लखनऊ: बब्ली (34) की तीन साल की बेटी आरोही लखनऊ के ज़िला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में को लेकर भर्ती हैं। "मेरी बेटी को बहुत दस्त हो रहे थे। मौहल्ले के डॉक्टर ने कहा कि ज़िला अस्पताल जाने के लिए कहा। यहां आए तो पहले इमरजेंसी में भर्ती रहे और फिर यहां भेज दिया गया। डॉक्टर ने बताया है कि बच्ची कमज़ोर और इसमें खून की कमी है," लखनऊ के डालीगंज की रहने वाली बब्ली ने बताया।

"आरोही 28 नवंबर को यहां भर्ती हुई। जब आई थी तो इसे इडिमा (अतिकुपोषण का एक लक्षण) था, साथ ही ग्लूकोज़ की भी कमी थी। अब धीरे-धीरे ये ठीक हो रही है। अभी आरोही को डिस्चार्ज होने में एक हफ्ते का वक्त है, तब तक स्थिति में और सुधार होगा," पोषण पुनर्वास केंद्र की डाइटीशियन शाहीन फ़ातिमा ने बताया।

बच्चों में कुपोषण की स्थिति को सुधारने के लिए पूरे देश में पोषण पुनर्वास केंद्र चलाए जाते हैं। इन केंद्रों में उन अतिकुपोषित बच्चों को रखा जाता है जिन्हें क्लीनिकल उपचार की जरूरत होती है। इन बच्चों को केंद्र पर रखकर 14 दिन तक निशुल्क दवाई और विशेष आहार दिया जाता है। साथ ही मां को दैनिक भत्ता, खाना और बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित आवश्यक सलाह दी जाती है।

सितंबर के महीने में पोषण माह के दौरान उत्तर प्रदेश में 6 साल तक के 15 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे मिले। इनमें से 1.88 लाख बच्चे अतिकुपोषित बच्चे पाए गए। अतिकुपोषित बच्चों में से 2,823 को उपचार के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र भेजा गया।

आरोही की तरह हर कुपोषित बच्चा इस सुविधा का लाभ नहीं ले पाता। ऐसा इसलिए कि उत्तर प्रदेश में अतिकुपोषित बच्चों के अनुपात में पोषण पुर्नवास केंद्र की क्षमता काफी कम है। इसी समस्या के मद्देनज़र इस साल सितंबर में यूपी एनएचएम की ओर से गाइडलाइंस जारी की गई हैं।

इनके मुताबिक, कुपोषित/अतिकुपोषित बच्चों की पहचान गांव स्तर पर की जानी चाहिए, और जिन बच्चों को जटिल चिकित्सीय समस्या न हो और भूख भी लगती हो, उनका उपचार समुदाय स्तर पर ही किया जाए। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इक्विपमेंट और ट्रेेनिंग के बिना ऐसा करना मुमकिन नहीं होगा।

आरोही की मां बब्ली देवी से को पोषण से संबंधित सलाह देती हुई लखनऊ के पोषण पुनर्वास केंद्र की केयर टेकर सुशीला शर्मा। फ़ोटो: रणविजय सिंह

पोषण पुनर्वास केंद्र की क्षमता काफी कम

"वर्तमान में प्रदेश के 71 जिलों में 77 पोषण पुनर्वास केंद्रों के माध्यम से अतिकुपोषित बच्चों का उपचार हो रहा है। इन केंद्रों की क्षमता हर साल लगभग 18 हजार बच्चों को उपचारित करने की है, जो कि राज्य के अतिकुपोषित बच्चों का मात्र 1.5% ही है," मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) को गाइडलाइंस के साथ 21 सितंबर 2020 को भेजे एक पत्र में यूपी एनएचएम की निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने कहा।

आरोही की तरह ही लखनऊ में पांच साल से कम उम्र के 17.9% बच्चे अतिकुपोषित (SAM) हैं। जबकि पूरे राज्य में यह आंकड़ा 6% है, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़ों के मुताबिक। इसके बाद 2019 में आए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के दौरान, यूपी में 6 से 59 महीने के 1,723 बच्चों का वज़न किया गया। इसमें से 1.5% बच्चे अतिकुपोषित पाए गए।

"अतिकुपोषित बच्चों में अन्य बच्चों के मुकाबले मौत की संभावना ज़्यादा होती है। इनमें से करीब 10% बच्चों को क्लीनिकल उपचार की ज़रूरत भी होती है, जिसके लिए पोषण पुर्नवास केंद्र बनाए गए हैं," लखनऊ ज़िला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र के प्रभारी देवेंद्र सिंह ने कहा।

यूपी एनएचएम से मिले आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में पोषण पुनर्वास केंद्रों में 15,011 बच्चों का उपचार हुआ। वहीं, इस साल कोरोना की वजह से पोषण पुनर्वास केंद्रों का काम प्रभाव‍ित हुआ है। लॉकडाउन की वजह से बीच में केंद्र बंद भी थे। ऐसे में इस साल (2020-21) नवंबर के महीने तक 1,400 बच्चों का उपचार हो पाया है। जबकि यूपी एनएचएम की ओर से सीएमओ को भेजे गए पत्र में राज्य में अतिकुपोषित बच्चों की अनुमानित संख्या 11 लाख बताई गई है।

पत्र में यह भी कहा गया कि प्रदेश के अधिकांश कुपोषित/अतिकुपोषित बच्चे चिकित्सीय उपचार से वंचित रह जाते हैं। इस पत्र से साफ है कि यूपी में पोषण पुनर्वास केंद्र की क्षमता कितनी कम है। इसी समस्या से निपटने के लिए ये गाइडलाइंस जारी की गई हैं और एक मैनेजमेंट सिस्टम बनाया गया है जो पूरे प्रदेश में लागू होगा।

लखनऊ का पोषण पुनर्वास केंद्र। फ़ोटो: रणविजय सिंह

"पोषण पुनर्वास केंद्र से ख़त्म नहीं होगा कुपोषण"

इन गाइडलाइंस को तबके महाप्रबंधक बाल स्वास्थ्य डॉ. वेद प्रकाश ने जारी किया था। डॉ. वेद प्रकाश अब यूपी एनएचएम में ही राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के महाप्रबंधक हैं। "मैंने जब बाल स्वास्थ्य देखना शुरू किया तो यह नोटिस किया कि एक तरफ़ बात होती है कि कुपोषण बहुत ज़्यादा है, इसे खत्म करना है। दूसरी तरफ़ हेल्थ डिपार्टमेंट के पास कुपोषण से निपटने के नाम पर पोषण पुनर्वास केंद्र ही हैं, जबकि इससे कुपोषण खत्म नहीं होने वाला है," डॉ. वेद ने इंडियास्पेंड से कहा।

गाइडलाइंस में कुपोषि‍त बच्चों की पहचान से लेकर उन्हें आहार के तौर पर क्‍या देना है सबकी जानकारी शामिल है। मकसद यह है कि प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और हेल्थ वेलनेस सेंटर पर तैनात डॉक्टरों को पता रहे कि कुपोषित बच्चों की पहचान कैसे करनी है। डॉ. वेद प्रकाश ने इस संबंध में ज़िला स्तर पर ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दी है। उन्हें उम्मीद है कि इन गाइडलाइंस का पालन करने से आने वाले समय में अच्छा नतीजा मिलेगा।

"पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चे तब भर्ती होते हैं, जब वह बहुत ज़्यादा कुपोषित हो गए हों। यानी अतिकुपोषित बच्चों में भी वह बच्चे ज‍िनको उपचार की जरूरत है। जबकि अतिकुपोषित बच्चों के मुकाबले कुपोषित बच्चों की संख्या काफी ज़्यादा है, ज‍िनको पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती नहीं किया जाता," डॉ. वेद प्रकाश ने अपनी बात के समर्थन में तर्क दिया।

इस साल सितंबर में हुए पोषण माह के दौरान यूपी से मिले कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों के आंकड़े डॉ. वेद प्रकाश के तर्क की पुष्टि काफ़ी हद तक करते हैं। राज्य में 6 साल तक के 15 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे मिले। इनमें से 13.4 लाख बच्चे कुपोषित और 1.88 लाख बच्चे अतिकुपोषित पाए गए। इंडियास्पेंड की एक दिसंबर 2020 की इस रिपोर्ट के अनुसार।

डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक इस स्थिति में पोषण पुनर्वास केंद्र कुपोषित बच्चों की संख्या का 1% भी नहीं संभाल रहे हैं। साथ ही कुपोषित बच्चों के लिए जो पोषित आहार दिया जाता है वो भी कुपोषण पर ख़ास असर करता नहीं द‍िखता।

"कुपोषण को ख़त्म करने की बातें बहुत हो रही थीं, लेकिन कोई ठोस प्लान नहीं था। इसीलिए ये गाइडलाइंस जारी की गई हैं। इसके पीछे मकसद यह है कि जो बच्चे पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती नहीं हो पाते उनकी भी पहचान हो सके और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ही उन्हें बेहतर इलाज मिल जाए," डॉ. वेद प्रकाश ने कहा।

"आज तक मुझे शायद ही काई ऐसा गांव मिला होगा जहां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की जानकारी में कोई कुपोषित बच्चा था। ऐसे में समझ आया कि लोगों को कुपोषण की जानकारी ही नहीं है। जब कोई मरीज़ ही नहीं होगा तो इलाज किसका करेंगे," डॉ. वेद प्रकाश ने बच्चों में कुपोषण से जुड़ी एक और समस्या के बारे में कहा।

गाइडलाइन में क्‍या है?

यूपी एनएचएम की ओर से जारी गाइडलाइन में दो बातों पर ज्यादा जोर दिया गया है। पहला कि कुपोषित/अतिकुपोषित बच्चों की पहचान गांव स्तर की जाए। दूसरा यह कि अतिकुपोषित बच्चों में से जिन्हें जटिल चिकित्सीय समस्या न हो और भूख भी अच्छी हो उनका उपचार समुदाय स्तर पर किया जाए। ऐसे बच्चों को हेल्थ वेलनेस सेंटर, प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से दवा और पोषक तत्व देकर उपचार किया जाए। गाइडलाइन में इसी उपचार के संबंध में चिकित्सीय प्रोटोकॉल जारी किया गया है।

गाइडलाइंस में दिए गए चिकित्सीय प्रोटोकॉल।

हालांकि, हेल्‍थ एक्‍सपर्ट का मानना है कि इस गाडइलाइन का ज़मीन पर ज़्यादा असर नहीं होगा। "आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कुपोषण की पहचान के संबंध में पहले भी ट्रेनिंग दी जाती रही है। इसमें कुछ नया नहीं है। असल समस्या है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पास कुपोषण की पहचान करने के साधन ही मौजूद नहीं हैं। इसे दुरुस्त करने की ज़रूरत है। अगर ज़मीन पर अच्छे रिज़ल्ट चाहिए तो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या भी बढ़ानी होगी। ऐसे ही ट्रेनिंग दे देना और गाइडलाइंस निकाल देने से ज़्यादा असर नहीं होने वाला है," जन स्वास्थ्य अभियान की सह संयोजक डॉ. सुलक्षणा नंदी ने कहा।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पास कुपोषण की पहचान करने के साधन न होने की जो बात सुलक्षण नंदी कह रही हैं, यही बात राज्य पोषण मिशन के निदेशक कपिल सिंह ने पोषण माह पर की गई रिपोर्ट के दौरान इंडियास्पेंड से कही थी। कपिल सिंह के मुताबिक, अभी तक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पास कुपोषण की पहचान करने के साधनों की कमी थी। इसको देखते हुए राज्य सरकार की ओर से इन साधनों की ख़रीद की गई है और अब इन्हें आंगनबाड़ी केंद्रों पर भेजा जा रहा है। इन साधनों में इन्फ़ेंटोमीटर, इंफ़ेंट वेइंग मशीन, एडल्ट वेइंग मशीन, स्टेरियो मीटर शामिल है।

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