यूपी के मदरसा शिक्षकों का बकाया मानदेय: आठ साल लम्बा इंतज़ार और बढ़ता आर्थिक बोझ
उत्तर प्रदेश के मदरसा शिक्षकों को पिछले 8 सालों से उनका मानदेय नहीं मिला है। सरकार की ओर से बकाया राशि 900 करोड़ के पार पहुँच चुकी है। ऐसे में कई परिवार अपना जीवन आर्थिक तंगी में बिता रहे हैं।
गोरखपुर: "मेरे पति मदरसा शिक्षक थे, चार वर्षों से उनका मानदेय बकाया था। मई 2021 में वह कोरोना संक्रमित हो गये। पैसों के अभाव में किसी तरह उन्हें लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ 24 मई को उनकी मौत हो गई। बकाया मानदेय की राशि हमें मिली होती तो बेहतर इलाज के ज़रिए शायद उन्हें हम बचा लेते," गोरखपुर की रहने वाली रजिया आज़म अपने पति, मोहम्मद आज़म के गुजरने के बाद अपनी परेशानियों का ज़िक्र करते हुए कहती हैं।
मोहम्मद आज़म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक मदरसा शिक्षक थे। उन्हें ₹15,000 प्रतिमाह मानदेय मिलता था लेकिन कई महीनों से उन्हें इसका भुगतान नहीं हुआ था और आज उनका बकाया मानदेय क़रीब ₹4 लाख है।
उत्तर प्रदेश के करीब 20,000 से ज़्यादा मदरसा शिक्षक अपने बकाया मानदेय के लिए लगातार प्रदर्शन करते आ रहे हैं। कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जिन्हें वर्ष 2013 यानी पिछले आठ वर्षों से मानदेय नहीं दिया गया है और इस ही वजह से बहुत से परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
मदरसा शिक्षक एकता समिति उत्तर प्रदेश के सलाहकार इसरार अहमद इदरीसी का कहना है, "वेतन नहीं मिलने की वजह से मदरसा शिक्षक व उनके परिजन इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। प्रदेश में अब तक 100 मदरसा शिक्षकों की आर्थिक तंगी के कारण मौत हो चुकी है। हम लगातार धरना-प्रदर्शन करने के साथ ही लखनऊ से दिल्ली तक का चक्कर भी लगा रहे हैं। सरकार पांच वर्षों से हमें केवल आश्वासन ही दे रही है।"
आर्थिक तंगी और बीमारियों से जूझते परिवार
रज़िया के पति के गुजर जाने के बाद सरकार ने उन्हें पति की जगह नियुक्ति दे दी लेकिन मानदेय के बकाया होने का सिलसिला अभी भी जारी है। इस हालत में उन पर अपनी दो बेटियों, जो कि हाईस्कूल और कक्षा 4 में पढ़ती हैं, की ज़िम्मेदारी भी है।
"कोरोना से मारे गये लोगों के परिजनों को सरकार ने ₹ 50,000 देने की घोषणा की थी। मेरे परिवार को अभी तक यह राशि नहीं मिली है। पति का बकाया मानदेय करीब ₹4 लाख है। यदि वह मिल जाये तो हमें सुविधा होगी। पता नहीं वह रक़म कभी मिलेगी भी या नहीं," रज़िया बताती हैं।
रज़िया की ही तरह गोरखपुर के एक अन्य मदरसे के शिक्षक आसिफ़ महमूद कहते हैं, "मैंने जब नौकरी ज्वाइन की थी तो लगा था कि सरकारी नौकरी का सपना पूरा हो गया। कई बार धरना-प्रदर्शन के बाद भी मानदेय नहीं मिलने से अब सपने चकनाचूर हो चुके हैं। मेरा बेटा दुर्लभ बीमारी थैलेसीमिया से पीड़ित है। उसे दो महीने में तीन बार खून चढ़ाना पड़ता है जिसका खर्च ₹2,000-3,000 होता है। मुझे 57 महीनों से मानदेय नहीं मिला। ऐसे में मेरे बच्चे का इलाज कैसे हो पायेगा?"
मदरसा बोर्ड के अधीन कुल 19,213 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं जिनमे से 7,356 मदरसे अनुदानित हैं। इन अनुदानित मदरसों में 20,965 शिक्षक स्कीम फ़ॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजूकेशन इन मदरसा (एसपीक्यूईएम) योजना के तहत अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यह शिक्षक मदरसों में बच्चों को हिन्दी, गणित, अंग्रेज़ी, सामाजिक विज्ञान, कंप्यूटर व विज्ञान जैसे विषय पढ़ाते हैं।
एसपीक्यूईएम योजना की शुरुआत साल 1993 में मदरसे के बच्चों को आधुनिक शिक्षा पद्धति से जोड़ने के लिये की गई थी।
गोरखपुर के पादरी बाज़ार स्थित एक मदरसे के शिक्षक मोहम्मद आकिब अंसारी कहते हैं, "पांच सदस्यों के परिवार मे मैं इकलौता कमाने वाला हूँ। परिवार की कुछ ज़रूरतों के लिये क़र्ज़ लिया था। मानदेय नहीं मिलने के कारण कोचिंग भी पढ़ाता हूँ। कोरोना काल के दौरान कोचिंग भी बंद हो गई। ब्याज और क़र्ज़ चुकाने के लिये एक दोस्त से बकाया मानदेय का हवाला देकर क़र्ज़ लिया। इस समय मुझ पर ₹5 लाख का क़र्ज़ है।"
साल 2017 में योगी सरकार ने कुछ मदरसों में पाई गयी अनियमितताओं के बाद कुछ मदरसों की सहायता राशि पर रोक लगा दी थी। उसके बाद पारदर्शिता के लिये मदरसा पोर्टल तैयार कर मदरसों का सभी विवरण उस पर अपलोड करवाया गया था।
कयास लगाए गए थे कि इस जांच प्रक्रिया से गुजरने के बाद बकाया मानदेय का भुगतान और नियमितीकरण किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया।
एक अन्य शिक्षक फैजान सरवर बताते हैं, "साल में दो बार मदरसों की जाँच होती है। अधिकारी मदरसों में जाकर शिक्षकों, मदरसों और शिक्षा के गुणवत्ता की जाँच की जाती है। लेकिन हमें कोई यह नहीं बताता कि हमें मानदेय क्यों नहीं दिया जा रहा है। ज़्यादातर शिक्षक 40 वर्ष से अधिक के हो चुके हैं अब हमें किस विभाग में नौकरी मिलेगी? समझ नहीं आता कि सरकार ऐसा क्यों कर रही है।"
मदरसा आधुनिक शिक्षक एकता समिति उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अशरफ़ अली क़हते हैं, "पांच वर्षों से सरकार मदरसों और शिक्षकों की जाँच ही कर रही है। कई जाँच हो चुकी हैं, मदरसों का भौतिक सत्यापन और दस्तावेजों की जाँच भी हो चुकी है। सारी जानकारी मदरसा पोर्टल पर अपलोड भी हो चुकी है। हमें आश्वासन दिया गया था कि जनवरी 2022 से हमें नियमित भुगतान मिलने लगेगा।"
वह आगे कहते हैं, "अगर हम लगातार धरना-प्रदर्शन नहीं करते तो शायद यह योजना ही बंद कर दी गई होती। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नज़दीक आ चुके हैं इसलिए सरकार कुछ सक्रिय हुई है। यदि चुनाव नहीं होते तो शायद यह सक्रियता भी नहीं दिखती।"
क्या है मदरसा आधुनिकीकरण योजना?
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शैक्षणिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यक बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण की योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत धार्मिक शिक्षण संस्थाओं (जैसे- दारूल उलूम, मकतबों, मदरसों) में हिंदी, अंग्रेज़ी, विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन के लिये देश के 16 राज्यों में क़रीब 50 हज़ार शिक्षक कार्यरत हैं।
भारत सरकार ने साल 2008 में इस योजना का विस्तार करते हुए इसे एसपीक्यूईएम नाम दिया, जिसके तहत भारत सरकार की ओर से स्नातक शिक्षकों को ₹6,000 और परास्नातक व बीएड शिक्षकों को ₹12,000 प्रतिमाह मानदेय दिया जाने लगा।
उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2016 में स्नातक शिक्षकों को ₹2,000 और परास्नातक व बीएड शिक्षकों को ₹3,000 प्रतिमाह अपनी ओर से देने की घोषणा की। इस तरह स्नातक शिक्षकों को ₹8,000 और परास्नातक व बीएड शिक्षकों को प्रतिमाह ₹15,000 मानदेय मिलने लगा।
साल 2018 में योजना के वित्तीय भार को 60:40 के अनुपात में केन्द्र व राज्य सरकार के बीच विभाजित कर दिया गया। यानी 60% राशि केन्द्र सरकार वहन करेगी और 40% राज्य सरकार। वर्ष 2021-2022 से इस योजना को मानव कल्याण विकास मंत्रालय से अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, भारत सरकार को स्थानांतरित कर दिया गया।
₹942.84 करोड़ रुपये मानदेय बकाया
साल 2013 से केंद्र सरकार की तरफ से मदरसा शिक्षकों के मानदेय भुगतान में देरी होने लगी।
वर्ष 2013-14 में केन्द्र सरकार की ओर से इस योजना के भुगतान का ₹59 लाख आज तक बकाया है।
वर्ष 2014-15 और 2015-16 में ₹8.01 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष, वर्ष 2016-17 में ₹12.35 करोड़, 2017-18 में ₹266.69 करोड़, साल 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में ₹160.62 करोड़ प्रतिवर्ष की राशि केन्द्र सरकार की ओर से बकाया रही।
साल 2020-21 तक शिक्षा मंत्रालय से मदरसा शिक्षकों के मानदेय हेतु कुल ₹1,366.80 करोड़ की माँग की गई थी। जिसका 40%, यानी ₹321.24 करोड़ राज्य सरकार ने आवंटित कर दिया जबकि केन्द्र सरकार ने मात्र ₹268 करोड़ वितरित किया।
साल 2020-21 तक शिक्षकों के बकाया मानदेय की रकम ₹777.51 करोड़ पहुँच चुकी थी।
केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक के मिनट के अनुसार वर्ष 2021-2022 में 3,659 स्नातक और 17,306 परास्नातक शिक्षकों के भुगतान के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने ₹275.55 करोड़ का बजट का प्रस्ताव तैयार किया है। जिसमें से ₹200 करोड़ के बजट को स्वीकृति मिली है।
इस तरह पिछले आठ सालों से मदरसा शिक्षकों का कुल मानदेय बकाया ₹942.84 करोड़ रुपये है। लेकिन केन्द्र सरकार अभी भी इसके भुगतान को लेकर गंभीर नहीं है।
इस बारे में उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के ज्वाइंट डायरेक्टर आरपी सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया, "भारत सरकार के प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड की बैठक में मदरसा शिक्षकों का मानदेय सैंक्शन हो गया है। मानदेय जारी होने की प्रक्रिया में है और कभी भी जारी हो सकता है। बजट जारी होने के बाद ही पता चलेगा कि कितना भुगतान किया गया है।"
उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा केंद्र सरकार से बकाया राशि के भुगतान के बारे में बात करने को लेकर आरपी सिंह कहते हैं, "बकाया रक़म काफ़ी अधिक है, एक बार में पूरा भुगतान नहीं होगा। भुगतान की प्रक्रिया जारी है। उत्तर प्रदेश से केन्द्र सरकार को मानदेय भुगतान के लिये लगातार पत्र लिखा गया है। मैं यह नहीं बता सकता कि कितनी बार लिखा गया है।"
हमने बकाया रकम और इस देरी के लिए मिलने वाले ब्याज बारे में जानने के लिए अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को मेल किया है जिसका जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट में उसे शामिल किया जायेगा।
शिक्षकों को नहीं मिल रहा मानदेय, फिर भी करेंगे नयी नियुक्ति
एक तरफ सरकार कई वर्षों से मानदेय का भुगतान नहीं कर रही है वहीं दूसरी तरफ नये शिक्षकों की भर्ती के लिये विज्ञापन प्रकाशित करने के आदेश जारी कर रही है। बिजनौर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी की तरफ़ से प्रबंधकों को पत्र जारी कर शिक्षकों की भर्ती करने को कहा जा रहा है।
मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षक एकता समिति के प्रदेश सचिव मोहम्मद इरफ़ान खान बिजनौर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी द्वारा जारी पत्र को दिखाते हैं। जिसमें मदरसा प्रबंधकों से नयी गाइड लाइन के अनुसार हिंदी, अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान एवं सामाजिक विषय हेतु अलग-अलग विषयों के अधिकतम तीन अध्यापकों का चयन करने के लिये कहा गया है।
इरफ़ान खान कहते हैं, "बकाया मानदेय का भुगतान करने की माँग को लेकर पांच वर्षों से हम धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार के पास हमें देने के लिये पैसा नहीं है। ऐसे में नये शिक्षकों की भर्ती क्यों की जा रही है? यदि सरकार मानदेय नहीं दे पा रही है तो बेहतर होगा कि हमारा बकाया भुगतान कर योजना को ही बंद कर दे।"