गर्भपात को लेकर कानून, फिर महिलाओं को क्यों अपनाने पड़ते हैं असुरक्षित तरीके?
संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में हर दिन असुरक्षित गर्भपात की वजह से लगभग 8 महिलाओं की मौत हो जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 5 (एनएफएचएस) के अनुसार भारत में होने वाले गर्भपात में एक-चौथाई से ज्यादा गर्भपात घरों में ही होते हैं। आखिर क्यों ?
लखनऊ।: उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर की रहने वाली प्रीति वर्मा (27) की शादी 2016 में हुई थी और शादी के तुरंत बाद ही वह गर्भवती हो गयी थीं। प्रीति और उनके पति इस बच्चे के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं थे, इसलिए उन्होंने गर्भपात कराने के बारे में सोचा।
प्रीति बताती हैं कि गर्भ निरोधक की जानकारी के अभाव में वे गर्भवती हो गईं और फिर इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने का उपाय ढूंढ़ने लगीं। यूट्यूब देखकर खुद ही गर्भ गिराने की एक असफल कोशिश की जिसकी वजह से उनकी तबियत बिगड़ गयी।
संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में हर दिन असुरक्षित गर्भपात की वजह से लगभग 8 महिलाओं की मौत हो जाती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 5 (एनएफएचएस) के अनुसार भारत में होने वाले गर्भपात में एक-चौथाई से ज्यादा गर्भपात घरों में ही होते हैं।
प्रीति कहती हैं, "मैं काफी परेशान थी और हर समय इस गर्भ से छुटकारा पाने के उपाय ढूंढ़ती थी। यूट्यूब पर देखा कि कैसे इससे छुटकारा मिल सकता है। मैंने वहीं से कुछ दवाओं के बारे में जाना और अगले दिन बिना किसी को बताए बाजार से दवाएं ले आई और खा लिया। दवा खाने के कुछ घंटे बाद मुझे बहुत तेज दर्द शुरू हुआ, जो मेरे बर्दाश्त से बाहर हो गया। जिसके बाद मैं बेहोश हो गई थी। मेरे पति मुझे डॉक्टर के यहां ले गए और वहां डॉक्टर ने मुझे पूरी रात अस्पताल में रखा। लेकिन इसके बाद भी कई महीनों तक मुझे कमजोरी रही, अचानक से चक्कर आने लगते थे। लगभग दो महीने के इलाज के बाद मैं ठीक हो पाई।"
तब डॉक्टर ने प्रीति को बताया कि अगर उन्होंने डॉक्टर की देखरेख में ये अबॉर्शन कराया होता तो इतनी परेशानी ना होती और उनकी जान को खतरा भी ना होता।
जान ले रहा असुरक्षित गर्भपात
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट पर नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में कुल जितने भी गर्भपात होते हैं उनमें से लगभग 27% गर्भपात घरों में ही होते हैं। इसका मतलब है कि महिलाएं बिना किसी डॉक्टरी सलाह के घर में ही गर्भपात कर रही हैं। अगर शहरों की बात करें तो 22.1 % महिलाएं गर्भपात घर पर ही करवा लेती हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में ये आंकड़ा और भी ज्यादा 28.7% है ।
एनएफएचएस -5 के आंकड़ों की मानें तो भारत में गर्भपात की सबसे बड़ी वजह अनचाही प्रेग्नेंसी है। 47.6% गर्भपात इसलिए होते हैं क्योंकि ये अनियोजित हैं और 11.03% गर्भपात स्वास्थ्य से जुड़े कारणों की वजह से होते हैं। वहीं 2.1% अबॉर्शन इस वजह से होता है क्योंकि गर्भ में लड़की पल रही होती है । आपको बताते चलें भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट गर्भपात कराने की इजाज़त देता है लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करना कानूनन अपराध है।
क्या होती है मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी
आज से लगभग छह साल पहले बाराबंकी में एक 13 साल की लड़की के साथ बलात्कार की घटना घटी थी जिसके बाद वह नाबालिग गर्भवती हो गई थी। इस घटना में पीड़िता के पिता ने हाईकोर्ट में अर्जी देकर बेटी का गर्भपात कराने की मांग की। लेकिन इस पूरी कानूनी प्रक्रिया में काफी समय लग गया और पीड़िता को लखनऊ के क्वीन मेरी अस्पताल में एक बच्ची को जन्म देना पड़ा था।
"हमें तीन महीने बाद पता चला था कि हमारी बेटी के पेट में बच्चा है। हम एक तकलीफ से गुजर रहे थे, उस समय केस चल रहा था इसलिए कोर्ट की अनुमति के बिना हम कुछ नहीं करा सकते थे। इस पूरे मामले में इतनी देर हो गई कि बाद में जब कोर्ट ने इजाजत दी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सात महीने बीत चुके थे ऐसे में सभी डॉक्टरों ने बच्चे को गिराने से मना कर दिया," लड़की के पिता ने इण्डियास्पेंड को बताया।
भारतीय कानून को ध्यान में रखते हुए हम रेप पीड़िता और उसके परिवार की पहचान को छिपा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 सितंबर 2022 मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत भारत में अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्तों तक गर्भपात का अधिकार दे दिया। पहले ये अधिकार सिर्फ विवाहित महिलाओं को था। जिसकी वजह से कई बार गर्भवती होने पर अविवाहित लड़कियां गर्भपात के असुरक्षित साधनों का इस्तेमाल करती थीं।
भारत में गर्भपात को लेकर ये हैं कानून
भारत में गर्भपात को लेकर जो कानून बने हैं वो विशेष परिस्थितियों को लेकर अलग-अलग हैं। इनमें बदलाव भी हो चुके हैं। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 (एमटीपी) के तहत किसी भी गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने का अधिकार देता है। 2021 में इसमें बदलाव किया गया और इसे कुछ विशेष परिस्थितियों के लिए डॉक्टरी सलाह पर 24 सप्ताह कर दिया गया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए 29 सितंबर को फैसला सुनाया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून के दायरे से अविवाहित महिला को बाहर रखना असंवैधानिक है। यह फैसला 25 साल की अविवाहित युवती की याचिका पर सुनाया गया था।
बाराबंकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के क्रिमिनल एडवोकेट हिसाल बारी किदवाई पिछले 20 वर्षों से ऐसे मामले देख रहे हैं। वे कहते हैं, "अगर महिला का गर्भ अनचाहा है या वह किसी रेप या दूसरी वजहों से गर्भवती हुई है या फिर बच्चे में कोई विकार हो तो वह 20 से 24 सप्ताह के बीच दो डॉक्टरों के सलाह के बाद गर्भपात करा सकती हैं। यह नियम पहले से था। लेकिन इसमें अविवाहित महिलाएं शामिल नहीं की गई थीं। उन्हें यह अधिकार सिर्फ 20 सप्ताह के लिए मिला था। लेकिन अब कोर्ट ने उन्हें भी बराबर का अधिकार दे दिया है।
"वैसे तो गर्भपात के लिए कानून की मानें तो सिर्फ मां की ही इजाजत जरूरी है। लेकिन जब रेप के केस हो तो एक निश्चित समय बीत जाने के बाद गर्भपात के लिए कोर्ट की इजाजत की जरूरत पड़ती है क्योंकि भ्रूण विकसित होने के बाद कई बार मां की भी जान को खतरा होता है," हिसाल बताते हैं।
जानकारी का अभाव और असंवेदनशीलता
कानपुर जिले की रहने वाली मीनाक्षी मिश्रा शादी के तुरंत बाद बच्चे के लिए तैयार नहीं थीं। उन्हें जब पता चला कि वे प्रेग्नेंट हैं तो उन्होंने अबॉर्शन कराने का फैसला किया। वह सरकारी अस्पताल जाती हैं। लेकिन वहां मौजूद कर्मचारियों ने उनके साथ बड़ा ही संवेदनहीन बर्ताव किया।
मीनाक्षी बताती हैं, "नर्स ने मुझसे कहा कि 'किसी और का बच्चा है क्या जो गिराने चली आई है, तुम लोग का भी समझ नहीं आता। इधर-उधर पाप करोगी फिर हमसे पाप कराने आ जाओगी।' नर्स ने बिना मुझे बेहोश किए ही पूरा प्रोसेस किया। मुझे भयानक दर्द हो रहा था बावजूद इसके उसने बिल्कुल भी नरमी नहीं बरती और गुस्से में बड़बड़ाती रही।
भारत में गर्भपात कानूनी तौर पर वैध है। लेकिन अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों और कस्बों में लोगों को इसकी पूरी जानकारी नहीं है। लखनऊ की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ (प्राइवेट प्रैक्टिस)
डॉ नीलम सिंह बताती हैं, "गर्भपात से होने वाली मृत्यु को मातृ में ही जोड़ा जाता है, अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां लगभग 13 फीसद मौतें असुरक्षित गर्भपात की वजह से होती है, पूरे यूपी में लगभग 50 फीसद गर्भपात असुरक्षित होते हैं, यानि कि या तो सही जगह से अर्बाशन नहीं कराया गया, या फिर प्रशिक्षित डॉक्टर से नहीं कराया या डॉक्टर ने सही तरीके से सारी सावधानियां नहीं बरतीं।"
यौन शिक्षा व महिला स्वास्थ्य पर बात करने में अभी भी असहजता
सरकार हर जिले में राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम चला रही है। इस कार्यक्रम के तहत किशोर और किशोरियों को युवा स्वास्थ्य से जुड़ी हर तरह की जानकारी दी जाती है। बाराबंकी जिले की महिला अस्पताल में किशोर स्वास्थ्य क्लिनिक की काउंसलर नीलम सिंह ने बताया कि हमारे यहां कभी कोई इससे जुड़ी जानकारी मांगने आता ही नहीं, हालांकि कार्यक्रम के तहत किशोर, किशोरियों के पोषण, यौन स्वास्थ्य व प्रजनन से जुड़ी जानकारी दिये जाने का प्रावधान है। लेकिन क्लीनिक में गर्भ निरोधक गोलियां नहीं दी जाती हैं। ये सरकार की तरफ से सिर्फ आशा बहुओं, एएनएम व महिला अस्पतालों में ही निशुल्क दी जाती हैं।
गर्भपात के सही तरीके न अपनाये जाने के कारण पूछने पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में कार्यरत डॉ. स्मृति अग्रवाल (स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग) बताती हैं, "कहीं न कहीं अभी भी हमारे देश में यौन स्वास्थ्य व शिक्षा पर बात करने में लोगों को असहजता होती है। यही कारण है कि हम किशोर व किशोरियों तक सही जानकारी नहीं पहुंच पाती। ऐसे में जब उनके सामने ऐसी कोई परिस्थिति आती है तो वे बिना जाने समझे ही दोस्तों में बात करके कोई भी अनियोजित तरीका अपना लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है। कई बार तो जान जाने का भी खतरा रहता है।''
वे आगे बताती हैं कि जब हम बात करते हैं महिलाओं की या शादीशुदा जोड़ों की तो कई बार उनके गर्भपात कराने के पीछे उनकी कम आमदनी भी कारण होती है। इस महंगाई में हर कोई ज्यादा बच्चे नहीं चाहता। लेकिन जब ऐसी अनचाही प्रेग्नेंसी होती है तो वे डॉक्टर के पास जाने से कतराते हैं। इसके पीछे कारण सिर्फ जागरूकता की कमी यानी अपने अधिकारों को सही तरीके से न जानना है। अगर सही समय पर डॉक्टर की सलाह से बच्चा अबॉर्ट किया जाए तो कोई खतरा नहीं होता है।
बलरामपुर जिले के पिपरिहा गांव की आशा बहू प्रतिमा देवी बताती हैं, "गांव में अभी भी औरतें इतना जागरूक नहीं हैं। परिवार नियोजन के तरीके भी सिर्फ वहीं अपनाती हैं आदमियों को इससे कोई ज्यादा मतलब नहीं होता है और जब वे गर्भवती हो जाती हैं तो भी उन्हें ये नहीं पता कि ये उनका अधिकार है और वो शुरुआती कुछ महीनों में गर्भपात करा देती हैं, वो अपने किसी रिश्तेदार या जान-पहचान वाले से पूछकर दवा खा लेती हैं। हम लोगों से भी इसलिए नहीं बतातीं कि कहीं हम उन्हें अस्पताल लेकर न चले जाएं।
कानून होने के बाद भी सरकारी तंत्र क्यों नहीं लेता जिम्मेदारी?
महिलाओं के स्वास्थ्य व अधिकारों पर काम करने वाली गैर सरकारी संस्था द वाइपी फाउंडेशन सेफ अबॉर्शन के लिए एक राज्य स्तरीय कार्यक्रम चला रहा है। इसकी प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर विनीथा जय प्रकाशन बताती हैं, "हम कई राज्यों में जमीनी स्तर पर महिलाओं तक सुरक्षित गर्भपात की जानकारी पहुंचाने का काम करते हैं। इसके लिए वहां की हेल्थ कम्युनिटी के साथ मिलकर काम करते हैं और आशा, एएनएम वर्कर्स को ट्रेनिंग देते हैं जिससे हर महिला एक स्वस्थ जीवन जी सके।"
विनीथा ने आगे बताया, "हमने अभी हाल ही में केरल के मछुआरे और असम के चाय बागान में काम करने वाले समुदाय पर इस मामले में एक रिसर्च की जिसमें बहुत सी चौंका देने वाली बातें सामने आईं। केरल जैसे राज्य जहां पर मातृ मृत्यु दर कम है और हेल्थ सिस्टम भी बेहतर है वहां की महिलाएं भी अपनी इच्छा से किसी अस्पताल में जाकर गर्भपात नहीं करा सकती हैं क्योंकि इसे उनकी धार्मिक मान्यता से जोड़ दिया गया है। कई बार वे भ्रांतियों का शिकार हो जाती हैं कि अगर एक बार अबॉर्शन करा लिया तो दोबारा कभी मां नहीं बन पाएंगी या अगर लोगों को पता चला कि आपने ऐसा पाप किया है तो लोग आपका बहिष्कार कर देंगे। ये सारी वजहें उन्हें जबरन असुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करने की तरफ धकेलती हैं और कोई जान न पाए के डर से अस्पताल नहीं जाती हैं। यहां तक कि किसी डॉक्टर से सलाह भी नहीं लेती हैं।"
"वहीं असम जैसे राज्य के कई इलाकों में देखने को मिला कि यहां के जिला अस्पतालों की दूरी काफी ज्यादा है इसलिए वहां महिलाएं अस्पताल से बेहतर दाइयों के पास जाना समझती हैं और ये अप्रशिक्षित दाइयां गर्भवती महिलाओं के पेट पर लात मारकर उनका अबॉर्शन कर देती हैं, ये कितना जानलेवा हो सकता है अंदाजा लगाया जा सकता है," विनीथा बताती हैं।
अस्पताल और डॉक्टर नहीं लेना चाहते हैं जिम्मेदारी
महिलाएं अगर चाहे तो निश्चित समय अंतराल के अंदर प्रशिक्षित डॉक्टर की देखरेख में अबॉर्शन करा सकती हैं, इसके बावजूद डॉक्टर और बाकी स्टाफ ऐसा करने से पीछे हटते हैं।
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह (प्राइवेट प्रैक्टिस) बताती हैं, "ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी सुरक्षित गर्भपात के साधन कम हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर या तो प्रशिक्षित डॉक्टरों की तैनाती नहीं है या फिर वे जिम्मेदारी से इसे करने से कतराते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि उन्हें खुद ही इस बारे में जानकारी कम है या नहीं है। एमटीपी एक्ट में समय-समय पर जो बदलाव होते हैं उनके बारे में मेडिकल ऑफिसर और सरकारी डॉक्टरों तक को कई बार नहीं पता होता जिसकी वजह से वो अबॉर्शन के लिए साफ मना कर देते हैं जबकि कानून भ्रूण लिंग की जांच न कराने को लेकर है और इसकी वजह से कोई अबॉर्शन तो नहीं करा रहा है इस पर है।"
महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रीता दास प्राइवेट प्रैक्टिस करती हैं, उन्हें 15 वर्षों का अनुभव है। वे बताती हैं, "अबॉर्शन पिल्स का इस्तेमाल भी बिना किसी डॉक्टर के सलाह के करना गलत होता है। कई बार महिलाएं मेडिकल स्टोर पर पूछकर कोई भी दवा खा लेती हैं और इसके परिणाम भयानक होते हैं। कई केस में उन्हें लगता है कि दवा खाने से बच्चा अब अबॉर्ट हो गया लेकिन बाद में ये फेल हो जाता है और उसके बाद जो बच्चे होते हैं उनमें कोई न कोई शारीरिक विकार रहता है।"
डॉक्टर दास ने बताया कि इसके लिए जरूरी है कि इससे संबंधित विज्ञापनों को हटाया जाए। आजकल लोग गूगल करके खुद ही डॉक्टर बन जाते हैं। आप जब गूगल में अबॉर्शन कीवर्ड डालेंगे तो दुनिया भर की दवाओं के नाम और अलग-अलग तरीके आ जाएंगे जो कई बार खतरनाक साबित होते हैं।
बिना सर्टिफिकेशन गूगल नहीं जारी करेगा अबॉर्शन से जुड़े विज्ञापन
असुरक्षित गर्भपात मामलों को संज्ञान में लेते हुए यूट्यूब ने फैसला किया था कि वो गर्भपात से जुड़े फेक वीडियो को धीरे-धीरे करके हटा देगा जो कि असुरक्षित गर्भपात को बढ़ावा देती हैं या असुरक्षित तरीकों को अपनाने के लिए महिलाओं को प्रेरित करती हैं। अबॉर्शन से जुड़ी कोई भी चिकित्सीय प्रक्रिया जो गलत होगी उस पर यूट्यूब कार्रवाई भी कर सकता है और उसे हटा सकता है। गूगल ने भी ये घोषणा की थी कि वह अबॉर्शन क्नीलिक व ऐसी अन्य जानकारियों को ऑटोमैटिक रिफाइन करने के बाद ही दिखाएगा। किसी भी गलत जानकारी कोई गूगल बढ़ावा नहीं देगा।