नोएडा: रिया* (45) बड़े शहरों में घरेलू सेवाएं देने वाली कंपनी 'अर्बन कंपनी' में एक ब्यूटीशियन के तौर पर कार्यरत हैं। वह उस दिन के बारे में बात कर रही हैं जब उनके एक ग्राहक ने उनकी सेवाओं के बदले 1500 रुपये का भुगतान रोक दिया था।

यह समस्या तब पैदा हुई जब रिया को यह पता चला कि ग्राहक के पास नकद पैसे नहीं हैं, वहीं रिया के पास ऑनलाइन भुगतान का कोई भी ऐप नहीं था। रिया ने इंडियास्पेंड को बताया, "मुझे अपने पैसे लेने के लिए 10 दिन बाद फिर उनके घर जाना पड़ा, इसके अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।"

रिया अपने फोन पर ऑनलाइन बैंकिंग और भुगतान सेवाओं के ऐप इंस्टॉल नहीं करना चाहती थी क्योंकि उन्हें लगता था कि वह इन सेवाओं का प्रयोग करने में सहज नहीं हैं और ना ही उनके पास इनके सही प्रयोग की जानकारी है। उन्होंने अपना पहला स्मार्टफोन बस दो साल पहले 2020 में ही खरीदा था, जब वह एक कर्मचारी के रूप में अर्बन कंपनी में शामिल हुई थीं। उनके पति के पास भी स्मार्टफोन नहीं है।

लेकिन इस घटना के बाद रिया को लगा कि उन्हें ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना चाहिए। इसलिए उन्होंने अपने एक विश्वसनीय ग्राहक से अपने फोन पर भुगतान ऐप इंस्टॉल करने के लिए मदद मांगी।

कोरोना महामारी ने इस बात पर और बल दिया है कि सूचना, स्वास्थ्य, शिक्षा, ई-कॉमर्स और वित्तीय सेवाओं के लिए मोबाइल और इंटरनेट तक पहुंच बहुत जरूरी है। लेकिन डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देने वाली वैश्विक संस्था GSMA द्वारा हाल ही में जारी 'मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2022' से पता चलता है कि महामारी ने "एक बड़े डिजिटल विभाजन" को भी उजागर किया है। यह रिपोर्ट कहता है कि मोबाइल और इंटरनेट तक पहुंच के बिना ऐसे लोगों के और भी पीछे छूट जाने का खतरा है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) के अनुसार भारत में आधे से अधिक महिलाओं (53.9%) के पास मोबाइल फोन तो है, लेकिन इनमें से केवल 22.5% महिलाएं ही वित्तीय लेनदेन के लिए मोबाइल का उपयोग करती हैं।

'इनिशिएटिव फॉर व्हाट वर्क्स टू एडवांस वीमेन एंड गर्ल्स इन द इकॉनमी' (Initiative for What Works to Advance Women and Girls in the Economy- IWWAGE) की अर्थशास्त्री सोना मित्रा कहती हैं, "यह स्वभाविक है कि जब लगभग 50% महिलाओं के पास मोबाइल ही नहीं है तो वे इंटरनेट का उपयोग भी बहुत कम करती होंगी और इसमें भी एक जेंडर गैप आपको साफ दिखेगा।" एनएफएचएस-5 के ही आंकड़े बताते हैं कि केवल एक तिहाई भारतीय महिलाएं ही इंटरनेट का प्रयोग करती हैं।

12वीं से अधिक की शिक्षा पाने वाली 72% से अधिक महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं, वहीं पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई करने वाली महिलाओं में यह आंकड़ा सिर्फ 8% है। बड़ी उम्र की महिलाओं की तुलना में युवा महिलाओं/लड़कियों के इंटरनेट उपयोग की संभावना अधिक होती है। इसमें भी जिनके पास पैसा और संसाधन अधिक है, उनके ही इंटरनेट प्रयोग करने की संभावना अधिक है।

अवसर से वंचित

भारत में डिजिटल जेंडर गैप (डिजिटल लैंगिक विभाजन) स्पष्ट है और यह साफ दिखता है।

एशियन डेवलपमेंट बैंक और सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन की 2022 की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, "इस अंतर का अनिवार्य रूप से यह भी अर्थ है कि महिलाएं श्रम बाजार में उन अवसरों से वंचित हो जाती हैं, जहां पर डिजिटल कुशलता की मांग होती है।"

जब तक भारत की महिलाएं मौजूदा अंतर को पाटने और तेजी से आगे बढ़ने में सक्षम नहीं होंगी, तब तक यह उद्यमिता के लिए उनकी संभावनाओं को भी प्रभावित करता रहेगा। यह डिजिटल जेंडर गैप महिलाओं द्वारा संचालित व्यवसायों को निम्न-तकनीक और कम राजस्व पैदा करने वाले क्षेत्रों जैसे- खाद्य और हस्तशिल्प तक ही सीमित कर देता है, जहां पर भविष्य में प्रगति करने के बहुत ही कम अवसर होते हैं।

कोरोना महामारी आने से पहले ही भारत में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों में कमी आ रही थी। निजी शोध संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार 2017 और 2020 के बीच लगभग 2.1 करोड़ महिलाएं श्रम मानचित्र से बाहर हो गई थीं।

कोरोना महामारी ने महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर को और भी प्रभावित किया। प्रतिशत के संदर्भ में देखा जाए तो इस दौरान पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाओं ने नौकरियां खोईं। 2020 के अंत तक पुरुषों के 2% की तुलना में महिलाओं के श्रम बल में 13% तक की कमी हुई।

लेकिन इस साल की शुरुआत में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस-PLFS) ने महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी को चार वर्षों के अपने उच्चतम स्तर 32.5% पर पाया। हालांकि जैसा कि हमारी पिछली रिपोर्ट का विश्लेषण कहता है कि यह मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं की श्रम शक्ति में वृद्धि थी। इसके अलावा यह इस तथ्य से भी प्रेरित था कि आर्थिक संकट महिलाओं को बहुत कम वेतन वाला काम करने के लिए मजबूर करता है।

यह रिपोर्ट महामारी के बाद भारत की श्रम शक्ति में महिलाओं की वास्तविक स्थिति की जांच करने वाली हमारी सीरीज़ 'वीमेन एट वर्क 3.0' का एक हिस्सा है। इस सीरीज की पहली चार रिपोर्ट को यहां, यहां, यहां और यहां पढ़ें।

डिजिटल इंडिया: भारतीय महिलाओं के लिए एक दूर की कौड़ी

भारत का डिजिटल जेंडर गैप मुख्य रूप से तीन कारकों का परिणाम है। इसमें से पहला ग्रामीण-शहरी विभाजन है। इकोनॉमिक रिसर्च समूह 'निकोर एसोसिएट्स' की मिताली निकोर कहती हैं कि शहरी महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाओं के पास अपना खुद का मोबाइल फोन कम होता है।

शहरी महिलाओं में भी असंगठित महिला श्रमिकों की तुलना में संगठित लोगों में ही डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया अधिक आम है। उन्होंने कहा, "डेटा और अन्य सेवाओं की लागत असंगठित शहरी महिला श्रमिकों को भी इसके व्यापक उपयोग की क्षमता को सीमित करती है।"

दूसरा कारक आय-आधारित विभाजन है। निकोर ने बताया कि अगर कोई परिवार मोबाइल इंटरनेट का उपयोग करता है तो उसे कम से कम अपनी मासिक आय का 3% खर्च करना पड़ सकता है, जो कि किसी भी कम आय वाले परिवार के लिए बहुत अधिक है।

तीसरा कारक सामाजिक मानदंड है। भारत में मोबाइल फोन को शादी से पहले महिलाओं की प्रतिष्ठा के लिए एक जोखिम के रूप में देखा जाता है। वहीं शादी के बाद कहा जाता है कि मोबाइल फोन से परिवार का देखभाल प्रभावित हो रहा है। निकोर कहती हैं, "महिलाओं की ऑनलाइन गतिविधियां भी अक्सर पुरुष रिश्तेदारों द्वारा ही नियंत्रित होती हैं।"

इसे रिया के मामले से ही समझते हैं। रिया खुद बताती हैं, "मैंने अपने बचत से स्मार्टफोन खरीदा था। मैं अपने वेतन से ही मोबाइल डेटा का उपयोग करती हूं, मेरी कंपनी इसका भुगतान नहीं करती है। इसके अलावा कंपनी अपने या किसी भुगतान ऐप को चलाने का प्रशिक्षण भी नहीं देती है।"

डिजिटल एम्पावरमेंट फाउंडेशन (DEF), दिल्ली द्वारा 2021 में असम, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा की 10,000 शहरी और ग्रामीण महिलाओं पर एक सर्वे किया गया। इस सर्वे के अनुसार 82% ग्रामीण महिला उद्यमी डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं। इनमें से 80% महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कभी भी पेटीएम, गूगल पे या भीम जैसे डिजिटल भुगतान ऐप का उपयोग नहीं किया है।

रोजगार समाधानों पर केंद्रित एक वैश्विक शोध संगठन 'जस्ट जॉब्स नेटवर्क' की अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक सबीना दीवान कहती हैं, "हालांकि डिजिटल भुगतान सुविधाओं में वृद्धि हो रही है और इसके साथ ही स्मार्टफोन का भी प्रयोग बढ़ा है। लेकिन महिलाओं द्वारा इनके उपयोग में अभी भी व्यापक कमी है।"

जीएसएमए द्वारा जारी मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में 2019 में पुरुषों के लिए स्मार्टफोन का स्वामित्व 36%, 2020 में 41% और 2021 में 49% था। वहीं महिलाओं के स्मार्टफोन का उपयोग अभी तक इस गति से नहीं बढ़ा है। 2019 में स्मार्टफोन के उपयोग का महिला स्वामित्व 14%, 2020 में 25% और 2021 में 26% था।

2020 में केवल 30% वयस्क महिलाओं ने मोबाइल इंटरनेट का उपयोग किया। रिपोर्ट के अनुसार, मोबाइल इंटरनेट के पुरुष उपयोगकर्ता 2020 में 45% से बढ़कर 2021 में 51% हो गए।

क्या रिमोट कार्यपद्धति से यह अंतर पटेगा?

पद्म श्री पुरस्कार विजेता फुलकारी कलाकार 65 वर्षीय लाजवंती कौर अभी भी डिजाइनिंग के लिए कलम और कागज का उपयोग करती हैं। वह जानती हैं कि डिजाइनिंग से लेकर भुगतान तक मोबाइल फोन बहुत उपयोगी है। लेकिन वह कहती हैं, "मैं 5वीं कक्षा तक ही पढ़ी हूं, मुझे नहीं पता कि इसका मैं कैसे इस्तेमाल करुंगी?"

पद्मा श्री विजेता लाजवंती कौर अपनी दूकान में साड़ी पर काम करते हुए ।

कौर दिल्ली हाट में अपनी बनाई साड़ियों की दुकान चलाती हैं। कौर एक शिक्षिका भी हैं। वह अपने छात्रों को अपने स्टोर में कढ़ाई करना सीखाती हैं। ये सभी छात्र बिना किसी डिजिटल उपकरण की मदद से यह शिल्प सीखते हैं। उनके काम की बिक्री उनके दिल्ली स्थित स्टोर या देश भर में होने वाले प्रदर्शनियों में की जाती है। इसके लिए कौर को यात्रा करने की जरूरत होती है। यह एक ऐसा कार्य है जो उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनके लिए कठिन होता जा रहा है। वह अपने व्यवसाय को ऑनलाइन करने के खिलाफ हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि बिचौलिए उनके कर्मचारियों का शोषण करेंगे और उनके मुनाफे का बड़ा हिस्सा अपनी जेब में डाल देंगे।

दीवान कहती हैं कि अमेजॉन और इट्सी जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जो शिल्प बेचते हैं, महिलाओं को लाभ प्रदान करने के लिए हैं, लेकिन उनकी नीतियां हमेशा पारदर्शी नहीं होती हैं। उन्होंने बताया, "ई-कॉमर्स कुछ महिलाओं को अपनी घरेलू जिम्मेदारियों के साथ-साथ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है। यह उन्हें व्यापक बाजार तक पहुंचने में भी सक्षम बनाता है। लेकिन प्रतिस्पर्धी बाजार में बिना शोषण के अपने विशिष्ट उत्पादों को बेचना भी एक तरह की चुनौती है।"

निकोर के अनुसार, "महिलाओं का व्यवसाय, भोजन और कपड़े जैसे निम्न-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं और उन्हें स्वयं सहायता समूहों या राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) से धन प्राप्त होने की अधिक संभावना होती है।"

कहा जा रहा है कि रिमोट या हाइब्रिड जॉब, जिसमें डिजिटल साक्षरता के साथ-साथ फोन या लैपटॉप की आवश्यकता होती है, महिलाओं के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म 'अपवर्क' के एक सर्वे के अनुसार, कोविड -19 महामारी ने रिमोट वर्किंग (कहीं से भी काम) को और अधिक सामान्य बना दिया है।

निकोर कहती हैं, "सामाजिक मानदंडों के दृष्टिकोण से महिलाओं के लिए यह हाइब्रिड काम बहुत उपयुक्त है। यदि आप उन्हें घर से बाहर नहीं जाने दे सकते हैं, तब भी वे नौकरी पा सकती हैं। हालांकि ऐसे परिदृश्य में उनका डिजिटल साक्षर होना भी बहुत जरूरी है, नहीं तो वे उन नौकरियों से वंचित रह जाएंगी।"

भुगतान और मार्केटिंग के डिजिटल होने से नए रोजगार भी सृजित हुए हैं। हालांकि महिलाएं इन नौकरियों को पाने में धीमी रही हैं। निकोर ने कहा, "हमने दिल्ली स्थित विश्वविद्यालयों के अनेक ऐसे छात्रों से भी मुलाकात की है, जो पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन तक नहीं दे सकते हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों की स्थिति की कल्पना ही की जा सकती है।"

'भविष्य का काम'

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 'जेंडर, टेक्नोलॉजी एंड द फ्यूचर ऑफ वर्क रिपोर्ट, 2018' के अनुसार, "ऑटोमेशन के कारण विकसित देशों के सेवा और बिक्री क्षेत्र में काम करने वाली महिला लिपिकों की नौकरियों के जाने का खतरा बढ़ा है।"

IWWAGE की मित्रा के अनुसार, "ऑटोमेशन के बढ़ते उपयोग के कारण नौकरियों के एक नए वर्ग को जन्म मिलेगा, जिसके लिए अलग तरह के कौशल की आवश्यकता होगी। महिलाओं को इन नौकरियों को पाने के लिए कई लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम बनाने होंगे।"

निकोर ने कहा, "अगर सभी महिलाओं को नहीं तो कम से कम 30 साल से कम उम्र की महिलाओं को डिजिटल रूप से साक्षर होने की जरूरत है। हालांकि उनके लिए अपने दम पर नए कौशल हासिल करना मुश्किल है क्योंकि वे गंभीर गरीबी का भी सामना कर रही होती हैं।"

'2019 के टाइम यूज सर्वे' के अनुसार भारत में महिलाएं लगभग 299 मिनट (दिन में लगभग पांच घंटे) अवैतनिक घरेलू कामों पर खर्च करती हैं। पुरूषों के लिए यह आंकड़ा महज 97 मिनट है। इससे महिलाओं के पास खुद सीखने और घर से बाहर वैतनिक काम करने के लिए बहुत कम समय बचता है।

निकोर ने जोर देकर कहा कि गरीबी और भूख को खत्म करने की तरह डिजिटल साक्षरता को भी नीति निर्माताओं द्वारा प्राथमिकता देने की जरूरत है।

हालांकि डिजिटल साक्षरता के लिए बुनियादी साक्षरता भी होनी चाहिए, लेकिन भारत में पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं की तुलना में अधिक है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 65% महिलाओं की तुलना में 82% भारतीय पुरुष साक्षर थे।

दीवान ने कहा, "इंटरनेट का उपयोग करने के लिए सभी को बुनियादी शिक्षा और डिजिटल साक्षरता की आवश्यकता होती है। यहां तक कि फेसबुक का उपयोग भी उन महिलाओं के लिए मुश्किल होता है, जो पढ़ नहीं सकती हैं। तकनीक और डिजिटल साक्षरता तक महिलाओं की पहुंच पुरुषों की तुलना में बहुत सीमित है।" .

भारत में डिजिटल साक्षरता के निम्न स्तर को संबोधित करने के लिए केंद्र सरकार ने 2015 में प्रधान मंत्री डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएम-दिशा) और 2017 में प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएम-जीदिशा) शुरू किया। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य देश के हर घर के एक सदस्य को बुनियादी डिजिटल साक्षरता प्रदान करना है।

पीएम-जीदिशा द्वारा 4 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों को प्रमाणित किया गया है, वहीं 1.1 करोड़ से अधिक उम्मीदवारों को राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन के तहत प्रशिक्षित भी किया गया है। लेकिन ये कार्यक्रम विशेष रूप से महिलाओं पर लक्षित नहीं हैं। 2011 की जनगणना में मोबाइल इंटरनेट के पुरुष और महिला उपयोगकर्ताओं के बीच का अंतर 2021 में 41% था।

महिलाओं के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए निजी पहल में IWWAGE का कार्यक्रम भी शामिल है, जिसने 24 राज्यों में 25,576 महिलाओं को मोबाइल इंटरनेट के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया है। इस कार्यक्रम के लिए पैन कार्ड के लिए आवेदन करना, एनआरएलएम, प्रधान मंत्री राष्ट्रीय स्वास्थ्य जैसी सरकारी योजनाओं में नामांकन करना, बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत खाद्य सब्सिडी का लाभ उठाने जैसा प्रशिक्षण शामिल है। IWWAGE का अनुमान है कि इस पहुंच का कुल वित्तीय मूल्य लगभग 4000 करोड़ रुपये है।

व्हाट्सऐप ने कैसे पूजा को उनका व्यवसाय बढ़ाने में मदद की?

झारखंड के खूंटी की पूजा देवी (26) अपने पति महेश कुमार महतो के साथ टेंट शॉप चलाती हैं। उनकी यह दुकान 2017 में खुली थी और टेंट के सामान के अलावा आर्केस्ट्रा उपकरणों को भी किराए पर देती हैं। शुरुआत में पूजा व्यक्तिगत रूप से अपने ग्राहकों के घर जाती थीं ताकि वह यह सुनिश्चित कर सकें कि उनकी आवश्यकताएं पूरा हो रही हैं। हर बार जब उनसे कुछ कहा जाता था, तो वह अपने चार कर्मचारियों को यह बताने के लिए बुलाती कि किस वस्तु की आवश्यकता है और उसे कहां पहुंचाया जाना है।

लेकिन 2019 में पूजा DEF (डीईएफ ) के डिजिटल सार्थक कार्यक्रम की एक बुनियादी डिजिटल साक्षरता पाठ्यक्रम में शामिल हो गईं, जो महिलाओं की डिजिटल क्षमता बढ़ाने के लिए USAID (यूएलएआईडी) द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना है।

तब से पूजा व्हाट्सएप, फेसबुक और टेलीग्राम के माध्यम से अपनी ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। जब उन्हें कोई ऑर्डर मिलता है, तो वह एक व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से अपने कर्मचारियों को बताती है और वे ग्राहक को सामान डिलीवर कर देते हैं। इससे पूजा को और अधिक व्यवसाय करने के लिए स्वतंत्रता मिली है।

पूजा और पूजा जैसी अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित करने वाली खूंटी की डीईएफ जिला समन्वयक सरिता देवी ने बताया कि शुरू में ग्रामीण अपने घर की महिलाओं और लड़कियों को प्रशिक्षण कार्यक्रम में भेजने के लिए अनिच्छुक थे।

उन्होंने इंडियास्पेंड को बताया, "कोरोना लॉकडाउन के दौरान माता-पिता को अपनी बेटियों को पढ़ाई जारी रखने के लिए फोन देना पड़ता था, लेकिन अब वे इनका अन्य कामों में भी प्रयोग करती हैं।" उन्होंने उम्मीद जताई कि ये नई डिजिटल साक्षर लड़कियां अब दूसरी लड़कियों को प्रशिक्षित करेंगी, ताकि वे भी इंटरनेट एक्सेस का लाभ उठा सकें।

डिजिटल साक्षर होने से पहले पूजा को हर साल 1 से 2 लाख रुपये का लाभ होता था, जो अब 4 लाख रुपये हो गया है। अपनी बचत से उन्होंने हाल ही में एक कार खरीदी है।

उनके व्यवसाय का विस्तार अब राजधानी रांची तक फैल गया है। पूजा ने अभी तक पेमेंट्स ऐप को नहीं आजमाया है, लेकिन सरिता उनकी प्रगति से खुश हैं।

सरिता ने कहा, "वह शर्मीली थी और शायद ही कभी बोलती थी, अब वह अधिक आश्वस्त हो गई है।"

*- अनुरोध के कारण नाम को बदला गया है