पिछले कई वर्षों से हर साल सर्दी के मौसम में दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 500 से ऊपर चला जाता है। जबकि सुरक्षित हवा में सांस लेने के लिए AQI का लेवल 0 से 50 के बीच होना चाहिए। हम समाचार चैनलों पर इसके बारे में सुनते हैं, सरकारें अल्पकालिक उपाय करती हैं, लेकिन जो लोग हर दिन इसका खामियाजा भुगतते हैं, उन तक इन उपायों का फायदा बहुत कम पहुंच पाता है। ऐसा नहीं है कि कारों में चलने वाले लोग या अधिकांश समय कार्यालयों से बाहर काम करने वाले लोग ही प्रभावित होते हैं। गरीब, सड़क पर काम करने वाले और पहले से ही प्रदूषण फैलाने वाले स्त्रोतों जैसे निर्माण कार्य जैसी जगहों पर काम करने वाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। विडंबना यह है कि इनमें से अधिकतर लोग वायु प्रदूषण में बहुत कम योगदान देते हैं- उनके पास न तो कार है और न ही बिजली के बड़े बिल हैं। रोहित उपाध्याय का यह वीडियो आपको आगे कहानी बता रहा।

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