यूपी का वह जिला जहां हैं सबसे कम PHC, लेकिन फिर भी पड़े हैं 'बीमार'
नेपाल सीमा से लगे श्रावस्ती जिले में सिर्फ 11 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनमें से कई केंद्रों में न तो इलाज के लिए डॉक्टर हैं और न ही इन तक पहुंचने के लिए सड़क।
श्रावस्ती (यूपी): उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति हमेशा प्रदेश की आलोचना का कारण बनती रही है, लेकिन हाल ही में जारी 'ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी' में भारत के सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले राज्य के बारे में कुछ आंकड़े दिए गए हैं, जो इसकी ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की तरफ इशारा करते हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) पर चिकित्सकों की संख्या जरूरत से 170 ज्यादा है। हालांकि, इंडियास्पेंड ने जब यूपी के सबसे कम पीएचसी वाले जिले श्रावस्ती का दौरा किया तो पाया कि यहां के स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टरों की कमी के साथ-साथ और भी कई समस्याओं से ग्रस्त हैं।
श्रावस्ती के 11 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से हमने सात प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का दौरा किया। यह सात प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र श्रावस्ती के चार ब्लॉक में मौजूद हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों की अलग-अलग समस्याएं हैं। कहीं सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी चीजें नहीं हैं तो कहीं डॉक्टर और नर्स की कमी है। खास तौर से अंदरूनी इलाकों में मौजूद स्वास्थ्य केंद्र बेहाल हैं, यहां कर्मचारियों की तैनाती भी कम है।
डॉक्टर, स्टाफ की कमी सबसे बड़ा विषय
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में कुल 2,923 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इन स्वास्थ्य केंद्रों के लिए एक चिकित्सक प्रति केंद्र के हिसाब से 2,923 एलोपैथिक चिकित्सकों (MBBS) की ज़रुरत है, लेकिन राज्य में इन केंद्रों पर 3,093 चिकित्सक कार्यरत हैं, यानी जरूरत से ज्यादा।
हालांकि जमीनी हकीकत इन आंकड़ों से अलग कहानी बयां करती है। श्रावस्ती के सात प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में से हमें सिर्फ चार केंद्रों पर ही एमबीबीएस डॉक्टरों की तैनाती मिली, बाकी तीन केंद्रों पर ये पद खाली हैं।
श्रावस्ती नेपाल बॉडर से लगा हुआ जिला है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की आबादी 11.17 लाख है और यहां सिर्फ 11 पीएचसी हैं, जोकि यूपी में सबसे कम है।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पीएचसी के लिए गाइडलाइन जारी की है। इसके मुताबिक एक पीएचसी पर कम से कम 12 कर्मचारी होने चाहिए। इसमें डॉक्टर, नर्स, एएनएम, फार्मासिस्ट, लैब टेक्निशियन जैसे पद हैं। हालांकि श्रावस्ती के जिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को हमने देखा उसमें से किसी में यह संख्या पूरी नहीं दिखी।परेवपुर पीएचसी: खेतों के बीचों बीच एक पीले रंग की इमारत नजर आ रही थी। यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र था, लेकिन इस तक पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं बनी थी। गांव के एक लड़के ने बताया कि अस्पताल तक जाने के लिए खडंजा बना है, उसी से जाना होगा।
अस्पताल के रास्ते पर हमारी मुलाकात कुस्मा (42) और जसोदा (30) से हुई। यह दोनों महिलाएं अपने गांव धरसावां से करीब 4 किमी. की दूरी पैदल तय कर अस्पताल आई थीं। कुस्मा को लो ब्लड प्रेशर की दिक्कत थी और जसोदा को बार बार बुखार आ रहा था। इस खराब हाल में भी दोनों महिलाएं मई की तपती दोपहरी में अस्पताल तक पैदल आने को मजबूर दिखीं।
जसोदा कहती हैं, "रास्ता लंबा है, इसलिए कई जगह बैठकर सुस्ताते हुए आए हैं।" खेतों के बीच बने इस स्वास्थ्य केंद्र की सबसे बड़ी समस्या सड़क की है। अच्छी सड़क न होने की वजह से इस अस्पताल को डिलिवरी पॉइंट नहीं बनाया गया। वहीं, सड़क की दिक्कत की वजह से यहां मरीज भी दूसरे अस्पतालों की तुलना में कम आते हैं।
यहां की सबसे बड़ी समस्या अच्छी सड़क का न होना है। इसकी वजह से मरीजों को काफी दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है।
पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर डॉ. शरद अवस्थी कहते हैं, "सड़क की वजह से बहुत दिक्क्त है। कई बार ऊपर (अधिकारियों को) लिखकर दिया, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है। इसकी वजह से अस्पताल को डिलिवरी पॉइंट भी नहीं बनाया गया, क्योंकि खराब सड़क से गर्भवती महिलाओं का आना सही नहीं रहेगा।"
इसके अलावा यहां सफाई कर्मी भी 1500 रुपए पर रखा गया है, जिसकी वजह से सफाई का काम भी प्रभावित रहता है। डॉ. शरद बताते हैं, "कई बार ऐसा होता है कि हमें ही कमरों की सफाई करनी पड़ती है।"
पीएचसी पर कुल आठ कर्मचारी हैं। एक एमबीबीएस डॉक्टर, दो आयुष डॉक्टर, एक स्टाफ नर्स, एक फार्मासिस्ट, एक लैब टेक्नीशियन, एक वार्ड ब्वॉय और एक सफाई कर्मी जिसे 1,500 रुपए महीना दिया जाता है।
सोनवा पीएचसी: इस पीएसची की अपनी खुद की इमारत नहीं है। दरअसल 2019 में पीएचसी से लगकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सोनवा की इमारत बनी। फिलहाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की शुरुआत नहीं हुई है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनने के दौरान पीएचसी की इमारत को लैब के लिए ले लिया गया। इसके बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल ऑफिसर ने पीएचसी को अपने दो कमरे दिए हैं, जिसमें पीएचसी चल रहा है।
सोनवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल ऑफिसर डॉ. राकेश भारती बताते हैं, "अभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की शुरुआत नहीं हुई है। ऐसे में पीएचसी को दो कमरे दिए हैं। जब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की शुरुआत हो जाएगी तब वह कमरे हमें वापस लेने होंगे।"
डॉ. राकेश ने बताया कि पीएचसी के पास अपना खुद का एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात डॉक्टर ही पीएचसी के मरीजों को देख रहे हैं।
इस पीएचसी पर कुल 10 कर्मचारी हैं। एक आयुष डॉक्टर, चार स्टाफ नर्स, एक लैब टेक्नीशियन, एक एएनएम, एक हेल्थ असिस्टेंट, एक वार्ड ब्वॉय, एक सफाई कर्मचारी।
हरिहरपुर रानी पीएचसी: यह पीएचसी पूरे ब्लॉक की इकलौती पीएचसी है। इसकी वजह से इसका दायरा काफी बढ़ जाता है। पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर डॉ. अरुण कुमार बताते हैं, "हरिहरपुर रानी ब्लॉक में एक ही पीएचसी होने की वजह से हमारा दायरा बढ़ जाता है। इसे ऐसे समझें कि करीब 40 से 45 हजार मरीजों पर यह पीएचसी है। अभी तो मरीज कम आ रहे हैं, लेकिन वायरल के सीजन में एक दिन में 100 से ज्यादा मरीज आ जाते हैं। हमारे यहां एएनएम की पोस्ट भी खाली है।"
इस पीएचसी पर कुल नौ कर्मचारी हैं। एक एमबीबीएस डॉक्टर, दो आयुष डॉक्टर, एक स्टाफ नर्स, एक फार्मासिस्ट, एक लैब टेक्निशियन, एक हेल्थ असिसटेंट, एक वॉर्ड ब्वॉय, एक सफाई कर्मचारी।
हरिदत्तनगर गिरंट पीएचसी: इस पीएचसी पर जगह की दिक्कत है। इसके साथ ही इलाज के लिए जरूरी मशीनों की भी कमी है। पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर डॉ. विनोद कुमार ने बताया कि "पीएचसी पर ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है। कोरोना के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर कोविड अस्पताल पर भेज दिया गया, उसके बाद से सिलेंडर नहीं मिला।"
यह पीएचसी डिलिवरी पॉइंट भी है। यहां महीने में करीब 30 डिलिवरी होती है। पीएचसी पर तैनात नर्स अल्पना कुमारी ने बताया, "लेबर रूम में थाई सपोर्ट टेबल, बर्थिंग रूम वॉर्मर जैसे सामान नहीं है। यह होना चाहिए।"
इस पीएचसी पर कर्मचारियों की संख्या सात है। एक एमबीबीएस डॉक्टर, एक आयुष डॉक्टर, एक स्टाफ नर्स, एक फार्मासिस्ट, दो एनएनएम, एक सफाई कर्मचारी।
जमुनहा पीएचसी: यह पीएचसी नेपाल बॉर्डर के पास स्थित है। अंदरूनी इलाके में इकलौता सरकारी अस्पताल होने की वजह से यहां मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा रहती है। यहां कोई एमबीबीएस डॉक्टर नहीं है। दो आयुष डॉक्टर मिलकर इस पीएचसी को चला रहे हैं।
पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर डॉ. सुमन बाबू थारू बताते हैं, "हम पर बहुत ज्यादा लोड है, ऊपर से स्टाफ की भी बहुत कमी है। यहां हर दिन 90 से 100 मरीज आते हैं। साल 2018 में मैंने एक साल में करीब 35 हजार मरीज देखे हैं। मरीज देखते हुए सुबह से कब शाम हो जाती है पता नहीं चलता।"
इस पीएचसी पर अन्य पीएचसी के मुकाबले डिलिवरी भी ज्यादा होती है। डॉक्टरों के मुताबिक हर महीने 70 से ज्यादा डिलिवरी होती है। उसके हिसाब से लेबर रूम बहुत छोटा है। इस इलाके में मृतजन्म (Stillbirth) की समस्या काफी है।
यहां कर्मचारियों की संख्या सिर्फ पांच है। इसमें दो आयुष डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट, दो एएनएम, एक सफाई कर्मचारी जिसे 1,500 रुपए महीने पर रखा गया है।
कटरा पीएचसी: यह पीएचसी कस्बे में स्थित है। ऐसे में यहां सुविधाएं तो ठीक हैं, लेकिन मरीजों की संख्या अन्य पीएचसी के मुकाबले काफी कम है। क्योंकि लोगों को पास इलाज के लिए और भी विकल्प मौजूद हैं।
इस पीएचसी पर कर्मचारियों की संख्या सात है। एक एमबीबीएस डॉक्टर, दो स्टाफ नर्स, एक फार्मासिस्ट, एक एएनएम, एक वार्ड ब्वॉय, एक सफाई कर्मचारी।
तिलकपुर पीएचसी: यह पीएचसी अंदरूनी इलाके में मौजूद है। पिछले एक साल से इस पीएचसी पर कोई डॉक्टर नहीं है। एक डॉक्टर जो कि किसी अन्य पीएचसी का भी काम देखते हैं, उन्हें मई महीने में इस पीएचसी का भी चार्ज दिया गया है।
हम जब इस पीएचसी पर पहुंचे तो यहां केवल तीन कर्मचारी मिले, लैब टेक्नीशियन, एएनएम और वार्ड ब्वॉय। यहां फार्मासिस्ट भी नहीं है। एक कमरे में दो बेड दिखे, लेकिन पंखा नहीं था। इसके अलावा कर्मचारियों ने बताया कि यहां पानी की बड़ी समस्या है। नल से खराब पानी आता है, ऐसे में उन्हें खुद के पैसे खर्च करके बाहर से पीने का पानी मंगाना पड़ रहा है।
जनसंख्या के हिसाब से कम पीएचसी
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार हर 30 हजार की आबादी पर एक पीएचसी होना चाहिए। हालांकि श्रावस्ती में इस गाइडलाइन का पालन होते नजर नहीं आता। श्रावस्ती की जनसंख्या करीब 11 लाख है। इस हिसाब से करीब 36 पीएचसी होने चाहिए, लेकिन श्रावस्ती में इससे काफी कम 11 पीएचसी हैं। यानी एक लाख पर एक पीएचसी।
पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर भी ज्यादा लोड की बात कहते नजर आते हैं। जमुनहा पीएचसी में तो यह साफ तौर से देखने को भी मिलता है। हर पीएचसी के मेडिकल ऑफिसर यह कहते हैं कि उनके यहां 40 से 50 हजार की आबादी को सेवाएं दी जा रही हैं, जो कि मानकों से बहुत ज्यादा है।
अंदरूनी इलाकों की समस्या ज्यादा
श्रावस्ती में पीएचसी को देखने पर यह एहसास होता है कि जो पीएचसी कस्बे या सड़क किनारे हैं वहां समस्याएं कम हैं। इन पीएचसी पर कर्मचारियों की संख्या भी और पीएचसी के मुकाबले बेहतर है। हालांकि जो पीएचसी अंदरूनी इलाकों में है, वहां की समस्या कई गुना बढ़ जाती है।
जमुनहा, हरिदत्तनगर गिरंट और तिलकपुर ऐसी ही पीएचसी हैं जहां कर्मचारियों की कमी देखने को मिलती है। साथ ही सुविधाओं का भी बहुत अभाव है।
अंदरूनी इलाकों में स्थित पीएचसी पर स्टाफ की कमी को लेकर हमने श्रावस्ती के सीएमओ एपी भार्गव से बात की। इस बारे में वो कहते हैं, "अंदरूनी इलाकों में जहां ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं, वहां लोग पोस्टिंग नहीं चाहते हैं। यह एक वजह है कि दूरदराज के पीएचसी पर स्टाफ की कमी है। यह भी सच है कि हमारे यहां स्टाफ की बहुत कमी है, जैसे तैसे काम चला रहे हैं। ऐसा सुनने में आ रहा कि निकट भविष्य में भर्तियां होने वाली हैं, अगर ऐसा हो जाता है तो संख्या बढ़ जाएगी।"
पीएचसी की कम संख्या पर एपी भार्गव कहते हैं, "पीएचसी की संख्या राज्य स्तर से तय होती है। फिलहाल कुछ सब सेंटर अपडेट किए जा रहे हैं। अगर आगे पीएचसी की संख्या बढ़ाने का कोई आदेश आता है तो वो भी किया जाएगा।"
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