भारत के सबसे पिछड़े जिले से तीन महिलाओं की भूख और उससे जुड़े संघर्ष की कहानी
वैश्विक भुखमरी सूचकांक की भारतीय रैंकिंग इस वर्ष नीचे गिरी है, ऐसे में भारत के सबसे पिछड़े जिले से भूख और उससे जुड़े संघर्ष को दर्शाती ये रिपोर्ट।
श्रावस्ती, उत्तर प्रदेश: नवम्बर महीने के दूसरे सप्ताह के बुधवार को रेखा देवी, उम्र लगभग 40 वर्ष, अपने घर से तकरीबन 500 मीटर दूर एक खेत में कम्पैन मशीन के पीछे अपने बच्चों के साथ धान की बालियां बीन रही थीं। पूछने पर वह कहती है की इन गिरी हुई बालियों से उनके परिवार का गुजारा होता है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से तकरीबन 170 किलोमीटर पूरब में भारत और नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटा श्रावस्ती भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है जहां न रोजगार देने के लिए कोई बड़ा कारखाना है न ही कोई और जरिया। खेती-किसानी और मजदूरी ही यहाँ के लोगों के लिए रोजगार का मुख्य साधन है।
रेखा देवी एक विधवा, दलित हैं और उनके दो बच्चे हैं। रेखा देवी को हफ्ते में एक से दो बार मजदूरी का काम मिल जाता है और उसी से वह अपना और अपने बच्चों का पेट भरती हैं।
भारत का थिंक टैंक कहे जाने वाले नीति आयोग की 2021 में जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य का श्रावस्ती जिला 74.38% स्कोर के साथ बहुआयामी गरीबी सूचकांक (पृष्ठ संख्या 197) उत्तर प्रदेश में सबसे ऊपर है।
रेखा कहती हैं, "हम मां बेटे धान के सीजन में धान की बाली और गेहूं के सीजन में गेहूं की बालियां बीनकर अपना गुजारा करते हैं क्योंकि यहां मजदूरी भी ज्यादा नहीं मिलती। सिर्फ खेती के काम की मजदूरी कभी कभार मिलती है जिसका दिनभर का मेहनताना 150 रुपये मात्र मिलता है।"
आपको बताते चलें कि धान और गेहूं के खेतों में जो फसल ज्यादा झुक जाती है उसको कैंपेन से काटते समय उसकी कुछ बालियां खेत में ही रह जाती हैं। इन्हें किसान दूसरों को बीनने से इसलिए नहीं रोकता क्योंकि अगर वह मजदूर लगा कर इन बालियों को बिनवायेगा तो मजदूरी ज्यादा लग जाएगी और बहुत ज्यादा अनाज भी नहीं मिलता।
तीन साल पहले हुई पति की मौत के बाद रेखा देवी अपने मायके (माँ के घर) लौट आईं और तब से वे एएनएम सेंटर (सहायक नर्स दाई केंद्र) में रह रही हैं। रेखा बताती हैं कि उनके पिता भी आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हैं और इसी वजह से उन्हें बाहर रहना पड़ रहा है। रेखा देवी जिस सरकारी भवन में समय गुजार रही हैं उसमें पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए उन्हें एक किलोमीटर दूर लगे हैंड पाइप से पानी भरकर लाना पड़ता है।
"तीन साल से धोबी पुरवा में रहने के बाद भी अभी तक मेरा राशन कार्ड नहीं बन सका है। आवास की जब बात आती है तो कर्मचारी कहते हैं कि तुम अपनी ससुराल में जाकर आवास लो। न आवास, न राशन कार्ड, न कोई जमीन, न कोई जायदाद, यही जीवन है हमारा," रेखा बताती हैं।
रेखा आगे कहती हैं कि जब फसल बोई जाती है तब उन्हें मजदूरी का काम आसानी से मिल जाता है, लेकिन उसके बाद काम मिलने में मुश्किल आती है।
"फसल बुवाई और कटाई के समय दो तीन हफ्ते तक काम लगातार मिल जाता है जिसमें 150 रुपए प्रतिदिन मजदूरी और कभी कभार एक समय का खाना मिल जाता है, लेकिन उसके बाद काम मिलने में दिक्कत आने लगती है।"
रेखा अपना और अपने चार साल के बेटे का जीवन यापन इसी तरह से गुजार रही हैं। क्योंकि उनके पास घर का स्थायी पता नहीं है तो मनरेगा से मिलने वाले 100 दिन के गॉरन्टीड रोजगार का भी लाभ उन्हें नहीं मिल पाता और न ही उन्हें केंद्र सरकार द्वारा गरीबों के लिए चलाई जा रही अंत्योदय अन्न योजना का लाभ मिलता है।
भारत और खाद्य संकट
भारत इस वर्ष वैश्विक भुखमरी सूचकांक में 121 देशों की लिस्ट में 107 नंबर पर रहा है। हालांकि भारत सरकार ने इसे नकार दिया है। केंद्र ने एक बयान जारी करके कहा कि सूचकांक गंभीर गणना प्रणाली मुद्दों से ग्रस्त है और इसकी गणना त्रुटिपूर्ण है।
जुलाई 2022 संयुक्त राष्ट्र की फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन द्वारा रिलीज़ की गयी फ़ूड सिक्योरिटी एंड नूट्रिशन इन द वर्ल्ड की रिपोर्ट में हैरान कर देने वाले खाद्य असुरक्षा के आंकड़े प्रस्तुत किये गए। इस रेपोर्ट में आंकड़ों द्वारा यह बताया गया है की विश्व में वर्ष 2021 में तकरीबन 2.3 अरब लोग संतुलित या गंभीर भूख की समस्या से जूझ रहे थे जो की वैश्विक जनसंख्या का करीब 30 प्रतिशत है। रिपोर्ट यह भी कहती है की विश्व में गंभीर खाद्य असुरक्षा वर्ष 2019 में 9.3% थी जो की वर्ष 2021 में बढ़कर 11.7% हो गयी थी।
"कई बार मुझे और मेरे बच्चे को सिर्फ एक समय का ही खाना नसीब हो पाता है और राशन कार्ड न हो पाने की वजह से हमें सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिल पाता जिसकी वजह से और भी दिक्कत होती है," रेखा बताती हैं।
रेखा के दो बच्चे हैं। बड़ा बेटा 11 साल का और छोटा बेटा 4 साल का। बड़ा बेटा अपने दादा के घर रहता है और छोटा मां के साथ। दोनों बच्चों की पढ़ने की उम्र है, लेकिन गरीबी के कारण इन्हें स्कूल नहीं भेज जा सका है। इस तरह बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत मिलने वाली शिक्षा के मौलिक अधिकार से यह वंचित हैं। और तो और सरकार द्वारा दिए जाने वाली मिड डे मील के लाभ से भी वंचित हैं।
उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग के निदेशक विजय किरण आनंद ने इंडिया स्पेंड से बताया कि शिक्षा विभाग खुद बच्चो का आधार कार्ड बनवाने में मदद कर रहा। "आधार के अभाव के कारण बच्चो को शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता| कुछ दूर दर्ज के जिलों से ऐसी शिकायत विभाग को पता चली है जिसका हम निस्तारण करने की पूरी कोशिश कर रहे है।"
रेखा के पास अपना मकान नहीं है लेकिन देश के गरीब परिवारों को प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का लाभ अब 2024 तक मिलेगा। "क्योंकि रेखा का मकान नगर निगम की सीमांकन में आता है तो अगर उन्हें घर मिलेगा (पात्रता के आधार पर) तो वह शहरी योजना के तहत ही मिलेगा," श्रावस्ती के मुख्य विकास अधिकारी अनुभव सिंह ने बताया।
क्या होती है भूख?
=भूख यानी अल्पपोषण, संक्युक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन की मानें तो, भूख आहार ऊर्जा के अपर्याप्त उपभोग के कारण होने वाली एक असहज या दर्दनाक शारीरिक अनुभूति है। यह क्रोनिक हो जाता है जब व्यक्ति सामान्य, सक्रिय और स्वस्थ जीवन जीने के लिए नियमित रूप से पर्याप्त मात्रा में कैलोरी (आहार ऊर्जा) का सेवन नहीं करता है।
डेवलपमेंट एसोसिएशन फार ह्यूमन एडवांसमेंट-देहात के कार्यकारी अधिकारी दिव्यांशु चतुर्वेदी का मानना है कि श्रावस्ती की गरीबी और पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण लिंग भेदभाव है। "श्रावस्ती में एक परम्परा है कि महिला सबसे बाद में खाना खाएगी। जो पुरुषों और बच्चों से बचा हुआ होगा उसी में वह अपना गुजारा करेगी, एक तो वह पहले से एनिमिक (15 से 49 वर्ष की महिलाओं में 44.4% ऎनेमिक है) हैं क्योंकि श्रावस्ती में बाल वधुओं की संख्या भी काफी अधिक है ( 15 से 19 वर्ष की महिलाये जो सर्वे के समय या तो माँ बन चुकी थी या फिर गर्भ से थी, ऐसी महिलाये जिले में लगभग 7% है वही 20 से 24 में 67.9 % महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले हुई है)। बाल वधु या एनिमिक महिला के गर्भ से जन्मा बच्चा मानसिक रूप से कमजोर होगा। इसलिए जब वह स्कूल जाता है तो वहां भी स्वस्थ्य बच्चों के साथ अपने को ढाल नहीं पाता और वह पढ़ाई में पिछड़ता जाता है। इसलिए वह पांचवीं तक पहुंचने से पहले ही स्कूल छोड़ देता है। इसलिए नैकरियों और कारोबार में यहां के लोग आगे नहीं बढ़ पाते," चतुर्वेदी ने कहा।
सितंबर 2022 के संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम की संक्षिप्त रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओ व बच्चो में सूक्ष्म पोशक तत्वों के कमी की गंभीर समस्या है। वहीं 6 से 59 माह के 35.5% बच्चे गंभीर कुपोषित हैं।
वर्ष 2019 में वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्रमम के उत्तर प्रदेश के दो जिलों के सर्वेक्षण में यह पाया गया था की औरतो को अपना खाना अपने पति और बच्चों के साथ बाटना पड़ता है और पैसो के अभाव की वजह से वो कम खाना खाती है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ और पास के जिले फतेहपुर में हुए इस सर्वे के बाद यह सुझाव भी दिया गया था कि गरीब इलाकों में महिलाओ के पोषण हेतु एक विशेष अभियान चलाया जाए और उन्हें अपने परिवार के साथ बैठ कर भोजन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
कहानी किरण की
रेखा के गांव से कुछ दूर मध्य नगर में 31 वर्षीय किरण निषाद एक छोटी सी फूस की झोपड़ी में रहती हैं। 8 माह की गर्भवती हैं और दिसंबर महीने में डिलीवरी की डेट दी गयी है।
स्टोरी रिपोर्ट किये जाने वाले दिन रिपोर्टर किरण से तकरीबन शाम के 4 बजे मिले थे और बात करने पर ये पता चला की किरण ने सुबह से सिर्फ आलू की तरकारी (पकी हुई सब्जी) और चावल खाया था। दोपहर और रात के खाने के लिए घर में कोई व्यवस्था नहीं थी।
किरण कहती है,"जब पति कहीं मजदूरी पर जाएंगे और कुछ लाएंगे तभी खाना बनेगा और वखा पाएंगे।" रेखा के पति जगदम्बा मजदूरी करते हैं और वे अपनी बड़ी बेटी राजकुमारी (8) की मौत के बाद से श्रावस्ती के बाहर काम की तलाश बंद कर चुके हें। इनकी बेटी की मौत नदी में नहाते समय डूब जाने से हुई थी। रेखा और जगदम्बा का एक 7 वर्ष का बेटा भी है। बमुश्किल महीने में 10 से 12 दिन ही मजदूरी लग पाती। नरेगा में मजदूरी के सम्बंध में उसने बताया कि नरेगा में भी साल में 100 दिन से ज्यादा काम नहीं मिल सकता और 100 दिन काम करके साल भर खर्च कैसे चलेगा। इसलिए कर्ज लेना पड़ता है और जब कर्ज अधिक हो जाता है तो दिल्ली कमाने जाना पड़ता है ताकि कर्ज चुकाया जा सके। इधर हम दिल्ली भी कई महीने से नहीं गए हैं," जगदम्बा ने इण्डिया स्पेंड को बताया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण-5 (2019-2021) के अनुसार उत्तर प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के 39.7% बच्चे स्टंटिंग से ग्रसित है, वहीं 17.3% बच्चे वेस्टिंग से ग्रसित है और 32.1% अंडर वेट यानि (कम वजन) के हैं यही नहीं 15 से 49 साल के बीच की 19% महिलाओं का बॉडी मास इंडेक्स मानकों के अनुसार असंतुलित पाया गया। वेस्टिंग अर्थात लंबाई के अनुसार कम वज़न,पाँच वर्ष तक की आयु के बच्चों की मृत्यु का एक बड़ा कारण है।
सिर्फ सरकारी अनाज ही है एक उम्मीद की किरण
जगदम्बा आगे बताते हैं कि राशन के कोटे से मिलने वाला अनाज ही उनका सहारा है। "हमारा 4 यूनिट का बीपीएल कार्ड बना है जिसमें 20 किलो की जगह 18 किलो महीने में गल्ला मिलता है। 8 किलो चावल मिलता है और 10 किलो गेहूं मिलता है, जिसके हमें 60 रुपए कोटेदार को देने होते हैं"।
किरण जैसी श्रावस्ती में तमाम महिलाएं हैं जिन्हें आयरन और फोलिक एसिड से भरपूर भोजन न मिलने के कारण बच्चे कुपोषित हो जाते हैं।
श्रावस्ती जिले के कोलाभार ग्राम सभा के मझगवां गांव की 85 वर्षीय राजरानी एक छोटी सी झोपड़ी में अपने छोटे बेटे के साथ रहती हैं। राजरानी दलित है।
राजरानी के दो बेटे हैं जिसमें से बड़े की शादी हो चुकी है और वह अलग रहता है, क्योंकि छोटे बेटे का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है इसलिए राजरानी उसे अपने पास रखना ठीक समझती।
आराम करने वाली उम्र में भी राजरानी अपने और अपने बेटे के लिए दो वक्त की रोटी के इंतजाम में लगी रहती हैं। राजरानी के पास एक बीघा खेत है लेकिन यह जमीन भी एक फसली है और इसमें सिर्फ गेहूं की खेती हो पाती है। धान के सीजन में अक्सर बाढ़ फसल को अपने साथ बहा ले जाती है। ऐसे में इन्हें चावल के लिए कोटे के अनाज और मवेशी से होने वाली कमाई का ही सहारा रहता है।
राजरानी के नाम से 2 यूनिट का बीपीएल राशन कार्ड बना हुआ है जिससे उन्हें महीने में 10 किलो अनाज 2 रुपये की दर से मिल जाता है| इनकी गरीबी को देखते हुए इनका अंत्योदय कार्ड बनना चाहिए था| उनके पास अगर अंत्योदय कार्ड होता तो उन्हें महीने में एक बार 35 किलो अनाज फ्री मिल जाता और उसी महीने में दूसरी बार 10 किलो अनाज 2 रुपये की दर से मिल जाता।
श्रावस्ती के जिला पूर्ति अधिकारी दीपक कुमार ने इण्डिया स्पेंड से फोन पर हुई बातचीत में बताया कि जिले में दो लाख सात हजार राशन कार्ड हैं जिसमें 23,172 कार्ड अंत्योदय योजना के तहत बने हैं और जिन पात्र लोगों के अंत्योदय योजना के तहत कार्ड नहीं बना है वह नियमानुसार आवेदन करें, अगर आवेदन सही पाए गए तो उनके भी कार्ड बनेंगे। श्रावस्ती के जिला अधिकारी श्रीमती नेहा प्रकाश से संपर्क करना चाहा लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला, जवाब मिलने पर इस लेख को अपडेट किया जायेगा।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पोर्टल के अनुसार उत्तर प्रदेश में खाद्य वितरण प्रणाली के 15,00,72,390 लाभार्थी हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना निदेशक शिशिर सिंह ने इण्डिया स्पेंड से हुई बातचीत में कहा की प्रदेश सरकार सूबे के हर एक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराने के लिए समर्पित है और पिछड़े से पिछड़े इलाको में भी विकास करने के लिए कटिबद्ध है।
"सरकार की पूरी कोशिश है की प्रदेश में कोई भी भूखे पेट नहीं सोना चाहिए। सरकार इसके लिए भिन्न भिन्न तरह की योजनाएं चला रही है और प्रदेश का एक बड़ा तबका इन योजनाओ का लाभ ले रहा है। अगर किसी का राशन कार्ड नहीं बना है या अंत्योदय योजना का लाभ नहीं मिल रहा है तो हम इसका संज्ञान लेकर जिम्मेदार अधिकारियों को कहकर आवश्यक कार्यवाही करेंगे," सिंह ने बताया।
एडिटिंग और अतिरिक्त योगदान: सौरभ शर्मा