कोविड-19 के बाद स्कूल का एक साल: उपचारात्मक कक्षाएं, व्हाट्सएप और माता-पिता की सक्रियता
वैसे तो शहरी निजी स्कूल के छात्रों ने कोविड-19 के कारण हुए नुकसान की भरपाई काफी हद तक ली है और वे अब बराबर स्कूल भी जा रहे हैं। लेकिन सरकारी स्कूल के छात्रों को अधिक चुनौती का सामना करना पड़ता है। गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड से हमारी रिपोर्ट
मुंबई: कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2022 और 2021 में बंद रहने के बाद जब स्कूल खुले तो ये पूरा साल छात्रों के लिए बेहद जरूरी रहा। चार राज्यों के शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों ने कहा कि ये साल छात्रों के लिखने, पढ़ने, संषर्घ करने और ऑनलाइन क्लास के दौरान जो कुछ सिखाया गया था, उसे फिर से सीखने का रहा।
इसका मतलब यह है कि शिक्षकों और माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ी है। स्कूलों में कुछ शिक्षकों ने अतिरिक्त कक्षाएं लीं तो अभिभावकों ने बच्चों को निजी कोचिंग में क्लास करने के लिए भेजा। सरकार ने भी राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के साथ मिलकर बोझ कम करने के लिए पाठ्यक्रम में कटौती की। तमिलनाडु जैसी राज्य सरकारें छात्रों के लिए सामुदायिक सुधारात्मक कक्षाएं चला रही हैं।
अभिभावकों ने कहा कि निजी स्कूलों के छात्र तो महामारी के बाद स्कूल जाने लगे और वे वहां फिट भी हो गये हैं। लेकिन सरकारी स्कूल के छात्र विशेष रूप से गरीब परिवारों के छात्र इसके लिए अभी भी संघर्ष कर रहे हैं।
स्कूल बंद होने का असर, ऑनलाइन पढ़ाई
कोविड-19- महामारी की वजह से लॉकडाउन लगा और स्कूल बंद कर दिए गए। ऐसे में रोज स्कूल कक्षा में लगने वाली क्लास ऑनलाइन क्लास में बदल गई। नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 के अनुसार ग्रेड III, V, VIII में गणित और भाषा में सीखने के परिणाम 2017 की तुलना में गिर गए थे।
वाराणसी के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका सौम्या सिंह* कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्कूलों में गरीब बच्चे पढ़ने आते हैं और उनके पास ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा नहीं है, लॉकडाउन के दौरान बहुत कम बच्चों ने ऑनलाइन कक्षाएं लीं।" अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा 2020 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 60 फीसदी बच्चों तक ऑनलाइन क्लास की सुविधा नहीं पहुंच पाई।
इंडियास्पेंड ने जिन छात्रों से बात की उनमें से अधिकांश ने स्कूल में जाकर पढ़ाई करने को तवज्जो दिया।
उत्तर प्रदेश (यूपी) के सीतापुर में कक्षा IV के एक सरकारी स्कूल के छात्र सुमित गुप्ता कहते हैं, "जब मुझे कुछ चीजें समझ में नहीं आती हैं तो मैं शिक्षक से पूछता हूं और वह तुरंत समझाते हैं।"
लेकिन छात्रों को काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ा।
मेरठ, यूपी के एक निजी स्कूल सेंट मैरी एकेडमी में आठवीं कक्षा के छात्र शिखर जुबिन रॉय कहते हैं, "मुझे अतिरिक्त प्रयास करने पड़े, क्योंकि ऑनलाइन क्लास की वजह से ठीक से पढ़ाई नहीं हो पा रही थी।" उन्होंने आगे बताया कि महामारी के दौर में अधिकांश परीक्षाएं वैकल्पिक थीं। ऐसे में डजिटिल पढ़ाई के साथ उनकी लिखने और पढ़ने की क्षमता कम हो गई थी क्योंकि तब लिखने की आदत भी छूट गई थी।
मेरठ में एक निजी स्कूल के छात्र की मां रश्मि रॉय ने कहा, "माता-पिता के रूप में हम देख रहे थे कि बच्चे ऑनलाइन अच्छा नहीं कर रहे थे। इसलिए हम खुश हैं कि नियमित स्कूल शुरू हो गए हैं।" "स्कूल जाने से व्यक्तित्व निर्माण में मदद मिलती है और ऑनलाइन सीखने से बच्चों को कोई शारीरिक गतिविधि नहीं करनी पड़ती है। स्कूल में वे स्कूल की गतिविधियों में भाग लेकर अधिक सक्रिय होते हैं।"
शिक्षक भी व्यक्तिगत कक्षाओं को प्राथमिकता देते हैं। यूपी के सीतापुर में महमूदाबाद ब्लॉक प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले सरकारी स्कूल के शिक्षक दिग्विजय सिंह कहते हैं, "कोविड-19 लॉकडाउन के बाद जब स्कूल फिर से खुले तो बच्चे बहुत सी बातें भूल गए थे और उन्हें चीजों को समझने में अधिक समय लगा।"
"ऑफलाइन कक्षाओं के दौरान मैं छात्रों की आंखों में देख सकता हूं कि वे समझते हैं या नहीं। मैं आसानी से संदेह दूर कर सकता हूं। ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान यह संभव नहीं था," रांची, झारखंड में स्कूल ऑक्सफोर्ड स्कूल के एक भौतिकी शिक्षक ज्योति सिंह कहते हैं। मेरठ में एक निजी स्कूल की अध्यापिका रितु स्कॉट को अच्छा लगा कि वह स्कूल में छात्रों के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत कर सकती हैं।
शिक्षक छात्रों को हुए नुकसान की भरपाई करने में कैसे मदद कर रहे?
शिक्षक एक आम नियमित रणनीति के तहत छात्रों की मदद कर रहे हैं खासकर गणित और विज्ञान के लिए विशेष कक्षाएं चला रहे हैं।
"वर्तमान में हम न केवल किंडरगार्टन बल्कि कक्षा 1, 2 और 3 में भी बच्चों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं ताकि उनका मौलिक कॉन्सेप्ट स्पष्ट हो और उनका आधार मजबूत हो," सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक दिग्विजय सिंह ने कहा जो उन बच्चों के लिए उपचारात्मक कक्षा भी चलाते हैं जो नियमित कक्षा में बहुत से चीजें सीख नहीं पाते हैं।
गुजरात के ग्रामीण सूरत में कक्षा V तक के छात्रों को पढ़ाने वालं सुचित्रा सोनेजी ने कहा, "प्रत्येक विषय के लिए सीमित समय और पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करने की आवश्यकता को देखते हुए हम कक्षा में एक ही चीज पर बहुत अधिक समय नहीं दे सकते। यही कारण है कि हम छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं चला रहे हैं।"
महामारी ने जो एक बदलाव किया है वह यह है कि अधिक शिक्षक अब पढ़ाने में मदद के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। कुछ कक्षा में ऑनलाइन क्लास की मदद लेते हैं तो अन्य शिक्षा मंत्रालय के सरकार के दीक्षा ऐप - डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर फ़ॉर नॉलेज शेयरिंग से सीखने की सामग्री जैसे संसाधनों का उपयोग करते हैं।
शिक्षकों ने महामारी के दौरान बनाए गए व्हाट्सएप ग्रुपों का उपयोग करना जारी रखा है। मेरठ के निजी स्कूल के शिक्षक स्कॉट ने कहा, "बच्चे अब समूह को संदेश भेज सकते हैं और हम घर बैठे उनकी शंकाओं और सवालों को दूर कर सकते हैं। हम पहले अपने फोन का बेहतर इस्तेमाल नहीं करते थे।
माता-पिता ने बच्चों को स्कूल वापस लाने में कैसे मदद की
दिल्ली स्थित थिंक-टैंक सेंटर फॉर बजट गवर्नेंस एंड एकाउंटेबिलिटी के फेलो प्रोटिवा कुंडू समझाते हुए कहती हैं कि विशेष रूप से संपन्न परिवारों के माता-पिता ने बायजू जैसी कंपनी से ऑनलाइन ट्यूशन के लिए ट्यूटर्स को काम पर रखा है।
लेकिन निजी ट्यूशन असमानता को बढ़ा सकते हैं, क्योंकि सभी छात्रों की उन तक पहुंच नहीं होगी। "कोई भी अतिरिक्त सहायता (ट्यूशन की तरह) शैक्षिक असमानताओं को गहरा करने में मदद करती है [जब यह समर्थन केवल कुछ बच्चों के लिए होता है]," अंजेला तनेजा ने कहा, जो गैर-लाभकारी ऑक्सफैम इंटरनेशनल की सार्वजनिक सेवाओं और असमानता टीम का नेतृत्व करती हैं।
सीतापुर के महेशपुर गांव की एक सरकारी स्कूल की छात्रा के माता-पिता वंदना देवी कहती हैं, "मेरे बच्चे निजी ट्यूशन जाते हैं और मैं उनके होमवर्क में भी मदद करती हूं।" बड़े भाई-बहन भी इसमें शामिल होते हैं। सीतापुर के सरकारी स्कूल के छात्र गुप्ता कहते हैं, ''जब मैं किसी शंका में फंस जाता हूं तो मैं अपने बड़े भाई से मदद मांगता हूं। मैं अपने दोस्त के घर भी मदद के लिए जाता हूं।
महामारी के बाद से माता-पिता भी अपने बच्चों की प्रगति में अधिक शामिल हैं। रफत कादरी कहते हैं, "मैं यह सुनिश्चित करने पर अधिक ध्यान देता हूं कि बच्चा ऑनलाइन के बजाय ऑफलाइन पढ़े और किताबों पर अधिक समय व्यतीत करे। हम घर पर एक अनुकूल माहौल बनाने की भी कोशिश कर रहे हैं जहां बच्चे का ध्यान कम भटके और वह एक केंद्रित तरीके से पढ़ाई कर सके।" अहमदाबाद से एक माता पिता।
मेरठ के कक्षा आठ के छात्र रॉय ने कहा, "आजकल मेरे माता-पिता मुझसे स्कूल में क्या हुआ, इसकी विस्तृत रिपोर्ट मांगते हैं और वे मेरा होमवर्क भी देखते हैं। वे स्कूल में मेरी प्रगति पर नजर रख रहे हैं।
शिक्षा प्रणाली, सरकार कैसे मदद कर रही
एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम को कम कर दिया ताकि शिक्षकों को इसे मैनेज करने में आसानी हो और बच्चों ने पिछले वर्षों में जो कुछ खोया, उसकी भरपाई हो सके। फिर भी उपचारात्मक कक्षाओं के साथ नियमित कक्षाओं को चलाने का मतलब है कि शिक्षकों पहले की अपेक्षा पढ़ाने में ज्यादा समय देना पड़ रहा है। मेरठ के स्कॉट ने कहा, "हमें पाठ्यक्रम को पूरा करने पर ध्यान देना होगा क्योंकि हमें समय पर परीक्षा आयोजित करनी है।"
यूपी के चंदौली के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हम उम्मीद कर रहे थे कि सरकार पाठ्यक्रम में कटौती करेगी ताकि हम बच्चों के सीखने और हुए नुकसान की भरपाई पर ज्यादा ध्यान दे सकें।" राज्य ने ग्रेड IX से XII के लिए पाठ्यक्रम कम कर दिया। लेकिन युवा छात्रों के लिए नहीं। शिक्षिका ने कहा कि उनके ग्रेड VIII के छात्रों को यह भी याद नहीं है कि उन्हें ग्रेड VI और VII में क्या पढ़ाया गया था। यह सुझाव देते हुए कि सरकार को यह कहना चाहिए था कि बच्चों को पिछले दो वर्षों में केवल एक ग्रेड में पदोन्नत किया जाए ताकि शिक्षकों के पास बच्चों की पढ़ाई को पटरी पर लाने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। "दो साल एक लंबी समय अवधि है और छात्र नुकसान की भरपाई के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं।"
बच्चों को एक ग्रेड पीछे रखने के बजाय जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव हो सकता है, विशेषज्ञ ब्रिज कोर्स या उपचारात्मक कक्षाओं का सुझाव देते हैं।
तमिलनाडु और यूपी सहित कुछ राज्य सरकारें छात्रों की पढ़ाई पटरी पर लाने के लिए कार्यक्रम चला रही हैं।
तमिलनाडु की इल्लम थेडी कलवी योजना अक्टूबर 2021 में शुरू की गई थी जिसके माध्यम से स्वयंसेवक 26 जिलों में तमिल, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान सहित विषयों पर छात्रों की मदद करते हैं। सरकार ने 2022 में एक नीति नोट में कहा कि इससे परिवारों को पूरक शिक्षा पर होने वाले खर्च में कटौती करने में भी मदद मिलती है। स्वयंसेवक जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर एक फॉर्म भरकर नामांकन करते हैं और वे ग्रेड I से VIII तक के छात्रों को शाम 5 से 7 बजे के बीच पढ़ाते हैं जो सप्ताह में लगभग छह घंटे देते हैं। अब तक 181,000 स्वयंसेवकों ने हस्ताक्षर किए हैं और लगभग 3 मिलियन छात्र इन केंद्रों पर पढ़ाई करते हैं।
राज्य सरकार के समग्र शिक्षा विभाग द्वारा जुलाई 2021 में छत्तीसगढ़ में और दिसंबर 2021 में ऑक्सफैम द्वारा यूपी, झारखंड और एमपी के सात जिलों में सरकारी स्कूलों की मदद से मोहल्ला कक्षाएं आयोजित की गईं जिसके माध्यम से स्वयंसेवक अपने इलाके में छात्रों को पढ़ाते हैं।
स्वयंसेवक छह से 14 साल के बच्चों के साथ प्रतिदिन दो-तीन घंटे बिताएंगे और उन्हें पढ़ना, लिखना, कविता सुनाना और गुणा करना सिखाएंगे। ऑक्सफैम इंडिया के मीडिया विशेषज्ञ अक्षय तारफे ने कहा कि यह कार्यक्रम जो अब सक्रिय नहीं है, लगभग 1,200 बच्चों को पढ़ाया गया।
26 दिसंबर, 2022 को इंडियास्पेंड ने यूपी, एमपी, गुजरात और झारखंड में सरकारी स्कूलों में बच्चों की सीखने की क्षमता का जो नुकसान हुआ, उसकी भरपाई के लिए उनके प्रयासों और 2023 के लिए उनकी योजना के बारे में स्कूली शिक्षा विभागों से संपर्क किया। प्रतिक्रिया मिलने पर हम स्टोरी को अपडेट करेंगे।
आगे का रास्ता
इन मुद्दों को देखते हुए और 2021 में शुरू हुए कुछ उपचारात्मक कार्यक्रमों को पूरा करते हुए, इंडियास्पेंड ने यह समझने के लिए माता-पिता से बात की कि क्या बच्चे अगले शैक्षणिक वर्ष से निपटने के लिए बेहतर स्थिति में हैं और उन्हें अभी भी स्कूलों और शिक्षा प्रणाली से किस प्रकार की सहायता की आवश्यकता है।
स्कूली बच्चों के प्रकार और उनके स्थान के आधार पर प्रतिक्रियाएं अलग-अलग थीं। उदाहरण के लिए सूरत की संजुक्ता शाह, जो दो निजी स्कूल जाने वाली बेटियों की माँ हैं, का कहना है कि बच्चों को ऑफलाइन कक्षाओं की आदत हो रही है जिससे बच्चों को कक्षा में अधिक भाग लेने में मदद मिली है और उनके सीखने में सुधार हुआ है। इसके अलावा, "उन्हें खेल, संगीत और वार्षिक कार्यों जैसे पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने का भी मौका मिल रहा है"।
दूसरी ओर मेवा कुमार जिनकी बेटी ग्रामीण सीतापुर के एक सरकारी स्कूल में कक्षा V में हैं, अपनी शैक्षणिक प्रगति को लेकर चिंतित हैं। "जब मैंने उससे पूछा कि वह अपनी किताबों से क्या पढ़ रही है, तो वह जवाब देने में सक्षम नहीं थीं," उन्होंने कहा। उनकी बेटी जो महामारी शुरू होने के समय दूसरी कक्षा में थी सभी ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने में सक्षम नहीं थी क्योंकि कुमार नियमित रूप से अपने मोबाइल इंटरनेट पैक को रिचार्ज नहीं कर सकते थे। अगले शैक्षणिक वर्ष में वह अपनी बेटी को सरकारी स्कूल से निकालकर कक्षा III में एक निजी स्कूल में दाखिला दिलाना चाहता है ताकि वह दो साल के गैप को पूरा कर सके।
मेवा कुमार अकेले नहीं हैं। कई माता-पिता विशेष रूप से सरकारी स्कूलों के बच्चों ने महसूस किया है कि 2022 में महामारी के वर्षों में जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई नहीं की जा सकी है।
विशेषज्ञ उपचारात्मक कक्षाओं को जारी रखने और अगले वर्ष के लिए भी पाठ्यक्रम के आकार बदलने का सुझाव देते हैं। शेषागिरी के.एम. राव, यूनिसेफ इंडिया के एक शिक्षा विशेषज्ञ हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम को कम करने की सिफारिश की थी। लेकिन सभी राज्यों ने इसका पालन नहीं किया। आने वाले वर्ष में राज्य सरकारों को पाठ्यक्रम को इस तरह से कम करने की आवश्यकता है कि केवल सबसे महत्वपूर्ण भाग ही रहे और शिक्षक सीखने के नुकसान की भरपाई करने पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
*अनुरोध पर नाम बदला गया
(लखनऊ से फ्रीलांसर इंदल कश्यप, अहमदाबाद से सुमित खन्ना, मेरठ से नरेंद्र प्रताप, भोपाल से काशिफ काकवी और रांची से आनंद दत्त के इनपुट्स के साथ।)