लखनऊ/बरेली/शाहजहांपुर/प्रयागराज: "मुंबई में सैलून की दुकान पर काम कर किसी तरह बेटे राजा को पढ़ा रहा था। वह पढ़ने में अच्छा था तो सोचा था कि हमारी गरीबी खत्म करेगा। लेकिन ऊपर वाले को तो कुछ और ही मंजूर था। मुझे अब भी विश्वास नहीं होता कि मेरा बेटा आत्महत्या कर सकता है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।"

शाहजहांपुर जिले के कांट पश्‍च‍िमी पट्टी के रहने वाले 48 वर्षीय नफीस सलमानी का 17 वर्षीय बेटा अली राजा 16 जनवरी 2023 को अपने हॉस्टल में मृत पाया गया। वजह आत्महत्या रही। उनका बेटा राजस्थान के कोटा में रहकर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के लिए कोचिंग से तैयारी कर रहा था।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में हर साल सैकड़ों छात्रों की मौत आत्महत्या की वजह से हो रही। आंकड़े साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो एक सरकारी एजेंसी है और यह देशभर में होने वाली आपराधिक गत‍िव‍िध‍ियों का र‍िकॉर्ड जुटाने का काम करती है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2017 से 2021 के बीच सुसाइड करने वाले छात्रों की संख्‍या।

नफीस कहते हैं क‍ि उन्होंने लोगों से उधारी लेकर अपने बच्चे को कोटा भेजा था और उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था की उनका बेटा मौत को गले लगा लेगा। " घर छोड़कर बाहर चला गया ताकि उसे पैसे की दिक्कत ना हो और उसकी पढ़ाई चलती रहे। नहीं पढ़ना था, ना पढ़ता। लेकिन यह नहीं करना चाहिए था।" फोन पर यह सब बताते-बताते रजा रोने लगते हैं।

नफीस अपने बड़े बेटे अली राजा को इंजीनियर बनता देखना चाहते थे ताकि उसका छोटा भाई ब‍िलाल भी अपने भाई जैसा कुछ बेहतर कर सके।

"यहां के एक स्कूल में 11वीं में एडमिशन लेने के बाद वह जुलाई 2022 में कोटा गया था। उसने कहा भी था कि दो साल की तैयारी में वह आईआईटी की परीक्षा निकाल लेगा" नफीस अपने बेटे राजा के बारे में बताते हैं।

राजस्थान के कोटा ज‍िले को इंजीनियरिंग और मेड‍िकल कॉलेजों में प्रवेश के ल‍िए होने वाली परीक्षा जेईई (जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन) और नीट (National Eligibility cum Entrance Test) की तैयारी का बड़ा सेंटर कहा जाता है। समाचार पत्रों के अनुसार यहां के सैकड़ों कोचिंग सेंटर में देश के अलग-अलग राज्‍यों से हजारों की संख्‍या में छात्र तैयारी करने जाते हैं। लेकिन कोटा छात्रों की खुदकुशी को लेकर लगातार चर्चा में है।

राजस्‍थान के बारा-अटरू व‍िधानसभा सीट से व‍िधायक पानाचन्‍द मेघवाल के एक सवाल के जवाब में 24 जनवरी 2023 को राजस्‍थान सरकार ने व‍िधानसभा में बताया क‍ि वर्ष 2019 से 2022 तक कोटा संभाग (कोटा, बारा, झालावाड, बूंदी ज‍िले) में कुल 53 छात्रों की मौत की वजह आत्महत्या रही। इसमें 27 छात्र कोचिंग पढ़ने वाले थे जबकि 26 स्‍कूल और कॉलेज के थे।

कोटा संभाग में पिछले 4 साल के दौरान कोचिंग, स्‍कूल और कॉलेज छात्रों आत्‍महत्‍या की घटनाओं का व‍िवरण। सोर्स- https://rlaoasys.rajasthan.gov.in/

'पढ़ने में अच्‍छा था, पता नहीं ऐसा क्‍यों क‍िया' ?

जनवरी 2023 में उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के रहने वाले छात्र रणजीत स‍िंह (22) ने आत्महत्या कर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली। उनके पिता ने रतिभान स‍िंह ने इंडियास्पेंड हिंदी को बताया कि उनका बेटा दिसंबर 2022 में कोटा नीट की तैयारी के ल‍िए कोटा गया था।

स‍िंह कहते हैं क‍ि मुझे तो पता ही नहीं क‍ि मेरे बेटे ने आत्‍महत्‍या क्‍यों की। वे उस द‍िन की घटना को याद करते हुए कहते हैं, "मैं कोटा रणजीत से म‍िलने गया था। जब पहुंचा तो उसके कमरे का दरवाजा बंद था। आशंका होने पर पुल‍िस को बुलाया तब पता चला क‍ि वह हमें छोड़कर जा चुका है। पढ़ने में अच्छा था। पहले कानपुर से तैयारी की थी। लेकिन रिजल्ट अच्छा नहीं आया था। जिसके बाद पिछले साल (2022) अगस्त में उसने कोटा जाने का फैसला लिया। बोल रहा था कि वहां माहौल अच्‍छा रहता है।"

रत‍िभान को पछतावा है क‍ि उन्‍होंने अपने बच्‍चे को कोटा भेजा ही क्‍यों। रणजीत कोटा के लैंडमार्क सिटी क्षेत्र में रहता था जो कुहारी थाना क्षेत्र में पड़ता है। यहां के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) शंकरलाल मीणा ने बताया कि रणजीत के कमरे से चार-पांच पन्‍ने का सुसाइड नोट म‍िला था ज‍िससे पता चला क‍ि वह काफी परेशान था और अवसाद से घिर चुका था। परिवार के लोगों को भी इसका अंदाजा था, इसलिए वे म‍िलने कोटा आए थे।

छात्रों को आत्महत्या करने से रोकने के लिए क्या किया जा रहा है?

उत्तर प्रदेश के बल‍िया के रहने वाले राहुल कुमार, 18 (बदला हुआ नाम) तैयारी में लगे हुए हैं और इस बार मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए दूसरी बार नीट की टेस्‍ट में बैठेंगे।

इंडियास्पेंड हिंदी से फोन पर बात करते हुए वह कहते है "ये एक दुष्चक्र है। हम इस कड़ी प्रत‍िस्‍पर्धा के बीच खुद को स्थापित ही नहीं कर पाते। टीचर मशीनों की तरह क्‍लास में पढ़ाते हैं। प‍िछली बार मैं क्‍वालीफाई नहीं कर पाया। इस बार का भी पता नहीं। छात्र अपने पढ़ाई के तरीके को दोष देता है और डिप्रेशन में चला जाता है। दूसरा डर यह भी लगा रहता है क‍ि पास ना हुए तो मम्मी-पापा का पैसा बर्बाद हो जाएगा और अपने गांव क्या मुंह लेकर जाऊंगा।"

"हम लोग जिस हॉस्टल में रहते हैं, वहां छात्रों की संख्या हर साल बढ़ती है। जबकि सिलेक्ट होने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम है। सीटें इतनी कम होती हैं कि बहुत तेज बच्चा भी ब‍िना क‍िस्‍मत के क्वालीफाई नहीं कर पाता," राहुल आगे कहते हैं।

कोटा में कोचिंग संचालकों ने छात्रों की मानसिक स्थिति पर नजर रखने और उसे दुरुस्त रखने के की कोशिश शुरू की है। ऐसे ही एक कोचिंग संचालक के मनोचिकित्सक डॉक्टर हरीश शर्मा ने बताया क‍ि हर महीने के शुरुआती एक सप्ताह तक हर रोज सुबह योगा क्लास चला रहे हैं। इसके अलावा डांस क्लास चला रहे हैं। सप्ताह में छुट्टी तो दे ही रहे हैं, स्पोर्ट्स एक्टिविटी करा रहे हैं ताकि बच्चों के बीच तनाव को पैदा ही ना होने दिया जाए।

वहीं कोटा हॉस्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष नवीन मित्तल ने बताया कि कोटा के हॉस्टल के कमरों में लगे पंखों में हमने हैंगिंग डिवाइस लगवाये हैं। जैसे ही पंखे पर 48 किलो से ज्यादा का भार पड़ेगा पंखा नीचे आ जाता है। हमने इसकी मदद से कई घटनाएं रोकी हैं। हालांक‍ि उन्होंने कोई संख्या नहीं बताई।

"कोटा जैसे शहरों में बड़े व्यवसायी कोचिंग चला रहे हैं। वे एडम‍िशन के समय ही पोस्‍टर के ल‍िए बच्‍चों का चयन कर लेते हैं और उन पर खास ध्‍यान देते हैं। बाकी बच्‍चे बस फीस वसूली के लिए होते हैं," कोटा के एक कोचिंग संचालक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया। "जबकि होना यह चाहिए क‍ि कमजोर बच्‍चों पर ज्‍यादा ध्‍यान द‍िया जाना चाह‍िए। लेकिन खुद को टॉप कोचिंग साब‍ित करने की होड़ में दूर से आने वाले छात्र एक प्रोडक्ट मात्र बनकर रह जाते हैं," वह आगे बताते है।

राहुल कुमार भी इस पर हामी भरते हैं। वे कहते हैं, "ये बात ब‍िल्‍कुल सही है क‍ि यहां कोटा में बच्‍चों को कई ग्रुप में बांट द‍िया जाता है। सबसे तेज बच्‍चों के ल‍िए न स‍िर्फ अलग क्‍लास होती है, उन्‍हें पढ़ाने वाले टीचर भी अलग होते हैं। हम जब यहां पहुंचते हैं तो शुरू में ही हमें अलग महसूस कराया जाता है। समस्या यहीं से शुरू हो जाती है।"

"परीक्षा की तैयारी का दबाव सफलता की संभावना बेहद कम कर देता है। तैयारी करने वाले छात्रों में से कई कई वंचित परिवारों से आते हैं। पर‍िजन अपने बच्‍चे को अच्‍छे कॉलेज में प्रवेश द‍िलाने के ल‍िए काफी पैसे खर्च करते हैं। ऐसे में उन पर भी एक तरह का दबाव रहता है," कहते हैं सौमित्र पठारे जो पुणे स्‍थ‍ित गैर लाभकारी संगठन मानसिक स्वास्थ्य कानून और नीति केंद्र इंडियन लॉ सोसायटी (ILS) के डायरेक्टर और मनोचिकित्सक हैं।

"यह कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है। अन्य मुद्दे भी हैं। मानसिक बीमारी के पिछले इतिहास या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के पारिवारिक इतिहास की वजह से भी बच्‍चे प्रभावित होते हैं। इसके अलावा कई दूसरे कारण भी हैं, जैसे- जाति, लैंगिक मुद्दे," पठारे आगे कहते हैं।

अवसाद एक बड़ी वजह

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के लेखकों और भारतीय सरकार के एक राष्ट्रीय सलाहकार द्वारा 2020 में किये गये एक अध्ययन अनुसार नीट छात्रों के बीच आत्महत्या जैसे मामले चिंता, अवसाद की वजह से बढ़ रहे हैं। यह अध्ययन जनवरी 2018 और सितंबर 2020 के बीच मीडिया में रिपोर्ट की गई आत्महत्या से हुई मौतों पर आधारित था।

इस रिपोर्ट में लिखा गया क‍ि छात्रों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए चिंता प्रबंधन, और अन्य जीवन कौशल के बारे में सिखाया जाना चाहिए। इस तरह के प्रशिक्षण को मौजूदा शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि बच्चे जीवन की विभिन्न चुनौतियों के खिलाफ खुद को विकसित कर सकें।

रिसर्च में शामिल विशेषज्ञों ने लिखा क‍ि समाज में सफलता की कहानियों का अक्सर बहुत अधिक महिमामंडित किया जाता है और आत्महत्या की कहानियों को असफलता से जोड़ा जाता है। आत्महत्या की रोकथाम में मीडिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। मीडिया को अंतर्राष्ट्रीय आत्महत्या रिपोर्टिंग दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए।

"बेहतर परिणाम को लेकर दबाव बनता है और वह दबाव छात्र को अवसाद की ओर लेकर जाता है। अवसाद इन सब के ल‍िए प्रेर‍ित करता है, अध्ययन के सह-लेखक और केजीएमयू में मनोचिकित्सक डॉक्टर सुजीत कुमार ने बताया। "ये समस्‍या क‍िसी एक के रोकने या समझाने से नहीं रुकेगी। माता-प‍िता के साथ समाज को भी इसके ल‍िए पहल करनी होगी। टॉपर, फेल या सफल, असफल के पैमाने को बंद करना होगा।"

डॉक्‍टर सुजीत आगे कहते हैं, "तैयारी करने वाले छात्रों के बीच आत्महत्या एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। वे देश का भविष्य हैं और उनकी मानसिक भलाई उनके, उनके परिवार और बड़े पैमाने पर समाज के लिए महत्वपूर्ण है। हमें व्यवस्थित रूप से आत्महत्या का अध्ययन करने की आवश्यकता है ताकि आत्महत्या की रोकथाम के लिए सटीक कोशिश हो सके।"

कम सीट और गला काट प्रतिस्पर्धा

वर्ष 2016 से पहले मेडिकल क्षेत्र में प्रवेश लेने के लिए AIPMT यानी All India Pre Medical Test देना होता था जिसके माध्यम से मेडिकल के छात्रों को MBBS, BDS, MS जैसे पाठ्यक्रम में प्रवेश मिलता था। अब इसके लिए सिर्फ एक ही राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा का आयोजन हो रहा ज‍िसे नीट कहा जाता है।

केंद्र सरकार की र‍िपोर्ट (दिसंबर 2022 तक) कहती है कि देश में कुल 96,077 एमबीबीएस सीटें उपलब्ध हैं जिनमें से 51,712 सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों में और 44,365 निजी मेडिकल कॉलेजों में हैं।

मेडिकल कॉलेजों के चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए आयोजित की जाने वाली परीक्षा नीट का आयोजन प‍िछले साल 17 जुलाई 2022 को देश के 14 शहरों में हुआ ज‍िसके ल‍िए 1,872,343 छात्रों ने परीक्षा दी।

इसी तरह 10 जुलाई 2022 में इंजीनि‍यरिंग कॉलेज (आईआईटी) में प्रवेश परीक्षा के ल‍िए आयोजित जेईई मेंस की परीक्षा में कुल 8,72,432 छात्र बैठे। इसमें से 3 अगस्‍त 2022 को हुए जेईई एडवांस्‍ड परीक्षा के ल‍िए कुल 2,62,175 छात्र सफल हुए ज‍िसमें से 1,60,038 छात्रों ने रज‍िस्‍ट्रेशन कराया और परीक्षा में 1,55,538 छात्र बैठे। इनमें से 16,635 छात्र आईआईटी के ल‍िए चयनित हुए।

देश में इस समय कुल 23 आईआईटी कॉलेज हैं। इन कॉलेजों में कुल 16,598 सीट ही है।

देश के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा की स्‍थ‍ित‍ि भी आईआईटी जैसी ही है। हर साल छात्रों की संख्‍या बढ़ती ही जा रही है। सीटें स‍िम‍ित हैं जबक‍ि दावेदार बहुत ज्‍यादा।

राज्‍यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य और पर‍िवार कल्‍याण मंत्रालय ने 29 मार्च 2022 को ये जवाब द‍िया था।

घर परिवार कितना जिम्मेदार?

कोटा मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर मनोचिकित्सक और न्यू मेडिकल अस्पताल के पूर्व अधीक्षक डॉ. सी एस सुशील इन आत्महत्याओं के ल‍िए तनाव, पार‍िवार‍िक और सामाजिक दबाव को जिम्मेदार मानते हैं। वे कहते हैं, "इस जमाने में पढ़ाई को लेकर तनाव बहुत तेजी से फैल रहा है। इसके ल‍िए छात्रों पर कई तरह के दबाव बनाए जा रहे हैं। कुछ दबाव पारिवारिक हैं तो कुछ सामाजिक। आत्महत्या के ल‍िए ये सबसे बड़ी वजह है।"

"पर‍िवार के साथ रहे बच्‍चे को अचानक से अपने से दूर कर द‍िया जाता है। अकेले रहने पर एक अलग रहत का दबाव बनता है। ऐसे में जरूरी है क‍ि ऐसी कोई पहल की जाए जो बच्‍चों के मन से डर और तनाव खत्‍म करे। इस समस्‍या का सामाधान तभी संभव हो पाएगा।"

वर्ष 2015 में शिक्षा मंत्रालय (तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय) ने जेईई की परीक्षा में सुधार के ल‍िए विशेषज्ञों की एक समिति गठ‍ित की थी। सम‍ित‍ि का गठन आईआईटी रुड़की के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर अशोक मिश्रा ने किया था जो अब भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में विशिष्ट प्रोफेसर हैं।

प्रोफेसर अशोक मिश्रा इंडियास्पेंड हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, "सबसे पहले तो माता-पिता को अपनी सोच बदलनी होगी। जरूरी नहीं है कि आपका बच्चा आईआईटी करके ही इंजीनियर बन सकता है। घर वाले बच्चों पर 10वीं, 11वीं के बाद ही दबाव बनाने लगते हैं। चंद सीटों के लिए लाखों बच्चे परीक्षा में बैठते हैं। जो पास नहीं हो पाते ऐसा नहीं है क‍ि वे पढ़ने में कमजोर होते हैं या अपने जीवन में सफल नहीं हो सकते।"

"बच्चों को भी यह समझना होगा क‍ि करियर बनाने के लिए बहुत से रास्ते होते हैं। ऐसे में हम सबको सामूहिक रूप से अपनी सोच बदलनी होगी। सुसाइड जैसी सामाजिक बुराई हम मिलकर ही खत्म कर सकते हैं।"

वर्ष 2016 में कोटा के तत्‍कालीन कलेक्‍टर आईएएस रवि कुमार सुरपुर ने अभिभावकों को पत्र लिख गुजारिश की थी कि वे अपनी इच्छाएं थोपने के बजाय बच्चों को उनकी मनचाही पढ़ाई करने दें। अपने पत्र में उन्‍होंने ल‍िखा था, "मेरा दुर्भाग्य है कि मुझे 20 से ज्यादा मेधावी बच्चों के सुसाइड नोट पढ़ने पड़े हैं। करियर के अवसरों के शहर कोटा में आपके बच्चों का स्वागत है, लेकिन बच्चे की न किसी से तुलना करें और न परिणाम के बारे में डराएं। वे आपको बेहतरीन परिणाम देंगे।"

"हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचे, लेकिन इंजीनियरिंग और मेडिकल में करियर के अलावा भी कई क्षेत्रों में अच्छे अवसर हैं। इसके बारे में भी वे जानें और बच्चों को भी बताएं। हो सकता है कि बच्चा आपकी उम्मीदों से ज्यादा तरक्की करे।" अपने पत्र में वे आगे लिखते हैं।

"इन आत्महत्याओं को कम करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जिसमें हमारी शिक्षा और परीक्षा प्रणाली पर फिर से विचार करना शामिल है," मनोचिकित्सक पठारे ने कहा। "शैक्षिक अवसरों की कमी को तत्काल दूर करने की आवश्यकता है ताकि युवाओं को इन पेशेवर कॉलेजों में प्रवेश लेने का दबाव महसूस न हो ज‍िनकी संख्‍या बहुत कम है। इसके अलावा किशोरों को प्रश‍िक्ष‍ित करने की भी जरूरत है। शैक्षिक संस्थानों को भी छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।"

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर शहर के रहने रामनरेश दुबे जो पेशे से प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं, उनकी सोच थोड़ी अलग है। वे कहते हैं, "ये कहना आसान है क‍ि माता-पिता बच्चों पर दबाव बनाते हैं। मेरा बेटा पिछले साल ही कोटा गया है। इस साल वह नीट की परीक्षा में बैठेगा। 10वीं या 12वीं के बच्‍चों को भविष्य की कितनी फिक्र रहती है, यह हम सब जानते हैं। उन्हें अगर गाइड नहीं करेंगे या अच्छे, बुरे के बारे में नहीं बताएंगे तो आगे चलकर वे हमें ही दोष देंगे कि हमने उन्हें सही गाइडेंस नहीं दी।"

नफीस खुद को कोसते हुए कहते हैं, "मुझे क्‍या पता था क‍ि ऐसा हो जाएगा। पता होता तो उसे कभी बाहर नहीं भेजता। इंजीन‍ियर ना बनता, मेरे जैसा छोटा-मोटा ही काम कर लेता। लेकिन हमारे बीच तो होता। अली को बाहर भेजने के फैसले का पछतावा मेरे मरने के बाद ही खत्‍म होगा।"