'स्टेरॉइड्स सिर्फ कम ऑक्सीजन स्तर वाले कोविड-19 मरीजों के लिए'
द्वितीय माइक्रोबियल संक्रमण जैसे ब्लैक फंगस कोविड19 के उपचार में स्टेरॉइड्स के ज़्यादा और लम्बे समय तक प्रयोग से हो सकते हैं। स्टेरॉइड्स का प्रयोग सिर्फ ऐसे मरीजों में किया जाना चाहिए जिनका ऑक्सीजन का स्तर काम हो, फेफड़ों के विशेषज्ञ डॉ रजनी भट्ट और डॉ लांसलोट पिंटो कहते हैं।
मुंबई: कोविड19 के मामले और इससे होने वाली मौतों के आंकड़े भारत के कुछ क्षेत्रों में कम होते दिखाई दे रहे हैं लेकिन दुसरे क्षेत्रों में ये अभी भी बढ़ रहे हैं। फिलहाल देश में दो प्रकार के कोविड19 के आंकड़े हैं, एक जो चिन्हित किये गए हैं और दुसरे जो कि चिन्हित नहीं किये गए हैं, और इन दोनों आंकड़ों में फर्क साफ़ दिखाई देता है। लेकिन दूसरा बड़ा मुद्दा जो कि उभर कर आ रहा है वो है कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों में बीमारी के बाद दिखने वाले प्रभाव। कोरोना से ठीक होने के बाद होने वाले प्रभावों के बारे में अब आम लोग भी जानते हैं, लेकिन क्या दवाइयां या फिर उनकी अधिक मात्रा इसकी वजह है? कौन सी दवाइयां और पिछले एक साल में इन्होने क्या प्रभाव डाले होंगे? बहुत सी दवाएं ऐसी हैं जो कि मरीज़ों के जल्दी ठीक होने कि हड़बड़ी में डॉक्टरों ने उन्हें ना चाहते हुए भी है।
अब जैसे जैसे भारत में कोरोना की दूसरी लहर ख़त्म होती दिखाई दे रही है, हम यहाँ से तीसरी लहर की तैयारी के तौर पर दवाओं को लेकर क्या सीख ले सकते हैं?
कोविड19 के उपचार और उसके बाद के प्रभावों पर प्रकाश डालने के लिए हमने दो जाने-माने जानकारों से बात की। डॉ रजनी भट्ट, बैंगलोर स्थित कंसलटेंट पल्मोनोलॉजिस्ट, अमेरिकन बोर्ड ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रमाणित फेफड़ो की डॉक्टर और न्यू यॉर्क के अल्बर्ट आइंस्टाइन कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रमाणित क्रिटिकल केयर डॉक्टर हैं। डॉ लांसलोट पिंटो, मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में एक कंसलटेंट पल्मोनोलॉजिस्ट और महामारी विशेषज्ञ हैं, उन्होंने ने मक्गिल यूनिवर्सिटी, मोंट्रियल, कनाडा से एमबीबीएस और एपिडेमियोलॉजी में मास्टर ऑफ़ साइंस किया है।
सम्पादित अंश
डॉ भट्ट, कृपया हमारे पाठकों को बताएं कि स्टेरॉइड्स क्या है क्योंकि यह दवाई कोविड19 के मरीजों को मुख्य तौर पर दी जाती है और इसके कई दुष्प्रभाव भी हुए हैं।
डॉ भट्ट: स्टेरॉइड्स बाह्य और कृत्रिम रूप है उन रसायनों का जो हमारे शरीर में उत्पन्न होते हैं। कुछ अन्तःविकसित स्टेरॉयड जैसे रसायन जैसे कोर्टिसोल हमारे शरीर में तनाव के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
जब कोविड19 का संक्रमण होता है तो शुरुआत में ऐसा समय होता है जब वायरस हमारे शरीर में बढ़ रहा होता है। तभी हमारे शरीर में दुसरे हफ्ते में बहुत जलन होती है। स्टेरॉयड वह दवा है जिसे ये जलन कम करने के लिए दिया जाता है। इन दवाओं के अपने दुष्प्रभाव हैं जैसे इम्युनिटी में कमी और ब्लड शुगर में वृद्धि। इसलिए ये उन दवाओं में से नहीं है जिसे बिना सोचे समझे दिया जाये।
पहले स्टेरॉइड्स का नाम काफी ख़राब था, यहां तक कि फेफड़ों के डॉक्टर होते हुए भी हमे मरीजों को यह बताने में कि उन्हें स्टेरॉइड्स सही में ज़रुरत है, कठिनाई होती थी। कई दशकों पहले यह एक गलत इस्तेमाल का मुद्दा था जो बाद में एक डर में बदल गया तभी स्टेरॉइड्स के ज़रुरत के इस्तेमाल के लिए भी हमे बहुत काउंसलिंग करनी होती है।
कोविड19 के मामले में, खासकर कोविड19 के गंभीर मरीजों (जिन्हे ऑक्सीजन या वेंटिलेटर सपोर्ट कि ज़रूरत होती है) पर स्टेरॉइड्स के अच्छे प्रभाव के बारे में छपी ख़बरों के कारण, हमने देखा कि लोगों में स्टेरॉइड्स के सही इस्तेमाल को लेकर डर और सतर्कता कम हुई है।
हालाँकि, लोगों को बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाओं की उपलब्धता एक परेशानी है। तभी, स्टेरॉइड्स कोविड19 मरीजों के लिए बहुत अच्छी दवाएं हैं अगर इनका इस्तेमाल सावधानी और सही समय पर किया जाये, डॉक्टर की सलाह पर इनका उपयोग बिना किसी डर के किया जा सकता है। लेकिन, ये वो दवाएं हैं जिनका इस्तेमाल सावधानी से होना चाहिए और बिना सही सलाह के नहीं करना चाहिए।
डॉ पिंटो, आपके अनुभव से, क्या पिछले एक साल में स्टेरॉइड्स का न्यायसंगत प्रयोग हुआ है:
डॉ पिंटो: दुर्भाग्यवश, इसका उत्तर नहीं है, और हमने काफी बड़े स्तर पर इसके बुरे प्रभावों को देखा है। यह दोष इस पर डालना मुश्किल होगा, लेकिन मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति को जब तेज़ बुखार, जो कि कोविड19 का खासकर पहले हफ्ते में बहुत ही आम लक्षण है, तो वह आसपास के माहौल कि वजह से बहुत ही घबरा जाता है। और जब व्यक्ति को लगता है कि उसका बुखार दो, तीन दिन में नहीं जा रहा है तो बहुत तनाव और घबराहट हो जाती है और डॉक्टर पर एक दबाव होता है कुछ करने का। जब साधारण दवाई जैसे पेरासिटामोल से भी बुखार नहीं जाता है तब ऐसी स्थिति डॉक्टर को स्टेरॉइड्स देने के लिए थोड़ा बाध्य करती है क्योंकि स्टेरॉइड्स बुखार को कम करने में काफी कारगर होते हैं। जब बुखार एक दो दिन में चला जाता है तो मरीज खुश हो जाता है। दुर्भाग्यवश, अगर ये बहुत जल्दी किया जाता है तो इससे वायरस को शरीर में तेजी से बढ़ने में मदद मिलती है।
तभी लोगों में एक दो दिन सुधार दिखता है, उनको बहुत अच्छा लगता है, उनको शरीर में ताकत महसूस होती है, लेकिन जब उनकी हालत बिगड़ती है तो बहुत बुरी तरह से बिगड़ती है क्योंकि ये वही समय है जब वायरस बहुत बड़ी क्षमता में वापस आता है। आपके शरीर कि इम्युनिटी स्टेरॉइड्स कि वजह से पूरी तरह से कम होती है क्योंकि आपके पास प्राकृतिक इम्युनिटी नहीं होती है जो साधारण तौर पर आपकी रक्षा करती है। अधिकतर लोगों में बुखार चार से पांच दिन तक रहता है लेकिन पांचवे या छठे दिन अपने आप कम हो जाता है। लेकिन अगर आप अपने शरीर को ठीक नहीं होने देते हैं और इम्युनिटी के वापस आकर संक्रमण से लड़कर बुखार के कम होने का इंतज़ार नहीं करके जल्दबाज़ी में स्टेरॉयड का इस्तेमाल शुरू कर देते हैं तो आप अपनी इम्युनिटी को दबा कर वायरस को खुली छूट दे देते हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसा हम बहुतायत में देख रहे हैं।
डॉ पिंटो, क्या आप यह कह रहे कि स्टेरॉइड्स काम नहीं किया? क्या लोगों को स्टेरॉइड्स बिना प्रिस्क्रिप्शन के मिल रहे हैं या फिर उन्हें ये डॉक्टरों से मिल रहे हैं?
डॉ पिंटो: दुर्भाग्यवश, मुझे ऐसे बहुत से प्रिस्क्रिप्शन दिख रहे हैं जिसमे तीसरे और चौथे दिन ही स्टेरॉइड्स लिखे जा रहे हैं, तो डॉक्टर ही बहुत साफ़ तौर पर इसे लिख रहे हैं। इसके पीछे मरीज और उसके परिवार की तरफ से बड़ा दबाव हो सकता है जैसे वह कहें, "देखिये, हम लोग बहुत डरे हुए हैं, अगर हमारी तबियत और ख़राब होती है और बुखार कम नहीं होता है तो हमारे लिए कोई बेड नहीं है, तो प्लीज कुछ कीजिये"
ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि डॉक्टर जिन्होंने ये सुना हो कि स्टेरॉइड्स काफी कारगर दवा है लेकिन उन्हें ये ध्यान नहीं आया हो कि इस बात में अंतर है। स्टेरॉइड्स और ऑक्सीजन संभवतः वो दो दवाएं हैं जो कोविड में जान बचाती हैं। लेकिन अगर आप ऐसे कोई वक्तव्य देते हैं और कोई इसे सुनते हैं तो उन्हें लगता है कि बीमारी के किसी भी चरण में आप स्टेरॉइड्स दीजिये और ये सब कुछ बदल देगा। और मुझे लगता है कि ये एक वास्तविक समस्या है जिसका समाधान किया जाना चाहिए।
डॉ भट्ट, ऐसे कौन से स्टेरॉइड्स हैं जो आप दोनों के अनुसार कोविड19 के शुरुआत में नहीं दी जानी चाहिए लेकिन आम तौर पर प्रिस्क्राइब की जाती हैं? दूसरे देश जैसे अमेरिका और इंग्लैंड में बुखार के तीसरे या चौथे दिन में क्या किया जाता है?
डॉ भट्ट: सबसे बड़ी ट्रायल में, जो कि रिकवरी ट्रायल थी, उन्होंने 2000 से ज़्यादा मरीजों का अध्ययन किया जिन्हे स्टेरॉयड दिया गया था, ये ऐसे मरीज थे जो कि मध्यम या अधिक बीमार थे जिन्हे ऑक्सीजन या वेंटीलेटर कि ज़रुरत थी।
ये स्टेरॉयड था डेक्सामेथासोन और इसका उपयोग 6 मिलीग्राम के डोज़ में करीब 10 दिन किया गया और मरीजों की हालत में सुधार दिखाई दिया। हालाँकि, इस ही ट्रायल में ये भी दिखा कि अगर इसे ऐसे मरीजों को दिया जाये जिन्हे ऑक्सीजन या वेंटीलेटर की ज़रुरत नहीं है या वो गंभीर नहीं हैं तो इसके दुष्प्रभाव हुए हैं।
तो ट्रायल बहुत साफ़ तौर पर यह बताती है कि स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल चुनिंदा मरीजों जिन्हे ऑक्सीजन या वेंटीलेटर की ज़रुरत हो उन पर सही समय और जगह पर करना चाहिए।
इस ही स्टेरॉइड्स क्लास में दूसरी दवाएं जो समान्तर डोज़ में इस्तेमाल की जा रही है वो है प्रेड्निसोन, मेथ्य्लप्रिडनीसोलोन और हाइड्रोकोर्टीसोन ये दवाएं बहुत सी पल्मोनरी और रहुमटोलॉजिकल बिमारियों के उपचार का हिस्सा हैं। हम इस क्लास की दवाओं, जो कि स्टेरॉइड्स हैं, को समान्तर मात्रा में इस्तेमाल करे हैं। मेरा मानना है कि स्टेरॉइड्स के साथ दिक्कत इसके सही समय पर ठीक इस्तेमाल से है। एक नयी स्टडी -- भले ही मरीजों की कम संख्या पर की गयी है -- भी आई है जो की सूंघने वाले स्टेरॉइड्स, बूड़ेसोनाइड के बारे में है जिसका इस्तेमाल अस्थमैटिक मरीजों और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी ) के मरीजों के उपचार में किया जाता है। शुरुआती स्टडी में ये पाया गया कि मरीजों के यह ग्रुप गंभीर रूप से बीमार (कोविड19) मरीजों के बीच छोटा था। गंभीर रूप से बीमार (कोविड19) मरीजों में ऐसे मरीज जो अस्थमैटिक या सीओपीडी से प्रभावित हों कम थे तो उन्होंने ये देखना शुरू किया कि उनकी रेगुलर दवाइयां तो उन्हें नहीं बचा रही हैं। तो ऐसा लगता है कि सूंघने वाले स्टेरॉइड्स इस बारे में मदद कर सकते हैं, लेकिन फिर से इनका इस्तेमाल न्यायसंगत और डॉक्टर की सलाह के साथ ही होना चाहिए।
यूके, जहां हाल की स्टडीज का बड़ा भाग संचालित किया गया था, की प्रैक्टिस में अंतर ये है कि वहाँ के मरीजों को बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवा नहीं मिलती है। स्टेरॉइड्स उन ही लोगों को उपलब्ध है जो अस्पतालों को देख रेख में हैं, ना कि ऐसे मरीजों को जो कि घरेलु देखभाल में हैं। वहां के सिस्टम में घरेलु देखभाल में उन्ही लोगों को रखा जाता है जिनका ऑक्सीजन लेवल 94 या उससे अधिक है, जब यह 93 या 92 तक आ जाता है तो मरीज इमरजेंसी में जाता है और तब उसे स्टेरॉइड्स दिए जाते हैं। इस तरह आपको स्टेरॉयड तब तक नहीं मिलता है जब तक आपके स्वास्थ्य का सही आंकलन जो कि ऑक्सीजन लेवल में गिरावट है, नहीं होता।
क्या आपको लगता है कि ये भारत में संभव है कि स्टेरॉइड्स सिर्फ ऐसे कोविड19 मरीजों को उपलब्ध हों जिनकी हालत ज़्यादा नाजुक है और ये सिर्फ अस्पतालों में उपलब्ध हों?
डॉ भट्ट: मेरे ख्याल से ऐसा हो सकता है अगर हमारे हेल्थकेयर सिस्टम पर इतना बोझ ना हो। मुझे पता है कि ऐसे कुछ प्रयास किये गए थे। जब यहां ट्रेवल रेस्ट्रिक्शन्स चल रहे थे तब कुछ राज्यों ने पेरासिटामोल और एंटीहिस्टामाइंस कि खुली बिक्री पर बंदिशें लगाई थी, कोई भी दवाई वाला आपको पेरासिटामोल नहीं देगा जब तक कि उसे ये यकीन नहीं हो जाये कि आपको कोविड नहीं है। तो, ऐसे प्रयास हुए हैं। लेकिन, ऐसा तभी हो सकता है जब आपके पास सभी कम ऑक्सीजन वाले मरीजों के लिए पर्याप्त मात्रा में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हों। फ़िलहाल, हम बहुत से ऐसे मरीज जिन्हे ऑक्सीजन और स्टेरॉइड्स की ज़रूरत है, का इलाज घरों में ही कर रहे हैं। तो, मुझे लगता है कि सबसे ज़रूरी चीज़ जो आपके पास होनी चाहिए वो है प्रिस्क्रिप्शन।
डॉ पिंटो, पहली लहर में एक साल से ज़्यादा और अब दूसरी लहर में, इन दवाओं के इस्तेमाल को लेकर हमने अब तक क्या सीखा है? इन दवाओं के देने के बाद के प्रभावों के बारे में आपने क्या देखा है?
डॉ पिंटो: मैंने ये देखा है कि कम इस्तेमाल कोविड19 जैसी बीमारी में अच्छे से काम करता है। सतर्क रहना, सावधानी पूर्वक मॉनिटरिंग, मरीज का हाथ पकड़ कर उनके घबराने पर शांत रखना, ऐसा डॉक्टर्स को करना चाहिए। दुर्भाग्यवश, मुझे डॉक्टर्स बहुत ज़्यादा परेशान और काम से घिरे हुए दिखाई देते हैं। मरीजों के लिए 10 दवाओं का प्रिस्क्रिप्शन लिख देना, जिससे उसे ये लगे कि उसके लिए कुछ किया जा रहा है, आसान है बनिस्बत इसके कि उसे ये समझाया जाये कि 'आपको किसी दवा कि ज़रुरत नहीं है'। उन्हें ये लगता है कि हमारे पडोसी को या हमारे चाचा-चाची को इतनी सारी दवाइयां मिली हैं लेकिन डॉक्टर ने मुझे तो कुछ दिया ही नहीं। तो, किसी तरह से ये दुर्भाग्यपूर्ण है। हमे मरीजों को ये बताने के लिए कि उन्हें इस बीमारी के लिए कुछ नहीं चाहिए, बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी है। जो मैंने सीखा है वो ये कि, एक बीमारी जिसके लिए सही में कुछ ज़्यादा करने कि ज़रूरत नहीं है सिवाए इस बिमारी की मॉनिटरिंग के, उसके लिए बहुत ज़्यादा किया जा रहा है।
डॉ भट्ट: मेरे सहकर्मियों के साथ कल एक चर्चा के दौरान एक बात सामने आई कि आप एक मरीज, जो कि बहुत ज़्यादा डरा हुआ है, को खाली हाथ कैसे वापस भेज सकते हैं? मैं नहीं मानती कि हम मरीजों को खाली हाथ वापस भेज रहे हैं। हम उन्हें समझाइश और आश्वासन के साथ भेज रहे हैं। यहां पर ज़रुरत मरीज के साथ खड़े रहने और वार्तालाप की है। डॉक्टर के तौर पर इस तरह की स्किल कि आपको कब आश्वासन के अलावा कुछ नहीं करना है, कि कब सावधानी के साथ इंतज़ार करना मरीज के लिए सबसे ज़यादा फायदेमंद है, हमारे काम का हिस्सा है। दूसरी बात जो हमने देखी है वो यह कि, दवाओं का गलत प्रयोग सिर्फ आम व्यक्तिओं में ही नहीं, डॉक्टर्स में भी पाया जाता है। मैंने अपनी माँ और पति का खुद इलाज किया है और मैंने इन उपचारों का गलत प्रयोग नहीं किया। लेकिन मैंने देखा है कि डर जो है वो वैज्ञानिक तौर पर सोचने वालों को भी मजबूर कर देता है। और ऐसी स्थिति में हमें विज्ञान के रास्ते को अपनाना चाहिए, ना कि डर के।
डॉ पिंटो, मान लीजिये कि मैं आपके पास आऊं और ये कहूँ कि, "मैं बहुत ज़रुरत में हूँ और मुझे स्टेरॉइड्स दे दीजिये क्योंकि मैंने कहीं पढ़ा है या मुझे व्हाट्सप्प पर आया था कि ये स्टेरॉइड बुखार को ठीक कर देता है और मैं तीन या चार दिन में ठीक हो जाऊंगा", आप इसके लिए कैसे मुझे सतर्क करेंगे?
डॉ पिंटो: मैं आपको कहूंगा कि मुझे एक साल से ज़्यादा का अनुभव है इस कहानी के दुसरे पहलु के बारे में। ज़्यादातर लोग (डॉक्टर) जो स्टेरॉइड्स की सलाह देते हैं वो इन मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने पर नहीं देखते हैं। मेरा अनुभव है की जिन लोगों को स्टेरॉइड शुरुआती अवस्था में दिया गया है, उनकी हालत बाद में जा कर बहुत जल्दी ख़राब हुई है।
और भी ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि ज़्यादातर लोग जिन्हे सबसे तेज़ बुखार आता है वो काफी कम उम्र के हैं और ऐसे लोगों को हमें अस्पतालों में बहुत ही ख़राब स्थिति में आते देखा है क्योंकि उन्हें बहुत जल्दी स्टेरॉइड्स दे दिए गए थे। क्योंकि बुखार 102 डिग्री था और इससे लोग घबरा गए।
मैं उनसे कहूंगा कि हमारे अनुभव के हिसाब से, जैसा कि विश्व भर में अधिकांश देशों में हो रहा है, पहले हफ्ते में (कोविड19) सिर्फ बुखार परेशानी का कारण नहीं है। हमें पता है कि मॉनिटरिंग का प्रभावशाली बिंदु ऑक्सीजन का स्तर है और हमें पता है कि जब ऑक्सीजन का स्तर गिरता है तो सही समय पर दिए गए स्टेरॉइड्स काफी कारगर होते हैं। लेकिन जब तक ऑक्सीजन का स्तर बिलकुल ठीक है, जब तक कोई बहुत ही ज़्यादा सांस की तकलीफ ना हो, अगर मरीज को बहुत खांसी नहीं आ रही हो, सिर्फ बुखार किसी को भी शुरुआती दौर में स्टेरॉइड्स देने का कारण नहीं होना चाहिए।
डॉ भट्ट, आपने कोविड19 के ठीक होने के लम्बे समय के बाद उनमे बीमारी के किस तरह के प्रभाव देखे हैं?
डॉ भट्ट: कोविड19 के बाद के प्रभावों में जो हमने देखा है वो है बुखार और खांसी जो बने रहते हैं। मरीज जो कोविड19 से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं उन्हें लम्बे समय तक अस्पताल की ज़रुरत होती है, कुछ लोगों को ऑक्सीजन सपोर्ट की ज़रुरत भी ज़्यादा होती है। और कुछ जटिल लक्षण भी है जो लम्बे कोविड19 कहलाते हैं। तो, कुछ मरीजों में ये लक्षण लम्बे समय तक दिखते हैं। लेकिन, कुछ ऐसे शुरुआती संकेत हैं जो ये बताते हैं कि सूंघने वाली दवाओं के प्रयोग से ऐसे लम्बे चलने वाले लक्षणों जैसे खांसी, जो कि लोगों में बहुत घबराहट पैदा करती है, को कम किया जा सकता है। हम अभी भी इसके पीछे के डेटा का इंतज़ार कर रहे हैं कि वाकई में ये कारगर है या नहीं।
लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि लम्बा कोविड19 स्टेरॉइड के ज़्यादा इस्तेमाल का ही परिणाम हो, ठीक?
डॉ भट्ट: नहीं, लम्बा कोविड19 स्टेरॉइड के ज़्यादा इस्तेमाल का परिणाम नहीं है। स्टेरॉइड्स के ज़्यादा या बिना सोचे समझे इस्तेमाल कि दिक्कत बैक्टीरियल इन्फेक्शन का दुबारा होना है।
डॉ पिंटो, ब्लैक फंगस लगता है वो दूसरा बैक्टीरियल इन्फेक्शन है। सारे लोग इस बारे में काफी डरे हुए हैं कि ये कैसे फैलता है और ऐसा लगता है कि इसका कारण उपचार या अति उपचार है। इसके बारे में हमें बताएं।
डॉ पिंटो: तो उस ही स्टडी के अनुसार, जिसमे 6 मिलीग्राम डेक्सामेथासोन 10 दिनों तक दी गयी थी, उसमे उतनी ही मात्रा का इस्तेमाल हुआ था। ये बहुत बड़ी भ्रान्ति है कि बीमारी जितनी गंभीर है स्टेरॉइड कि मात्रा और दिए जाने कि अवधि भी वैसे ही बढ़नी चाहिये। तो स्टेरॉइड्स के साथ दो बातें हैं: पहली, कि आप इसे बहुत जल्दी शुरू कर देते हैं और दूसरा, कि जब आप इसे सही समय पर शुरू करते हैं तो आप इसकी मात्रा और अवधि बहुत बढ़ा देते हैं। और ये दूसरी समस्या है जो कि बैक्टीरियल/फंगल इन्फेक्शन की तरफ ले जाती है। हमने ऐसे दो मरीजों को खोया है जो कि हमारे पास दुसरे अस्पताल के द्वारा स्टेरॉइड्स का बहुत हाई डोज़ दिए जाने के बाद लाये गए थे। और फिर हमें लगा कि दो और तीन हफ्ते के बाद, स्टेरॉइड्स के हाई डोज़ की वजह से उनकी इम्युनिटी इतनी कम हो गयी है की उनके फेफड़े फंगस और बैक्टीरिया के लिए उपजाऊ जमीन की तरह हो गए हैं। मुझे लगता है की ये ज़्यादा मात्रा और अवधि से सम्बंधित प्रभाव है ना कि स्टेरॉइड्स के जल्दी उपयोग के। ये दो अलग मुद्दे हैं जिनका निवारण किया जाना चाहिए।
क्या आप ये भी कह रहे हैं कि कम उम्र के लोगों को स्टेरॉइड्स ज़्यादा दिया जा रहा है?
डॉ पिंटो: यह एक व्यक्तिगत अवलोकन है जो हम में से बहुत से लोगों ने देखा है कि आपकी उम्र जितनी कम उस हिसाब से आपकी इम्युनिटी भी उतनी ज़्यादा होती है और वायरस के खिलाफ इसकी प्रतिरोधकता ज़्यादा होती है। ऐसे में आपको तेज़ और लम्बे समय तक बुखार आता है। और कम उम्र के व्यक्ति को इतने तेज़ बुखार के साथ घबराया हुआ देखकर डॉक्टर पर स्टेरॉइड्स देने का दबाव बढ़ जाता है। और यही वो समूह है जिसे 10 दिन या उससे ज़्यादा के लिए बुखार आये और फिर अपने आप कम हो जाये। लेकिन अब स्टेरॉइड्स के प्रयोग से उनकी बीमारी और गंभीर हो जाती है। बहुत से लोग बात कर रहे हैं कि कैसे कम उम्र के लोग इस बार ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। यहां पर ऐसे लोगों के प्रिस्क्रिप्शन्स देख कर ये जानना अच्छा होगा कि कितने लोगों कि हालत ज़्यादा ख़राब हुई क्योंकि उन्हें बहुत जल्दी स्टेरॉइड्स दिए गए थे। और मैं आशा करता हूँ कि कोई ये देखेगा।
डॉ भट्ट, कम उम्र के लोगों का अति उपचार और इस वजह से उनकी हालत और बिगड़ना, इस बारे में आपका क्या विचार है?
डॉ भट्ट: मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई सच्चाई है, क्योंकि कम उम्र के लोगों में बहुत ज़्यादा प्रतिक्रिया होती है जहां उन्हें 102-103 डिग्री बुखार होता है और वो बहुत चिंतित होते हैं। दूसरा चिंता का विषय इस महामारी के शुरुआती दिनों में जो था वो ये कि नॉन-स्टेरॉइड और एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं का कोविड19 में उपयोग, वायरस कि फेफड़ों में कुछ गतिविधियों को देखते हुए, अच्छा विचार नहीं है। एक साल बाद हमें लगा कि बुखार को कम करने के लिए पेरासिटामोल के साथ इन दवाओं का उपयोग भी किया जा सकता है। एक वक़्त था जब हमें लगा कि इनका प्रयोग जितना हो सके नहीं करना चाहिए क्योंकि हम कई ऐसे मरीजों को देख रहे थे जो किडनी से सम्बंधित समस्याओं के साथ गंभीर कोविड19 के शिकार थे। हम अब उस स्थिति में नहीं हैं। तो अब हमें पता है कि हमारे पास दूसरी दवाएं भी मौजूद हैं इससे पहले कि हम स्टेरॉइड्स का प्रयोग करें तो अब हम स्टेरॉइड का उपयोग सिर्फ गिरते ऑक्सीजन स्तर तक ही सीमित रख सकते हैं। हम मरीजों को और खुलकर थोड़ा चलफिर कर ये देखने को बोल सकते हैं कि ऑक्सीजन का स्तर ह्रदय गति बढ़ने पर थोड़ा गिरता है क्या। और शायद वो स्टेरॉइड शुरू करने का एक संकेत हो सकता है। मरीजों का एक छोटा समूह हमेशा रहेगा जिसे शुरुआती अवस्था में स्टेरॉइड्स से लाभ मिले या जिसे स्टेरॉइड्स कि लम्बी अवधि तक ज़रुरत हो गंभीर कोविड की वजह से। लेकिन ये संख्या काफी कम है। ज़्यादातर लोगों को इसकी ज़रुरत सिर्फ ऑक्सीजन के स्तर के गिरने पर उस 10 दिन की अवधि के लिए ही होगी।
डॉ पिंटो, आने वाले समय में, ऐसी कौनसी अच्छी चिकित्सीय प्रणालियाँ है जिन्हे प्रयोग में लाया जा सकता है और उनका प्रचार किया जा सकता है खासकर दवाओं और तेज़ दवाओं जैसे स्टेरॉइड्स के प्रयोग के बारे में?
डॉ पिंटो: मेरा स्टेरॉइड्स के बारे में प्रेस्क्रिप्शन होगा, लेखों के वर्तमान ज्ञान पर आधारित, कुछ मरीजों को पहले हफ्ते में सूंघने वाले स्टेरॉइड्स। ये उन दवाओं में से है जिसका काफी ख़राब खतरे-फायदे का अनुपात नहीं है, तो अगर आप इसे ज़्यादा मात्रा में भी ले लेते हैं तो भी इसके नुक्सान करने कि सम्भावना काफी कम है क्यों आप इसे काफी कम मात्रा में लेते हैं। सूंघने वाले कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स का प्रयोग लम्बी अवधि में नहीं होता। तो पहले हफ्ते में पेरासिटामोल और सूंघने वाले कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स। आखिरी के चार या पांच दिन में अगर कभी ऑक्सीजन का स्तर गिरता है तब आप कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स दे सकते हैं। अगर आप किसी का उपचार घर पर कर रहे हैं तो आपको अधिकांश ये ही करना चाहिए।
प्रोनिंग, पेट के बल लेटना भी बुरा तरीका नहीं है अगर आपका ऑक्सीजन लेवल एक दम सीमा पर है। हमें एक बहुत ही साधारण सा इन्फोग्राफिक बनाया है जो कि indiacovidsos.org पर विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध है, यह बताता है कि कोई व्यक्ति घर पर क्या कर सकता है। हम यह जानते हैं कि अस्पताल में बेड मिलना आसान नहीं है और हम ये भी जानते हैं कि कुछ चीज़े जो हम घर पर कर रहे हैं वो ज़रूरी नहीं है कि हम हमेशा घर पर करते हों अगर अस्पताल में बेड मिलना आसान होता। लेकिन मुझे लगता है कि आप फिर भी न्यायसंगत और समझदारी से बहुत से मरीजों साधारण तरीके जैसे -- पेरासिटामोल, सूंघनेवाले स्टेरॉइड्स, मौखिक स्टेरॉइड्स (अगर जरूरी हो तो), प्रोनिंग से बेहतर कर सकते हैं।
डॉ भट्ट, क्या आपको लगता है कि यहां पर एक तरह का विनिमय या फिर कोई गाइडलाइन स्टेरॉइड्स के प्रयोग के लिए ज़रूरी है? ऐसा हो सकता है कि सभी को यह पता हो लेकिन उन्हें सिर्फ एक बार याद दिलाने कि ज़रुरत हो?
डॉ भट्ट: मुझे लगता है कि आधिकारिक इकाइयों को इस बारे में गाइडलाइन जारी करनी चाहिए ये बहुत लाभदायक होगी। पुलमोनोलॉजिस्ट्स के तौर पर हम एक दुसरे से बात करते हैं और चूंकि हम इन बातों से अवगत हैं तो मुझे ज़्यादा गलत उपयोग दिखाई नहीं देता। लेकिन हमें ये भी जानना होगा कि पुलमोनोलॉजिस्ट्स बहुत ही कम है कोविड मरीजों के अनुपात में तो इसमें दुसरे डॉक्टर्स की भी सहायता ली जा रही है। तो इससे फर्क नहीं पड़ता की आप कौनसे डॉक्टर हैं, आपके पास कोविड मरीज है जो आपसे सलाह मांग रहे हैं। तो हर संगठन को ये चाहिए कि वो अपने लोगों को ये गाइडलाइंस भेजे कि ऐसे आप स्टेरॉइड्स का सुरक्षित प्रयोग कर सकते हैं। मैं डॉ पिंटो की स्टेरॉइड्स के उपयोग और मरीजों के दी जाने वाली सलाह वाली बात से बिलकुल सहमत हूँ ।
एक और बात जो मैंने देखी है कि सामाजिक रूप से हम हमारा सालाना हेल्थ चेकअप नहीं करवाते हैं भले ही हम एक ख़ास उम्र के ही क्यों ना हों। अधिकांश, हमने ये देखा है कि मरीजों को मधुमेह होता है और उन्हें ये मालूम भी नहीं होता। तो जो सवाल हम ऐसे मरीजों से पूछते हैं जिन्हे स्टेरॉइड्स देने कि ज़रुरत दिखाई देती है कि, 'क्या आपको पता है कि आपको मधुमेह या कोई अन्य बीमारी है?'। और वो कहते हैं कि 'हमारी जानकारी में तो ऐसा नहीं है'। लेकिन हम पता करके उन्हें इस पर नज़र रखने के लिए कहते हैं और तब हमें पता चलता है कि उनमे कोई बीमारी है या कोई खतरे के संकेत हैं। तो मेरे हिसाब से हमें हमेशा चेक करना चाहिए क्योंकि ये ज़रूरी नहीं कि मरीज को उनके स्वास्थ्य के बारे में हमेशा पता हो।
जैसे भारत में दूसरी लहर कम होती और तीसरी लहर कि तैयारियां दिखाई देती है, आपको क्या लगता है कि चीज़ों को एक अलग तरीके से संभाला जा सकता है, ज़रूरी नहीं कि सिर्फ दवाइयों के बारे में ही?
डॉ पिंटो: बचाव के तौर पर बात करें तो सिर्फ एक चीज़ जिसमे काफी बदलाव देखा गया है, पूरी कोविड19 महामारी के दौरान, वो है बड़े स्तर पर टीकाकरण। लोगों तक जल्द से जल्द पहुंचना और जितना ज़्यादा संभव हो सके, हमारे सबसे कारगर कदम होगा अगली लहर को रोकने के लिए। दूसरी बात जो बहुत काम की होगी वो है बड़े स्तर पर सेरोपरेवालेन्स स्टडी जिससे टीकाकरण कार्यक्रम को कम प्रभावित क्षेत्रों और लोगों में तेज़ किया जा सके इस हिसाब से हम आने वाली लहर को रोकने में ज़रूर सफल होंगे।
अगर आप मुंबई के सेरो सर्वे को देखें तो पिछली बार 57% एंटीबाडी वहाँ की झुग्गी बस्तियों में और 16% ऊंची इमारतों में पायी गयी थी। अगर हमने इस पर ध्यान दिया दें तो इस बार 80-90% संक्रमण ऊंची इमारतों में है। तो हमें हमारे टीकाकरण अभियान इन लोगों पर केंद्रित करना चाहिए जिन्हे इसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत है, खासकर जब हमारे पास वैक्सीन की कमी है। मेरा सोचना है की हमें समझदारी से काम लेना होगा और ये ही हमारा सबसे अच्छा उपाय है अगली लहर को रोकने के लिए।
डॉ भट्ट: मेरे लिए मास्क और सोशल डिस्टन्सिंग बड़े कारण हैं। हम हमारे जानने वालों के साथ हमारे सुरक्षा कवच छोड़ देते हैं। मैं जानती हूँ कि हमेशा मास्क पहने रखना बहुत कठिन हैं पुलमोनोलॉजिस्ट होने की वजह से हमें यह पता हैं। हम संक्रामक रोगों जैसे क्षय रोग से निपटना पड़ता हैं और हम मास्क को एक बहुत ही साधारण चीज़ जो हमारी रक्षा करती हैं की तरह देखते हैं। मैंने, इस बार, संक्रमण को छोटे समूह, जो एक दुसरे को जानते हैं और एक दुसरे की संक्रमण के फैलने से रोकने के लिए उठाये गए कदमों को जानते हैं, में फैलते हुए देखा हैं। 'ओह, मैं इस व्यक्ति को जनता हूँ, यह जिम्मेदार व्यक्ति हैं, यह गैरजिम्मेदार नहीं हो सकते हैं तो मैं अपनी सुरक्षा यहाँ छोड़ देता हूँ'। मैं नहीं मानती की हम ऐसा कर सकते हैं। हमें ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक इन साधारण क़दमों जैसे मास्क, सोशल डिस्टन्सिंग और हाथों की सफाई की बात पहुंचानी होगी। और, जैसा की डॉ पिंटो ने कहा, बड़े स्तर पर टीकाकरण, ये दो बातें हमारे लिए सुरक्षा के लिहाज से काफी कारगर साबित होंगी।
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