#MeTooIndia: कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न में 54 फीसदी वृद्धि
मुंबई: भारतीय कार्यस्थलों में यौन उत्पीड़न के दर्ज मामलों में 54 फीसदी की वृद्धि हुई है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या 2014 में 371 थे, जो बढ़कर 2017 में 570 हुए हैं। पिछले चार वर्षों से जुलाई 2018 तक, कुल ऐसे 2,535 मामले दर्ज किए गए थे। यानी प्रत्येक दिन दो मामले दर्ज होने का आंकड़ा रहा है, जैसा कि 27 जुलाई, 2018 और 15 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों से पता चलता है। आंकड़ों के मुताबिक, 27 जुलाई को समाप्त हुए 2018 के पहले सात महीनों में, पूरे देश में यौन उत्पीड़न के 533 मामले दर्ज किए गए हैं।
फिल्म मुगल हार्वे वेनस्टीन के खिलाफ बलात्कार और छेड़छाड़ के आरोपों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के एक साल बाद भारत अब अपने #MeToo आंदोलन का साक्षी बना है। इसने कई महिलाओं को सोशल मीडिया पर आने और उत्पीड़न और अपराधों की व्यक्तिगत कहानियों को आवाज देने का मंच दिया है। मॉडल और बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता, 2008 में एक फिल्म के सेट पर अभिनेता नाना पाटेकर द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पहली थीं। पाटेकर, कोरियोग्राफर गणेश आचार्य, निर्माता समी सिद्दीकी और निर्देशक राकेश सारंग का नाम लेते हुए दत्ता ने अब पुलिस में शिकायत दर्ज की है। ये सभी फिल्म ‘हार्न-ओके-प्लीज’ से जुड़े थे। 11 अक्टूबर, 2018 को, उन्होंने पुलिस को बताया कि कैसे पाटेकर ने फिल्म के सेट पर उन्हें गलत तरीके से छूआ। दत्ता ने 25 सितंबर, 2018 को टेलीविज़न चैनल जूम को दिए एक साक्षात्कार में ये आरोप लगाए थे।
विदेश मामलों के राज्य मंत्री और ‘द एशियन एज’ और ‘द डेक्कन क्रॉनिकल’ के पूर्व संपादक एम.जे. अकबर पर अब तक 10 से ज्यादा महिला पत्रकारों ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। इनमें आरोप शामिल थे कि उन्होंने युवा महिला पत्रकारों को होटल के कमरे में बुलाया और उन्हें काम पर परेशान किया।
.@mjakbar, minister and former editor, sexually harassed and molested me https://t.co/6qmWWL3slT
"This is my story. My last six months as a journalist at Asian Age, the newspaper he edited, were pure hell with repeated physical advances," writes @ghazalawahab#MeToo pic.twitter.com/TrD27xxvRC
— The Wire (@thewire_in) October 10, 2018
विभिन्न उद्योगों जैसे कि सिनेमा, टेलीविजन, मीडिया, विज्ञापन, संगीत और मनोरंजन से अन्य प्रमुख व्यक्तित्वों के खिलाफ उत्पीड़न के आरोप लग रहे हैं। इनमें अभिनेता आलोक नाथ और रजत कपूर, निर्देशक विकास बहल, सुभाष घई और साजिद खान, तमिल गीतकार और कवि वैरामुथू, पत्रकार प्रशांत झा, मयंक जैन, मेघनाद बोस, केआर श्रीनिवास और गौतम अधिकारी, कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती और विज्ञापन सलाहकार सुहेल सेठ के नाम शामिल हैं।
यूपी ने ज्यादातर मामलों की सूचना दी, दूसरे स्थान पर दिल्ली
देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश ने 2014-18 से अधिकतर मामलों (726 या 29 फीसदी) की सूचना दी है। इसके बाद दिल्ली (369), हरियाणा (171), मध्य प्रदेश (154) और महाराष्ट्र (147) का स्थान रहा है, जैसा कि लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ों से पता चलता है।
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले, 2014-18
Source: Lok Sabha July 27, 2018; December 15, 2017; 2018 figure as on July 27, 2018
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354-ए यौन उत्पीड़न से संबंधित अपराधों से संबंधित है, जिसमें शारीरिक संपर्क, अवांछित और स्पष्ट यौन उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न की मांग या अनुरोध, इच्छा के खिलाफ किसी महिला को पोर्नोग्राफी दिखाना और यौन से संबंधित टिप्पणियां करना शामिल है।
डेटा के एक और सेट में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) आईपीसी की धारा 509 के तहत "महिलाओं की विनम्रता का अपमान" भी शामिल है। इसमें कार्यस्थल उत्पीड़न शामिल है। एनसीआरबी ने 2016 में 665 ऐसे मामलों की सूचना दी, जो 2015 में 833 मामलों में से 20 फीसदी और 2014 में 526 मामलों में 26 फीसदी से ऊपर थीं। अपराध सिर्फ एक शब्द या आवाज हो सकती है, एक इशारा या किसी महिला का अपमान करने के इरादे से किया गया कार्य भी हो सकता है।
महिलाओं की विनम्रता का अपमान के मामले, 2014-16
क्यों महिलाएं बोलने से डरती हैं?
2017 में इंडियन बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित 6,047 उत्तरदाताओं के एक सर्वेक्षण के मुताबिक कम से कम 70 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट नहीं की, क्योंकि उन्हें प्रतिक्रियाओं का डर था। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 4 मार्च, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मुद्दे पर काम कर रही एक शोधकर्ता अनघा सरपोतदार ने इंडियास्पेंड को बताया था, "कम या कोई रिपोर्टिंग नहीं होना, किसी विशेष संगठन की लिंग संवेदनशीलता के फैलाव को बताता है। अक्सर महिलाओं को पता नहीं होता है कि उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के लिए कहां जाना है । अक्सर, महिलाएं उन समितियों के पास जाती हैं जो उन्हें लगता है कि स्वतंत्र है, और पाती हैं कि वे वास्तव में अपने वरिष्ठों के हाथों की कठपुतलियां हैं।" लेकिन कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाजें बढ़ी हैं। खिलाड़ियों द्वारा उनके कोच या खेल प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के तेईस मामले दायर किए गए थे, जैसा कि युवा मामलों और खेल मंत्रालय के राज्य (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने 1 9 जुलाई, 2018 को लोकसभा को उनके जवाब में सूचित किया। हालांकि, जिन अवधि के दौरान इन मामलों में पंजीकरण किया गया था, उनका उल्लेख नहीं किया गया था।
राठौर कहते हैं, "शिकायतों को कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण (रोकथाम, प्रावधान और निवारण) अधिनियम, 2013 और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध को यौन अपराध अधिनियम (पोक्सो अधिनियम), 2012 के अनुसार निपटाया जाता है।"
केंद्र सरकार ने संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों में एक विश्वसनीय और सुरक्षित कार्य वातावरण बनाने के उद्देश्य से कार्यस्थल (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 में यौन उत्पीड़न लागू किया है।
अधिनियम "पीड़ित महिला" को निवारण देता है, जिसमें जिसमें संगठन द्वारा नियोजित महिलाओं के साथ-साथ आगंतुक या इंटर्न जैसे किसी भी क्षमता में उससे जुड़ी महिलाएं शामिल हैं, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने 12 अक्टूबर, 2018 को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में लिखा था। यह "उस संगठन के कार्य या कार्यस्थल के संबंध में यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं" पर भी लागू होता है। एक महिला कर्मचारी किसके खिलाफ शिकायत कर सकती है? ग्रोवर लिखती हैं, "संगठन के एक कर्मचारी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की जा सकती है, या यहां तक कि एक बाहरी व्यक्ति जो कार्यस्थल या संगठन के साथ परामर्शदाता, सेवा प्रदाता, एक विक्रेता के रूप में या उसके संबंध में संपर्क में आता है, उनके खिलाफ भी शिकायत दर्ज की जा सकती है।"
I request working women & organisations to help spread the word about #SHeBox https://t.co/nAX1coyA2C, Government’s dedicated portal to file complaints of #SexualHarassmentAtWork.#Metoo #MeTooIndia pic.twitter.com/FsVRdSmewn
— Maneka Gandhi (@Manekagandhibjp) October 9, 2018
महिलाओं और बाल विकास मंत्रालय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायतों के पंजीकरण के लिए यौन उत्पीड़न इलेक्ट्रॉनिक-बॉक्स (शी-बॉक्स), एक ऑनलाइन शिकायत प्रणाली को स्थापित किया है। इसका इस्तेमाल सरकारी और निजी क्षेत्रों के कर्मचारियों द्वारा किया जा सकता है।
शी-बॉक्स 24 जुलाई, 2017 को लॉन्च किया गया था, और फरवरी 2018 तक 107 शिकायतें मिलीं। मंच कितना प्रभावी है? यहां एक उपयोगकर्ता से प्रतिक्रिया है:
@Manekagandhibjp @MinistryWCD @NCWIndia And after reporting to #SHeBox how many months will it take to even contact the complainant? The complainant of 936537 hasn’t been contacted for 2 months !!! And this inaction caused them deep distress. https://t.co/lctdhToAYw
— Nivedita Pandey (@NiveditaPandey7) October 8, 2018
12 अक्टूबर, 2018 को महिला और बाल विकास के केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने #metoo आंदोलन से उत्पन्न होने वाले मामलों की सार्वजनिक सुनवाई करने के लिए चार सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक समिति के गठन की घोषणा की है।
The Ministry will be setting up a committee of senior judicial & legal persons as members to examine all issues emanating from the #MeTooIndia movement. #DrawTheLine pic.twitter.com/PiujKUXQVz
— Ministry of WCD (@MinistryWCD) October 12, 2018
The committee will look into the legal & institutional framework which is in place for handling complaints of #SexualHarassmentAtWork and advise the
Ministry on how to strengthen these frameworks.#MeTooIndia #DrawTheLine
— Ministry of WCD (@MinistryWCD) October 12, 2018
(मल्लापुर विश्लेषक हैं। अलफोन्सो मुंबई के सेंट पॉल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन एजुकेशन से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रैजुएट हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 15 अक्टूबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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