अनार के खेतों के साथ भारत की नई खेती के लिए बढ़ता खतरा
सोलापुर ज़िले में अपने सूखे खेतों के साथ खड़ा नज़रुद्दीन कोराबू और उसका परिवार। 5 लाख रुपए के बकाया ऋण को चुकाने और 14 सदस्यों के अपने परिवार को पालने के लिए कोराबू अब मजदूरी करने पर मजबूर हैं।
पंढरपुर तालुका, सोलापुर जिला (महाराष्ट्र): सात वर्ष पहले जब सिकंदर नज़रुद्दीन कोराबू अपनी चार एकड़ ज़मीन पर ज्वार, गेहूं और मक्का उगा रहे तो उनके पड़ोसी अपने-अपने खेतों पर अनार की खेती कर रहे थे। अनार की खेती से उनकी आय में कम से कम दस गुना इजाफा हुआ था। यहां तक कि कुछ किसानों ने तो कार तक ले ली थी। यह महाराष्ट्र के बंजर दक्षिण-पूर्वी जिले में एक चमत्कारी परिवर्तन मालूम होता है।
कोराबू के अनार के बगीचे, भारतीय कृषि - फल और सब्जियों के लिए एक नए, आकर्षक आशा का प्रतिनिधित्व करता है । देश में, 80 फीसदी अनार का उत्पादन महाराष्ट्र – दुनिया का सबसे बड़ा अनार उत्पादक - में होता है और इसमें से एक चौथाई सोलापुर ज़िले से आता है। कोराबू के अनुभव से संकेत मिलता है कि अनिश्चित मौसम और भारत की सिंचाई पर धीमी प्रगति, इन नई आशाओं के लिए खतरा है।
दो वर्ष पहले, पांचवी पास कोराबू ने अपनी एक एकड़ ज़मीन को अनार के बगीचे में बदल लिया है। उन्होंने बैंक से 5 लाख रुपए का ऋण लिया जिसमें से 2.15 लाख रुपए तालाब पर खर्च किया जो अब लगभग सूखने का कगार पर है। उसकी पुरानी फसले बारिश पर निर्भर करती है; अनार के बगीचे के लिए केवल ड्रिप सिंचाई की आवश्यकता है लेकिन इसके लिए भी तालाब में पर्याप्त पानी नहीं है। पानी के टैंकर, जिससे शायद उसके बागीचे बच सकें, के लिए 2,500 रुपए कोराबू वहन नहीं कर सकता है।
कोराबू ने तालाब बनाने पर 2.15 लाख रुपए खर्च किए जिससे उसके अनार के खेतों में पानी दिया जाता था। यह तालाब अब सूखने की कगार पर है और खेत सूख रहे हैं।
अपनी खेत पर दिन-रात मेहनत करने वाला कोरबू कहता है कि, “हमें सिर्फ काम और काम ही करना पड़ता है। काम का कुछ नतीजा नहीं निकलता है।” दो गाय, 14 मुर्गियाँ और शेष खेत, कोराबू के 14 लोगों के विस्तारित परिवार का समर्थन करने के लिए अपर्याप्त है।
कोराबू का जल संकट पूरे सोलापुर ज़िले, महाराष्ट्र के अन्य भागों और कई भारतीय राज्यों में फैला है जो वर्तमान में बेमौसम बारिश, सूखा और ओलावृष्टि के नए मौसम के साथ संघर्ष कर रहा है।
सोलापुर ज़िले में, इंडियास्पेंड ने सूखे अनार के बागीचे एवं हताश किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए टैंकरों का उपयोग करते पाया है। किसानों ने मदद के लिए सरकार से गुहार लगाई है जबकि ग्रामीण महाराष्ट्र की ओर जा रहे सैंकड़ो पानी के टैंकर, कई समुदायों के लिए एक मात्र पानी के स्रोत हैं – जैसा कि नीचे दिए गए तस्वीर में दिखाया गया है।
दक्षिण सोलापुर के करदेहल्ली गांव में सरकार द्वारा टैंकर भेजे जाने के इंतज़ार में लोगों ने दो दिनों से अपने बर्तन लाइन में लगा रखा है। महाराष्ट्र में अब हज़ारों गांव घरेलू और कृषि जरूरतों के लिए पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं।
दक्षिण सोलापुर के श्रीपनहल्ली गांव में गंगाधर बिरजदार, अपने अंगूर के बागीचे में पानी के लिए टैंकर पर निर्भर हैं। उसकी भूमि सिंचित नहीं है और बारिश नहीं हुई है। बिरजदार प्रत्येक टैंकर पर 1500 रुपये खर्च करता है और पिछले नौ महीने से अपने बागीचे को बचाने के लिए प्रतिदिन दो टैंकर पानी खरीदता है। अब तक बिरजदार पानी के लिए 800000 रुपए खर्च कर चुका है।
अनिश्चित मौसम असामयिक आ गया है। एक दशक तक, अनार के बगीचे से सर्वश्रेष्ठ पैदावार उत्पन्न हुआ है। नए रोपण के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होती है और फल के लिए दो वर्ष का इंतज़ार करना होता है।
51 वर्षीय गंगाधर बिरजदार, एक किसान जो खेतों में सिंचाई के लिए टैंकर का उपयोकर रहे हैं एवं इसका खर्च वहन करना मुश्किल है, कहते हैं कि, “मैं महाराष्ट्र सरकार और शोलापुर जिला कलेक्टर से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि हमें अनार और अंगूर जैसे बारहमासी फल फसलों को बचाने के लिए के लिए पानी के टैंकर प्रदान करें।” गंगाधर ने सरकार द्वारा सूखे से निपटने के लिए लंबी-अवधि के कार्यक्रमों की सरहना की - मिश्रित सफलता के साथ एक कार्यक्रम जिसके संबंध में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 में विस्तार से बताया है- लेकिन वह कहते हैं कि, “हमारे बागीचे, जो पिछले सात वर्षों से हमें फल दे रहे हैं, अब मर रहे हैं।”
पिछले नौ महीनों में, अपने खेतों को बचाने के लिए, टैंकरों के से खेतों की सिंचाई करने में गंगाधर ने 800000 रुपए खर्च किए हैं।
कैसे अनार ने बदली लोगों की ज़िंदगी और खेत
महाराष्ट्र के लोगों ने अनार की खेती 25 वर्ष पहले शुरु की जब सरकार ने रोज़गार गारंटी योजना के ज़रिए बागीचों को बढ़ावा दिया।
अनार के कार्यक्रम से पहले, किसान चना और मूंग, और तिलहन (मूंगफली और सूरजमुखी) ज्वार (चारा), बाजरा (बाजरा), मक्का और गेहूं, दाल, जैसे अनाज उगाते थे।
किसानों ने कड़ी मेहनत से काम किया एवं फसल, खाद और कीट प्रबंधन और बाज़ारों तक कैसे पहुंचना है, यह सब सीखा है।
अनार क्षेत्र एवं उत्पादन (राज्य अनुसार)
Source: Maps of India
बड़े किसान अपने छोटे घरों को छोड़ बंगलों में चले गए और कारें भी खरीद ली थी। छोटे किसान भी अपने कच्चे घरों से निकल कर पक्के मकानों में चले गए। दो पहिया वाहन भी खरीदा और अपने बच्चों को भी स्कूल भेजने लगे थे।
दक्षिण सोलापुर के बोरामनी गांव में, सुशील कुमार सुरेश उकरंदे बताते हैं कि किस प्रकार अनार के बगीचे से उन्हें पक्का मकान बनाने और मोटर सायकल खरीदने में सहायता की है।
लेकिन पिछले दो साल से मौसम संबंधी अनिश्चितता से - बैक्टीरियल ब्लाइट और कीमत में उतार-चढ़ाव से और बदतर हुआ – कोराबू एवं उकरंदे जैसे सीमांत और छोटे किसानों के लिए रिटर्न अनिश्चित और अप्रत्याशित बना दिया है।
सोलापुर, नासिक, सांगली, सतारा, पुणे और अहमदनगर, जहां सबसे अधिक अनार उगाया जाता है, वहां पानी के कमी के कारण खेत नष्ट हो रहे हैं।
प्रभाकर चंदन, ऑल इंडिया पोमिग्रेनेट ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कहते हैं, “इन जिलों में, पिछले दो सत्रों से पानी की गंभीर समस्या हो रही है औऱ वर्तमान में कई किसान दो से सात सात के बागीचे बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं। कई जगहों पर अनार के खेत अविकसित हैं; पेड़ मुरझा कर सूख रहे हैं।”
अनार की खेती संकट बताती है कि किस प्रकार सिंचाई की कमी और जलवायु परिवर्तन भारत के नए कृषि की उम्मीद के लिए खतरा बन रही है: बागवानी – जिसमें चाय, कॉफी और रबर, और मसाले, फल, सब्जियां, वृक्षारोपण फसलें शामिल हैं - अब खाद्यान्न उत्पादन से परे हैं। भारत फलों और सब्जियों का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
भारत के अनार परिवर्तन
Source: National Horticulture Board
किस प्रकार पानी की कमी कृषि के विविधीकरण को नियंत्रित कर सकती है
सिंचाई विशेष रुप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अक्टूबर से दिसंबर तिमाही में भारत की कृषि विकास 1 फीसदी संकुचित हुआ है और वित्त वर्ष 2015-16 में केवल 1.1 फीसदी बढ़ने की भविष्यवाणी है (अग्रिम अनुमान है, नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के एक्सट्रपलेशन द्वारा प्राप्त)। लगातार पड़ने वाले सूखे से खेत तबाह हो रहे हैं, पिछले 30 वर्षों में यह सबसे बद्तर स्थिति है; सर्दियों (रबी) की फसल की बुआई 60 लाख हेक्टेयर नीचे हो गया है जो कि पिछले चार वर्षं में सबसे बुरा है; और पिछले वर्ष, देश भर में हज़ारों किसानों ने आत्महत्या की है।
भारत के 138 मिलियन किसानों में से 66 मिलियन किसान अनिश्चित बारिश पर निर्भर हैं। स्थानीय और विश्व मौसम में जटिल परिवर्तन के एक भाग के रूप में मध्य भारत में चरम वर्षा की घटनाएं, मानसून प्रणाली की कोर, बढ़ रही हैं और मध्यम वर्षा कम हो रही है, जैसा की इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।
खेत संकट में कोई कमी न होते देखते हुए, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फरवरी में घोषणा की है कि सरकार अगले पांच साल में, खेती की भूमि का 80 लाख हेक्टेयर की सिंचाई के लिए 86,500 करोड़ रुपये (12.7 बिलियन डॉलर ) खर्च करेगी। इसका मतलब यह है की सरकार पांच साल में उतनी सिंचाई करने का वादा कर रही है जितनी कि पिछले 69 वर्षों में नहीं हुई है और, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी विस्तार से बताया है, सिंचाई कार्यक्रम जिसमें जेटली निवेश कर रहे है असफल साबित हुई है।
2014 में जारी कृषि आंकड़ों के अनुसार 140 मिलियन हेक्टर में से केवल 65 मिलियन या 46 फीसदी भारतीय खेत सिंचित है। हालांकि, विश्व बैंक के मुताबिक 36 फीसदी से अधिक खेत सिंचित नहीं हैं।
सिंचाई के साथ महाराष्ट्र के अनुभव आशाजनक नहीं है, राज्य के सिंचाई क्षमता के साथ - क्षेत्र जो सैद्धांतिक रूप से या संभवतः, नई सुविधाओं के साथ सिंचित किया जा सकता - 70,000 करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद, 0.1 फीसदी से अधिक नहीं बढ़ा है, जैसा की बिजनेस स्टैंडर्ड इस रिपोर्ट में राज्य के स्वयं के आर्थिक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा गया है।
सोलापुर जिले में सिंचाई की कमी के कारण पड़ोसी मराठवाड़ा में भी कमी स्पष्ट है, जिसके कुछ भाग में पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।
फिलहाल के लिए, सोलापुर के किसान, “तत्काल” अल्पकालिक उपायों के लिए अनुरोध कर रहे हैं जैसे कि अपने बागीचे के लिए पलवारपेपर - जो वाष्पीकरण धीमा कर देती है और मिट्टी में नमी बरकरार रखती है - के लिए सब्सिडी, टैंकरों और एक खेत - तालाब कार्यक्रम का पुनर्गठन जिसे मागेल त्याला शेततळे कहा जाता है। 50,000 रुपये की वर्तमान अनुदान तालाबों के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि गर्मियों की दरों में वृद्धि हो रही है।
हालांकि, लंबी अवधि में, केवल आधुनिक सिंचाई, सरकार द्वारा ठोस कार्रवाई कृषि विस्तार समर्थन ही महाराष्ट्र के कोराबू जैसे किसानों की मदद कर सकता है।
(यादव टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई में डॉक्टरेट विद्वान है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 26 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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