बेंगलुरु:"कार्ड बनाया है। अब सरकार से सपोर्ट मिलेगा तो मिलेगा, नहीं तो नहीं मिलेगा," यह कहना है बंगाल से केरल के एर्नाकुलम आए प्रवासी कामगार राशिद* का। उन्होंने इंडियास्पेंड से बातचीत में यह बात कही। राशिद ने एक मजदूर सहायता केंद्र की मदद से, इसी साल के नवंबर महीने में श्रम और रोजगार मंत्रालय के पोर्टल ई-श्रम पर अपना रजिस्ट्रेशन कराया था। यह पोर्टल असंगठित क्षेत्र के कामगारों का राष्ट्रीय डेटाबेस है। हालांकि, रजिस्ट्रेशन कराने की प्रक्रिया भी इतनी आसान नहीं थी। रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आधार से जुड़े मोबाइल नंबर की ज़रूरत होती है। राशिद के आधार से जुड़ा मोबाइल उनकी मां के पास कोलकाता में था, इस वजह से रजिस्ट्रेशन के दौरान मोबाइल पर भेजा जाने वाला वन टाइम पासवर्ड यानी ओटीपी उनको नहीं मिल पा रहा था। राशिद को लगा था कि यह काम काफ़ी आसानी से हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राशिद कहते हैं, "पहले मुझे अक्षय केंद्र (एक कॉमन सर्विस सेंटर यानी सीएससी) पर जाकर रुपये 50 देकर अपने आधार कार्ड की डीटेल्स अपडेट करवानी पड़ी। इसके कुछ दिन बाद ही ई-श्रम पर मेरा रजिस्ट्रेशन हो पाया।"

लगभग रुपये 704 करोड़ की लागत से तैयार किया गया ई-श्रम पोर्टल, केंद्र सरकार की ओर से 26 अगस्त 2021 को लॉन्च किया गया था। इसका लक्ष्य असंगठित क्षेत्र के 38 करोड़ कामगारों- जैसे कि प्रवासी मजदूरों, निर्माण क्षेत्र से जुड़े मजदूरों, घरों में काम करने वाले लोगों, रेहड़ी-पटरी के मजदूरों, वेटर, ब्यूटीशियन, हथकरघा कामगारों, मछुआरों, और खेतिहर मजदूरों का रजिस्ट्रेशन कराना था। इसके लिए, सीएससी, मजदूर सहायता केंद्रों और राज्य सेवा केंद्रों पर बिना पैसे लिए या खुद से रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी गई थी। पोर्टल लॉन्च होने के तीन महीने के भीतर 9.1 करोड़ से ज़्यादा यानी 38 करोड़ में से 24% लोगों का रजिस्ट्रेशन 25 नवंबर तक हो चुका है। इसमें से ज़्यादातर मजदूर भारत के सबसे बड़े रोजगार देने वाले क्षेत्र कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

हालांकि, इस रजिस्ट्रेशन के काम से जुड़े कामगारों, रजिस्ट्रेशन में मदद करने वाले लोगों, शिक्षार्थियों, और मजदूरों के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने हमें बताया कि इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। उनका कहना है कि यह योजना सिर्फ़ मजदूरों और कामगारों का डेटाबेस तैयार करने के लिए है। इसमें, एक्सिडेंटल इंश्योरेंस को छोड़कर, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभ के बारे में कोई बात नहीं है जो कि मजदूरों को मिलने हैं।

इन लोगों ने यह भी बताया कि आधार से जुड़े मोबाइल का न होना भी कई मजदूरों के रजिस्ट्रेशन में बाधा बन रहा है। इसके अलावा कई सीएससी पर बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन में भी समस्या आ रही है। दूसरी तरफ़, अब इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवा चुके उन मजदूरों का डेटा शेयर नहीं किया जा रहा है जो प्रवासी हैं।

विशेषज्ञों ने इंडियास्पेंड को बताया कि कोविड-19 से प्रभावित एक और साल बीत रहा है, भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी महामारी से असर से जूझ रही है और बेरोजगारी की दर ऊंचाई पर है। दूसरी तरफ़, अब ई-श्रम की इस पहल की वजह से लोगों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है और राष्ट्रीय स्तर पर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, कामगारों और प्रवासियों की ज़रूरतों का अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस डेटाबेस को सुधारने के लिए यह ज़रूरी है कि पहचान के लिए ज़रूरी दस्तावेजों के रूप में अन्य डॉक्यूमेंट्स की भी अनुमति दी जाए जिससे रजिस्ट्रेशन में इसका इस्तेमाल किया जा सके। इसके अलावा, सरकार को रजिस्ट्रेशन को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि इस प्रक्रिया को तेज किया जा सके। साथ ही, इंडस्ट्री से जुड़े संगठनों और अन्य संगठनों को मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

भारत के अनौपचारिक क्षेत्र का कार्यबल

इसी महीने, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) ने कहा कि भारत में 93% कार्यबल अनौपचारिक है। जहां भारत की सरकार का लक्ष्य 38 करोड़ मजदूरों का है, वहीं अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट 2021 के अनुमान में कहा गया कि 2018-19 में भारत में अनौपचारिक कार्यबल 41.56 करोड़ लोगों या कुल मजदूरों के 90% के बराबर था।

अनौपचारिक क्षेत्र का कोई भी मजदूर जिसकी उम्र 16 से 59 साल के बीच है, वह ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने के लिए योग्य है। रजिस्ट्रेशन कराने पर मजदूरों को एक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) कार्ड मिलता है। रजिस्ट्रेशन कराने के लिए, मजदूरों के पास आधार से लिंक मोबाइल नंबर और एक बैंक खाता होना चाहिए। ई-श्रम वेबसाइट पर लिखा गया है, 'अगर किसी मजदूर के पास आधार से लिंक मोबाइल नंबर नहीं है, तो वह नजदीकी सीएससी पर जा सकता है और बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन की मदद से रजिस्ट्रेशन करवा सकता है।'

पिछले साल 24 मार्च 2020 को कोविड-19 की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया था। इस लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरों की नौकरी चली गई और उन्हें पलायन करना पड़ा। इस सबकी वजह से मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और खतरे में आ गई। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सितंबर 2020 के अनुमान के मुताबिक, लॉकडाउन लगने के बाद लगभग 1.06 करोड़ प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे। वहीं, भारतीय रिजर्व बैंक की सितंबर 2020 में जारी रिपोर्ट में यह संख्या लगभग 4 करोड़ आंकी गई। यूनिवर्सिटी ऑफ बॉन के सेंटर फ़ॉर डेवलपमेंट रिसर्च ने अप्रैल 2021 में भारत सरकार के आंकड़ों को 'कमतर' करार दिया था और डेटा में एक बड़े अंतर की ओर इशारा किया था। इस स्टडी में कहा गया कि सरकार की गलती पकड़ी गई क्योंकि उसके पास "उन प्रवासी मजदूरों की सही संख्या के बारे में जानकारी नहीं थी जिन्हें मदद की ज़रूरत थी।"
जून 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की समस्याओं से जुड़ी एक रिट याचिका के जवाब में केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने का काम तेज करे, जो कि पिछले दो सालों से रुका हुआ है।

तकनीकी चुनौतियां: धीमे सर्वर और आधार लिंकिंग

रजिस्ट्रेशन के लिए काम करने वाले सहायकों का कहना है, "ई-श्रम पोर्टल पर मजदूर खुद ही रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं या सीएससी या एसएसके पर जाकर बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन की मदद से रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं, लेकिन आधार-लिंक मोबाइल नंबर का न होना, भाषाओं से जुड़ी बाधा और सर्वर धीमा होने की वजह से खुद रजिस्ट्रेशन करने में दिक्कत आ रही है।" वहीं, सितंबर 2021 में श्रम और रोजगार मंत्रालय ने कहा कि सरकार की मंशा ई-श्रम और आधार को मजबूत करके, मजदूरों को उनकी क्षमता का एहसास कराने और उन्हें सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने में सक्षम बनाने की है।

अहमदाबाद में निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करने वाले 32 वर्षीय चिराग राठौड़ ने ई-श्रम पर रजिस्ट्रेशन करने के दौरान आई दिक्कतों के बारे में बताया। चिराग ने कहा, "मैंने कुछ ऑनलाइन वीडियो देखे। रजिस्ट्रेशन पूरा करने में मुझे कुल पांच दिन लग गए क्योंकि सर्वर बहुत धीमा था।"

चिराग ने सात और लोगों की रजिस्ट्रेशन करने में मदद की। चिराग ने बताया कि इसमें से तीन लोगों का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका, क्योंकि उनके पास आधार-लिंक मोबाइल नंबर नहीं थे। चिराग ने आगे कहा, "मेरे आधार में तो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बाकियों को दिक्कत हुई क्योंकि उनके मोबाइल नंबर बदल गए थे।"

चिराग राठौड़ की तरह ही अहमदाबाद की रहने वाली 21 वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएशन स्टूडेंट निशा माली ने अपने पिता सहित कई मजदूरों की ई-श्रम पर रजिस्ट्रेशन करवाने में मदद की। इंडियास्पेंड से बातचीत में निशा ने कहा, "जब मैं लिंक खोल सकी, तो उसके बाद रजिस्ट्रेशन करने में आधे घंटे का समय लगा। इसके अलावा कुछ मजदूर ऐसे भी थे जिनका रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका, क्योंकि उनके अलग मोबाइल नंबर आधार से लिंक थे।"

25 नवंबर तक जितने लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ है, उसमें से कुल 80% लोगों ने सीएससी की मदद से, 1% से भी कम लोगों ने राज्य सेवा केंद्रों की मदद से, और सिर्फ़ 19% लोगों ने खुद से रजिस्ट्रेशन करवाया। सिर्फ़ असम, दिल्ली, और कर्नाटक में आधे या उससे ज़्यादा लोगों ने खुद से रजिस्ट्रेशन करवाया। केरल और गुजरात में, जहां राशिद और चिराग राठौड़ काम करते हैं, वहां क्रमश: 33% और 15% लोगों ने खुद से रजिस्ट्रेशन करवाया।


आजीविका ब्यूरो में वकील के तौर पर काम करने वाले शुभम कौशल का कहना है, "तकनीकी और भाषा से जुड़ी बाधाओं की वजह से मजदूरों को सीएससी के भरोसे रहना पड़ता है और वे खुद से रजिस्टर नहीं कर सकते हैं।" आजीविका ब्यूरो एक गैर-लाभकारी संस्था है जो राजस्थान और गुजरात में मजदूरों और प्रवासियों के बारे में काम करती है।

अहमदाबाद में सीएससी चलाने वाले अंकित कुमार रमानी ने कहा कि आधार से जुड़े मोबाइल नंबर और ओटीपी में दिक्कत आ रही थी इसलिए उन्होंने बायोमीट्रिक का इस्तेमाल करके मजदूरों का रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिया। अंकित कहते हैं, "वेबसाइट एकदम सुबह-सुबह और देर रात में ठीक से काम करती है। मजदूरों और अन्य ऑपरेटर्स के लिए ऐसे समय पर रजिस्ट्रेशन कर पाना मुश्किल है।"

पांच दिन तक रजिस्ट्रेशन के लिए कोशिश करने वाले चिराग राठौड़ ने कहा कि वह रात के 11 बजे के बाद रजिस्ट्रेशन कर पाने में सफल हुए, क्योंकि उस समय ई-श्रम वेबसाइट पर ट्रैफ़िक कम होता है। वह कहते हैं, "मैं व्यवसाय/काम की सूची में से सही काम चुन नहीं पा रहा था औऱ वह गुजराती में भी नहीं था, जिसमें मुझे आसानी होती है।"

निशा माली ने कहा कि मजदूरों के समूहों की कुछ मीटिंग हुईं जिसकी वजह से मजदूरों को ई-श्रम यूएएन कार्ड के बारे में जानकारी थी। अंकित रमानी कहते हैं कि ज़्यादा जानकारी लेने के लिए इन कैंपों में मजदूरों की भीड़ हो जाती थी। श्रम विभाग को उन मजदूरों की शंकाओं का समाधान करना चाहिए था, यह काम सीएससी ऑपरेटर का नहीं है।

गैर-लाभकारी संस्था इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट के सेंटर फॉर एम्प्लॉयमेंट स्टडीज के डायरेक्टर रवि श्रीवास्तव कहते हैं, "आधार से लिंक मोबाइल नंबर की मदद से या सीएससी पर बायोमेट्रिक की मदद से रजिस्ट्रेशन का ज़रूरी होना ही काफी दिक्कत वाला है।" अप्रैल 2019 में प्रकाशित 'इकनॉमिक और पॉलिटिकल वीकली' की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि किसी इंसान के बायोमेट्रिक पूरी जिंदगी एक जैसे नहीं रहते हैं।

सेंटर फॉर माइग्रेशन ऐंड इन्क्लूसिव डिपार्टमेंट (सीएमआईडी) एर्नाकुलम में प्रोग्राम मैनेजर अयाज़ अनवर ने इंडियास्पेंड से कहा कि पूर्वी और उत्तरी भारत के युवा प्रवासी मजदूरों के मोबाइल नंबर अकसर उनके आधार से लिंक नहीं होते हैं, क्योंकि उनके मोबाइल नंबर बदलते रहते हैं। अयाज़ अपने सहायता केंद्र पर काफ़ी समय से राशिद जैसे मजदूरों की ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन में मदद कर रहे हैं।

अनवर के सहायता केंद्र पर लगभग 150 मजदूरों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। वह कहते हैं, "हम इस ग्रुप (प्रवासी) से सिर्फ़ 20 लोगों का रजिस्ट्रेशन कर पाए हैं। हमारे पास आने वाले लगभग 70% मजदूरों (इन इलाकों से आने वाले मजदूर) के पास आधार से लिंक मोबाइल नंबर नहीं हैं। वहीं दक्षिण के राज्यों से आने वाले मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की दर काफ़ी अच्छी है।"

अकसर, मजदूरों का एक खास वर्ग जैसे कि फैक्ट्रियों में रहने वाले मजदूर या इंडस्ट्रियल एरिया के आसपास छोटी बस्तियों में रहने वाले लोगों के छूट जाने की संभावना ज़्यादा है। शुभम कौशल कहते हैं कि ऐसा इसलिए क्योंकि वे शहर से कटे रहते हैं और उनके पास डॉक्यूमेंट्स भी नहीं होते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि रजिस्ट्रेशन कराने के लिए अन्य डॉक्यूमेंट्स को भी अनुमति होनी चाहिए, जिससे रजिस्ट्रेशन में देरी न हो। इंडस्ट्री से जुड़े संगठनों और अन्य संगठनों को भी जिम्मेदारी दी जानी चाहिए कि वे मजदूरों का रजिस्ट्रेशन करवाएं और उन पर इस बात का दबाव न बनाएं कि वे खुद से रजिस्ट्रेशन करवाएं, क्योंकि उनके पास इतना वक्त नहीं होगा कि वे काम के घंटों के बाद वे रजिस्ट्रेशन कराने के लिए सीएससी जाएं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में सितंबर 2021 तक 99.5% वयस्कों के पास आधार नंबर है। ई-श्रम पोर्टल के मुताबिक, रजिस्ट्रेशन करवाने वाले 85% मजदूरों के पास बैंक खाते हैं, लेकिन केवल 19% मजदूर ऐसे हैं जिनके बैंक खाते आधार से लिंक हैं। एक बार किसी बैंक खाते से आधार लिंक हो जाने पर यह ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के दौरान भी दिखता है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो मैन्युअल तरीके से भी बैंक खाता डाला जा सकता है। अनवर का कहना है कि इससे गलत इस्तेमाल की संभावना भी बनती है।

ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के लिए, आधार का इस्तेमाल ज़रूरी होने और मजदूरों के सामने आ रही अन्य तकनीकी चुनौतियों के बारे में इंडियास्पेंड ने श्रम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से सवाल पूछे हैं। इनका जवाब मिलने पर हम इस स्टोरी को अपडेट कर देंगे।

ई-श्रम पर रजिस्ट्रेशन के लिए मजदूरों से पैसे ले रहे हैं सीएससी संचालक

राशिद को उनके दोस्तों ने बताया कि इस नए 'लेबर कार्ड' के लिए रजिस्ट्रेशन मुफ़्त नहीं है। इस वजह से राशिद ने अपना रजिस्ट्रेशन देरी से करवाया। राजमिस्त्री का काम करने पर राशिद को एक दिन के रुपये 800 मिलते हैं, लेकिन किस्मत अच्छी होने पर भी उन्हें हफ्ते में तीन दिन का ही काम मिल पाता है। राशिद कहते हैं, "शुरुआत में मुझे पता चला कि प्राइवेट सेंटर पर रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए रुपये 200 लगेंगे। तब मेरे पास पैसे नहीं थे। मैं रजिस्ट्रेशन के लिए तभी गया जब मेरे एक दोस्त ने बताया कि दूसरी जगह पर मुफ्त में रजिस्ट्रेशन हो रहा है।"

चिराग राठौड़ को जब समझ आया कि सीएससी पर रजिस्ट्रेशन कराने जाने पर उनके रुपये 50 खर्च होंगे, तो उन्होंने खुद से ही रजिस्ट्रेशन करने का फैसला लिया। 25 नवंबर 2021 तक रजिस्ट्रेशन करा चुके लोगों में 92% ऐसे हैं जिनकी महीने भर की कमाई रुपये 10,000 से कम है।

इस पोर्टल को लॉन्च करते समय सरकार ने कहा था कि ई-श्रम पर रजिस्ट्रेशन बिल्कुल मुफ़्त है। चाहे आप खुद से रजिस्ट्रेशन करवाएं या किसी सीएससी पर जाकर। सरकार उन सीएससी को पैसे अदा करेगी जो मजदूरों का रजिस्ट्रेशन कर रहे हैं। इसके बावजूद, कुछ सीएससी संचालकों ने हमें बताया कि वह रजिस्ट्रेशन करने के लिए एक मामूली रकम लोगों से ले रहे हैं।

आम नागरिकों को सरकारी सेवाएं मुहैया कराने के लिए, सीएससी स्थापित किए गए हैं जिनका संचालन निजी हाथों में हैं। सीएससी का वित्तीय मॉडल संचालकों के कमीशन पर आधारित है। सीएससी के आधिकारिक फेसबुक अकाउंट पर सितंबर में कहा गया था कि ई-श्रम के रजिस्ट्रेशन के लिए सीएससी संचालकों को रुपये 20 का कमीशन मिलेगा और उन्हें A4 साइज़ पेपर पर मजदूरों के UAN कार्ड का प्रिंटआउट भी देना होगा।

ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करने वाले सीएससी संचालक अंकित रमानी को पैसे मिलने का इंतजार है। वह कहते हैं कि कमीशन फीस के बारे में अभी भी कुछ साफ नहीं है। रमानी आगे कहते हैं, 'जिला मैनेजर ने वॉट्सऐप पर हमसे कहा था कि हर रजिस्ट्रेशन पर हमें रुपये 14 मिलेंगे, लेकिन हमें यह नहीं पता है कि हमें मजदूरों को प्रिंटआउट देना है या UAN कार्ड को लैमिनेट करके देना है।" ई-श्रम रजिस्ट्रेशन के लिए मजदूरों से रुपये 10 ले रहे रमानी कहते हैं कि अलग-अलग सेवाओं के हिसाब से सीएससी संचालक रुपये 150 से 200 तक ले लेते हैं। इसके बारे में कोई सख्त नियम नहीं है।

नवंबर 2019 में झारखंड में शोधार्थियों के एक सर्वे के आधार पर तैयार इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सीएससी संचालक अकसर अपने ग्राहकों से प्रमाणपत्र जारी करने, आधार से जुड़ी बैंकिंग सेवा, पैन कार्ड के लिए आवेदन करने या स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ दिलाने जैसी अन्य सेवाओं के लिए ज़्यादा पैसे लेते हैं।

आजीविकी ब्यूरो में प्रोग्राम मैनेजर महेश गजेड़ा कहते हैं कि मजदूर सीएससी केंद्रों पर जाते हैं और बायोमीट्रिक की मदद से रजिस्ट्रेशन के लिए कहते हैं, लेकिन कई जगहों पर सीएससी संचालक इसमें रुचि नहीं दिखाते क्योंकि उन्हें कम कमीशन मिलता है।

अभी तक के रजिस्ट्रेशन में भौगोलिक और क्षेत्रीय असंतुलन

ई-श्रम पोर्टल लॉन्च होने से लेकर 25 नवंबर 2021 तक, 38 करोड़ मजदूरों के लक्ष्य में से 24% लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। हालांकि, इसमें कुछ राज्यों में रजिस्ट्रेशन करवाने वाले मजदूरों की संख्या दूसरे राज्यों की तुलना में ज़्यादा है। लगभग एक चौथाई रजिस्ट्रेशन सिर्फ़ पश्चिम बंगाल (23%) में ही हुए हैं. इसके बाद, उत्तर प्रदेश (19%), ओडिशा (13%), और बिहार (11%) का नंबर आता है। साल 2021 के लिए राज्यवार कामगार जनसंख्या और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, इन चारों राज्यों में 15 से 59 साल की उम्र के जितने कार्यबल मौजूद हैं, उसकी तुलना में ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन ज़्यादा लोगों का हुआ है। वहीं दूसरे राज्यों में मौजूद 15 से 59 साल की उम्र के कुल कार्यबल में से औसतन 2% लोगों का ही रजिस्ट्रेशन हुआ है।

रवि श्रीवास्तव का कहना है कि ऐसा लगता है कि रजिस्ट्रेशन का यह सिस्टम राज्यों के इनपुट पर आधारित नहीं है। कई राज्यों ने तो खुद का रजिस्ट्रेशन सिस्टम ही विकसित कर लिया है। गजेड़ा कहते हैं, "मुझे लगता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की अपेक्षा ज़्यादा रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं. खासकर उन क्षेत्रों में जहां पर लोगों का पलायन सबसे ज़्यादा होता है।"

25 नवंबर तक रजिस्ट्रेशन करवाने वाले मजदूरों में 53% ऐसे थे जो कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं। इसके बाद मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र से 13% और निर्माण क्षेत्र से 12% लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि, मैन्युफैक्चिरंग और निर्माण क्षेत्र ही तीन सबसे बड़े रोजगार दाता हैं। अभी तक उन लोगों ने भी बड़ी संख्या में रजिस्ट्रेशन करवाया है जो घरेलू काम करते हैं। हालांकि, स्वास्थ्य कर्मियों को छोड़कर बाकी क्षेत्रों के जिन लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है उनके कुल कार्यबल और रजिस्ट्रेशन कराने वाले लोगों की संख्या में अभी तक बड़ा अंतर पाया गया है।


जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, जमेशदपुर में प्रोफेसर के. आर. श्याम सुंदर ने इंडियास्पेंड को बताया कि रजिस्ट्रेशन की रफ़्तार बढ़ाने की ज़रूरत है। प्रोफेसर सुंदर कहते हैं, "कृषि क्षेत्र में सबसे ज़्यादा लोग काम करते हैं, इसलिए इस क्षेत्र के सबसे ज़्यादा लोग रजिस्ट्रेशन करवाएंगे। सरकार को चाहिए कि वह रजिस्ट्रेशन का दायरा बढ़ाए और मजदूरों/कामगारों को प्रोत्साहित करे कि वे रजिस्ट्रेशन करवाएं अन्यथा ऐसा भी हो सकता है कि रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए मजदूरों को अपनी एक दिन की कमाई गंवानी पड़े।"

नवंबर की शुरुआत तक रजिस्ट्रेशन कराने वालों में केवल 3% प्रवासी मजदूर

7 नवंबर तक ई-श्रम पोर्टल के डेटा के मुताबिक, रजिस्ट्रेशन करवाने वाले 97% कामगारों ने यह माना है कि वे प्रवासी नहीं हैं। सिर्फ़ 2.25% लोगों ने खुद को प्रवासी कामगार की श्रेणी में रखा है। इस बारे में रवि श्रीवास्तव कहते हैं, "सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद रजिस्ट्रेशन का सिस्टम शुरू हुआ। इस कवायद का लक्ष्य था कि उन लोगों का रजिस्ट्रेशन किया जाए, तो घुमंतू प्रवासी हैं, लेकिन ई-श्रम पोर्टल तभी उन लोगों को प्रवासी की श्रेणी में गिनता है जब वे लगभग स्थायी प्रवासी हों और एक ही पेशे से जुड़े हों।"

मार्च 2020 में सरकार से एक सवाल पूछा गया था कि क्या उसके पास एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले प्रवासी कामगारों का कोई आंकड़ा है। इस पर सरकार ने संसद में जवाब दिया कि 'ऐसे प्रवास का आंकड़ा रखना संभव नहीं है'। 2011 की जनगणना के मुताबिक, कामगारों की कुल संख्या 48 करोड़ थी और लगातार विस्तार की वजह से 2016 में यह संख्या 50 करोड़ तक पहुंच गई थी।

सरकार ने अपने जवाब में आगे कहा, "अगर कुल कामगारों की संख्या में प्रवासियों का हिस्सा 20% माना जाए तो 2016 में प्रवासी कामगारों की संख्या 10 करोड़ थी।" सुप्रीम कोर्ट ने जून 2021 के अपने एक फैसले में कहा था कि प्रवासी कामगारों की संख्या भारत की जनसंख्या के एक चौथाई से ज़्यादा है। ई-श्रम पोर्टल पर मौजूद डेटा के मुताबिक, रजिस्ट्रेशन कराने वाले 9.25 करोड़ लोगों में से 30 लाख लोग भी ऐसे नहीं हैं, जो प्रवासी हों।

हालांकि, अब उन कामगारों के आंकड़े ई-श्रम पोर्टल पर मौजूद नहीं है जिन्होंने रजिस्ट्रेशन करवाया है और वे प्रवासी हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीकी दिक्कतों और जागरूकता की कमी की वजह से प्रवासी कामगारों का रजिस्ट्रेशन कम संख्या में हो रहा है। गजेड़ा कहते हैं, "रजिस्ट्रेशन के दौरान प्रवास की स्थिति वाले कॉलम में डिफॉल्ट सेटिंग 'नहीं' की होती है। इसके अलावा, अगर कोई मजूदर प्रवासी है, तो उसे दो पते देने होते हैं। पहला- जहां से वह आया है, दूसरा- जहां वह काम करता है और उसका वर्तमान पता।" यह भी एक कारण हो सकता है कि प्रवासी मजदूर भी गैर-प्रवासी के तौर पर रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं और यही डेटाबेस में भी दिखता है। इसके अलावा, रजिस्ट्रेशन के लिए पिनकोड भी बताना होता है जो प्रवासी कामगारों को याद नहीं होता।

प्रोफेसर सुंदर कहते हैं कि एक और कारण यह हो सकता है कि रजिस्ट्रेशन कराने वाले ज़्यादातर कामगार कृषि क्षेत्र से हैं और प्रवास आधारित काम जैसे कंस्ट्रक्शन और घरेलू काम में लगे लोगों का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ हो। प्रोफेसर सुंदर आगे कहते हैं कि कई मजदूरों ने इस वजह से भी रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया होगा कि उन्हें इसके लिए कुछ मिला नहीं और उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी भी नहीं है।

इंडियास्पेंड ने श्रम मंत्रालय से पूछा है कि क्या ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के दौरान अब भी मजूदरों के प्रवासी होने की स्थिति पूछी जा रही है या नहीं? क्या यह डेटा ई-श्रम के डैशबोर्ड पर दोबारा सार्वजनिक किया जाएगा या नहीं? इन सवालों का जवाब मिलने पर हम स्टोरी को अपडेट करेंगे।

रजिस्ट्रेशन से मिलने वाले सामाजिक सुरक्षा के लाभों के बारे में कोई साफ जानकारी नहीं

विशेषज्ञों का मानना है कि यह पूरी कवायद सिर्फ़ डेटाबेस बनाने भर के लिए है और लोगों को काम दिलाने और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने पर इसका ध्यान नहीं है, जबकि पोर्टल का मुख्य मकसद यही है। शुभम कौशल कहते हैं, "कामगारों के रजिस्ट्रेशन का मतलब यह होना चाहिए कि उन्हें किसी खास श्रम कानून के तहत रजिस्टर किया जाए, ताकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा के फायदे मिल सकें।"

कामगारों के बारे में बनी लोकसभा की स्टैंडिंग कमेटी के सामने अगस्त 2021 में श्रम और रोजगार मंत्रालय ने कहा था कि नेशनल डेटाबेस ऑफ अनऑर्गनाइज्ड वर्कर्स (NDUW/e-Shram) पर रजिस्ट्रेशन करवाना ऐच्छिक है, 'सामाजिक सुरक्षा कोड के तहत किसी भी सामाजिक सुरक्षा का लाभ लेने के लिए, किसी भी कामगार का NDUW पोर्टल पर रजिस्टर्ड होना ज़रूरी है।'

सरकार ने यह भी कहा था कि उसने मजदूरों को 'दो साल' के लिए ऐक्सिडेंटल इंश्योरेंस देने का फैसला किया है, "रजिस्ट्रेशन और फीडबैक के हिसाब से अगर केंद्र सरकार तय करती है, तो इसके फायदों और कवरेज को बढ़ाया भी जा सकता है"। फिलहाल, रजिस्ट्रेशन करवाने वाले कामगारों को पीएम सुरक्षा बीमा योजना के तहते एक साल के लिए मुफ्त ऐक्सिडेंटल इंश्योरेंस मिलता है। इस इंश्योरेंस में हादसे की वजह से जान जाने और स्थाई विकलांगता होने पर रुपये 2 लाख और अस्थायी विकलांगता होने पर रुपये 1 लाख मिलते हैं। ई-श्रम पर इसके अलावा किसी भी सामाजिक सुरक्षा की योजना का जिक्र नहीं किया गया है।

चिराग राठौड़ और राशिद ने कहा कि उन्हें नहीं पता है कि इंश्योरेंस के अलावा उन्हें कुछ मिलने वाला है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि अगर भविष्य में कोविड-19 के लॉकडाउन जैसी कोई घटना होती है तो उन्हें इसी रजिस्ट्रेशन की वजह से कुछ फायदा मिल सकता है।

एक गैर-लाभकारी संस्था सेंटर फॉर माइग्रेशन ऐंड इन्क्लूसिव डेवलपमेंट (सीएमआईडी) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बेनॉय पीटर कहते हैं कि ई-श्रम मजदूरों को एक साल सिर्फ़ ऐक्सिडेंटल इंश्योरेंस देता है और कई मजूदर ऐसे हैं जिनके पास जन धन (बैंक का बेसिक बचत खाता) खाता नहीं है। बेनाय कहते हैं कि इस बात की भी संभावना है कि अगर किसी योजना के तहत मजदूरों के खातों में पैसे भेजे जाते हैं, तो वे पैसे बैंक चार्ज या अन्य किसी काम के लिए कट जाएं।

रवि श्रीवास्तव कहते हैं, "ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के दौरान डाला गया डेटा, सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं के लिए मजदूरों की योग्यता के हिसाब से नहीं है। इसे समय-समय पर सामाजिक सुरक्षा कोड के तहत परिभाषित किया जाना चाहिए। फिलहाल, सामाजिक सुरक्षा कोड (जो अभी नोटिफाई नहीं हुआ है) में अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों के लिए यूनिवर्सल सामाजिक सुरक्षा तय करने के लिए कोई ब्लू प्रिंट या समयसीमा नहीं है"। रवि आगे कहते हैं कि फिलहाल सिर्फ़ ऑनलाइन प्लैटफॉर्म के कर्मियों के लिए फंडिंग के तरीकों की बात की गई है और अभी फंडिंग का कोई तरीका तय नहीं है। इसके अलावा, इस योजना के लिए कोई स्पष्ट योग्यता तय नहीं की गई है, तो सिर्फ़ कामगारों का रजिस्ट्रेशन भर हो जाने से उन्हें कोई फायदा नहीं मिलने वाला है।

इंडियास्पेंड ने श्रम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से पूछा है कि ई-श्रम पर रजिस्ट्रेशन करवाने वाले मजूदरों या कामगारों को क्या फायदे दिए जाएंगे और ये फायदे उन तक किस तरह पहुंचेंगे। इन सवालों के जवाब मिलने पर हम स्टोरी को अपडेट करेंगे।

*पहचान गोपनीय रखने के लिए नाम बदले गए हैं।

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