उत्तर प्रदेश: आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों, महिलाओं को दो महीने नहीं मिला पुष्टाहार, कैसे दूर होगा कुपोषण?
उत्तर प्रदेश में ज्यादातर जिलों के आंगनवाड़ी केंद्रों पर अक्टूबर और नवंबर महीने का पुष्टाहार ही नहीं बांटा गया। क्यों नहीं बांट, इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि टेंडर प्रक्रिया की वजह से देरी हुई।
लखनऊ, एटा: “दो महीने से आंगनवाड़ी के चक्कर लगा रही हूं। लेकिन हर बार यही कहकर लौटा दिया जाता है कि ऊपर से राशन आया ही नहीं। चार महीने से गर्भवती हूं। दो महीने ऐसे ही निकल गये। इतना पैसा भी नहीं होता कि सब कुछ खरीदकर खा सकें।” आंगनवाड़ी केंद्र से खाली झोला लेकर लौटतीं रमा देवी कहती हैं।
रमा देवी (26) उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के जाफराबाद ब्लॉक में रहती हैं। “पति मजदूरी करते हैं। चने की दाल और दलिया मिल जाता था तो काफी मदद हो जाती थी। मजदूरी में कमाई ही कितनी होती है कि सब कुछ खरीदकर खा सकें। पहला बेटा तीन साल का है, वह भी काफी कमजोर है। अब आहार कब मिलेगा, इसका कुछ पता नहीं।” वे कहती हैं।
बच्चों के विकास एवं गर्भवती महिलाओं व स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 1975 को एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) की शुरुआत की थी। योजना के अन्तर्गत 06 माह से 06 वर्ष आयु के बच्चों, गर्भवती एवं धात्री माताओं को योजना से लाभान्वित किया जाता हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार इस योजना के तहत 1.77 करोड़ लाभार्थियों को लाभ दिया जा रहा।
उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों के आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अक्टूबर, नवंबर महीने का पुष्टाहार (अनुपूरक पुष्टाहार) नहीं मिला। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार उत्तर प्रदेश में 1.89 लाख से ज्यादा आंगनवाड़ी केंद्र हैं।
बरेली की ही तरह जिला एटा में भी अक्टूबर और नवंबर महीने का पुष्टाहार नहीं बंटा है। जिले के राजा का रामपुर नगर पंचायत के वार्ड नंबर 9 के सभासद आदिश्वर दयाल बताते हैं कि पिछले तीन महीने से बच्चों को मिलने वाला राशन (पुष्टाहार) का वितरण नहीं हुआ है। जब आगनवाड़ी केंद्र से इसकी जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि दो महीने से राशन आया ही नहीं है।
एटा के अलीगंज नगर पालिका क्षेत्र के रहने वाले उमेश कुमार भी चिंतित हैं। वे कहते हैं, “मेरे दो बच्चे हैं जिन्हें तीन महीने से राशन नहीं मिला है। आंगनवाड़ी केंद्र पर मौजूद कार्यकत्री ने बताया कि अभी राशन नहीं आ रहा। आने पर बंटेगा।
एटा के जिला कार्यक्रम अधिकारी संजय कुमार ने बताया कि अक्टूबर और नवंबर माह का पुष्टाहार का वितरण नहीं हुआ है। इस वजह से 18,539 गर्भवती महिलाओं और 15,217 बच्चों को राशन मिल पाया है। जिले के 93 ग्राम पंचायतों में 293 आंगनवाड़ी केंद्र संचालित हैं।
जिला मिर्जापुर के ब्लॉक पटेहरा के ग्राम राजौहा की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरोज देवी के ऊपर दो केंद्रों की जिम्मेदारी है। एक में 135 और दूसरे में 145 लाभार्थी हैं।
“इस समय में पुष्टाहार बंट रहा है। लेकिन अक्टूबर और नवंबर महीने का पोषाहर नहीं बंट पाया था। ब्लॉक पर पूछा तो वहां से पता चला कि जिले से आया ही नहीं है। पूरे जिले में यही हाल था।” सरोज देवी बताती हैं।
पटेहरा ब्लॉक के सीडीपीओ (बाल विकास परियोजना अधिकारी) अरुण कुमार ने इंडियास्पेंड को बताया कि ये बात सही है कि दो महीने पुष्टाहार दो महीने से नहीं आया है। लेकिन नवंबर का आहार आने वाला है। वजह तो सप्लाई करने वाली एजेंसी ही बता सकती है। इधर यह भी हो रहा कि योजना के तहत पूरा आहार एक बार में नहीं मिल रहा। इसलिए लाभार्थियों को एक साथ पूरा आहार नहीं मिल पा रहा।
उत्तर प्रदेश शासन की न्यूट्रिशन निदेशक सरनीत कौर ब्रोका ने इंडियास्पेंड को बताया, "अक्टूबर और नवंबर 2023 में टेंडर की प्रक्रिया की वजह से उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में वितरण नहीं हो पाया था। कुछ जिलों में स्टॉक था तो वहां वितरण नहीं रुका। वितरण की प्रणाली को 15 दिनों से ठीक करवा दिया गया है, जिन जिलों में वितरण नहीं हो पाया था उन जिलों में वितरण लगातार जारी रहेगा। ब्लॉक स्तर से पोषण राशन का उठान करवाना सुनिश्चित किया जा रहा है। जल्द ही राशन वितरण हो जायेगा।"
कैसे दूर होगा कुपोषण?
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के लिए बतौर खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञ (उत्तर प्रदेश) काम करने वालीं जीना शर्मा का मानना है कि आहार संबंधी मसलों पर ऐसी लापरवाही भारी पड़ सकती है। “बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर उत्तर प्रदेश सहित देश के दूसरे राज्यों की भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में पुष्टाहार वितरण को लेकर ब्रेक स्थिति को और खराब कर सकता है। ऐसा दूसरे राज्यों में भी देखा गया है।”
जीना यह भी कहती हैं कि मौजूदा समय में दिया जा रहा आहार पर्याप्त पौष्टिक नहीं है। लेकिन अगर यह भी बराबर नहीं दिया जायेगा तो स्थिति और बिगड़ेगी ही।
महिला स्वास्थ्य विशेषज्ञ और उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था वात्सल्य की प्रमुख डॉक्टर नीलम सिंह आश्चर्य व्यक्त करती हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में ऐसी लापरवाही बरती जा रही। वे कहती हैं, “दो महीने का गैप बहुत लंबा होता है। अगर पर्याप्त पोषण आहार नहीं मिलेगा तो महिलाओं के साथ-साथ गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ेगा। महिलाओं और बच्चों को पर्याप्त कैलोरी और प्रोटीन नहीं मिलेगा तो कुपोषण को रोकना और मुश्किल होगा।”
बाल विकास सेवा एंव पुष्टाहार विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार राज्य में 6 माह से 6 साल के अतिकुपोषित बच्चों को 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1.5 किलो चावल, 2 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल, 6 माह से 3 साल के बच्चों को 1 किलो गेहूं दलिया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल, 3 से 6 साल के बच्चों को 500 ग्राम गेहूं दलिया, 500 ग्राम चावल, 500 ग्राम चना दाल, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल, 11 से 14 साल की किशोरियां को 1.5 किलो गेहूं दलिया, 1 किलो चावल, 1 किलो चना दाल, 500 मिलीलीटर खाद्य तेल का वितरण हर महीने किया जाता है।
बच्चों और महिलाओं की कैलोरी और प्रोटीन की जरूरतों की बात करें तो विभाग के मानकों के अनुसार 6 माह से 6 साल तक के अतिकुपोषित बच्चें को 800 कैलोरी और 20-25 ग्राम प्रोटीन, 6 माह से 3 साल के बच्चों को 500 कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन, 3 से 6 साल के बच्चों को 200 कैलोरी और 6 ग्राम प्रोटीन, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 600 कैलोरी और 18-25 ग्राम प्रोटीन और 11 से 14 साल की किशोरियों को 600 कैलोरी और 18-25 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन मिलना चाहिए।
“बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के मानक के अनुसार अतिकुपोषित बच्चे को हर दिन 800 कैलोरी और 20 से 25 ग्राम प्रोटीन मिलना चाहिए। लेकिन अगर अनुपूरक पुष्टाहार बराबर बंटेगा ही तो ये समस्या खत्म कैसे होगी।” जीना सवाल उठाती हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2019-21) के अनुसार उत्तर प्रदेश में 5 साल से कम उम्र के 39.7 प्रतिशत बच्चे बौने (उम्र के अनुसार कम कद के) हैं। 31.1 प्रतिशत बच्चों का वजन (उम्र से कम वजन) कम है। 5 साल तक के 17% बच्चों की उम्र के हिसाब से लंबाई कम मिली। 6 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से वेस्टेड (लंबाई के हिसाब से कम वजन वाले बच्चे) पाए गए। और 6 से 59 महीनों के बीच के 66.4% बच्चों में खून की कमी (<11.0 g/dl)(%) पाई गई।
इसी सर्वे रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 15 से 49 वर्ष के बीच की 50 फीसदी से ज्यादा महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) से जूझ रही हैं। इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में 6 से 23 महीने के बीच के 6% बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है। इस मामले में यूपी गुजरात के साथ संयुक्त रूप से पहले नंबर पर है। 29% के साथ मेघायल की स्थिति सबसे अच्छी है।
(अतिरिक्त सहयोग- मिर्जापुर से बृजेंद्र दुबे। शुभम श्रीवास्तव एटा से स्वतंत्र पत्रकार है।)