बागपत, उत्तर प्रदेश: "शादी के शुरुआती कुछ हफ्तों तक तो जिंदगी बहुत खुशहाल थी. सब बहुत अच्छा चल रहा था. लेकिन फिर यह शादी एक बुरे सपने में बदल गई।" उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में रहने वाली 29 वर्षीय शमिता (बदला हुआ नाम) अपने उन दिनों को भूल नहीं पाई है। वह कहती है, "मैं अपने पति के काम से लौटने का इंतजार कर रही थी, तभी उसका बड़ा भाई मेरे कमरे में घुसा और दरवाजा बंद कर दिया।"

दिल्ली से 40 किलोमीटर दूर और हरियाणा के साथ सीमा साझा करने वाले बागपत में 2011 की जनगणना के अनुसार, हर 1,000 पुरुषों पर 861 महिलाएं है. यह राष्ट्रीय लिंगानुपात 940 से काफी कम है।

जिले में बाल लिंगानुपात (0-6 वर्ष की आयु वर्ग में) 841 है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले पांच सालों में पैदा हुए बच्चों का लिंगानुपात 2015-16 में 763 के मुकाबले 2019-21 में 818 था।

लैंगिक मुद्दों पर काम करने वाले संगठनों की एक रिपोर्ट बताती है कि जन्म के समय सामान्य लिंग अनुपात 100 लड़कियों पर 102-106 लड़कों के बीच होता है। यह 1,000 लड़कों पर 943-980 लड़कियों के बराबर ही है। इंडियास्पेंड ने अगस्त 2017 में अपनी एक रिपोर्ट में इसके बारे में बताया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह अनुपात प्रत्येक 1,000 लड़कियों पर 1,000 लड़के नहीं है क्योंकि यह लड़कों की उम्र बढ़ने के साथ उनकी मृत्यु के उच्च जोखिम को संतुलित करने का प्रकृति का तरीका है।

गर्भ के दौरान अवैध तरीके से बच्चे के लिंग का पता लगाना और फिर जबरन कन्या भ्रूण हत्या, इसके चलते जिले में लिंगानुपात कम हो गया है। आज स्थिति ये है कि कई लड़को को शादी के लिए लड़की तक मिलना मुश्किल हो गया है। लैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाली स्थानीय गैर-लाभकारी चेतना कल्याण समिति के संस्थापक देवेंद्र कुमार धामा ने इंडियास्पेंड को बताया, “पुरानी सोच और पितृसत्तात्मक समाज की वजह से जिले में कई अनैतिक और अवैध प्रथाएं आज भी बरकरार हैं। बागपत की कहानी दूसरे राज्यों से खरीदी गई दुल्हनों के साथ दुर्व्यवहार की कहानी है, जिन्हें दूसरे व्यक्ति के साथ ‘संबंध’ बनाने और जबरन कन्या भ्रूण हत्या के लिए मजबूर किया जाता है। एक असफल कानूनी प्रक्रिया के चलते उनके लिए इससे बाहर निकलना आसान नहीं है।


पीढ़ियों से चली आ रही यातनाएं

शमिता अपने साथ हुए दुष्कर्म को याद करते हुए कहती हैं, "उस वक्त मेरे ससुराल वाले घर में ही थे। मैं चिल्लाती रही लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। उसके बाद वह बड़ी ही बेफिक्री के साथ मेरे कमरे से निकल गया। मैं पूरी रात जागती रही और अपने पति का इंतजार करती रही।

वह कहती है, "लेकिन जब सुबह मैंने उसे बताया कि मेरे साथ क्या हुआ है, तो उसने अपने भाई का साथ दिया। उसने कहा... भाई को शादी के लिए लड़की नहीं मिल रही है इसलिए मुझे समझौता करना होगा। इसमें कोई बुराई नहीं है। उसकी मां भी इससे गुजरी है और उसके दोस्तों की बीवियों के साथ भी ऐसा हुआ है।"

बागपत की रहने वाली सामाजिक कार्यकर्ता रुचि (वह अपने इसी नाम से जानी जाती हैं) आठ साल से महिलाओं के मुद्दों पर काम कर रही हैं। वह कहती हैं, "इस जिले के लगभग हर तीसरे घर में कम से कम एक बहू दूसरे राज्य से है, जिनमें से ज्यादातर को खरीदा गया है। वे आपको उनसे अकेले में बात नहीं करने देंगे।"

शमिता आगे बताती हैं, "ऐसा कई बार हुआ। कई बार तो मेरे पति ने मुझे उन अजनबियों के साथ सोने के लिए भी मजबूर किया, जिनसे उसने कुछ पैसे उधार लिए थे और वह उन पैसों को वापस नहीं कर पाया।”

आज शमिता बागपत के एक अलग गांव में अपने माता-पिता के साथ रहती है। उसका तब तक अपने ससुराल वापस जाने का कोई इरादा नहीं है, जब तक वे उसे किसी के साथ सोने के लिए मजबूर करना बंद नहीं करेंगे।

जुलाई 2016 में इंडियास्पेंड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार महिलाओं के लिए सबसे खराब राज्य हैं। इन राज्यों में महिला भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं सबसे अधिक हैं, महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम है, यहां गर्भवती महिलाओं की होने वाली मौतों की घटनाएं सबसे अधिक है, यहां सबसे अधिक बच्चे पैदा होते हैं, उनके खिलाफ सबसे अधिक अपराध किए जाते हैं और उनके रोजगार पाने की संभावना सबसे कम है।

भारत में लगभग 80 लाख लोग मानव तस्करी का शिकार हुए हैं। सबसे ज्यादा खतरा समाज के सबसे कमजोर तबके को है, जो गरीबी में जी रहा है, पढ़े-लिखा नहीं है और जिन्हें परिवार का समर्थन नहीं है।


मानव तस्करी और हिंसा

2016 तक पांच सालों में, “मानव तस्करी के दर्ज किए गए 23% मामलों में ही लोगों को सजा हो पाई थी। 2016 के एक अध्ययन के मुताबिक, 45,375 लोगों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन इसमें से से सिर्फ 10,134 लोगों को ही दोषी ठहराया जा सका था। रिपोर्ट बताती है, “दंड में जुर्माना से लेकर कारावास तक शामिल है। पश्चिम बंगाल भारत में मानव तस्करी का केंद्र है। यहां 2013 में भारत के सभी राज्यों में सबसे अधिक मानव तस्करी के मामले (669) सामने आए थे।”

गुड़िया (बदला हुआ नाम) की उम्र उस समय महज 16 साल थी जब दूसरे राज्य का एक व्यक्ति उसके परिवार से मिलने आया। दक्षिण 24 परगना जिले के पश्चिम बंगाल के कैनिंग शहर में रहने वाले गुड़िया के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। गुड़िया ने इंडियास्पेंड को बताया, “वह हमारी मदद करने के लिए आगे आया। उसने कहा कि वह मेरे भाई को नौकरी दिलाएगा और मेरी शादी दिल्ली के एक अमीर परिवार में करवा देगा। अपने माता-पिता की तरह मैं भी काफी खुश थी। फिर मुझे उसके साथ भेज दिया गया। मैं एक बड़े शहर में अपने पति को देखने और उनके साथ रहने का सपना लेकर बंगाल से निकली थी।

गुड़िया ने कहा, "लेकिन जल्द ही मेरे सारे सपने टूट गए। वह मुझे बागपत ले आया और एक दिन तक किसी सुनसान जगह में रखा। और फिर उसने दो लोगों को मेरे पास भेजा। उन्होंने मेरे साथ दुष्कर्म किया। तीन दिन बाद वह मुझे किसी गांव में एक घर में ले गया और कहा कि अब मुझे यहीं रहना है। मैं पूरी तरह टूट चुकी थी।”

आज, 28 वर्षीय गुड़िया तीन बच्चों की मां है और गांव में अच्छी तरह से बस गई है। लेकिन यह सब आसान नहीं था।

वह याद करते हुए कहती है, “उस समय मेरे पास कोई फोन नहीं था। मैं दूसरे लोगों से अपने परिवार को कॉल करने के लिए मिन्नतें करती, लेकिन कोई मुझे फोन नहीं देता था।” फिर उसने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा, “मेरे (अब) पति और उसका भाई दिन में कई बार मेरे कमरे में आते, मुझे मारते-पीटते और मेरे साथ दुष्कर्म करते। उन्हें मेरी कोई परवाह नहीं थी। कुछ महीनों तक ऐसे ही चलता रहा। फिर एक दिन मैंने भागने की कोशिश की, लेकिन मेरे पति सुमित मुझे वापस ले आए। उसने कहा, अगर मैं घर वापस आऊंगी तो वह मुझसे शादी कर लेगा और फिर मैं वापस चली आई।” मेरे साथ बात करते हुए गुड़िया की आवाज काफी धीमी थी। वह नहीं चाहती थी कि उसका पति या ससुराल वाले इस बात को सुनें।

गुड़िया और सुमित की उम्र में 14 साल का अंतर है। गुड़िया कहती हैं, "अब मैं इस जगह के हिसाब से ढल गई हूं, लेकिन शायद यह जगह मुझे अपना नहीं पाई है।" वह आगे कहती है, "मेरी भाषा अलग थी। शुरू में कोई भी मुझसे मिलने नहीं आता था, मुझे कहीं जाने की अनुमति नहीं थी। मुझे पता था कि बंगाल, ओडिशा, बिहार और भगवान जाने कहां-कहां से मेरी तरह कई महिलाएं यहां रह रही हैं। लेकिन वे नहीं चाहते थे कि हम एक-दूसरे को जानें और एक-दूसरे से बात करें।"

निर्भया फंड के अंतर्गत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की सखी वन स्टॉप सेंटर योजना चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक और निजी स्थानों पर हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं की सहायता करना है, जिसमें पति द्वारा की जाने वाली हिंसा भी शामिल है। इंडियास्पेंड ने मई 2023 में इससे संबंधित एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।

बागपत में वन-स्टॉप सेंटर की एडमिनिस्ट्रेटर नैना शर्मा ने इंडियास्पेंड को बताया, "हमारे पास घरेलू हिंसा के कई मामले आते हैं, लेकिन कोई भी सीधे तौर पर दूसरे व्यक्ति के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर करने, कन्या भ्रूण हत्या या तस्करी की शिकायत नहीं करता है। दरअसल इसकी दो वजहें हैं, एक यह कि उन्हें इतनी आजादी नहीं है कि वे हमारे पास आ सकें। और दूसरी वजह परिवार के भीतर समझौता कर लेना हैं ताकि उनकी शादी बची रहे।"


कानूनी दांवपेच का जाल

बागपत उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से अलग है क्योंकि यहां के लोगों की संस्कृति, आजीविका और परंपराएं हरियाणा के समान हैं।

बागपत के पुलिस अधीक्षक अर्पित विजयवर्गीय कहते हैं, "बागपत हरियाणा और दिल्ली की सीमा पर है, इसलिए हम इस तरह के मामले (महिलाओं की खरीद-फरोख्त, भ्रूण की लिंग जांच करने वाले सेंटर और भ्रूण हत्या) देखने को मिलते हैं। पिछले साल हमने बागपत में अवैध रूप से लिंग परीक्षण करने वाले दो सेंटर्स पर छापा मारा था और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बच्चे की लिंग की जांच कराने के लिए ये लोग हरियाणा से थे।"

जब पुलिस अधीक्षक से पूछा गया कि पुलिस पीड़ितों की पहचान करने और उनकी मदद करने के लिए क्या कदम उठा रही है, तो उन्होंने कहा, "हम हर बुधवार को स्थानीय लोगों से मिलने और किसी भी समस्या पर बात करने के लिए महिला पुलिस की एक टीम गांवों में भेजते हैं। यह प्रोजेक्ट सरकार के मिशन शक्ति के तहत चलाया जा रहा है।"

इस स्थानीय कार्यक्रम की अगुवाई करने वाली सब-इंस्पेक्टर साक्षी सिंह कहती हैं, "हर बुधवार को एक कांस्टेबल और हर थाने से एक एसआई जिले के अलग-अलग गांवों में जाकर महिलाओं की काउंसलिंग करते हैं, उनकी बात सुनते हैं और उन्हें जागरूक बनाते हैं। वे ग्राम प्रधान के कार्यालय में इकट्ठा होती हैं और हम उनसे उनकी समस्याएं सुनते हैं। इस दौरान हमारे पास ज्यादातर मामले झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से आई महिलाओं के थे। उन्हें उनके घरों से झांसा देकर बागपत लाया गया था। शायद इसकी वजह इन राज्यों में गरीबी ज्यादा होना है।

सिंह ने कहा, "हम हमेशा तस्करी का मामला दर्ज नहीं कर पाते हैं क्योंकि महिलाएं कहती हैं कि वे अपनी सहमति से यहां आई हैं। वे गरीब परिवारों की महिलाएं है। उनके परिवार को पैसे की ज़रूरत थी और उन्हें पैसे दिए गए थे। इसलिए वे तब तक कुछ नहीं बोलतीं जब तक कि उनके साथ कोई हिंसा न हो।"

"हमें इन मामलों में दो तरह की शिकायतें मिलती हैं।" वह आगे कहती हैं, "एक शिकायत पति या परिवार की तरफ से होती है, जिसमें कहा जाता है कि महिला बच्चे के साथ भाग गई है और उसने अपने ठिकाने के बारे में कुछ नहीं बताया है। मेरे थाने में औसतन हर महीने ऐसे चार से पांच मामले आ जाते हैं। दूसरी तरह की शिकायत हमें महिला की तरफ से मिलती है। ये शिकायतें आमतौर पर पति के भाई यानी देवर या जेठ द्वारा यौन उत्पीड़न की होती हैं। उनके मुताबिक, उन्हें परेशान किया जा रहा है, लेकिन उनके पति इसके खिलाफ कुछ नहीं बोलते हैं।"

पुलिस का कहना है कि औसतन हर साल घर से भाग जाने वाली महिलाओं के 60 मामले दर्ज किए जाते हैं, जिसका मतलब है कि ये संख्याएं तस्करी के अघोषित मामलों का एक हिस्सा हो सकती हैं।


कन्या भ्रूण हत्या और पितृसत्तात्मक समाज

गुड़िया के लिए 2016 में दूसरी गर्भावस्था के दौरान एक नई समस्या सामने आई। वह बताती हैं, “जब मैं फिर से गर्भवती हुई थी, तो उस समय मेरी बेटी दो साल की थी।” उसने याद करते हुए कहा, “मेरा पति तीसरे महीने के दौरान मुझे चेक-अप के लिए दूसरे शहर लेकर गया था। उसने मुझसे कहा कि यह एक बहुत अच्छा क्लिनिक है और वहां जांच कराना ठीक रहेगा। शायद वो जगह मेरठ थी।”

वह आगे कहती है, “वह एक बहुत छोटा क्लिनिक था। उस पर कोई बोर्ड या नाम नहीं था। अंदर काफी अंधेरा था, वहां उन्होंने मुझे अल्ट्रासाउंड के लिए लिटा दिया। वापस आते समय, मेरे पति ने कहा कि मेरे शरीर में आयरन की कमी है, इसलिए उन्होंने एक मेडिकल स्टोर से कुछ दवाएं खरीदी और मुझे घर पहुंचने के बाद उन दवाओं को लेने के लिए कहा।”

गर्भाधान पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 के तहत, भारत में जन्म से पहले बच्चे के लिंग की जांच करना प्रतिबंधित हैं। यह अधिनियम गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग चयन को प्रतिबंधित करता है और सिर्फ आनुवंशिक असामान्यताओं, चयापचय संबंधी विकारों, क्रोमोसोमल असामान्यताओं या जन्मजात विकृतियों का पता लगाने के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों को उपयोग में लाने की अनुमति देता है। लेकिन इस अधिनियम को सही ढंग से लागू करने की जरूरत है। मार्च 2018 में इंडियास्पेंड ने नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।

लेकिन भारत में आज भी ऐसे समाज का दबदबा है और बेटों को तरजीह दी जाती है। इसका सीधा सा मतलब है अवैध तरीके से इस तरह की जांच का जारी रहना। भारत में कन्या भ्रूण हत्या पर 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, "क्योंकि बेटे बुढ़ापे में परिवार का सहारा होते हैं और मृतक माता-पिता और पूर्वजों की आत्माओं के लिए संस्कार कर सकते हैं, इसलिए परिवार में उनके लिए खास जगह है। बेटियों को एक सामाजिक और आर्थिक बोझ के रूप में देखा जाता है।"

धामा आगे कहते हैं, "अगर पहला बच्चा है, तो हो सकता है बच्चे के लिंग का पता लगाने के लिए महिला पर दबाव न बनाया जाए। लेकिन दूसरी गर्भावस्था में लिंग की जांच के लिए निश्चित रूप से इन सेंटर्स पर उन्हें भेजा जाता है। कई बार, तो महिला को पता ही नहीं होता कि उसके साथ क्या किया जा रहा है। परिवार के लोग सेंटर के साथ मिलकर उसे बेवकूफ बनाते हैं। उससे कहा जाता है कि यह एक सामान्य अल्ट्रासाउंड है और फिर उसे गर्भपात के लिए एक दवा दे देते हैं।"

गुड़िया उस दिन को याद करते हुए कहती हैं, "उस दवा को खाने के 10 मिनट के भीतर मुझे मतली आने लगी और पेट में बहुत दर्द हुआ। मुझे नहीं पता कि मैं कब बेहोश हो गई, लेकिन जब मैं उठी, तो मेरा निचला हिस्सा खून से लथपथ था और मुझे यह समझने में थोड़ा समय लगा कि मेरा गर्भपात करवाया गया है।"

भारत में मातृ मृत्यु दर का तीसरा सबसे बड़ा कारण असुरक्षित गर्भपात है। असुरक्षित गर्भपात से संबंधित कारणों से हर दिन लगभग आठ महिलाओं की मौत हो जाती है।

गुड़िया याद करती है, "मुझे डॉक्टर के पास नहीं ले जाया गया। मैंने अपने पति से एक हफ़्ते तक बात नहीं की...लेकिन किसी को इससे क्या ही फर्क पड़ने वाला था।" इस 'गर्भपात' के बाद गुड़िया के दो और बच्चे हुए..एक बेटा और एक बेटी।

हमने टिप्पणी के लिए राज्य के महिला कल्याण, बाल विकास और पोषण मंत्रालय से संपर्क किया है। अभी तक कोई नहीं प्रतिक्रिया नहीं मिली है। उनकी तरफ से जवाब मिलने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।