खाद्य सुरक्षा कानून के 10 साल बाद झारखंड में कितना सुरक्षित हुआ गरीबों का निवाला?
भूख या भूख जनित वजहों से होने वाली मौतों को लेकर चर्चा में आने वाले आदिवासी बहुल प्रदेश झारखंड में खाद्य सुरक्षा कानून को लागू हुए आठ साल हो चुके हैं। इस दौरान जनवितरण प्रणाली की पूरी व्यवस्था को ऑनलाइन और मैकेनाइज कर दिया गया, ताकि गड़बड़ियों की संभावना न रहे। इन बदलावों के बावजूद झारखंड में पीडीएस सिस्टम में गड़बड़ी एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
रांची। झारखंड के उत्तर पूर्व में स्थित दुमका जिले के सदर प्रखंड की भुरकुंडा पंचायत का ऊपर मझियारा गांव आदिम जनजाति बहुल है। इस गांव में संकटग्रस्त आदिम जनजाति पहाड़िया सहित अन्य समुदाय के लोग रहते हैं। यहां के पहाड़िया टोला के परिवारों की शिकायत है कि सरकार की ओर से दिया जाने वाला राशन उन्हें देर से मिलता है, कभी-कभी उसमें एकाध महीने का गैप भी हो जाता है और इससे उन्हें दिक्कतें होती हैं। 60 वर्षीय सुकुर मुनी कहते हैं, “चावल पहुंचाने वाला हमसे खुशी-खुशी 10-20 रुपए भी मांगता है तो हम दे देते हैं”।
44 वर्षीय पहाड़िया महिला पानमती देवी कहती हैं, “समय पर अनाज नहीं मिलता।हमारे पांच बच्चे हैं। 35 किलो से हमारा खर्चा भी नहीं चलता। हमें बाजार से खरीदना होता है”। पानमती के परिवार के पास थोड़ी-सी खेतिहर भूमि है, पर वह ऐसी नहीं है कि उस पर धान की पैदावार हो सके। उनके पति अनंत सिंह ने इंडियास्पेंड हिंदी को बताया, “हमने हाल ही में 28 रुपए किलो की दर से बाजार से 50 किलो अनाज खरीदा था जिससे परिवार की बजट बिगड़ गया था”।
इस परिवार का राशन कार्ड अनंत सिंह की मां और पानमती देवी की सास लीलमणी महारानी के नाम पर है जिस पर उन्हें 35 किलो सीलबंद अनाज के नाम पर सिर्फ चावल का पैकेट मिलता है।
झारखंड सरकार इस वर्ग के संरक्षण के लिए कई योजनाएं चलाती है जिसमें सामाजिक सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा से जुड़ी योजनाएं भी हैं। इनमें से एक डाकिया योजना भी है। पहाड़िया परिवारों को झारखंड सरकार की डाकिया योजना के तहत 35 किलो अनाज दिया जाता है। इसके तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाले आदिम जनजाति परिवार को लाभ मिलता है। यह सुविधा डोर स्टेप है यानी एक छोटे वाहन के जरिये आदिम जनजाति परिवारों तक सीलबंद राशन की बोरी पहुंचाई जाती है जो सीधे गोदाम से आती है और इसमें जन वितरण प्रणाली के डीलरों की कोई भूमिका नहीं होती। इसके बावजूद इस प्रणाली में गड़बड़ी की शिकायत आदिम जनजाति वर्ग के लाभार्थियों से मिलती रहती है।
आदिम जनजाति प्रिमिटिव ट्राइब ग्रुप है जो ST में ही आते हैं और सामान्य आदिवासियों से अधिक पिछड़े और संकटग्रस्त हैं। सरकार इनको डोरस्टेप अनाज देती है, जिसमें डीलर की कोई भूमिका नहीं होती। गोदाम से 35 किलो के अनाज का पैकेट उनके घर गाड़ी से पहुंचाया जाता है।
डाकिया योजना राज्य संचालित है। ध्यान रहे कि अनाज एक ही होता है सिर्फ योजनाओं का कवर दायरा बदल जाता है। ऐसा नहीं है कि केंद्र व राज्य दोनों का अनाज किसी एक ही शख्स को मिल जाता है।
वहीं, भुरकुंडा पंचायत के ही बुढियारी गांव के ग्रामीणों ने अपने गांव के जन वितरण प्रणाली डीलर चुन्नू हेंब्रम पर कम राशन देने का आरोप लगाते हुए बीडीओ, जिला आपूर्ति पदाधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक इसकी शिकायत की। शिकायत के आधार पर उनका लाइसेंस तो सस्पेंड कर दिया गया। लेकिन रद्द नहीं किया गया है, जिसकी मांग ग्रामीण कर रहे हैं।दुमका की भुरकुंडा पंचायत में ही पड़ता है।
इस गांव की रासमुनी मुर्मू अंत्योदय योजना के तहत पीला कार्ड धारी हैं और उन्होंने अगस्त 2023 में डीलर द्वारा 35 किलो के बजाय 30 किलो अनाज देने का सबसे पहले विरोध किया। बाद में पूरा गांव इनके साथ खड़ा हो गया, रासमुनी के पति का निधन हो गया है और परिवार व बच्चों की जिम्मेदारी अकेले उन पर है। पीला कार्ड झारखंड में अंत्योदय अन्न योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को जारी किया जाता है।
बायोमेट्रिक एक परेशानी, राशन कटौती से बढ़ता आक्रोश
सितंबर महीने में गांव के ग्रामीणों ने चंदा कर एक वाहन को रिजर्व किया और अधिकारियों के पास सामूहिक रूप से शिकायत दर्ज कराने पहुंचे। हालांकि ग्रामीणों की इस कवायद के बावजूद उक्त डीलर का लाइसेंस सिर्फ सस्पेंड किया गया, उसे रद्द नहीं किया गया है। ग्रामीण अभी भी इस मांग पर अड़े हुए हैं कि डीलर का लाइसेंस रद्द कर खाद्य आपूर्ति विभाग नया डीलर नियुक्त करे। फिलहाल इस डीलर के लाभार्थियों को एक अन्य गांव गड्डी के डीलर के यहां टैग कर दिया गया है। यानी चुन्नू हेंब्रम के यहां से राशन लेने वालों को अब गड्डी के डीलर से राशन लेना पड़ रहा है। इससे ग्रामीणों की दिक्कतें बढ़ गयी हैं। कुछ गांव के लाभार्थियों को चार से पांच किमी तक दूरी तय करनी होती है और राशन नहीं होने पर लौट कर आना पड़ता है और फिर किसी दूसरे दिन राशन लेने के लिए जाना होता है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को खासतौर पर अधिक परेशानी का सामना करना होता है।
बंदरपानी गांव की 60 वर्षीया सुरुज टुडू ने इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत में संताली भाषा में कहा, “हमें अभी राशन लेने के लिए गड्डी के डीलर रामजीवन किस्कू के यहां जाना पड़ता है जो यहां से पांच किमी दूर है। वहां कई बार हमारे अंगूठे का निशान मशीन पर नहीं मिलता है तो हमें अनाज नहीं मिलता । हम अनाज लेने के लिए पांच-छह दिन चक्कर भी लगाते हैं, इससे परेशानी होती है”।
मालपहाड़ी गांव के 54 वर्षीय मोहन मरांडी कहते हैं, “डीलर जब तक एक-एक किलो राशन काट रहा था तो हमलोग बर्दाश्त कर रहे थे। लेकिन जब पांच किलो काटने लगा तो हमलोगों का आक्रोश बढ गया और हम विरोध करने लगे। हमने डीलर को कहा कि हम आपका डीलरशिप रद्द कराने के लिए आंदोलन नहीं कर रहे हैं, लेकिन गरीबों का इतना राशन मत काटिए, उन्हें उनका हक दे दीजिए, पर वे नहीं माने”।
राज्य को मिला कम राशन
इस संबंध में सवाल पूछने पर दुमका के खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी बंका राम ने इंडियास्पेड हिंदी से कहा, “हमारे पास ऐसी शिकायतें आने पर हम कार्रवाई करते हैं। अपर समाहर्ता (एडिशनल कलेक्टर) जिले के शिकायत निवारण पदाधिकारी होते हैं वे भी ऐसे मामलों की सुनवाई करते हैं”। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश होती है कि लाभार्थी शून्य किमी के दायरे से राशन प्राप्त करें यानी एक किलोमीटर से कम के दायरे में ही पीडीएस की दुकान से उन्हें संबद्ध किया जाये। लेकिन हम ऐसे मामलों को देखेंगे।
बंका राम ने यह स्वीकार किया कि अगस्त और सितंबर महीने में लाभुकों को राशन मिलने में दिक्कत हुई, क्योंकि केंद्र सरकार ने राज्य के अनाज में 71 हजार मीट्रिक टन की कटौती की और दुमका जिले को भी 21 हजार क्विंटल कम राशन प्राप्त हुआ।
लेकिन, ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ केंद्र की ओर से राशन कम आवंटित किये जाने पर ही वितरण में दिक्कत होती है। वितरण का कार्य डीलर की कार्य प्रणाली से भी प्रभावित होती है। बंका राम कहते हैं कि डीलर अगर मशीन की जगह मैनुअली यानी तराजू व बटखरे से अनाज तौल कर दे देता है तो इस तरह दिया गया अनाज स्टॉक में ही दिखता है और ऐसे में अगली खेप में उतनी मात्रा का आवंटन जारी नहीं होता।
पश्चिम सिंहभूम का हाल और राशन में कटौती
दुमका से तकरीबन 300 किमी दूर पश्चिमी सिंहभूम(चाईबासा) जिले के खूंटपानी ब्लॉक की लोरदा ग्राम पंचायत की 60 वर्षीया रानी सवैया इंडियास्पेंड हिंदी से बात करते हुए कहती हैं, “हमारे पास लाल कार्ड है। इसमें एक आदमी पर पांच किलोग्राम अनाज मिलता है। लेकिन डीलर हमारे परिवार को मिलने वाले 20 किलो अनाज में एक किलोग्राम काट लेता है”। उनकी पड़ोस की महिला 30 वर्षीय जानकी सवैया कहती हैं, “पिछले महीने अनाज नहीं दिया, अब दूसरा महीना शुरू हो गया है, डीलर बोलता है कि अनाज नहीं आ रहा है”।
इस रिपोर्ट के दौरान खूंटपानी ब्लॉक के कुछ ग्रामीणों ने बातचीत के दौरान जनवितरण प्रणाली से जुड़ी कुछ प्रमुख समस्याएं बताईं - अनाज तय मात्रा से कम मात्रा में मिलना, समय पर नहीं मिलना और किसी-किसी महीने गैप हो जाना, बिना अनाज वितरण के भी मशीन पर अंगूठे की पंचिंग करवाना या निशान लगावाना, डीलर के साथ नोंक-झोंक, कई जरूरतमंद व अहर्ताधारी को उसकी पात्रता के अनुसार राशन कार्ड नहीं मिलना।
दो नवंबर 2023 को खूंटपानी में जन वितरण प्रणाली को लेकर आयोजित जनसुनवाई में बांसाकुटी के ग्रामीणों ने बताया कि अगस्त महीने में किसी को राशन नहीं दिया गया। लेकिन इसकी पंचिंग (बायोमेट्रिक) करवा ली गयी। इस जनसुनवाई में आसपास के कई गांव के ग्रामीण के साथ डीलर व जिला खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी सुनीला खलखो भी जुटी थीं।
इंडियास्पेंड हिंदी ने स्थानीय डीलर संजय सोय से यह सवाल पूछा कि क्या बिना राशन दिये पंचिंग करवायी गयी, इसके जवाब में उन्होंने कहा – “ऐसा करना होता है। यह दिखाना होता है कि अनाज वितरित किया गया। तभी हमें अगला आवंटन मिल सकेगा”। जनसुनवाई में लोगों की शिकायत के बाद जिला आपूर्ति पदाधिकारी ने संजय सोय के मामले की जांच करवाई और उन्हें निलंबित कर दिया ।
पश्चिम सिंहभूम की डीएसओ सुनीला खलखो ने इंडियास्पेंड हिंदी से कहा, “हमने शिकायत के आधार पर जांच करवाकर कार्रवाई की और इस शिकायत को सही पाया गया कि वे कम अनाज देते थे और लाभार्थियों से से दुर्व्यवहार भी करते थे”।
खलखो ने बताया कि पश्चिम सिंहभूम जिले में विभिन्न योजनाओं के लगभग तीन लाख कार्ड धारक हैं और 1,222 डीलर हैं। जिले के पांच ब्लॉक क्षेत्र में 254 ऐसे परिवार हैं, जिन्हें डाकिया योजना का लाभ मिलता है।
इसी तरह दुमका के गड्डी गांव के डीलर रामजीवन किस्कू के बदले राशन का वितरण करने वाली उनकी बेटी मेरी किस्कू ने स्वीकार किया कि एक किलो राशन प्रति कार्डधारी को कम दिया जाता है ताकि अधिक से अधिक लोगों को राशन दिया जा सके। रिपोर्टिंग के दौरान रिपोर्टर ने रामजीवन किस्कू की पीडीएस दुकान पर लोगों की भारी भीड़ देखी और उसमें कुछ लोगों ने बताया कि वे राशन के लिए यहां दूसरी बार आये हैं और ऐसा लगता है कि आज भी लौट कर जाना होगा।
खाद्य सुरक्षा कानून से क्या कुछ बदला?
केंद्र सरकार ने 2013 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम बनाया, जिसके तहत देश की 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को कवर करने का प्रावधान है। झारखंड में इस अधिनियम के तहत 86.48 प्रतिशत ग्रामीण और 60.20 शहरी आबादी को अनुदानित दर पर अनाज दिया जा सकता है।
इसके तहत लक्षित परिवारों को रियायती दर (1/2/3 रुपए किलो की दर से अलग-अलग अनाज) पर प्रति व्यक्ति हर महीने पांच किलो की दर से अनाज दिये जाने का प्रावधान है, जबकि अत्यंत गरीब परिवारों को 35 किलोग्राम मुफ्त अनाज देना है। प्रायोरिटी हाउस होल्ड (पीएचएच) के लिए लाल कार्ड बनाया जाता है और
अत्यंत गरीब परिवारों के लिए अंत्योदय अन्न योजना (एएवाइ) का पीला कार्ड बनाया जाता है। लक्षित परिवारों के लिए इसके तहत राज्यों की आबादी व लक्षित लाभार्थियों के अनुपात में आवंटित अनाज की मात्रा भी निर्धारित है। भारत सरकार के आंकड़े के अनुसार, 81.34 करोड़ व्यक्तियों के लक्षित कवरेज में से 80.72 करोड़ व्यक्ति इसके तहत कवर किए जा रहे हैं। कोरोना संकट के दौरान केंद्र ने इस लक्षित समूह को अनाज देने को गरीब कल्याण अन्न योजना का नाम दिया और दोनों तरह के कार्डधारियों को वर्तमान में बिना पैसे के अनाज दिया जा रहा है।वर्ष 2023 में केंद्रीय कैबिनेट ने इसका अवधि विस्तार करते हुए एक जनवरी 2024 से अगले पांच साल तक के लिए मुफ्त अनाज देने का निर्णय लिया।
झारखंड में खाद्य सुरक्षा कानून को एक अक्टूबर 2015 को लागू किया गया। झारखंड में इसके दायरे में 57 लाख परिवार व 2.63 करोड़ आबादी आती है। हालांकि झारखंड सरकार का यह तर्क रहा है कि यह 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है और इसमें सभी पात्र लाभुक कवर नहीं हो पाये। इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत में खाद्य आपूर्ति निदेशक दिलीप तिर्की ने भी यह बात दोहराई कि केंद्रीय कानून के तहत सभी परिवार कवर नहीं हो सके हैं। इसी आधार पर राज्य सरकार ने 2020 में बची हुई आबादी को कवर करने के लिए फूड सिक्योरिटी स्कीम की शुरुआत की। वर्तमान में झारखंड में इस स्कीम से लगभग 15 लाख लोग आच्छादित हैं।
झारखंड के लिए खाद्य सुरक्षा कितना जरूरी और शिकायतों का निवारण
नीति आयोग के इंडिया मल्टीडायमेंशनली पुअर इंडेक्स 2023 के अनुसार, झारखंड की 28.81 प्रतिशत आबादी बहुआयामी रूप से गरीब है। 27 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले इस राज्य में भूख या भूख जनित कारणों से मौत की खबरें समय-समय पर रिपोर्ट की जाती रही हैं। ऐसे में यहां खाद्य वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाला अनाज ग्रामीणों के लिए काफी महत्व रखता है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में यह एक बेहद संवेदनशील विषय है, क्योंकि सरकारी अनाज एक बड़े वर्ग के लिए आंशिक रूप से ही सही पेट भरने का सहारा है।
बावजूद ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में अनियिमितता की शिकायतें आती रहती हैं। राज्य में इसकी गड़बड़ियों की शिकायतों के निवारण के लिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम - 2013 (एनएफएसए) के प्रावधानों के तहत झारखंड खाद्य सुरक्षा आयोग का गठन किया गया है। आयोग राज्य के विभिन्न इलाकों में जन सुनवाई का भी आयोजन करता है। आयोग से हासिल आंकड़े के अनुसार, जनवरी 2022 से सितंबर 2023 तक खाद्य आपूर्ति व्यवस्था में गड़बड़ी की 1292 शिकायतें मिलीं। इनमें इमेल व डाक से 226, ऑनलाइन 1073 शिकायतें शामिल हैं। आयोग ने नवंबर 2021 में शिकायत दर्ज कराने के लिए एक वाट्सएप नंबर भी जारी किया ।
कुछ इलाकों में स्थानीय लोग संगठित होकर या एक मंच बनाकर जन वितरण प्रणाली की व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए संघर्ष करते हैं। जैसे झारखंड के सुदूर दक्षिणी जिले पश्चिम सिंहभूम में पश्चिम सिंहभूम खाद्य सुरक्षा मंच काफी सक्रिय है।
झारखंड खाद्य सुरक्षा आयोग की वेबसाइट पर ऑनलाइन शिकायत भी दर्ज करायी जा सकती है। हर जिले में अपर समहर्ता को जिला शिकायत निवारण पदाधिकारी (District Grievance Redressal Officer) -डीजीआरओ की जिम्मेदारी में होते हैं, जिनकी जिम्मेदारी खाद्यान्न सुरक्षा से जुड़ी शिकायतों को सुनना और उसे निबटाना है। उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे शिकायतों का निवारण करें और उसकी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करें ताकि लोगों को वह दिख सके। शिकायतों का निवारण 30 दिनों में करना होता है। आयोग खुद के पास आयी शिकायत को डीजीआरओ तक पहुंचाता है। डीजीआरओ द्वारा मामले में दिये गये फैसले से संतुष्ट नहीं होने पर आयोग से अपील की जा सकती है। पांच सदस्यीय आयोग में मामले की सुनवाई के लिए कम से कम दो सदस्य होना जरूरी है।
जिले के डीएसओ(जिला आपूर्ति पदाधिकारी), डीएसइ (जिला शिक्षा अधीक्षक) व डीएसडब्ल्यूओ (जिला समाज कल्याण पदाधिकारी) के पास नाम जोड़ने से जुड़ी शिकायतें आयोग ट्रांसफर करता है; जो क्रमशः जनवितरण प्रणाली, स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र से जुड़ी होती हैं।
झारखंड राज्य खाद्य आयोग के सदस्य सचिव संजय कुमार ने इंडियास्पेंड हिंदी से कहा, “शिकायतों पर सुनवाई और कार्रवाई होती है और यह एक सतत प्रक्रिया है”।
झारखंड सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के निदेशक दिलीप तिर्की ने इंडियास्पेंड हिंदी से बातचीत में कहा, “जन वितरण प्रणाली से जुड़ी शिकायतें काफी संख्या में आती हैं, हालांकि महिलाओं द्वारा संचालित एसएचजी से वितरित किये जाने वाले अनाज में शिकायतें कम आती हैं और वहां बेईमानी कम होती है। राज्य में पीडीएस को बेहतर बनाने के लिए जिला व प्रमंडल स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है”।
तिर्की ने कहा, “राज्य में एनएफएसए के तहत जन वितरण प्रणाली के लाभार्थियों के रूप में 2.64 करोड़ नाम दर्ज हैं और 60.98 लाख लाभार्थी परिवार हैं और लगभग 25 हजार (25265 डीलर) हैं। इनमें सात हजार डीलरशिप स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के पास हैं इसके लिए शर्त है कि एसएचजी की अध्यक्ष सचिव नन मैट्रिक नहीं होना चाहिए, यानी वे कम से कम मैट्रिक उत्तीर्ण हों”।
उन्होंने कहा कि लाभुक नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट से जो परिवार कवर नहीं हो पाये हैं, उन्हें झारखंड राज्य खाद्य सुरक्षा स्कीम से कवर किया जाता है। जो लोग एनएफएसए के मानकों में फीट बैठते हैं, लेकिन वहां रिक्ति नहीं हैं, उन्हें राज्य की ओर से ग्रीन कार्ड दिया जाता है। इसकी भी 20 लाख सीलिंग है और 15 लाख लोगों को प्रति व्यक्ति पांच किलो की दर से चावल दिया जा रहा है।
भोजन के अधिकार अभियान की झारखंड स्टेट कमेटी मेंबर तारामनी साहू ने अपने जमीनी अनुभव के आधार पर इंडियास्पेंड हिंदी से कहा, “राज्य में एनएफएसए के तहत वास्तविक अर्हताधारी परिवार बड़ी संख्या में लाभ से वंचित हैं और ऐसे लोगों के राशन कार्ड बने हैं जो इसकी पात्रता नहीं रखते। वंचित लोगों में निःशक्त लोग भी शामिल हैं”। वे कहती हैं कि राज्य में सिर्फ चावल व गेहूं वितरित किया जाता है, जबकि हमारी मांग है कि चीनी, चना, गुड़, तेल व दाल भी वितरित किया जाये।
खाद्य आपूर्ति विभाग के निदेशक तिर्की के अनुसार, राज्य में 2016-17 से कार्ड को ऑनलाइन करने की प्रक्रिया आरंभ की गयी और अब यह 100 प्रतिशत ऑनलाइन है और अब इ पॉश मशीन से राशन दिये जाने पर ही रसीद जेनरेट होता है, स्टॉक, वितरण सब कुछ ऑनलाइन दर्ज होता है। हालांकि राज्य में अनाज के जगह अन्य वजन को ई-पॉश से तौलकर वितरण का रिकॉर्ड दर्ज करने, बिना अनाज वितरण के अंगूठे की पंचिंग करवाने और रशीद जनरेट करने जैसी शिकायतें आम हैं।
तिर्की किसी महीने में अनाज नहीं मिलने या कम अनाज दिये जाने के सवाल पर कहा, “ केंद्र से मिले आवंटन के हिसाब से ही अनाज वितरण के लिए जा पाता है, अगस्त 2023 में शिकायतें ज्यादा आयीं, क्योंकि केंद्र से आपूर्ति कम हुई। वे कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गलत सूचना से भी दिक्कत होती है। वे कम अनाज आवंटन की वजह बताते हुए कहते हैं कि ऐसा हर साल होता है, केंद्र अपने आवंटन, स्टॉक व कोटे का साल में एक बार हिसाब करता है, इस वजह से आपूर्ति प्रभावित होती है और ऐसी दिक्कतें होती हैं। हर महीने आवंटित अनाज में अगर कुछ प्रतिशत बचा रह जाता है तो उसके समन्वयन के लिए कुछ महीने के अंतराल पर केंद्र अनाज का आवंटन कम कर सकता है”।
आकस्मिक खाद्यान्न कोष को लेकर जागरुकता का अभाव
ऐसे व्यक्ति जो सरकारी राशन की अर्हता रखते हैं और किन्हीं वजहों से उनका कार्ड नहीं बन पाया है, उनके लिए झारखंड राज्य आकस्मिक खाद्यान्न कोष का गठन किया गया है। इसके तहत प्रत्येक पंचायत और नगर निकाय के वार्ड के पास 10 हजार रुपये का कोष होता है, जिससे निर्धन असहाय लोगों, ऐसे लोग जो जीविकोपार्जन में असमर्थ हों या ऐसे लोग जो खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्ड की पात्रता रखते हों, लेकिन किन्हीं वजहों से उनका कार्ड नहीं बन सका हो। भोजन के अधिकार अभियान की तारामनी साहू कहती हैं कि इसको लेकर लोगों मे जागरुकता काफी कम है, उन्हें यह पता नहीं कि ऐसा कोई कोष है, इसलिए इसके लाभ से लोग वंचित रह जाते हैं।