अगले 10 वर्षों में गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोत करेंगे भारत के ऊर्जा क्षमता में आधे योगदान
अमृतसर के पास व्यास शहर में राधा स्वामी मुख्यालय छत सौर ऊर्जा संयंत्र का एक दृश्य। इस संयत्र से में 11.5 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है।
वर्ष 2027 तक आने वाले दस वर्षों में भारत की स्थापित विद्युत क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन ( नवीकरणीय ऊर्जा, परमाणु और बड़े पनबिजली ऊर्जा संयंत्र ) की हिस्सेदारी आधे से अधिक (56.5 फीसदी) होगी। यह जानकारी दिसंबर 2016 में जारी तीसरी राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी 3) के मसौदे में सामने आई है।
मसौदे में कहा गया है कि यदि भारत 2022 तक नवीनीकरण उर्जा के 175 गीगावाट क्षमता वाले संयत्र को स्थापित करने का लक्ष्य हासिल करता है तो इसे कम से कम 2027 तक वर्तमान में निर्माणाधीन 50 गीगावॉट के अलावा कोयला आधारित क्षमता को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होगी। हम बता दें कि भारत वर्ष 2015 पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2022 तक नवीनीकरण उर्जा के 175 गीगावाट क्षमता वाले संयत्र को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ऊर्जा मंत्रालय प्रत्येक पांच वर्षों में एक राष्ट्रीय विद्युत योजना (नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान या एनइपी ) बनाती है। इसमें पिछले पांच वर्षों से हुई प्रगति की समीक्षा की जाती है। साथ ही अगले 10 वर्षों के लिए पूरे भारत में बिजली की सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने के व्यापक उद्देश्य के साथ विस्तृत कार्य योजना तैयार की जाती है। साथ ही यह भी सुनिश्चित की जाती है कि उचित कीमतों पर कुशलतापूर्वक बिजली की आपूर्ति संभव हो।s.
एनईपी-3 बताता है कि कैसे सरकार भारत के बिजली क्षेत्र को 2017 से 2022 तक के पांच वर्षों में और अगले पांच वर्षों यानी 2027 तक विकसित करने की उम्मीद करती है।
तेजी से बढ़ेगी अक्षय ऊर्जा
दिसंबर 2016 में जब एनईपी-3 का मसौदा जारी किया गया था, तब भारत ने अक्षय ऊर्जा के 50 गीगावॉट से अधिक क्षमता वाले संयत्र स्थापित किए थे। इसमें 57.4 फीसदी पवन ऊर्जा और 18 फीसदी सौर उर्जा के संयत्र थे। इससे भारत की कुल स्थापित क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 15 फीसदी हो गया।
वर्ष 2022 तक क्षमता बढ़ाकर 175 जीडब्ल्यू करने के लिए वर्ष 2015 में निर्धारित राष्ट्रीय लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं है।
इसके लिए अक्षय उर्जा के स्त्रोतों को तेजी से बढ़ाना होगा। इसके लिए सौर उर्जा से 100 गीगावॉट, पवन उर्जा से 60 गीगावॉट और शेष जैव ईंधन और बायोमास जैसे स्रोतों से।
एनईपी3 बताता है कि न केवल वर्ष 2022 का लक्ष्य हासिल किया जाएगा, बल्कि अक्षय ऊर्जा क्षमता 2027 में 275 गीगावॉट तक पहुंच जाएगी। यह 70 गीगावॉट के एनईपी 2 के आकलन से तीन गुना ज्यादा है। एनईपी3 के आकलन सार्वजनिक रूप से घोषित लक्ष्य की तुलना में काफी अधिक महत्वाकांक्षी हैं।
भारत की राष्ट्रीय बिजली योजना में अक्षय उर्जा लक्ष्य का विकास
Source:Central Electricity Authority, Draft National Electricity Plan 2016
भारत ने इस संबंध में अपना लक्ष्य पेरिस में प्रस्तावित विश्व पर्यावरण संधि के लिये ‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ (यूएनएफसीसीसी) के सामने रखा। इसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों व दुष्प्रभावों से निपटने की विस्तृत जानकारियों व उपायों का उल्लेख है। भारत ने इसके लिए अपना राष्ट्रीय लक्षित स्वैच्छिक योगदान (आईएनडीसी) तैयार किया । पेरिस में वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सभी देशों को अपना-अपना आईएनडीसी देना जरूरी था। लिहाजा अगले डेढ़ दशक में उत्सर्जन को करीब एक-तिहाई घटाने का वायदा पूरा हो सकता है। पर इस दौरान अजीवाश्मीय ईंधन से 40 प्रतिशत विद्युत उत्पादन करने का लक्ष्य व्यावहारिक नहीं लगता।
वैसे एनईपी-3 काफी अधिक उत्साहित करने वाला है । अनुमान है कि वर्ष 2021-22 तक गैर-जीवाश्म उर्जा शक्ति कुल स्थापित क्षमता का 46.8 फीसदी और वर्ष 2027 तक 56.5 फीसदी बढ़ जाएगा।
अगर एनईपी 3 का लक्ष्य तय समय सीमा में पूरा हो गया तो वर्ष 2024 के करीब भारत में कुल स्थापित अक्षय उर्जा क्षमता कोयला आधारित उर्जा क्षमता से ज्यादा हो जाएगी।
कम कार्बन के मामले में आईएनडीसी की तुलना में एनईपी 3 अधिक महत्वकांक्षी
Source: Central Electricity Authority, United Nations Framework Convention on Climate Change
ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाएं हवा और सौर के तेजी से बदलते अर्थशास्त्र से प्रभावित होती हैं, जिनकी कीमत तेजी से गिर रही हैं। फरवरी 2017 में सौर ऊर्जा की नीलामी 2.97 रुपए से 2.979 रुपए प्रति किलोवाट-घंटे (केडब्ल्यूएच) के कम रिकॉर्ड पर हुआ था। मार्च 2017 में पवन ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी के तुरंत बाद, विजेता बोली ने 3.46 / किलोवाट प्रति घंटे के सभी समय की कम कीमत का हवाला दिया।
निकट भविष्य में सोलर और वायु उर्जा ग्रिड समानता तक पहुंच जाने की संभावना है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 28 जनवरी 2017 को विस्तार से बताया है।
परमाणु और बड़े पनबिजली जैसे अन्य शून्य उत्सर्जन स्रोतों के लिए एनईपी 3 ने 2027 तक क्षमता में वृद्धि करने की बात कही है। परमाणु उर्जा के 7.6 गीगावॉट क्षमता वाले और जलविद्युत उर्जा के 27.3 गीगावॉट क्षमता वाले संयत्र को स्थापित करने की योजना है। इससे पहले मार्च 2016 तक 6.7 गीगावॉट और 44.4 गीगावॉट वाले पनबिजली संयत्र लगेंगे। चल रहे और अनुमोदित परियोजनाएं 2017-22 के दौरान पूरी हो जाएंगी।
कोयला आधारित उर्जा क्षमता वृद्धि पर विराम?
नवीकरणीय क्षमता बढ़ने की उम्मीद करते हुए, एनईपी 3 का कहना है कि 10 साल तक 2027 के लिए किसी नए कोयला आधारित उर्जा संयत्र की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि फिलहाल 50 गीगावॉट क्षमता वाले संयत्र निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं और वर्ष 2017 और 22 के बीच उनसे उर्जा मिलने लगेगी।
एनईपी-3 के अनुमानों के मुताबिक 2022-27 अवधि में अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए करीब 44 गीगावॉट वाले कोयले पर आधारित उर्जा की आवश्यकता होगी कोयले के लिए एनईपी के अनुमान भारत के आईएनडीसी से भिन्न हैं, जिसने सुझाव दिया है कि देश को 100 गीगावॉट की आवश्यकता होगी और संभवत: 2030 तक अतिरिक्त कोयला-आधारित क्षमता की 300 गीगावॉट के बराबर होगी।
वैसे कोल उर्जा में विस्तार में फिलहाल गिरावट की उम्मीद नहीं है क्योंकि ऊर्जा के तेजी से विस्तार का मतलब है कि जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली संयंत्रों का उपयोग पहले से ही कम है। एनईपी 3 दिखाता है कि औसत कोयला संयंत्र लोड कारक ( उपयोग मापने का तरीका ) पिछले चार वर्षों में लगभग 70 फीसदी से घटकर सिर्फ 62 फीसदी हो गया है, जो "असाधारण रूप से निम्न स्तर" है। इसके बारे में वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है।
क्षमता अनुसार भारतीय उर्जा का मिश्रित उत्पादन
Note: India currently has 50 GW of coal under construction, and this expansion in shown in the 2022 figures. But no additional new coal power stations will be needed before 2027.
Source: Institute for Energy Economics and Financial Analysis, Draft National Electricity Plan 2016
भारत में कोयला आधारित उर्जा उपयोग अनुमान से भी कम
नवीकरणीय क्षमता विश्व स्तर पर बढ़ रही है। भारत सहित विकासशील देशों को सस्ते कोयले का उपयोग जारी रखने की उम्मीद है।
अंतरराष्ट्रीय तेल और ऊर्जा बाजारों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और आंकड़े प्रदान करने वाला एक अंतरसरकारी संगठन ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ ने 2015 इंडिया ऊर्जा आउटलुक में बताया है कि, “ दूरी के अनुसार,बिजली उत्पादन और उद्योग में कोयले की खपत में वृद्धि, भारत को वैश्विक कोयला उपयोग में वृद्धि का सबसे बड़ा स्रोत बनाती है। ”
यह मानते हुए कि भारत की बिजली व्यवस्था हर साल 5 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ मांग में बढ़ोतरी के आकार में चौगुनी होगी। इसमें अनुमान लगाया गया है कि भारत में कोयले की क्षमता में 438 गीगावॉट की संचयी क्षमता के साथ 2040 तक व्यापक वृद्धि होगी। वर्तमान में, भारत की ग्रिड और वितरण कंपनियों को इस तरह की क्षमता में वृद्धि करने के लिए कोई योजना नहीं है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 13 अप्रैल 2017 को बताया है।एनईपी 3 और आईएए के अनुमानों में समानता दिखती है कि भारत की कोयला क्षमता में वर्ष 2022 तक की वृद्धि वर्तमान में निर्माणाधीन 50 गीगावॉट क्षमता वाले संयत्र से जुड़ी है।लेकिन एनईपी 3 यह सुझाव देता है कि आईईए के 2022 के लिए आकलन -जो सिर्फ दो साल पहले किया था - को नीचे समायोजित करने की आवश्यकता हो सकती है ।
एनईपी-3 के अनुसार वर्ष 2022 से कोयला उर्जा क्षमता
Source: Draft National Electricity Plan 2016, International Energy Agency, Central Electricity Authority
वर्तमान एनईपी अगले 10 वर्षों के लिए ही आधारित है, लेकिन अगर नवीकरणीय बिजली की कीमतें गिरने की मौजूदा प्रवृत्ति जारी रहती है और भारत उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है तो भारत अपनी ईएनडीसी पर खरा उतरते हुए आईईए लक्ष्य को प्राफ्त कर सकता है।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 अप्रैल 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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