नई दिल्लीः क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है? जब ये प्रश्न बिहार के लोगों से पूछा गया तो पाया गया की प्रदेश में पांच में से चार महिलाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया है। बिहार में ऐसी महिलाएं जिन्होंने कम से कम एक बार इंटरनेट का प्रयोग किया है 20.6% हैं जबकि पुरुषों में ये आंकड़ा 43.6% है जो की महिलाओं से दुगने से भी अधिक है ।

भारत में पहली बार सरकार के एक सर्वेक्षण में लोगों ने यह पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है। यह प्रश्न पांचवें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) का हिस्सा था, जिसके आंकड़े हाल ही में जारी किये गये हैं। सर्वेक्षण पिछले वर्ष किया गया था।

बिहार में उन महिलाओं का सबसे कम प्रतिशत था जिन्होंने कहा कि उनके पास इंटरनेट तक पहुंच है (20.6%), सिक्किम में सबसे अधिक था (76.7%)। पुरुषों में, मेघालय में सबसे कम (42.1%) और गोवा में सबसे अधिक (82.9%) था।

नए एनएफएचएस के आंकड़े अधूरे हैं -- इसमें केवल 22 राज्यों से परिणाम हैं, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्य इसमें शामिल नहीं हैं। इस कारण से सर्वेक्षण के आंकड़ों का पूरी तरह निष्कर्ष निकालना अभी संभव नहीं है। इस लेख में जिन परिणामों पर चर्चा की गई है वे केवल इस पहले चरण से हैं, और इनमें पुरुषों और महिलाओं के बीच, राज्यों के बीच और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े अंतर दिख रहे हैं।

हालांकि, दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के फैलने के बाद से कामकाज, शिक्षा और मेडिकल कंसल्टेशन के बड़े हिस्से करोड़ों लोगों के लिए ऑनलाइन हो गए हैं और यह चलन आगे भी जारी रह सकता है। भारत सरकार की भी अधिक भारतीयों को ऑनलाइन लाने की अपनी डिजिटल महत्वाकांक्षा है। इसे देखते हुए, सर्वेक्षण के इस विशेष प्रश्न के लिए डेटा महत्वपूर्ण है। सरकार की अपनी योजनाओं और ट्रैक्टर किराए पर लेने और मौसम की जानकारी जैसी सर्विसेज देने से जुड़ी किसानों के सरकार की ऐप के लिए भी इंटरनेट तक पहुंच महत्वपूर्ण है।

टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया से डेटा के अनुसार, 2019 में, भारत में 71.87 करोड़ इंटरनेट या ब्रॉडबैंड यूजर थे, यह संख्या 2018 की तुलना में 19% अधिक थी।

क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है?

इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कार्य करने वाली इंटरनेट डेमोक्रेसी प्रोजेक्ट की डायरेक्टर, एंजा कोवाक्स ने कहा, "यह प्रश्न दो तरीकों से मददगार है। पहला यह है कि इससे इंटरनेट के बारे में जागरूकता का एक संकेत मिलता है। दूसरा यह एक उपयोगी आधार रेखा हैः भविष्य के सर्वेक्षणों में, ये आंकड़े बढ़ने चाहिए, जिससे उस जागरूकता के और फैलने का संकेत मिलेगा।"

उन्होंने इसके साथ ही कहा कि इंटरनेट के साथ भारत के जुड़ाव को वास्तव में समझने के लिए केवल यह पता लगाना कि क्या लोगों ने एक बार भी "कभी" इंटरनेट का इस्तेमाल किया है, पर्याप्त जानकारी नहीं है।

एनएफएचएस के पास इंटरनेट से जुड़े कुछ और प्रश्न भी थेः

"[क्या आपने] इंटरनेट पर परिवार नियोजन के बारे में कोई चीज देखी है"?

"जानकारी के कौन से स्रोतों से आपको एचआईवी/एड्स के बारे में पता चला?", जिसके लिए इंटरनेट उत्तर के विकल्पों में शामिल था।

कोवाक्स ने बताया, "ये आंकड़े नियमित इस्तेमाल के बारे में कुछ नहीं कहते, जो वास्तव में महत्वपूर्ण है, लेकिन ये केवल इस बारे में हैं कि किसने इंटरनेट का कभी भी इस्तेमाल किया है।" उनका कहना था, "इस मामले में ये अंतिम नहीं हैं और इसके आगे पड़ताल करने की जरूरत होगी। वास्तव में, यह प्रश्न 'क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है?' के बाद एक और प्रश्न होना चाहिए था जो यह जानने की कोशिश करता कि यह इस्तेमाल कितना नियमित या हाल का था। इंटरनेट का भी इस्तेमाल करना जागरूकता का एक अच्छा संकेत है लेकिन यह आवश्यक तौर पर वास्तविक इस्तेमाल नहीं है।"

इंटरनेट के इस्तेमाल के आंकड़ों की कमी से कुछ विशेषज्ञ हैरान नहीं है। सामाजिक समानता के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने पर कार्य करने वाली आईटी फॉर चेंज की कार्यकारी निदेशक, अनिता गुरूमूर्ति ने कहा, "मुझे आंकड़ों में इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल देखने की उम्मीद नहीं थी। निजी इंटरनेट सुविधाएँ इंटरनेट के इस्तेमाल के बारे में सोचने का एकमात्र तरीका नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों और हॉस्पिटल जैसे सार्वजनिक संस्थानों में स्थिर ब्रॉडबैंड, मोबाइल से इंटरनेट पहुंच कहानी का केवल एक हिस्सा है। बिजली और ब्रॉडबैंड में पर्याप्त निवेश के बिना, डिजिटल तौर पर सक्षम बनाना संभव नहीं है। व्यक्तिगत इस्तेमाल का चलन ऐसी संस्थागत मजबूती के साथ चलना चाहिए।"

ऑनलाइन स्वतंत्रता के मुद्दों को उठाने वाली इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक और वकील, अपार गुप्ता ने कहा कि इंटरनेट के इस्तेमाल में ग्रामीण बनाम शहरी और पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानताएं पहले से सामने हैं। उन्होंने बताया, "केवल ब्रॉडबैंड इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने से ग्रामीण जनसंख्या या महिलाओं के बीच इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल का अपने आप परिणाम नहीं मिलेगा।" इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसके लिए स्थानीय समुदायों और गैर लाभकारी संस्थाओं के साथ कार्य करने जैसे "बड़े कदमों" की जरूरत होगी, जिससे यह सुनिश्चित किया जाए कि ऑफलाइन असमानताएं ऑनलाइन पर न जाएं।

इंटरनेट पर महिलाएं बनाम पुरुष

"क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है?", इस प्रश्न पर महिलाओं का प्रदर्शन पुरुषों की तुलना में काफी कम था। बिहार में इंटरनेट का कभी इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या 20.6% के साथ सबसे कम थी। राज्य में 79.4% महिलाओं ने कहा कि वे कभी ऑनलाइन नहीं रहीं। इसके विपरीत सिक्किम था जहां 76.7% महिलाओं ने कहा कि उन्होंने इंटरनेट का इस्तेमाल किया है।

इंटरनेट का सबसे कम इस्तेमाल करने वाले पुरुषों वाला राज्य मेघालय था, जहां 42.1% पुरुषों ने ही इसके लिए हां में उत्तर दिया। गोवा में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों की संख्या 82.9% के साथ सबसे अधिक थी।

इंटरनेट तक पहुंच को लेकर पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता को समझाने के लिए गुरूमूर्ति ने शिक्षा, रोज़गार और आमदनी में ऑफलाइन लैंगिक असमानताओं का कारण बताया जो ऑनलाइन भी लैंगिक असमानताएं तय करता है। गुरूमूर्ति ने कहा, "लैंगिक आधार पर उत्पीड़न, ट्रोलिंग और ऑनलाइन पुलिसिंग से स्व-अनुशासन के तौर पर नकारात्मक परिणाम होते हैं, जबकि युवा महिलाओं की अपने व्यक्तित्व और पहचान को मजबूत करने के लिए इंटरनेट के जरिए सामाजिक मेल-जोल बनाने में दिलचस्पी हो सकती है।"

मोबाइल फोन के जरिए महिलाओं का सशक्तिकरण

हाल के एनएफएचएस में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए इंटरनेट के इस्तेमाल पर प्रश्न शामिल था, जबकि पिछले सर्वेक्षण में विशेष तौर पर महिलाओं के लिए एक प्रश्न दिया गया थाः क्या उनके पास एक मोबाइल फोन है और क्या वे उस पर एसएमएस पढ़ सकती हैं। इस प्रश्न को हाल के सर्वेक्षण में दोहराया गया है।

प्रश्न को "महिलाओं के सशक्तिकरण" के वर्ग में अन्य प्रश्नों के साथ शामिल किया गया था। अन्य प्रश्नों में पूछा गया था कि क्या महिलाएं परिवार के निर्णयों का एक हिस्सा थी, क्या उनके पास एक बैंक एकाउंट है, जमीन की मालिक हैं और उन्हें कैसे भुगतान मिला।

2015-16 के चौथे एनएफएचएस के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 61.85% महिलाओं, ग्रामीण इलाकों में 36.9%, और देश भर में 45.9% महिलाओं ने कहा था कि उनके पास एक मोबाइल फोन है जो "वे खुद इस्तेमाल करती हैं।" मोबाइल फोन रखने वाली महिलाओं में से दो-तिहाई ने यह भी बताया था कि वे उस पर मैसेज पढ़ सकती हैं।

इस वर्ष 22 राज्यों से एनएफएचएस आंकड़ों में महिलाओं के मोबाइल फोन के इस्तेमाल के लिहाज से एक सुधार दिखा है। 2015-16 में आंध्र प्रदेश में केवल 36.2% महिलाओं ने कहा था कि उन्होंने मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया है, जो देश में सबसे कम था। हाल के आंकड़ों में, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाली महिलाओ का सबसे कम प्रतिशत गुजरात में 48.8% दर्ज किया गया। देश में महिलाओं के मोबाइल फोन का सबसे अधिक इस्तेमाल पिछले एनएफएचएस में केरल में 81.2% का था। इस वर्ष, गोवा में 91.2 पर्सेंट के साथ महिलाओं की ओर से मोबाइल फोन का इस्तेमाल सबसे अधिक दर्ज किया गया।

चौथे एनएफएचएस में आयु के साथ मोबाइल फोन रखने में बढ़ोतरी दिखी हैः यह 15-19 वर्ष की आयु वाली महिलाओं के लिए 25%, 25-29 वर्ष के आयु वर्ग के लिए 56% था। हालांकि, आयु के साथ मैसेज पढ़ने की क्षमता घटी हैः 15-19 की आयु वाली महिलाओं के लिए 88% और 40-49 वर्ष के आयु वर्ग के लिए 48%। मोबाइल फोन रखने और इसका इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में अधिक था, और इसमें संपत्ति के साथ बढ़ोतरी हुई है।

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