कासगंज: "पुलिस वाले हमारे पास से बच्‍चे को अच्‍छा खासा ले गए। बताया कि पूछताछ करने ले जा रहे हैं। बाद में उसके मरने की खबर आई। हमारे बच्‍चे की जान ले ली। कहां से लाएंगे जवान बच्‍चा?," ये कहते हुए अल्‍ताफ की मां फातिमा बेहोश हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के कासगंज के अहरौली का रहने वाला अल्‍ताफ (21) टाइल्‍स का काम करता था। 8 नवंबर की शाम पुलिस अल्‍ताफ को एक नाबालिग लड़की के अपहरण के आरोप में उसके घर से थाने लाई। अगले दिन 9 नवंबर की शाम को अल्‍ताफ की पुलिस हिरासत में मौत की खबर आई। कासगंज के पुलिस अधीक्षक रोहन बोत्रे के मुताबिक, "अल्‍ताफ ने हवालात में बने शौचालय में नाड़े को नल में फंसाकर अपना गला घोंटने की कोशि‍श की। यहां से उसे अस्‍पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई।"

मामले की अजीब टाइमलाइन

पुलिस अधीक्षक बोत्रे की बताई कहानी ज‍ितनी अजीब लगती है, असल में मामले की टाइमलाइन उससे कहीं ज्‍यादा अजीब है। आगरा ज़ोन के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) राजीव कृष्ण के बयान के मुताबिक, "अल्‍ताफ ने 9 नवंबर को द‍िन में करीब 2.30 बजे थाने में आत्‍महत्‍या का प्रयास किया। यहां से पुलिस अल्‍ताफ को अस्‍पताल ले गई, जहां करीब 10 से 15 मिनट वह जीव‍ित रहा और फिर मौत हो गई।" वहीं, अल्‍ताफ ज‍िस मामले में आरोपी था, उसकी प्राथमिकी यानी कि एफआईआर उसकी मौत के करीब डेढ़ घंटे बाद यानी 9 नवंबर की शाम 4 बजे लिखी गई।

कैप्शन: अल्‍ताफ पर दर्ज एफआईआर।

इतना ही नहीं, अल्‍ताफ को पुलिस 8 नंवबर की शाम कासगंज कोतवाली लाई थी, लेकिन 8 नवंबर को जनरल डायरी (GD) में अल्‍ताफ का नाम दर्ज नहीं किया गया।

यह टाइमलाइन बताने को काफी है कि पुलिस ने अपने काम में लापरवाही की। पहले तो अल्‍ताफ को उठाने के बाद जनरल डायरी में उसका नाम दर्ज नहीं किया और फिर अल्‍ताफ की मौत के करीब डेढ़ घंटे बाद एफआईआर दर्ज की गई। यही कुछ कारण हैं जो अल्‍ताफ की मौत को संद‍िग्‍ध बनाते हैं और इन्‍हीं वजहों से अल्‍ताफ के पर‍िजन पुलिस पर अपने बच्‍चे को मार देने का आरोप लगा रहे हैं।

बेटे की मौत के बाद से अल्‍ताफ के प‍िता चांद मिया की तबीयत खराब रहने लगी है। चांद मिया कहते हैं, "मुझे इंसाफ चाहिए। मेरे बेटे को पुलिस ले गई, लेकिन वो जिंदा नहीं रहा। मेरा कलेजा ही कट गया।" इतना कहकर चांद मिया रो पड़ते हैं।

पर‍िजनों का आरोप: पुलिस मैनेज करने में जुटी

अल्‍ताफ के पर‍िजन यह आरोप भी लगाते हैं कि पुलिस हिरासत में अल्‍ताफ की मौत होने के बाद पुलिस इस मामले को मैनेज करने में जुट गई। इसी कड़ी में एक लेटर सामने आया था, ज‍िसमें ल‍िखा था कि अल्‍ताफ की मौत से उसके पर‍िजन को कोई श‍िकायत नहीं है और वह कोई कार्यवाही नहीं चाहते हैं।

इस लेटर को ल‍िखने वाले मो. सगीर ने इंड‍ियास्‍पेंड से कहा, "अल्‍ताफ की मौत के बाद कुछ लोग अल्‍ताफ के प‍िता और मां को गाड़ी में बैठाकर समझौता कराने ले गए। हम भी उनकी गाड़ी के पीछे-पीछे गए। यह गाड़ी कासगंज में गोरा चौकी पर रुकी। यहां अल्‍ताफ के प‍िता और माता की सीओ साहब और पुलिसकर्मियों से बातचीत हुई। इसके बाद मुझे बुलाया गया, क्‍योंकि अल्‍ताफ के प‍िता अनपढ़ हैं इसल‍िए वो लेटर नहीं ल‍िख सकते थे। वहां एक पुलिसकर्मी बोलता गया और मैंने लेटर ल‍िख द‍िया।"

कासगंज कोतवाली, यहीं अल्‍ताफ को ह‍िरासत में रखा गया था। फोटो- रणव‍िजय सिंह

सगीर से यह पूछने पर कि क्‍या अल्‍ताफ के प‍िता दबाव में लग रहे थे? सगीर कहते हैं "यह बात तो वही बता सकते हैं, मुझसे लेटर ल‍िखने को कहा गया मैंने ल‍िख दिया।" अल्‍ताफ के प‍िता इस लेटर के बारे में कहते हैं, "मेरा द‍िमागी संतुलन सही नहीं था। अपने बच्‍चे की देख सुन मैं कुछ समझ नहीं पाया, वो (पुलिस) जैसा कहते गए मैं करता गया।"

पर‍िजनों का यह भी कहना है कि पुलिस ने उन्‍हें द‍िए हैं। अल्‍ताफ की बुआ मोब‍ि‍ना कहती हैं, मौत के कुछ घंटों बाद पुलिस ने रुपये 5 लाख द‍िए। यह पैसे घर में पड़े हैं, अगर मांगे जाएंगे तो हम वापस कर देंगे। हमें पैसे नहीं, अपने बच्‍चे के ल‍िए इंसाफ चाह‍िए।

पुलिस ने अब तक क्‍या किया?

अल्‍ताफ की पुल‍िस हिरासत में मौत के बाद लापरवाही बरतने के आरोप में एसएचओ और चार पुलिस कर्मियों को न‍िलंब‍ित कर द‍िया गया। इस मामले की मजिस्ट्रियल जांच हो रही है। वहीं, अल्‍ताफ के मामले में अभी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। पुलिस अधीक्षक बोत्रे के मुताब‍िक, "अभी पर‍िजनों की ओर से तहरीर नहीं मिली है, किसी भी प्रकार की तहरीर के आधार पर व‍िध‍िक कार्यवाही की जाएगी।"

हिरासत के मौत के मामलों में यूपी नंबर 1

हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। इसी साल 27 जुलाई को लोकसभा में पूछा गया कि देश में कितने लोगों की मौत पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में हुई है। इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राष्‍ट्रीय मानवाध‍िकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े पेश किए। इन आंकड़ों के मुताबिक, हिरासत में मौत के मामलों में उत्‍तर प्रदेश पहले नंबर पर है। उत्‍तर प्रदेश में पिछले तीन साल में 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है।

एनएचआरसी के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 2018-19 में पुलिस हिरासत में 12 और न्‍याय‍िक हिरासत में 452 लोगों की मौत हुई। इसी तरह 2019-20 में पुलिस हिरासत में 3 और न्‍याय‍िक हिरासत में 400 लोगों की मौत हुई। वहीं, 2020-21 में पुलिस हिरासत में 8 और न्‍याय‍िक हिरासत में 443 लोगों की मौत हुई है।

प‍िछले तीन साल में हुई इन मौतों को जोड़ दें तो उत्तर प्रदेश में कुल 1,318 लोगों की पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में मौत हुई है। उत्तर प्रदेश का यह आंकड़ा देश में हुई हिरासत में मौत के मामलों का करीब 23% है। देश में प‍िछले तीन साल में पुलिस और न्‍याय‍िक हिरासत में 5,569 लोगों की जान गई है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।