मानसून में देरी, कम बारिश की वजह से धान रोपाई में पिछड़ा यूपी
यूपी में 25 जुलाई तक सामान्य से 54% कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। 25 जुलाई तक 304.1 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, इसके सापेक्ष केवल 139.1 मिलीमीटर बारिश हुई है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश (यूपी) में इस साल बारिश कम हुई है और इसका सीधा असर धान की रोपाई पर हुआ है। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल के मुकाबले इस बार 14 जुलाई तक 8.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई नहीं हो पाई। पिछले साल 14 जुलाई तक करीब 35.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई हुई थी और इस बार 26.98 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हो पाई है।
आंकड़ों से जाहिर होता है कि खरीफ के मौसम में धान की खेती प्रभावित हुई है। बारिश न होने के कारण किसान धान की नर्सरी सूखने और रोपाई के पिछड़ने से परेशान हैं। वहीं, डीजल पंप से पानी चलाने के कारण खेती का खर्च भी बढ़ रहा है।
यूपी के पीलीभीत जिले के दुधिया खुर्द गांव के किसान मनबीर सिंह (42) ने करीब 7 एकड़ में धान की खेती की है। मनबीर ने जून के दूसरे हफ्ते में धान की नर्सरी लगा दी थी। उन्हें उम्मीद थी कि जुलाई की शुरुआत तक बारिश होगी और तब वो नर्सरी से धान को खेत में लगा देंगे, लेकिन बारिश नहीं हुई। मजबूरन मनबीर को डीजल पंप से पानी चलाकर धान की रोपाई करनी पड़ी
मनबीर कहते हैं, "इस बार मौसम साथ नहीं दे रहा। हमें 20 से 25 दिन में नर्सरी से धान को खेत में रोपना होता है। इसमें हम देर नहीं कर सकते। बारिश हो जाती तो कुछ राहत होती, डीजल पर ज्यादा पैसे खर्च नहीं होते।"
मनबीर को एक एकड़ पर करीब 500 रुपए प्रति दिन के हिसाब से पानी चलाना पड़ रहा है। जुलाई के पहले सप्ताह में धान की रोपाई के बाद से वो एक एकड़ पर पानी के लिए करीब 5 हजार रुपए खर्च कर चुके हैं। अगर बारिश होती तो उनका यह खर्च कम हो जाता।
यूपी में बारिश क्यों कम हुई?
यूपी में बारिश कितनी कम हुई है इसका अंदाजा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों से होता है। 1 जून से मानसून की शुरुआत होती है, तब से लेकर 25 जुलाई तक यूपी के 75 जिलों में से केवल 5 जिलों में सामान्य बारिश हुई है। यह जिले हैं, वाराणसी, एटा, हापुड़, आगरा और फिरोजाबाद। बाकी के 70 जिलों में कम और बहुत कम बारिश रिकॉर्ड की गई।
यूपी में 25 जुलाई तक सामान्य से 54% कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। 25 जुलाई तक 304.1 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, इसके सापेक्ष केवल 139.1 मिलीमीटर बारिश हुई है। यह आंकड़े राज्य में कम बारिश की कहानी बयान कर रहे हैं।
इस साल यूपी में बारिश क्यों कम हुई? इसका जवाब जानने के लिए इंडियास्पेंड ने राज्य कृषि मौसम केंद्र के प्रभारी अतुल कुमार सिंह से बात की। अतुल बताते हैं, "20 जून को यूपी में मानसून आ गया था, लेकिन सोनभद्र के पास कमजोर पड़ गया। 28 जून तक सोनभद्र के आगे मानसून नहीं बढ़ा। इसके बाद जब बंगाल की खाड़ी से मानसून की दूसरी सर्ज आई तो यह क्रियाशील हुआ और आगे बढ़ना शुरू हुआ। 29 जुलाई के बाद से यूपी में कई जगह बारिश हुई, लेकिन कुछ दिन बाद ही ओडिशा पर एक कम दबाव का क्षेत्र बन गया और मानसून कमजोर पड़ गया।"
ओडिशा पर बने कम दबाव के क्षेत्र की वजह से मानसून ट्रफ (द्रोणी) अपनी सामान्य स्थिति से दक्षिण की तरफ खिसक गई। ऐसे में जून के आखिर और जुलाई की शुरुआत में जो मानसून ट्रफ उत्तर भारत पर थी, वो मध्य भारत की तरह खिसक गई। इसलिए मध्य भारत में अच्छी बारिश देखने को मिली। हालांकि इस दौरान यूपी में बारिश नहीं हुई। अतुल यह मानते हैं कि अभी तक यूपी में सामान्य से कम बारिश हुई है। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि अगले दो महीने (अगस्त सितंबर) ठीक ठाक बारिश होगी, क्योंकि मानसून ट्रफ अपनी सामान्य स्थिति में आ गया है।
मानसून के साथ जो गड़बड़ी हुई वो जुलाई के पहले हफ्ते में हुई। यह वक्त धान की रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। कई किसान इस उम्मीद में थे कि जुलाई के पहले और दूसरे हफ्ते में बारिश होगी तो धान की रोपाई कर देंगे, लेकिन बारिश नहीं हुई और मजबूरन उन्हें डीजल पंप से पानी चलाकर धान की रोपाई करनी पड़ी। इससे उनका खर्च बढ़ गया।
गोरखपुर के पानापार गांव के प्रियांशु शुक्ला (28) ने 5 बीघे में धान की फसल लगाई है। प्रियांशु बताते हैं, "हम बारिश का इंतजार कर रहे थे। हमारी नर्सरी तैयार थी, लेकिन जब पानी नहीं बरसा तो डीजल पंप से पानी लगाकर रोपाई की।"
हालाँकि प्रियांशु को मनबीर के मुकाबले डीजल पम्प से पानी चलाना ज़्यादा महंगा पड़ता है। इस क्षेत्र की ज़मीन में काम नमी और आसपास के खेत सूखे होने के कारण प्रियांशु को सिर्फ एक बीघा में पानी चलाने में करीब 500 रुपए का खर्च आता है।
प्रियांशु कहते हैं, "एक बीघे में करीब 4 से 5 कुंटल धान होगा। यानी करीब 5 हजार रुपए का धान। अभी तक एक बीघे में करीब 2 हजार रुपए खर्च हो गए हैं। इसमें बड़ा हिस्सा पानी पर खर्च हुआ है। अगर बारिश हो जाती तो यह खर्च बच जाता।"
किसानों के सामने मजबूरी है कि वो बारिश का ज्यादा दिन इंतजार नहीं कर सकते। धान की तय समय पर रोपाई करने पर ही अच्छी फसल होने की उम्मीद रहती है। यह समय जुलाई का पहला और दूसरा हफ्ता होता है। हालांकि कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल 14 जुलाई तक करीब 35.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई हुई थी और इस बार 26.98 लाख हेक्टेयर में ही धान की रोपाई हो पाई है। यानी करीब 8.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई नहीं हो पाई।
इस बारे में यूपी के कृषि विभाग में निदेशक (सांख्यिकी और फसल बीमा), राजेश गुप्ता कहते हैं, "इस बार राज्य में पिछले साल की अपेक्षा धीमी गति से धान की रोपाई हुई है। क्योंकि इस बार बारिश सही वक्त पर नहीं हुई। हालांकि हमारे यहां 80% क्षेत्र में सिंचाई के पर्याप्त साधन मौजूद हैं, किसान उससे रोपाई कर रहे हैं। 19 जुलाई के बाद से बारिश शुरू हुई है, उम्मीद है आगे हम रोपाई के तय लक्ष्य को हासिल कर लेंगे।"
कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, यूपी सरकार ने इस साल 59 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई का लक्ष्य रखा है।
रोपाई में देरी के नुकसान
धान की रोपाई में देरी होने से कई तरह के नुकसान झेलने पड़ते हैं। इस बारे में राष्ट्रीय पादप जैव प्रोद्योगिकी अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. दीपक सिंह कहते हैं, "धान की रोपाई में अगर देर करेंगे तो अगली फसल के लिए पर्याप्त वक्त नहीं मिलेगा। जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते में धान की रोपाई हो जानी चाहिए। रोपाई में देरी होने पर रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है। चावल के दाने की गुणवत्ता पर भी असर होता है और इसका असर चावल की बिक्री के सही दाम पर भी होगा।"
दीपक सिंह धान की रोपाई में देरी होने पर चिंता भी जाहिर करते हैं। उनका मानना है कि धान की रोपाई में जितनी देर होगी उसका असर धान के उत्पादन पर होगा। ऐसे में आगे कम उत्पादन देखने को मिल सकता है।
कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में साल 2021-22 में 159 लाख मीट्रिक टन चावल का उत्पादन हुआ। इस बार सरकार ने 178 लाख मीट्रिक टन चावल के उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
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