'देश का कोयला संकट मिसमैनेजमेंट है'
भारत का कोयला और बिजली क्या है और अचानक से यह क्यों उत्पन्न हुआ। 'ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन' के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने इसे विस्तार से बताया है।
देश में कोयले के संकट की वजह से बिजली संकट पैदा हो गया है। बड़ी संख्या में बिजली घर एक से दो दिन की मियाद पर चल रहे हैं। कई राज्य महंगे दाम पर बिजली खरीदकर लोगों को पहुंचा रहे हैं। जैसे, उत्तर प्रदेश का पॉवर कॉरपोरेशन 22 रुपए प्रति यूनिट की दर तक महंगी बिजली खरीद रहा है। देश में उत्पन्न वर्तमान कोयला और बिजली संकट पर इंडियास्पेंड ने 'ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन' के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे से बात की। पढ़िए यह बातचीत...
संपादित अंश:
सवाल: कोयले का वर्तमान संकट क्या है और यह अचानक क्यों सामने आया?
शैलेंद्र दुबे: देश में 135 ताप बिजली घर हैं। इसमें से 112 में कोयले की कमी की वजह से हालात क्रिटिकल या तो सुपर क्रिटिकल हैं। क्रिटिकल का अर्थ है 7 से 10 दिन का कोयला और सुपर क्रिटिकल का अर्थ है 2 से 4 दिन का कोयला। यानी स्थिति बहुत गंभीर बनी हुई। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण का मापदंड यह कहता है कि जो बिजली घर कोयला खदानों से दूर हैं वहां 21 दिन का कोयला होना चाहिए और जो बिजली घर कोयला खदान के पास हैं वहां 7 से 10 दिन का कोयला होना चाहिए। कोयला संकट के कारण राष्ट्रव्यापी बिजली का संकट भी हो गया है।
कोयला संकट को लेकर यह तर्क दिया जा रहा कि बरसात के कारण कोल माइन में पानी भर गया है और कोयले का समुचित उत्पादन नहीं हो पा रहा है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। कोल इंडिया के चेयरमैन का जो बयान आया है और कोल इंडिया के अधिकारियों से जो मेरी बातचीत हुई है उसके अनुसार, वर्ष 2019 में कोयले का जितना उत्पादन हुआ था इस वर्ष उसकी तुलना में 11 प्रतिशत अधिक उत्पादन हुआ है।
दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि बिजली की मांग बढ़ गई है। बिजली की मांग प्रति वर्ष बढ़ती है। वर्ष 2019 की तुलना में बिजली की मांग 17 से 18 प्रतिशत तक बढ़ी है। यह बात सही है कि बिजली की मांग बढ़ी है, लेकिन इसी के अनुरूप कोयले का उत्पादन भी बढ़ा है। फिर यह बात कहना कि बरसात के कारण से कोल माइन में संकट पैदा हो गया है, उचित नहीं लगता। क्योंकि भारत की 85 से 90 प्रतिशत कोल माइन ओपन कास्ट माइन हैं। ओपन कास्ट का मतलब यह खुली हुई माइन हैं, जहां पानी बरसता है तो वो बह जाता है। अंडरग्राउंड माइन में पानी चला जाता है तब कोयले के खनन में दिक्कत होती है। अंडरग्राउंड माइन देश के अंदर बहुत कम हैं। इसलिए मैं इस सारे मामले को पूरी तरह से मिस मैनेजमेंट मानता हूं। कोयले का संकट थोड़ा बहुत हो सकता है।
कोल इंडिया खुद कह रहा है कि लगभग 17.5 लाख टन कोयले की आपूर्ति रोज की जा रही है। मैं मिसमैनेजमेंट इसलिए कह रहा हूं कि बिजली कंपनियों ने स्टॉकिंग नहीं की। उदाहरण के लिए देश के किसी भी बिजली घर में अप्रैल से जून के महीने में कोयले का स्टॉक बढ़ा लिया जाता है। क्योंकि यह सबको मालूम होता है कि जुलाई से सितंबर मानसून के महीने होंगे और तब पानी बरसने के कारण कोयले की दिक्क्त होगी। यह जानते हुए स्टॉकिंग नहीं की गई और यही सबसे बड़ी दिक्कत है।
अब सवाल उठता है कि स्टॉकिंग क्यों नहीं की गई? स्टॉकिंग इसलिए नहीं की गई क्योंकि कोल इंडिया कहता है कि पूरे देश की सरकारी बिजली उत्पादन कंपनियों पर 21 हजार 900 करोड़ रुपए का उसका बकाया है। इस बकाए कि वजह से कोल इंडिया ने इन बिजली कंपनियों को प्राथमिकता के आधार पर कोयला नहीं दिया।
कोल इंडिया की प्राथमिकता यह है कि जिन्होंने एडवांस में भुगतान किया है उनको सबसे पहले कोयला दिया जाएगा। दूसरे नंबर पर जिनका कोई भुगतान बाकी नहीं है उनको कोयला दिया जाएगा और तीसरी प्राथमिकता पर वह आते हैं जिनका बकाया है। जैसे यूपी की बात की जाए तो यहां 1500 करोड़ रुपए का भुगतान अभी भी बाकी है। क्योंकि भुगतान बकाया है इसलिए कोल इंडिया से कोयला नहीं मिल पाया और स्टॉक नहीं हो पाया। ये मिसमैनेजमेंट है।
अगर यूपी के पैमाने पर इस बात को समझें तो उत्तर प्रदेश के पॉवर कॉरपोरेशन और विद्युत उत्पादन निगम के चेरयमैन एक ही व्यक्ति हैं। उत्पादन निगम की 100 प्रतिशत बिजली उत्तर प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन खरीदता है। उत्पादन निगम की जो बिजली उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन खरीदता है उस खरीद का 9 हजार करोड़ का बकाया हो गया है जो पॉवर कॉरपोरेशन को विद्युत उत्पादन निगम को देना है। अगर यह 9 हजार करोड़ रुपए पॉवर कॉरपोरेशन ने उत्पादन निगम को दे दिए होते तो उत्पादन निगम 1500 करोड़ का भुगतान कोल इंडिया को कर देता। अगर यह भुगतान हो गया होता तो अप्रैल से जून के महीने में स्टॉक आ गया होता। पॉवर कॉरपॉरेशन यह कहता है कि हम भुगतान इसलिए नहीं कर पा रहे कि सरकारी विभागों का 20 हजार करोड़ का बिजली का बिल बकाया है। जो सरकारी विभाग नहीं दे रहे। इसलिए मैं कह रहा हूं कि यह मामला कोयला संकट और बिजली संकट से बड़ा कूप्रबंधन का मामला है।
सवाल: कोयले का संकट कब तक चलने की संभावना है?
शैलेंद्र दुबे: कोल इंडिया के चेयरमैन के वक्तव्य पर जाएं तो हालात सही होने में दो से तीन महीने लगेंगे। जब कोयला खदानों के पास वाले बिजली घरों में 7 से 10 दिन का कोयला आ जाएगा और कोयला खदानों से दूर वाले बिजली घरों में 21 दिन का कोयला आ जाएगा तब हालात सुधरेंगे। अभी तो आधे दिन, एक दिन, दो दिन का कोयला बताया जा रहा है, रोज की रिपोर्ट यही है। हालात को सही होने में दो से तीन महीने लगेंगे।
सवाल: कोयले की कमी से बिजली के उत्पादन पर क्या असर हुआ?
शैलेंद्र दुबे: भारत में दो प्रकार के ताप बिजली घर है। एक वह ताप बिजली घर हैं जो भारत के कोयले का इस्तेमाल करते हैं और भारत में कोयले के लिए सबसे बड़ी संस्था कोल इंडिया है।
दूसरे ऐसे भी बिजली घर हैं जो इंपोर्टेड कोल का इस्तेमाल करते हैं। बड़े पैमाने पर ऐसे बिजली घर हैं। इंपोर्टेड कोल का कोई संकट नहीं है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इंपोर्टेड कोल की कीमतें बढ़ गई हैं। अप्रैल में इंपोर्टेड कोल की कीमतें जो 75 डॉलर प्रति टन थीं वह बढ़कर 190 से 200 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। इंपोर्टेड कोल की कीमतें बढ़ने के कारण ज्यादातर निजी बिलजी घरों ने अपना उत्पादन बंद कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया में कोयले की कमी नहीं है।
प्राइवेट कंपनियों का अपने बिजली घरों को बंद करना गैर कानूनी है, वो बंद नहीं कर सकते। मैंने केंद्र सराकर के बिजली सचिव आलोक कुमार का एक वक्तव्य देखा कि उन्होंने राज्यों को कहा है कि राज्य उन प्राइवेट कंपनियों पर कार्यवाही करें जिन्होंने अपने बिजली घरों को बंद कर दिया है, लेकिन यह कार्यवाही राज्यों को नहीं करनी है। यह कार्यवाही केंद्रीय विद्युत मंत्रालय को करना चाहिए।
उदाहरण के तौर पर गुजरात का मुंदड़ा थर्मल पॉवर का हब है। वहां 4 हजार मेगावाट का टाटा का बिजली घर है और 4 हजार मेगावाट का अडानी का बिजली का घर है। यह दोनों ही बिजली घर ठप हैं, क्योंकि इंपोर्टेड कोयले के दाम बढ़ गए हैं। एक आंकड़े के अनुसार देश में लगभग 50 हजार मेगावाट के ताप बिजली घर बंद हैं। इन 50 हजार मेगावाट के ताप बिजली घरों में से लगभग 20 हजार मेगावाट के वो ताप बिजली घर हैं जो इंपोर्टेड कोयले का इस्तेमाल करते हैं। इनको चलना चाहिए था, इन्हीं को चलाने के लिए केंद्री विद्युत सचिव कह रहे हैं। फिर भी वो बंद किए हुए हैं और इस संकट को बढ़ा रहे हैं। जब इन कंपनियों ने बिडिंग किया था तो करार में इस बात का उल्लेख था कि वो 25 साल तक बिजली की आपूर्ति करेंगे। इसमें कोयले की कीमतें समायोजित होंगी। ऐसे में बिजली घरों को बंद करके वो करार का उल्लंघन कर रहे हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि निजी घराने अपने सोलर प्लांट, विंड प्लांट या सरप्लस पावर को महंगे दाम पर एनर्जी एक्सचेंज में बेच रहे हैं। एक ओर अनैतिक तौर पर करार का उल्लंघन करके बिजली के संकट को बढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर यही बिजली घराने महंगे दामों पर एनर्जी एक्सचेंज में बिजली बेच रहे हैं। एनर्जी एक्सचेंज का मतलब ओपन मार्केट है।
महंगे दामों पर बिजली की खरीद कालाबाजारी है। एक एक्सपर्ट कमेटी बनानी चाहिए, जो इस बात की जांच करे कि यह संकट क्यों खड़ा हो। जो निजी घराने इंपोर्टेड कोल का इस्तेमाल करते हैं और अपने बिजली घरों को बंद करके बैठे हैं उनपर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। जो कंपनियां 20 रुपए से 22 रुपए यूनिट में एनर्जी एक्सचेंज में बिजली बेच रही हैं उनपर केंद्र सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए। बिजली के दाम पर कैपिंग कर देना चाहिए, जिससे देश में खुल्लम खुल्ला हो रही बिजली की कालाबाजारी पर रोक लग सके।
सवाल: बिजली संकट के दौर में एनर्जी एक्सचेंज से महंगे दर पर बिजली खरीदने को कैसे देखते हैं?
शैलेंद्र दुबे: अगर हम 20 रुपए, 22 रुपए यूनिट की महंगी बिजली खरीदेंगे तो पहले से जो हमारा घाटा है और बढ़ जाएगा। इसके बाद घाटे के नाम पर पॉवर सेक्टर का निजीकरण होगा। आम जनता को यह बात समझनी चाहिए कि बिजली की दरें तय करने के लिए बिजली कंपनियां विद्युत नियामक आयोग के सामने हर साल एनुअल रेवेन्यू रिक्वारमेंट सबमिट करती हैं। इसमें यह बताया जाता है कि कितना खर्च हो रहा और कितनी आय हुई है। अब 22 रुपए की बिजली खरीदने से खर्च तो बढ़ जाएंगे, लेकिन आय सिमित रहेगी। अगले वित्तीय वर्ष में जब खर्चे बढ़े होंगे और आय कम होगी तो घाटे का गैप बढ़ जाएगा। इस गैप की भरपाई के लिए बिजली की दरें बढ़ाई जाएंगी और इसका बोझ आम जनता पर पड़ेगा।
सवाल: बिजली संकट और कोयला संकट से निपटने के दूरगामी उपाय क्या हैं?
शैलेंद्र दुबे: पॉवर सेक्टर को पॉवर इंजीनियर के द्वारा मैनेज होना चाहिए। इन्हें बिजली अभियंताओं के हाथ में दिया जाए, बिजली के विषेशज्ञों के हाथ में दिया जाए। यह इन चीजों को समझते हैं और जो समझते हैं वो समस्या का समाधान भी निकाल सकते हैं। देश के कुछ प्रांतों में सिंगल डिजिट लाइन लॉस आ गए हैं, यह तकनीकी कारणों से ही संभव हो पाया है। आखरी बात यह है कि यह आईएएस अधिकारियों के बस की बात नहीं है, बिजली ओम्स लॉ से चलती है, डंडे से नहीं चलती।
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