना चाहिए का समग्र अनुदान शामिल है।

'आरटीई पात्रता' के माध्यम से नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें और यूनिफॉर्म बांटे जा सकते हैं, निजी स्कूलों द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25% आरक्षण की प्रतिपूर्ति की जा सकती है। साथ ही स्कूल न जाने वाले चिह्नित प्रत्येक बच्चों के विशेष प्रशिक्षण और सामुदायिक लामबंदी हेतु आवंटित किया जा सकता है।

समग्र शिक्षा में शिक्षकों के वेतन भुगतान के बाद इन दो घटकों को प्राथमिकता दी जाती है। साल 2021-22 में, 'गुणवत्ता हस्तक्षेप' को 24% हिस्सा मिला, जबकि 'आरटीई पात्रता' को बजट का 16% प्राप्त हुआ।


कोविड-19 की चुनौतियों का सामना करने और शिक्षक प्रशिक्षण के लिए समग्र शिक्षा जरूरी

स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा माता-पिता की चिंता का प्रमुख कारण है। इस दौर में गृह मंत्रालय ने स्कूल खोलने के लिए जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं उसके मुताबिक, स्कूल प्रशासन को भौतिक बुनियादी ढांचे को नियमित रूप से साफ करना होगा, हाथ धोने के साथ ही सही तरीके से संचालित होने वाले नल कनेक्शन सुनिश्चित करना और लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था करनी होगी। स्कूलों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे फेस मास्क प्रदान करें और नियमित रूप से थर्मामीटर का इस्तेमाल करें और छात्रों के स्वास्थ्य की जांच करें।

साल 2021-22 में, स्कूली सुरक्षा और सुरक्षा पर शिक्षकों के लिए ऑनलाइन नीतिगत कार्यक्रमों (orientation programmes) के लिए, बच्चों को कोविड-19 के बारे में बुनियादी जानकारी देने तथा उन्हें डिजिटल या ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए परामर्शदाता के तौर पर कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए भी धन आवंटित किया गया था।

इसके अलावा भी, सभी राज्यों को स्कूलों में बच्चों के सुरक्षा उपायों के लिए समग्र शिक्षा के तहत ₹2,000 प्रति स्कूल की दर से धन आवंटित किया गया। कई राज्य भौतिक बुनियादी ढांचे की सफाई, शौचालयों के रखरखाव, मास्क की खरीद, थर्मल स्कैनर आदि के लिए 'समग्र अनुदान' का उपयोग करते रहे हैं।

समग्र शिक्षा फंड के तहत, स्कूल प्री-प्राइमरी और प्राइमरी ग्रेड के लिए वर्कशीट, वर्कबुक और गतिविधि-आधारित शिक्षण सामग्री सहित अध्ययन सामग्री तैयार और वितरित करते रहे हैं।

सरकार ने 2021-22 के लिए सालाना समीक्षा में कहा है कि प्राथमिक स्तर के स्कूलों की बात करें, तो वहां उपचारात्मक शिक्षण (remedial teaching) का उपयोग किया गया। इस तरह के कार्यक्रमों को आंशिक रूप से हस्तक्षेप जैसे 'पूर्व-प्राथमिक स्तर पर समर्थन', 'आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता' के माध्यम और समग्र शिक्षा में 'क्वालिटी इंटरवेंशन' के तहत ही सीखने की क्षमता बढ़ाने वाले कार्यक्रमों को वित्तपोषित किया जाता है।

स्कूलों में लौटने वाले बच्चों की सामाजिक-भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने और लर्निंग गैप को दूर करने के लिए शिक्षकों को हाइब्रिड शिक्षण समेत और अधिक प्रशिक्षण की जरूरत होगी। शिक्षकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण के अधिकांश हिस्से को 'गुणवत्ता हस्तक्षेप' और समग्र शिक्षा के 'शिक्षक शिक्षा' घटकों के तहत वित्त पोषित किया जाता है। इस फंड का इस्तेमाल स्टेट काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग, डिस्ट्रिक्ट इंस्टीट्यूट फॉर एजुकेशन एंड ट्रेनिंग और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर नॉलेज शेयरिंग (DIKSHA) प्लेटफॉर्म को मजबूत करने के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा, नई शिक्षा को समझने व स्कूल प्रमुखों और शिक्षकों के समग्र विकास (NISHTA) को राष्ट्रीय पहल के तहत शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए फंडिंग भी समग्र शिक्षा के माध्यम से किया जाता है।

राज्यों में समग्र शिक्षा की प्राथमिकता में बदलाव

स्कूलों को फिर से खोलने को लेकर अलग-अलग राज्यों की प्राथमिकताएं भी अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए, 2021-22 में आर्थिक रूप से संपन्न कुछ राज्यों ने अपने समग्र शिक्षा बजट का अपेक्षाकृत अधिक हिस्सा 'गुणवत्ता हस्तक्षेप' के तहत आवंटित किया। इनमें हिमाचल प्रदेश (41%) और महाराष्ट्र (39%) जैसे राज्य शामिल हैं। इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश और बिहार ने अपने हिस्से के बेहद कम, क्रमशः 13% और 15% बजट ही आवंटित किया।


अगस्त 2021 में केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा योजना को 2021-22 से पांच और वर्षों के लिए जारी रखने की मंजूरी दी। लेकिन 2021-22 में 30,000 करोड़ रुपये का आवंटन शिक्षा मंत्रालय के अनुमानों का केवल 52% था। यह कम फंडिंग 2020 से 2022 तक केंद्र सरकार द्वारा अधिकांश राज्यों के लिए कम बजट की मंजूरी के तौर पर भी देखा गया।


बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के फ्रंटलाइन शिक्षकों और अधिकारियों से बातचीत के अनुसार, पर्याप्त धन की कमी एक प्रणालीगत मुद्दा बनी हुई है और 2021-22 में आवंटित धन दिसंबर 2021 तक अधिकांश स्कूलों में समाप्त हो गया था।

भारत में बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों जैसे लर्निंग गैप और असमानता की प्रकृति को देखते हुए, शिक्षा क्षेत्र को दीर्घकालिक योजना और निरंतर सार्वजनिक वित्तपोषण की जरूरत होगी. इस प्रकार से देखें तो आने वाले वर्षों में व्यापक शिक्षा बजट के साथ समग्र शिक्षा बजट में बढ़ोत्तरी को भी बनाए रखने की आवश्यकता होगी। लेकिन गौर करने की बात ये है कि ये बजट अभी भी मंत्रालय के अनुमानों से काफी कम है।

इसके आगे की बात करें तो अधिकांश राज्यों में सार्वजनिक शिक्षा के वित्तपोषण का एक बड़ा हिस्सा राज्य के बजट से आता है। वित्त पोषण में ये वृद्धि आने वाले महीनों में राज्य-विशिष्ट समग्र शिक्षा योजना 2022-23 के तहत आवंटित राज्यों के बजट से प्राथमिकता के आधार पर पूरक के तौर पर किया जाना चाहिए।

नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी के सोशल सेक्टर को लीड करने वाली प्रोतिवा कुंडू कहती हैं, "महामारी और उसकी वजह से बंद हुए स्कूलों ने बच्चों को मानसिक तौर पर काफी हद तक प्रभावित किया है। शिक्षकों की भूमिका अब शिक्षकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उनसे मेंटोर्स और काउंसलर की भूमिका निभाने की भी उम्मीद है। वो मानती हैं कि "इसके लिए उचित प्रशिक्षण की जरूरत है और इसलिए आने वाले महीनों में राज्यों स्तर पर 'शिक्षकों की शिक्षा' को बेहतर तौर पर स्थापित करने के लिए अधिक से अधिक बजट आवंटन को मंजूरी दी जानी चाहिए।"

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