लखनऊ: गुरुवार का द‍िन था, दोपहर के करीब 1 बज रहे थे, उत्तर प्रदेश के महोबा के एक सामुदाय‍िक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र में महिलाओं की भीड़ जुटी थी। यह महिलाएं नसबंदी के ऑपरेशन के ल‍िए अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं। दरअसल हर गुरुवार को अस्पताल में पुरुष और महिला नसबंदी की जाती है।

इंड‍ियास्‍पेंड की टीम जब महोबा के जैतपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची तो यहां बड़ी संख्‍या में महिलाएं नसबंदी कराने के लिए जुटी थीं, लेकिन इस भीड़ में कोई पुरुष नहीं था। महिलाओं के साथ पुरुष आए जरूर थे, लेकिन वो अस्‍पताल के बाहर ही इंतजार कर रहे थे।

इन्‍हीं में बरखेड़ा गांव के राजेश कुमार (38) भी थे। राजेश ने बताया कि उनकी पत्‍नी गुडि‍या का नसबंदी का ऑपरेशन होना है, वो उसी का इंतजार कर रहे हैं। जब राजेश से पूछा गया कि आप नसबंदी क्‍यों नहीं करा रहे, यह सवाल सुनते ही राजेश झेप गए और उनके पीछे बैठी कुछ महिलाएं इस सवाल पर हंस पड़ीं। काफी देर खामोश रहने के बाद राजेश ने कहा- "मुझे डर लगता है।"

आंकड़ों में पुरुष नसबंदी

यह डर सिर्फ राजेश का नहीं है, असल में नसबंदी को लेकर पुरुषों में कई तरह के मिथक हैं और डर भी हावी है। ऐसे में परिवार नियोजन की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं के कंधों पर आ जाती है। इस बात की गवाही आंकड़े भी देते हैं।

नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे-5 के मुताबिक, भारत में परिवार नियोजन के तहत 37.9% महिलाओं ने नसबंदी कराई है, वहीं सिर्फ 0.3% पुरुषों ने नसबंदी कराने का फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश में भी महिला और पुरुष नसबंदी के बीच का यह अंतर साफ नजर आता है। यूपी में 16.9% महिलाओं ने नसबंदी कराई है, वहीं केवल 0.1% पुरुषों ने नसबंदी कराई है।

जैतपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. पीके सिंह कहते हैं, "हम एक दिन में नसबंदी के 30 ऑपरेशन करते हैं, इसमें महिलाएं ही होती हैं। बहुत प्रचार प्रसार किया जाता है, लेकिन नसबंदी के लिए पुरुष सामने नहीं आते। 2020 में हमने पूरे साल में 545 महिलाओं की नसबंदी की और स‍िर्फ 3 पुरुषों ने नसबंदी कराई।"

डॉ. सिंह बताते हैं कि पूरे महोबा जिले में सबसे ज्‍यादा नसबंदी के ऑपरेशन जैतपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में होते हैं और 2020 में तीन पुरुषों की नसबंदी का आंकड़ा महोबा ज‍िले में उस साल (2020) का सबसे ज्यादा है।

पुरुषों में कमजोर होने की भ्रान्ति

नसबंदी के लिए महिला और पुरुषों को प्रोत्साहित करने का जिम्‍मा आशा बहुओं पर होता है। वो घर-घर जाकर लोगों को नसबंदी कराने के लिए जागरूक करती हैं। महोबा के लमौरा गांव की आशा कार्यकर्ता राम सती बताती हैं, "नसबंदी के लिए हम पुरुषों से भी बात करते हैं, लेकिन वो साफ कहते हैं कि उनके घर की महिलाएं ही नसबंदी कराएंगी। महिलाएं खुद कहती हैं कि 'मैं अपने पति को परेशान नहीं करना चाहती'।"

महोबा के अकौना गांव की आशा कार्यकर्ता ओमवती बताती हैं, "लोगों में डर है कि नसबंदी के बाद पुरुष कमजोर हो जाएंगे। हम पुरुषों से कहते हैं कि वो नसबंदी करा लें, क्‍योंकि उन्‍हें न चीरा लगेगा न ही न टांके आएंगे, लेकिन वो तैयार नहीं होते। उनके घर की महिलाएं ही कहने लगती हैं कि उनका पति कमजोर हो जाएगा।"

आशा कार्यकर्ता जो बात कह रही हैं ठीक ऐसी ही बात अपनी पत्नियों को नसबंदी कराने लेकर आए पुरुष भी कहते हैं। महोबा के एक सामुदाय‍िक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र के बाहर अपनी पत्नी के ऑपरेशन का इंतजार कर रहे मनोज (42) कहते हैं, "मेरे जानने में किसी आदमी ने नसबंदी नहीं कराया है तो डर लगता है कि न जाने क्या हो। सब औरतें ही करा रही हैं तो मैं भी पत्नी का करा रहा हूं। इस ऑपरेशन के बारे में पता है कि इसके बाद सब ठीक रहेगा। आदमियों में कमजोरी होने की बात कहते हैं।" यह पूछने पर कि कमजोरी की बात आपको किसने बताई, मनोज ने कहा, "सभी ये बात कहते हैं।"

पुरुषों को नसबंदी के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर साल नवंबर में 'नसबंदी पखवाड़ा' भी मनाया जाता है। इस दौरान पुरुषों को जानकारी दी जाती है कि नसबंदी करवाने से पुरुषों में कामेच्छा, पौरुष, यौन सुख आदि में किसी तरह की कमी नहीं आएगी। इसके बाद भी पुरुष नसबंदी के लिए कम ही आगे आते हैं।

नवंबर से जनवरी तक होते हैं ज्‍यादा ऑपरेशन

सरकारी अस्‍पतालों में नसबंदी के ऑपरेशन पूरे साल होते हैं, लेकिन नवंबर से लेकर जनवरी तक बड़ी संख्या में यह ऑपरेशन होते हैं। इसके पीछे का कारण बताते हुए डॉ. पीके सिंह कहते हैं, "ग्रामीण अंचल में ऐसी व्यवस्था नहीं होती कि गर्मियों में घाव जल्‍दी से भर जाएं, ऐसे में ग्रामीण सर्द‍ियों में ऑपरेशन कराना सही समझते हैं।"

सरकारी अस्पताल में हर गुरुवार को नसबंदी के ऑपरेशन होते हैं। नवंबर से लेकर जनवरी तक बड़ी संख्‍या में महिलाओं के आने से उन्‍हें वो सुव‍िधाएं नहीं मिल पाती जो ऑपरेशन के बाद मिलनी चाहिए। इंड‍ियास्‍पेंड की टीम जब यूपी के लल‍ितपुर ज‍िले के मेहरौनी सामुदाय‍िक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र पहुंची तो यहां का नजारा चौंकाने वाला था। सर्द‍ियों की रात में महिलाएं गद्दे बिछाकर फर्श पर बैठी थीं, क्‍योंकि अस्‍पताल में बेड उपलब्‍ध नहीं थे। इन गद्दों पर कुछ महिलाएं ऑपरेशन कराने के बाद लेटी थीं तो कुछ ऑपरेशन कराने का इंतजार कर रही थीं। कुछ लोग ऑपरेशन के बाद मरीज को बिना स्‍ट्रेचर कंधे पर लादकर ले जाते भी द‍िखे।

इस बारे में हमने जब स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र के च‍िकित्‍सा अधीक्षक एमपी सिंह से बात की तो उन्‍होंने कहा, "इस अस्‍पताल में पर्याप्‍त जगह नहीं हैं। मेरे पास बेड नहीं है, इसल‍िए मरीजों को गद्दे देते हैं। उन्‍हें ऑपरेशन करके घर जाने की सलाह दी जाती है, बीच बीच में उन्‍हें बुलाकर चेक कर लेते हैं।"

लल‍ितपुर के बिरघा सामुदाय‍िक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र में भी महिलाओं को नसंबदी के ऑपरेशन के बाद फर्श पर पड़े गद्दों पर ल‍िटाया जाता है। इस बारे में स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र के चिकित्सा अधीक्षक छत्रपाल सिंह कहते हैं, "हम एक द‍िन में 30 ऑपरेशन करते हैं। ऑपरेशन के बाद महिलाओं के लेटने के ल‍िए 10-12 बेड हैं, इसके अलावा गद्दे भी हैं।"

यह पूछने पर कि क्‍या ऑपरेशन के बाद महिलाओं को कुछ द‍िन अस्‍पताल में रोकने का नियम भी है? छत्रपाल सिंह कहते हैं, "ऐसा प्रावधान है कि उन्‍हें कम से कम एक रात रोका जाए, लेकिन बेड नहीं हैं और वो खुद से भी यहां रुकना नहीं चाहतीं तो घर चली जाती हैं।"

'पुरुषों की जागरूकता पर कम ध्यान'

महिलाओं के अनुपात में पुरुषों की कम नसबंदी पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी चिंता जाहिर करते हैं। उनके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों को नसबंदी के लिए प्रेरित करने का काम ठीक से नहीं हो रहा। साथ ही नसबंदी को लेकर स्वास्थ्य विभाग जो टारगेट निर्धारित करता है उसमें भी अलग से पुरुष नसबंदी पर ध्यान नहीं दिया जाता।

जन स्‍वास्‍थ्‍य अभ‍ियान के राष्‍ट्रीय सह संयोजक अमूल्‍य न‍िध‍ि कहते हैं, "पुरुष नसबंदी कम होने के पीछे दो मुख्य कारण हैं। पहला यह कि ग्रामीण क्षेत्र में 'पुरुष हेल्थ वर्कर' की कमी है। गांव में आशा और एएनएम महिलाएं हैं, जिनका पूरा ध्यान महिलाओं और बच्चों पर है। ऐसे में पुरुषों की जागरूकता का काम प्रभावित होता है। दूसरा कारण है कि पुरुष नसबंदी कम होने पर किसी भी अधिकारी की जवाबदेही तय नहीं होती। संविधान में लिखा है कि पुरुष और महिला में भेद नहीं है, लेकिन जहां भेद हो रहा उसे दूर करने के उपाय भी नहीं सोचे जा रहे।"

अमूल्य निधि जिन पुरुष हेल्थ वर्कर का जिक्र कर रहे है। आंकड़ों में उनकी संख्या बहुत कम है। लोकसभा में 5 फरवरी 2021 को दी गई जानकारी के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्र के सब सेंटर पर 1,57,411 पुरुष हेल्थ वर्कर की जरूरत है, जबकि केवल 82,857 पद स्वीकृत किए गए हैं। यह पद भी पूरी तरह से भरे नहीं हैं, केवल 59,348 पद पर पुरुष हेल्थ वर्कर की नियुक्ति हुई है, 29,421 पद खाली पड़े हैं।

इसके इतर अगर ग्रामीण क्षेत्र के सब सेंटर पर महिला हेल्थ वर्कर की संख्या देखें तो जितनी जरूरत है उससे ज्यादा हेल्थ वर्कर काम कर रही हैं। सब सेंटर पर करीब 1,57,411 महिला हेल्थ वर्कर की जरूरत है, जबकि 2,05,228 महिला हेल्थ वर्कर काम कर रही हैं। इन आंकड़ों से जाहिर है कि ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष और महिला हेल्थ वर्कर के बीच बहुत असमानता है, जिसका असर नसबंदी जैसे कार्यक्रम पर भी पड़ रहा है।

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