नई दिल्ली: दुनिया भर में सबसे ज़्यादा सांप काटने और उससे होने वाली मौत भारत में होती है। सांप के काटने से मौत हो सकती है या फिर विकलांगता हो सकती है। हालांकि सांप के काटने और उससे होने वाली मौतों को लेकर सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध आंकड़ों में स्पष्टता नहीं है, अलग-अलग आंकड़ें हमें इस बारे में अलग अलग जानकारी देते हैं, जिनमें काफ़ी अंतर भी है।

सांप काटने की चपेट में सबसे ज़्यादा आने वाले लोगों का सामाजिक वर्गीकरण भी है- सबसे ज़्यादा पीड़ित ग्रामीण, वन्य और खेतिहर इलाक़ों में होते हैं क्योंकि इन्हीं जगहों पर सांप खुले में पाए जाते हैं।

"इससे संबंधित आंकड़े किसी एक जगह नहीं दर्ज होते हैं। यह सरकार के पास होता है, पुलिस के पास होता है और अस्पतालों से दर्ज किया जाता है। इसके चलते सांप काटने के अलग-अलग आंकड़े उपलब्ध हैं।" ये कहना है द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ, ऑस्ट्रेलिया के भारतीय ऑफ़िस की रिसर्चर दीप्ति बेरी का। बेरी भारत में सांप काटने के आंकड़ों का अध्ययन कर रही हैं और उन्होंने आंकड़े एकत्रित करने की प्रक्रिया में काफ़ी अंतर पाया है और इसके चलते ही अलग-अलग आंकड़े उपलब्ध हैं।

उदाहरण के लिए, सरकार की दो एजेंसियां सांप काटने से संबंधित आंकड़े मुहैया कराती हैं- द नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल (एनएचपी) और द नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी)। कम से कम पिछले तीन सालों (2018, 2017, 2016) में एनएचपी ने एनसीआरबी की तुलना में सांप काटने के 18 से 22 गुना ज़्यादा मामले दर्ज किए हैं।

वहीं दूसरी ओर सांप काटने से होने वाली मौतों के मामले में एनएचपी ने एनसीआरबी की तुलना में महज 10 % से 13 % मामले दर्ज किए हैं।

इसके अलावा एनसीआरबी के आंकड़ों में सांप काटने और उससे होने वाली मौतों की संख्या लगभग एक समान है। अगर इसे दूसरे शब्दों में कहें तो एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक बीते तीन सालों में जिन लोगों को भी सांप ने काटा उन सबकी मौत हो गई।

लेकिन एनएचपी के आंकड़ों के मुताबिक सांप काटने के कुल मामलों में महज 0.5% से 0.7% मामलों में मौत होती है।

एनसीआरबी के आंकड़ों में सांप काटने की घटनाओं और उससे होने वाली मौतों की संख्या एक समान होने की एक संभावित वजह आंकड़ों को एकत्रित करने का तरीका हो सकता है। पुलिस आंकड़े तभी जमा करती है, जब कोई पुलिस मामला दर्ज होता है और मौत की वजह जानने के लिए पुलिस जांच करती है, केवल अस्पताल ले जाने पर पुलिस मामला दर्ज करे, यह ज़रूरी नहीं होता- ऐसा जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के मेडिकल डॉक्टर और हेल्थ पॉलिसी रिसर्चर सौम्यदीप भौमिक का मानना है।

"ये मुद्दे सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में और जानकारी हासिल करने के लिए हमारे शोध से जुड़े सवाल हैं। हम किस तरह से आंकड़े एकत्रित करते हैं, यह अहम होता है।" ऐसा कहना है सांप काटने पर डॉक्टरेल रिसर्च कर रहे भौमिक का।

उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए अगर हम आंकड़े संग्रह करने की विधि में सांप काटने के बाद अस्पताल जाने वालों का रिकॉर्ड रखें तो भी ग्रामीण और आदिवासी समुदाय के लोगों को शामिल नहीं कर पाएंगे, क्योंकि ये लोग अस्पताल नहीं जाते हैं। इसकी वजह यह है कि इनके नज़दीक में कोई अस्पताल नहीं होता। इसकी जगह वे झाड़ फूंक करने वालों के पास जाते हैं।"

सांप काटने से होने वाली मौत की तुलना कहीं ज़्यादा विस्तार और बड़े पैमाने पर फैली हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों से होने वाली मौतों से नहीं हो सकती, भौमिक समझाते हैं। सांप काटने की घटनाएं उन इलाक़ों और वातावरण में होती है, जहां सांप पाए जाते हैं। ऐसी घटनाएं एक दूसरे के दायरे में अतिक्रमण, पर्यावरणीय और पेशेगत वजहों से होती है। आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया में इन अंतरों को भी शामिल करने की ज़रूरत है।

भौमिक ने कहा कि सांप काटने से प्रभावित लोगों का राज़नीतिक दबदबा कम है लिहाजा इस मुद्दे के समाधान की कोशिशें भी कम हैं।

अगर आंकड़े बेहतर और स्थानीयता के आधार पर होंगे तो इससे किस तरह के प्रावधानों की ज़रूरत है इसका पता लगाने में सरकारी अधिकारियों और रिसर्चरों को मदद मिलेगी, इस बात पर ज़ोर देते हुए दीप्ति बेरी ने कहा। "उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी ख़ास इलाक़े में सांप काटने से ज़्यादा लोगों की मौत होती है और इस इलाक़े में ज़्यादातर लोग खेती करते हैं, तो खेतों में काम करने वाले लोगों को रबड़ के जूते देकर सांप काटने के ख़तरे को कम किया जा सकता है। "

"सांप काटने से होने वाली मौतें ही चिंता की बात नहीं है, बल्कि सांप काटने से बड़ी संख्या में लोग विकलांग हो जाते हैं, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से घिर जाते हैं और इन लोगों को सामाजिक लांछन का सामना भी करना होता है। अगर सांप काटने से जुड़े बेहतर आंकड़े और रिसर्च उपलब्ध होंगे तो इस समस्या से उबरने में मदद मिलेगी," ऐसा भौमिक का कहना है।

भारत में सांप काटने से होनी वाली मौतें

मिलियन डेथ्स स्टडी (एमडीएस) के तहत स्पष्ट जानकारी देने के उद्देश्य से भारत में सांप काटने की घटनाओं पर रिसर्चरों ने 2011 में एक शोध पत्र प्रकाशित किया।

द एमडीएस प्रोजेक्ट के तहत भारत में मौत की विभिन्न वजहों का आकलन किया गया, जिसमें प्रसव के बाद मां और नवजात शिशु का स्वास्थ्य, कैंसर, मलेरिया, शराब, दुर्घटनाएं और आत्महत्या जैसी वजहें शामिल थीं। भारत के रजिस्टार जनरल की साझेदारी में हुए इस अध्ययन में 24 लाख परिवारों के करीब 1.4 करोड़ लोगों को शामिल किया गया। रिसर्चरों ने इसमें इन परिवारों में हुई प्रत्येक मौत का अध्ययन किया था।

द एमडीएस के हिस्से के रूप में सांप काटने से होने वाली मौतों पर एक महत्वपूर्ण पत्र 2011 में प्रकाशित हुआ। जिसका नाम था- 'भारत में सांप काटने से मृत्युदर: राष्ट्रीय प्रतिनिधि युक्त सर्वेक्षण'। इस सर्वेक्षण के चार लेखकों ने सर्वेक्षण को जारी रखते हुए 2020 में एक अन्य अध्ययन प्रकाशित किया- 'राष्ट्रीय प्रतिनिधि वाले मृत्यु दर अध्ययन में 2000 से 2019 तक सांप काटने से हुई मौतों का रूझान'।

2011 के शोध पत्र के अनुमान के मुताबिक 2005 में भारत में 46,000 लोगों की मौत सांप काटने से हुई थी। 2020 के शोध पत्र के अनुमान के मुताबिक भारत में सालाना 58,000 लोगों की मौत सांप काटने से होती है ( 2000 से 2019 के बीच सांप काटने से 12 लाख लोगों की मौत)।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2019 में स्वीकार किया कि 2011 के अध्ययन में सांप काटने से भारत में हुई मौतों का अनुमान उसी दौरान के भारत सरकार के आंकड़ों से 30 गुना ज़्यादा थे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2019 में कहा कि दुनिया भर में सांप काटने से सालाना 81,000 -1,38,000 लोगों की मौत होती है। इस हिसाब से 2020 के अध्ययन को देखें तो दुनिया भर में सांप काटने से होने वाली मौतों का बड़ा हिस्सा भारत में होने वाली मौतों का है।

दोनों शोध पत्रों के लेखक दल में शामिल रहे प्रभात झा भारत में सांप काटने से होने वाली मौत में 2011 से 2020 के बीच सालाना बढ़ोत्तरी की वजह जनसंख्या वृद्धि को मानते हैं. "जनसंख्या वृद्धि के चलते सांपों के काटने से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। कम उम्र में मौत के मामले कम हुए हैं, मध्य आयुवर्ग में भी ये मामले कम हुए हैं लेकिन लोग बढ़ गए हैं इसलिए सांप काटने से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है।" टोरैंटो यूनिवर्सिटी में महामारी रोग विशेषज्ञ झा ने कहा।

सांप काटने के मामले कम क्यों दर्ज होते हैं

भारत में सांप काटने के मामलों के कम दर्ज होने का असर दुनिया भर के आंकड़ों पर पड़ सकता है, इस बारे में 2011 के शोध पत्र में रिसर्चरों ने लिखा है, "दुनिया भर के सांप काटने के मामलों का बड़ा हिस्सा भारत से आता है, लिहाजा दुनिया भर के कुल मामले की संख्या भी कमतर रिपोर्ट हो रही है।"

रिसर्चरों के मुताबिक सांप काटने के मामले और मौतों की संख्या कम दर्ज होने की मुख्य वजह यही है कि उन्हीं लोगों के मामले को दर्ज किया जाता है जो अस्पताल तक पहुंच पाते हैं, जबकि बहुत लोगों की मौत घरों में हो जाती है और स्वास्थ्य केंद्रों पर इसकी रिपोर्ट नहीं होती है।

द एमडीएस सर्वे के मुताबिक सांप काटने से होनी वाली मौतों में केवल 23% मामले अस्पताल में होते हैं। इसका मतलब यह है कि अस्पतालों के आंकड़े अपने आप में अधूरे हैं, हालांकि अभी भी भारत में सांप काटने के आंकड़ों का मुख्य स्रोत यही हैं।

रिसर्चरों के मुताबिक सांप काटने से होने वाली मौतों पर अगर सामुदायिक निगरानी रखी जाए तो उन अंतरों को भरा जा सकता है जो केवल अस्पतालों के आंकड़ों के चलते बना है। सामुदायिक निगरानी से घरों में सांप काटने से होने वाली मौतों को भी दर्ज किया जा सकता है।

इसके अलावा, निजी अस्पतालों में भी सांप काटने से लोगों की मौत होती होगी, 2020 के शोध अध्ययन के मुताबिक यह सरकारी आंकड़ों में शामिल नहीं हो पाते हैं क्योंकि आंकड़े केवल सरकारी अस्पतालों से एकत्रित किए जाते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक 13 साल के दौरान निजी एवं सरकारी अस्पतालों में 1,54,000 लोगों की सांप काटने से मौत हुई, जबकि इसी दौरान सरकारी आंकड़ों में केवल 15,500 लोगों की मौत की बात दर्ज हुई। इसका मतलब यह है कि, "आंकड़े एकत्रित करने की मौजूदा व्यवस्था अस्पतालों में होने वाली मौतों का केवल 10% हिस्सा ही दर्ज कर पाती है।"

अंतर को कैसे भरा जा सकता है

2020 के अध्ययन में शामिल रिसर्चरों ने सिफारिश की थी कि भारत सरकार को सांप काटने को उन बीमारियों की सूची में शामिल कर देना चाहिए जिसमें चिकित्सकों को प्रत्येक मामले की जानकारी सरकार को देनी होती है। ये आकंड़े भारत के एकीकृत बीमारी निगरानी कार्यक्रम की ओर से अपडेट किए जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2017 में सांप काटने के चलते होने वाले बीमारी को उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों की अपनी सूची में पहली श्रेणी में सूचीबद्ध किया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2019 में प्रस्ताव रखा कि सांप काटने से होने वाली मौत और विकलांगता के मामलों में 2030 तक 50% की कमी लाने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए।

सांप काटने से दुनिया भर में होने वाली मौतों में सबसे ज़्यादा मौत भारत में होती है। इस वजह से भारत में सांप काटने और विकलांगता का बेहतर अनुमान देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इसे कम करने के लिहाज से अहम होगा।

(यह खबर इंडियास्पेंड में प्रकाशित की गई खबर का हिंदी अनुवाद है।)

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