क़ाज़ीपोरा, कश्मीर: रमजान के पाक महीने की सुबह की पहली किरणें जब पहाड़ों से टकराकर घाटी में ठंडक घोल रही हैं, तब 36 वर्षीय दिलशादा ऊनी शॉल में लिपटी, अपने गांव की तंग गलियों में एक खास मिशन पर निकली हैं। सुबह के सात बजे हैं और उनके हाथ में एक छोटी नोटबुक है, जिसमें वह गांव की महिलाओं के नाम और उनके व्हाट्सएप नंबर दर्ज कर रही हैं।

दिलशादा एक स्वयं सहायता समूह (SHG) की सक्रिय सदस्य हैं। यह समूह सरकार द्वारा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है। जम्मू-कश्मीर में मौजूदा समय में 91,445 ऐसे समूह सक्रिय हैं। गांव में उन्हें महिलाओं को लोन दिलाने और बचत योजनाओं में मदद करने के लिए जाना जाता है। लेकिन आज उनकी यात्रा का मकसद कुछ और है।

इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत करते हुआ दिलशादा कहती हैं कि "हर हफ्ते मैं घर-घर जाकर महिलाओं से मिलती हूं। हमारे स्वयं सहायता समूह की बैठकों में अक्सर आर्थिक परेशानियों पर चर्चा होती है। लेकिन इन मुलाकातों के दौरान महिलाएं अपने स्वास्थ्य से जुड़ी उन समस्याओं पर भी बात करती हैं, जिन पर आमतौर पर कोई बात नहीं करता है।”


मासिक धर्म पर चुप्पी का कल्चर

जैसे-जैसे दिलशादा महिलाओं से मिलती गईं, उन्हें एहसास हुआ कि गांव में पीरियड्स या मासिक धर्म को लेकर बहुत कम जानकारी है। सदियों से चली आ रही भ्रांतियों के कारण कई महिलाओं को लगता था कि मासिक धर्म एक बीमारी है और कुछ तो इस बारे में बात करने से भी हिचकिचाती हैं। दिलशादा के लिए सबसे ज्यादा झकझोर देने वाला मामला 14 वर्षीय महरीन का था।

दिलशादा बताती हैं, "जब महरीन को पहली बार पीरियड्स आए, तो वह डर गई। उसे समझ ही नहीं आया कि उसके साथ क्या हो रहा है। वह अपनी मां से भी पूछने में शर्म महसूस कर रही थी।" वह आगे कहती हैं, "आखिरकार, उसने अपनी एक दोस्त से पूछा, जिसने उसे एक पुराना कपड़ा इस्तेमाल करने और इस बारे में किसी से बात न करने की सलाह दी।"

जम्मू-कश्मीर के दूर-दराज इलाकों में, जहां आज भी मासिक धर्म स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषयों पर खुलकर बात करना सामाजिक वर्जनाओं से बंधा है, व्हाट्सएप एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा है। स्वयं सहायता समूह (SHG) की सक्रिय सदस्य दिलशादा ने गांव की महिलाओं के लिए एक ऐसा व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है, जहां मासिक धर्म स्वच्छता, सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी साझा की जाती है।

दिलशादा ने कहा, "जब भी किसी लड़की को मासिक धर्म से जुड़ी कोई परेशानी होती है, तो वह सीधे व्हाट्सएप ग्रुप पर मैसेज करती है।"

इस ग्रुप में एक डॉक्टर भी शामिल हैं, जो महिलाओं के सवालों के जवाब देती हैंं। अब महिलाएं और लड़कियां बिना झिझक अपनी समस्याओं पर चर्चा कर सकती हैं। लेकिन यह सिर्फ जानकारी तक सीमित नहीं है। स्वयं सेवा समूह का ये व्हाट्सएप ग्रुप महिलाओं के लिए एक आर्थिक सहारा भी बन चुका है।

अगर किसी महिला को मासिक धर्म से जुड़ी समस्या के लिए दवाइयों की जरूरत है, तो वह ग्रुप में अपनी समस्या साझा करती है। इसके बाद, SHG की महिलाएं पैसे जुटाकर सीधे उस महिला के बैंक खाते में ट्रांसफर कर देती हैं, ताकि वह अपने लिए जरूरी दवाएं खरीद सके।

ऐसे ही एक स्वयं सेवा समूह की सदस्य रुबीना बताती हैं, "कई बार महिलाएं पैसे मांगने से हिचकिचाती हैं, लेकिन व्हाट्सएप ग्रुप पर वे बिना किसी शर्म के अपनी बात रख सकती हैं।" इस प्रयास के बाद से गांव की महिलाओं को मासिक धर्म से जुड़ी आपातकालीन स्थितियों में तुरंत मदद मिल रही है, जो पहले उनके लिए लगभग नामुमकिन थी।


जागरूकता की कमी

2023 में कश्मीर विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार 28% किशोरियों को पीरियड्स के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी। 35% लड़कियों को अपने दोस्तों से इसके बारे में पता चला था।

दिलशादा और उनकी स्वयं सहायता समूह की टीम रोजाना गांव-गांव जाकर लड़कियों और उनकी माताओं से मिलती हैं, उन्हें मासिक धर्म और स्वच्छता के बारे में शिक्षित करती हैं।

दिलशादा कहती हैं, हमारा हर दिन इसी कोशिश में बीतता है कि कोई भी लड़की इस कुदरती प्रक्रिया (मासिक धर्म) की वजह से बीमार न पड़े।" वह अपनी एक पुरानी दोस्त जमीला का दर्दनाक अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, "मुझे आज भी वह शाम याद है जब मेरी दोस्त जमीला, जो पास के ही गांव में रहती थी, मुझसे मिलने आई। वैसे हम रोज मिलते थे, घंटों बातें किया करते थे। लेकिन उस दिन उसने मुझसे कहा कि उसे निजी हिस्से में तकलीफ हो रही है। मैं उससे कई हफ्तों तक डॉक्टर को दिखाने के लिए कहती रही, लेकिन उसने इनकार कर दिया—सिर्फ शर्म और झिझक के कारण। जब बहुत दिनों बाद आखिरकार उसकी उसकी जांच हुई, तो डॉक्टरों ने बताया कि उसे सर्वाइकल कैंसर है।"

दिलशादा ने इंडिया स्पेंड हिंदी से बात करते हुए कहा, "एक बात जो मैं आज तक नहीं भूल पाई हूं—जमीला कभी भी सैनिटरी पैड लेने नहीं जाती थी। वह कहती थी कि उसे दुकान से खरीदने में शर्म आती है। उसने हमेशा गंदा कपड़ा ही इस्तेमाल किया और आज उसकी जान खतरे में है।"

अगर आंकड़ों की बात करें, तो भारत में सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाला तीसरा सबसे आम कैंसर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में दुनियाभर में 660,000 नए मामले और 350,000 मौतें दर्ज की गईं। वहीं भारत में (रिपोर्ट देखें) 2022 में सर्वाइकल कैंसर के 127,526 नए मामले सामने आए।



गांव की महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हुए स्वंय सहायता समूह की सदस्य


आंकड़े क्या कहते हैं?

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 50 करोड़ महिलाएं मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों और उचित स्वच्छता सुविधाओं की कमी से जूझ रही हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में मासिक धर्म स्वच्छता की स्थिति चिंताजनक है। यहां पर सिर्फ 50.5% महिलाएं सैनिटरी पैड और 58% महिलाएं अब भी कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। 23% महिलाएं लोकल तरीके से बनाए गए नैपकिन पर निर्भर हैं और सिर्फ 3% महिलाएं टैम्पोन का उपयोग करती हैं।

जब इंडियास्पेंड हिंदी ने गांव की महिलाओं से इस बारे में बात की, तो यह सामान्य समस्या के तौर पर सामने आई।

अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर एक स्थानीय महिला ने बताया, "हम सैनिटरी पैड खरीदने के लिए भीड़ में नहीं जा सकते हैं, तो फिर लाएगा कौन? हम अपने भाई, पिता या पति से भी इसे लाने के लिए नहीं कह सकते हैं। ऐसे में जो भी घर में उपलब्ध होता है, उसी से काम चलाना पड़ता है।"

जब इंडियास्पेंड हिंदी ने एक स्वास्थ्यकर्मी से इस स्थिति पर सवाल किया, तो उन्होंने कहा, "यहां की महिलाओं को तो बुनियादी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी तक नहीं है। कई बार तो वे महीनों तक नहाती भी नहीं हैं, जिसके कारण बीमारियां तेजी से फैलती हैं।"

मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता पर जलवायु प्रभावित क्षेत्रों में किशोरियों की स्थिति पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार 57% लड़कियां मासिक धर्म के दौरान नहाती नहीं हैं। आपको बता दें कि भारत के हर हिस्से में मासिक धर्म को लेकर अलग-अलग तरह की भ्रांतिया हैं और महिलाएं इस मुद्दे पर बात करने से झिझकती हैं।

श्रीनगर स्थित स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. महमूद वानी ने इंडियास्पेंड हिंदी से बात करते हुए बताया कि सर्वाइकल कैंसर तेजी से बढ़ने वाली समस्या बन गई है।

"जिन भी इलाकों में मासिक धर्म से जुड़ी गलतफहमियां होती हैं और मासिक धर्म स्वच्छता की अनदेखी की जाती है, वहां इसका खतरा कई गुना बढ़ जाता है।" उन्होंने कहा, "सरकार इसे रोकने के प्रयास जरूर कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि मामलों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि जागरूकता फैलाने में कहीं न कहीं अभी भी कमी है।"


स्कूलों में शौचालयों की कमी भी एक समस्या

चंदीलोरा गांव की 10वीं कक्षा की छात्रा रुखसाना कहती हैं "अगर हमारे पास साफ-सुथरे टॉयलेट नहीं हैं, तो सैनिटरी पैड भी किसी काम के नहीं रह जाते हैं। मैं कई दिन स्कूल नहीं जा पाती, क्योंकि लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट नहीं हैं और कोई प्राइवेसी नहीं मिलती।" असर 2024 (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) के अनुसार 2022 में, जम्मू-कश्मीर के 25.3% स्कूलों में टॉयलेट तो थे, लेकिन वे इस्तेमाल करने के लायक नहीं थे। हालांकि 2024 तक यह आंकड़ा घटकर 16.3% हो गया, लेकिन समस्या अब भी बनी हुई है।


महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान



गाँव की महिलाओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को नोटबुक में देखती एक स्वयं सहायता समूह की एक कार्यकर्ता


जम्मू-कश्मीर के दूर-दराज के इलाकों में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर काम कर रहे ये स्वयं सहायता समूह (SHG) अब सिर्फ मासिक धर्म स्वच्छता तक ही सीमित नहीं रह गए हैं। ये समूह अब महिलाओं की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर भी गंभीरता से ध्यान दे रहे हैं, जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं।

SHG की सदस्य शमशादा बताती हैं, "कश्मीर में कई लड़कियां आर्थिक अस्थिरता, सामाजिक झिझक और यहां के लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों के कारण गहरे मानसिक तनाव से जूझ रही हैं।"

शमशादा आगे कहती हैं, "सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि ज्यादातर लड़कियां इस तनाव के बारे में खुलकर बात करने में भी झिझकती हैं। हमें हाल ही में एक 16 साल की लड़की का मामला मिला, जिसे गंभीर पैनिक अटैक आया था। चूंकि अस्पताल यहां से बहुत दूर था, इसलिए हमें तुरंत फोन पर डॉक्टर से मदद लेनी पड़ी।"

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