देहरादून: उत्तराखंड देश की बड़ी नदियों और जल स्त्रोतों के लिए जाना जाता है लेकिन विडम्बना यह है कि हर साल गर्मी के दिनों में प्रदेश के लोग, खासकर पहाड़ी इलाकों में रहने वाले, पानी की समस्या से जूझने को मजबूर होते हैं।

पानी की समस्या प्रदेश में व्याप्त पलायन के मुख्य कारणों में से एक है लेकिन फिर भी उत्तराखंड के पहाड़ों में रहने वाले लोगों की प्यास बुझाने के लिए आधे-अधूरे प्रयास ही दिखाई देते हैं। जल शक्ति मंत्रालय के द्वारा चलाये जाने वाले जल जीवन मिशन के अंतर्गत आने वाली हर घर जल योजना भी कुछ इस स्थिति में ही है।

हर घर जल परियोजना जिसकी घोषणा 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा लालकिले की प्राचीर से की गयी| सभी घरों तक पानी की पहुंच इस योजना का मुख्य उद्देश्य है| अगर उत्तराखंड राज्य की बात करें तो जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 15,18,115 परिवार हैं जिनमें से 15 अगस्त 2019 तक मात्र 1,30,325 घरों में पानी की सुविधा थी लेकिन वर्तमान में जल जीवन मिशन के तहत 9,34,259 घरों में नल लग चुके हैं जो राज्य के कुल ग्रामीण परिवारों का 61.54% है।

जल जीवन मिशन के तहत सबसे ज़्यादा देहरादून जिले में 94.89% घरों में नल लग चुके हैं और हरिद्वार जिले में सबसे कम 39.06%; लेकिन यहां पर सवाल है कि क्या ये 61.54% ग्रामीण परिवार हर घर जल योजना का लाभ उठा रहे हैं?

केदार घाटी में मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा मैखंडा गाँव रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लॉक में आता है। मैखंडा में लगभग 250 परिवार रहते हैं, जिनके लिये गांव में केवल एक ही नल है। पानी से सम्बंधित अपनी सभी प्रकार की जरूरतों के लिये गांव के लोग इसी नल पर निर्भर रहते हैं। मैखंडा में दो साल पहले घरों में हर घर जल योजना के तहत नल लगे थे लेकिन इन नलों में अभी तक पानी नहीं आया है।

जल जीवन मिशन के डैशबोर्ड के अनुसार मैखंडा गाँव में 238 परिवार रहते हैं जिनमें से 192 यानिकि 80% से ज़्यादा घरों में नल से जल प्रदाय होता है। लेकिन, वास्तविकता में पूरे गाँव की पानी की ज़रूरतों को सिर्फ एक ही नल पूरा करता है।

मैखंडा आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा है और इस गांव के अधिकांश लोग पिछड़ी और अनुसूचित जाती से आते हैं। प्रकृति की गोद में बसे इस गांव की अर्थव्यस्था मुख्य रूप से दिहाड़ी मजदूरी और खेती किसानी पर ही निर्भर करती है। नेशनल हाईवे 107 पर बसे होने के कारण इस गांव में कुछ सुविधाएँ जैसे स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और किराना दुकानें तो आसानी से मिल जाती हैं लेकिन आज भी इस गांव के लोग पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।

देश के दुसरे इलाकों की तरह ही मैखंडा में भी पानी लाने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से घर की महिलाओं और लड़कियों की ही होती है।

बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली मुस्कान बताती हैं कि हर रोज सुबह के समय घर के कामों के लिए पानी उन्ही को लाना होता है क्योंकि घर के पुरुष सुबह ही काम की तलाश में घर से निकल जाते हैं और माँ को घर के और भी काम करने होते हैं।

"हमारे गांव में केवल एक ही नल है जिसके कारण हमेशा ही नल पर पानी लेने वालों की भीड़ लगी होती है जिसके चलते पानी लाने में समय भी बहुत लगता है इस वजह से मुझे कई बार स्कूल के लिए भी देरी हो जाती है जिसका असर मेरी पढ़ाई पर भी पड़ता है। गर्मी और बरसात के समय में पानी की समस्या और भी बढ़ जाती है क्योंकि गर्मियों में बहुत थोड़ा-थोड़ा पानी आता है और बरसात के समय पाइप लाइन टूट जाती जिसको सही करने में हफ्तों लग जाते हैं," मुस्कान बताती हैं।

लग गए हैं नल, जल स्त्रोत का कोई नहीं ठिकाना

समस्या का कारण जानने के लिये रुद्रप्रयाग जिले के हर घर जल योजना के नोडल अधिकारी नवल कुमार सिंह से पूछा गया तो उन्होंने बताया, "हर घर जल परियोजना के तहत पहले से उपलब्ध जल स्त्रोत से जल को हर घर तक पहुँचाना था लेकिन मैखंडा ग्राम सभा के जल स्त्रोत में पर्याप्त पानी नहीं होने के कारण नलों को मुख्य लाइन से अभी नहीं जोड़ा गया है। हमारे द्वारा दूसरे जल स्त्रोत को खोजा जा रहा है।"

मैखंडा की ही तरह प्रदेश के अन्य इलाकों में भी पीने के पानी के लिए लोगों को रोज संघर्ष करना पड़ता है।

टिहरी जिले के नरेंद्र नगर ब्लॉक के गांव रोंदेली में भी पानी की भारी किल्लत है। "हमारे गांव में हर घर जल योजना के तहत नल भी लगाए गए हैं लेकिन उनको अभी तक पानी के स्त्रोत से नहीं जोड़ा गया है। कारण पूछने पर अधिकारी बताते हैं कि हमारे गांव के लिये अभी कोई जल स्त्रोत निर्धारित नहीं किया गया है," गांव के प्रधान दिनेश सिंह बताते हैं।

उनका कहना है कि उनके गांव के आसपास जल के अच्छे स्रोत हैं लेकिन उनका इस्तेमाल ठीक से नहीं किया जा रहा है।

"हमारे गांव के ऊपर पानी का एक प्राचीन स्त्रोत है जिसमे बांज की जड़ों से निकलने वाला साफ पानी आता है; वहीं दूसरी ओर गांव के नीचे हेबल नदी में भी पर्याप्त मात्रा में पानी है लेकिन इसके बावजूद भी हमारे गांव में पानी की भारी किल्लत है," दिनेश कहते हैं।

हर घर जल योजना के अनुसार 55 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रति दिन उपलब्ध कराया जाना है और यदि किसी जल स्त्रोत से ये आपूर्ति नहीं होती है तो गांव की पानी की लाइन को दुसरे किसी पानी के स्त्रोत से जोड़ा जायेगा। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के बारे में यह जानना भी जरुरी है कि गर्मी बढ़ने के साथ जलस्त्रोतों में पानी की मात्रा बड़ी तेजी से घटती जाती है।

दिनेश इस समस्या के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं, "हमारे गांव में 'विरोंदा' से पानी आता है जो कि बांज के पेड़ो की जड़ो से निकलने वाली धारा है, लेकिन प्रशासन की गलत नीतियों के कारण इस स्त्रोत के पानी को कुछ और गाँवों में भी दिया जाता है जिसके चलते न तो हमारे गांव के लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल पाता है और न ही बाकी के गांवों को।"

गदेरे (नहर), झरने और धाराएं ही प्राचीन समय से पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लोगों की पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करते आये हैं लेकिन पिछले कुछ समय से पानी के इन स्त्रोतों में पानी की निकासी लगातार घटी है। इन क्षेत्रों में किये गए तमाम शोध भविष्य में आने वाले पेयजल संकट की ओर इशारा करते हैं।

रोंदेली गांव में हर घर जल योजना के तहत लगे नल। फोटो -कंचन

"किसी भी योजना को शुरू करने से पहले उस योजना के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) बनती है, मेरे द्वारा हमारे गांव के लिए हर घर जल योजना की रिपोर्ट विभाग से मांगी गयी ताकि पता लग सके कि इन नलों को पानी के किस स्त्रोत से जोड़ा जा रहा है और योजना पूर्ण न हो पाने के कारणों का पता चल सके। लेकिन विभाग DPR देने को तैयार ही नहीं है," दिनेश बताते हैं।

इसी प्रकार चमोली जिले के पैनी गांव में भी क्षमता से अधिक नल लगाने के कारण जिस प्रकार गांव में पानी की समस्या बढ़ी है उसको देखकर तो ऐसा ही लगता है जैसे हर घर जल परियोजना को जल्बाजी में बिना किसी पूर्व अध्यन के किया जा रहा है।

"घरो में नया नल तो लगा है लेकिन पानी का स्रोत वही पुराना है प्रत्येक घर में नल होने से लोग इस पानी का इस्तेमाल अपने घर के कामों के साथ-साथ घर के आसपास के खेतो की सिंचाई के लिए भी करने लगे हैं जिसके कारण पानी की खपत और बढ़ी है पर जल आपूर्ति नहीं। यह एक नयी समस्या आज हमारे गांव के लोगों के सामने खड़ी है," पैनी गांव के मनमोहन बताते हैं।

मनमोहन बताते हैं कि हमारे गांव में पानी तो पहले भी आता था लेकिन जिस स्त्रोत से पानी आता है जो एक खुला गदेरा है, अगर थोड़ी भी बारिश होती है तो इसके पानी में मिट्टी मिल जाती है और पानी गंदला हो जाता है ऐसे में गाँव के लोगों को धारा से पानी लाना होता है जो गांव से काफी दूर है।

पानी की उपलब्धता नहीं, प्रबंधन है समस्या

ऐसा नहीं है कि राज्य में पानी की कोई कमी है। हमारे देश की दो बड़ी नदियाँ गंगा, यमुना और इन नदियों की अधिकांश सहायक नदियाँ भी उत्तराखंड के ग्लेशियर से ही निकलती है जो उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में पानी की पूर्ती करती है। लेकिन ऐसा क्यों है कि पानी की प्रचुर उपलब्धता होने के बाबजूद भी राज्य के अधिकांश पर्वतीय गांवों में पीने के पानी की समस्या बनी रहती है?

इसी वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस के उपलक्ष में एक सेमिनार को संबोधित करते हुए, डायरेक्टर जनरल उत्तराखंड स्टेट कॉउन्सिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी (यूकॉस्ट) डॉ राजेंद्र डोभाल ने बताया कि उत्तराखंड राज्य में पानी की कमी नहीं है बल्कि सही प्रकार से पानी का प्रबंधन नहीं हो पाने के कारण जनता के सामने पीने के पानी की समस्या बनी हुई है।

साल 2018 की कैग रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड उन प्रदेशों में आता है जहां 50% से भी कम जनसंख्या के लिए साफ़ और उचित मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध हो। पानी की कमी के साथ ही प्रदेश भूजल के अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई और सूखते हुए झरनों और जलाशयों की समस्याओं से भी जूझ रहा है।

इस विषय पर यूकॉस्ट में डिस्ट्रिक्ट कोर्डिनेटर और डीएवी कॉलेज में रसायन विभाग में प्रोफ़ेसर डॉ प्रशांत सिंह बताते है, "हमारे कई शोधार्थी राज्य बनने के बाद से पेयजल की स्थिति पर लगातार शोध कर रहे हैं। ये सभी शोध भविष्य में गंभीर पेयजल संकट की ओर इशारा करते हैं। इसलिए हमें अपने प्राकृतिक जल स्त्रोतों सुरक्षित रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।"

डॉ प्रशांत सिंह आगे बताते हैं कि जल स्त्रोतों के घटते जल स्तर के लिए ग्लोबल वार्मिंग के साथ पहाड़ों में अनियोजित रूप से बन रही सड़कें, निर्माण कार्यों के लिए किये जाने वाले विस्फोटों के साथ पहाड़ों में बढ़ता चीड़ का जंगल जिम्मेदार है। हमें अपने प्राकृतिक जल स्त्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए जरुरी कदम उठाने होंगे| जिसके लिए हमारे द्वारा पानी की डिस्चार्ज की कमी को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर काम किया जा रहा है।

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