गुड़गांव जल पर केंद्र सरकार की योजनाएं विकेन्द्रीकृत तरीके से समुदाय द्वारा भूजल प्रबंधन पर जोर देती हैं, लेकिन कुल मिलाकर ये योजनाएं इस कार्य के लिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में एक कुशल श्रम बल की उपलब्धता, प्रशिक्षण और तैनाती पर चुप हैं।

जल प्रबंधन अक्सर एक अंशकालिक, स्वयंसेवी/अवैतनिक गतिविधि होती है। ये न तो जल सुरक्षा को बढ़ाने में मदद करता है, न ही अति आवश्यक जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए सार्थक आजीविका को विकसित करने में मदद करता है। ऐसा वैश्विक शोध संगठन, जस्टजॉब्स नेटवर्क ने सुरक्षित और टिकाऊ जल के लिए काम कर रहे बेंगलुरु स्थित अर्घ्यम के साथ किया गया एक विश्लेषण बताता है।

भारत की कुल शहरी और ग्रामीण आबादी का 80 फीसदी हिस्सा अपने घरेलू जल आपूर्ति के लिए भूजल पर निर्भर है। विश्व की कुल जनसंख्या का 18 फीसदी हिस्सा भारत में ही है। लेकिन इसके परिक्षेत्र में वैश्विक नवीकरणीय जल संसाधनों (global renewable water resources) का महज 4 फीसदी ही आता है। 2017 के सबसे हालिया केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों (Central Ground Water Board data) की मानें तो 700 में से 250 जिलों में भूजल स्तर 'गंभीर' या 'अति-शोषित' है।

भारत में जल आपूर्ति और उसके प्रबंधन की कई योजनाएं हैं जिनका ध्येय जल आपूर्ति से परिपूर्ण गांवों, जिसमें जल जीवन मिशन Jal Jeevan Mission (जेजेएम) के माध्यम से गांवों में अच्छी गुणवत्ता वाले नल से जलापूर्ति योजना निहित है, वहीं भूजल प्रबंधन के लिए अटल भूजल योजना Atal Bhujal Yojana (एबीएचवाई) के साथ ही जल व स्वच्छता के लिए स्वच्छ भारत मिशन Swachh Bharat Mission (एसबीएम) योजनाएं है।

इन कार्यक्रमों में काम करने वाले लोग या कामगार समुदाय से ही होने चाहिए, साथ ही उन्हें भूजल और भू-पृष्ठीय जल के पीछे के विज्ञान का ज्ञान होना चाहिए। उनके पास वो कौशल होना चाहिए जिससे वो अपने समुदाय को जल की उपलब्धता के तहत उसके उपयोग की योजना बनाने और जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संरचनाओं और प्रणालियों के निर्माण, संचालन और रखरखाव में मदद कर सकें।

सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के फरवरी 2022 के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि ग्रामीण बेरोजगारी 8.25 फीसदी रही। वर्ल्ड वॉटर डे यानी विश्व जल दिवस के अवसर पर किया गया ये विश्लेषण जल प्रबंधन में स्थानीय श्रमिकों को कुशल बनाने और उनके कौशल को उन्नत बनाने की तत्काल जरूरत पर प्रकाश डालती है ताकि सीमित संसाधनों के प्रबंधन की चुनौतियों का समाधान किया जा सके। ऐसा करने से भारत में जल संबंधित दो संकटों का निवारण हो सकता है; पहला- विशेष तौर पर गर्म जलवायु के कारण संसाधनों की कमी से पैदा होती जल असुरक्षा से और दूसरा- देश की बड़ी श्रम शक्ति के लिए लाभकारी रोजगार की कमी से।

अर्घ्यम से सहायता प्राप्त जस्टजॉब्स जल कौशल परियोजना ग्रामीण जल प्रबंधन, रोजगार और कौशल के परिदृश्य को गांव, जिला और राज्य स्तर पर मैपिंग करने का प्रयास करती है। हालांकि इस तरह की मैपिंग या जल प्रबंधन के लिए नौकरियां सृजित करने, फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित या नियोजित करने के लिए सरकारी निकाय की ओर से कोई आदेश नहीं है। लेकिन इससे जल कौशल को स्थायी आजीविका से जोड़ने और इसके माध्यम से जल सुरक्षा पर एक बेहतर प्रबंधकीय रोडमैप तैयार होने की उम्मीद जगती है।

भारत दुनिया का सबसे ज्यादा भूजल उपयोग करने वाला देश है। यहां वैश्विक भूजल का 25% हिस्सा उपयोग में लाया जाता है। ऐसे में भारत के स्थायी सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए जल सुरक्षा काफी अहम है। भारत की लगभग 62% कृषि भूमि सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भर है, जबकि ग्रामीण भारत की लगभग 85% पेयजल आपूर्ति भूजल पर ही आश्रित है।

जल आपूर्ति से परिपूर्ण गांवों के लिए प्रशिक्षित फ्रंट-लाइन कैडर

भारतीय गांवों की जल संबंधी जरूरतें भू-पृष्ठीय जल स्रोतों जैसे नदियों, तालाबों, झीलों और भूजल स्रोतों से जैसे कुआं, नलकूप, बोरवेल के साथ ही बोरवेल और हैंडपंपों के माध्यम से पाइप यानी नल के पानी से पूरी होती हैं। पानी पर कई एजेंसियां और सरकारी कार्यक्रम मौजूद हैं, लेकिन व्यवहारिक तौर पर इनका कोई तालमेल नहीं होता है। इसके अलावा, इन परियोजनाओं में से कई ऐसी भी हैं जो कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एक कुशल जल संवर्ग की आवश्यकता पर बल देती हैं, लेकिन अधिकांश योजनाएं इस कुशल संवर्ग की उपलब्धता सुनिश्चित करने को लेकर खामोश ही हैं।

सरकार की जल संबंधी योजनाओं और उनके घटकों का विवरण


भले ही देश में पानी से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने के लिए देश में 5 लाख से 10 लाख कुशल कर्मियों का अनुमानित संवर्ग या कैडर हो (यह मानते हुए कि प्रति गांव कम से कम 2-3 लोगों को प्रशिक्षित किया गया है), लेकिन ये कैडर जमीन पर दिखते नहीं हैं और उनके पास योजना अवधि से इतर जॉब सिक्योरिटी (रोजगार को लेकर सुरक्षा भाव) भी नहीं है।

इसके अलावा, इन प्रशिक्षित व कुशल कैडर को लेकर गांव, ग्राम पंचायत या जिला स्तर पर कोई डेटा भी उपलब्ध नहीं है और न ही पर्याप्त जल प्रबंधन के लिए जरूरी कुशलता को लेकर कोई मैपिंग ही। जब भी किसी नई योजना की शुरुआत होती है तो कुछ नए कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाता है नतीजतन प्रयासों की अधिकता हो जाती है। इसके अलावा ग्रामीण जल के मुद्दों पर काम करने वाले ऐसे सभी लोगों की प्रभावशीलता, स्थिरता और मांग व आपूर्ति के अंतर को समझने के लिए पर्याप्त डेटा भी मौजूद नहीं है।

ग्रामीण जल सुरक्षा के कुशल ‌श्रमबल के लिए सुनिश्चित होगा सार्थक रोजगार

इन सरकारी योजनाओं और सिविल सोसाइटी की पहल के माध्यम से समुदाय के सदस्य बीच-बीच में प्रशिक्षित किए जाते हैं जो गांव में जल प्रबंधन के पहलुओं पर स्वैच्छिक आधार पर शामिल होते हैं। इन प्रशिक्षित श्रमिकों के कार्यों और जिम्मेदारियों में कुआं की खुदाई करने वाले कार्यकर्ता, पाइप लाइन बिछाने और रखरखाव के लिए राजमिस्त्री या प्लंबर, एक पंप ऑपरेटर, पैरा-हाइड्रोलॉजिस्ट के रूप में भूजल विशेषज्ञ, तालाबों की सफाई के लिए जिम्मेदार जल सहेलियां, स्प्रिंग शेड प्रबंधन के लिए धारा सेवक आदि शामिल हैं।

लेकिन प्रमुख कार्यक्रमों में भी, इन कुशल कर्मियों के कार्यों को 'नौकरी की भूमिका और जिम्मेदारियों' के रूप में परिभाषित नहीं किया जाता है और जल जीवन मिशन Jal Jeevan Mission और अटल भूजल योजना Atal Bhujal Yojana शो के दिशानिर्देशों का विश्लेषण दिखाने के लिए कोई स्पष्ट गतिशीलता, अपस्किलिंग और संबंधित पारिश्रमिक नहीं है। नतीजतन, भले ही सिविल सोसाइटी ग्रुप इन श्रमिकों को संगठित और प्रशिक्षित करें, लेकिन उन्हें भी अपनी आय और नौकरी में प्रोन्नति की ख्वाहिश को दरकिनार कर जल प्रबंधन करने में अपनी रुचि बनाए रखनी होगी।

महाराष्ट्र में जल सुरक्षा Jal Surakshaks जैसे 'पूर्णकालिक नौकरियों' के माध्यम से कुशल संवर्ग को मुख्यधारा में लाने के कुछ प्रयास किए गए हैं, जिन्हें भूजल की स्थिति की निगरानी के लिए प्रशिक्षित और प्रमाणित किया गया है और जल-स्तर मापने वाले उपकरणों को संभालने, कुओं की पहचान करने और विभिन्न ब्लॉक और जिला मुख्यालयों पर भूजल सर्वेक्षण और विकास एजेंसी Ground Water Survey and Development Agency (जीएसडीए) के साथ डिजिटल जानकारी साझा करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLM) जैसे आजीविका मिशनों के माध्यम से, श्रमिकों को ग्रामीण स्तर पर अनुबंधित कर निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिए लगाया गया है। स्वच्छाग्रही Swacchagrahis और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA), अन्य कार्यों के अलावा, पानी की गुणवत्ता का परीक्षण करने में अंशकालिक या प्रोत्साहन के आधार (इंसेंटिव) पर लगे हुए हैं।

कुछ राज्यों में जैसे गढ़वाल Garhwal में कोल्लस, उत्तरांचल के कुमाऊं Kumaon की पहाड़ियों में चौकीदारों, महाराष्ट्र Maharashtra में हवलदार, जगलिया या पाटकरियों जैसे जल प्रबंधकों की पारंपरिक नौकरियों को भूमिकाओं, जिम्मेदारियों और पारिश्रमिक के साथ 'औपचारिक' कर दिया गया है। हालांकि, 'नौकरियां पैदा करने' की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बावजूद, अधिकांश सामुदायिक संसाधन व्यक्ति स्वैच्छिक या श्रमदान (श्रम का दान) के आधार पर काम करना जारी रखते हैं।

ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम जल और स्वच्छता समितियों Village Water and Sanitation Committees (वीडब्ल्यूएससी) और जल उपयोगकर्ता संघों Water User Associations (डब्ल्यूयूए) जैसी सरकार द्वारा गठित उप-समितियों को जल प्रबंधन की पर्याप्त योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आवश्यकता है। हालांकि, जस्टजॉब्स नेटवर्क के शोधकर्ताओं ने जल प्रबंधन पर काम कर रहे गैर-लाभकारी संस्थाओं के साथ बातचीत में पाया कि इन निकायों की क्षमता अपर्याप्त है, उदाहरण के तौर पर जल संसाधनों की मैपिंग जैसे कार्यों और यहां तक कि अन्य गैर-लाभकारी या नागरिक समाज समूहों से नियमित बैठकें आयोजित करने में भी इन्हें मदद की जरूरत पड़ती है।