अब तक के चुनावी आंकड़े बताते हैं, गुजरात में भाजपा के लिए ही सशक्त समर्थन
गुजरात के भावनगर जिले में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में ध्वज लहराते भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थक। गुजरात विधानसभा क्षेत्रों में, जहां भाजपा ने 2012 के चुनावों में जीत दर्ज की थी, उसकी तुलना में लोक सभा के 2014 के चुनाव में भाजपा के लिए किए गए मतदान की तरह उच्च थी।
गुजरात में चुनाव की तैयारी जोरो पर है। चुनावी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि गुजरात में अब भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थिति मजबूत है। गुजरात विधानसभा चुनाव दो चरणों में - 9 दिसंबर, 2017 और 14 दिसंबर, 2017 को होने वाले हैं और परिणाम 18 दिसंबर, 2017 को घोषित किए जाएंगे।
2012 के विधानसभा चुनावों में, जहां-जहां भाजपा जीती, वहां 50 फीसदी से अधिक मतदान भाजपा के पक्ष में
2001 से 2014 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफा देने के बाद मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे।
12 साल से ज्यादा दिनों तक मोदी मुख्यमंत्री रहे और गुजरात में भाजपा ने एक मजबूत मतदाता आधार हासिल किया। उनके कार्यकाल में भाजपा के शेयर में पांच प्रतिशत अंक का इजाफा हुआ है।1998 में 44.8 फीसदी से 2002 के विधानसभा चुनावों में 49.9 फीसदी हो गया।
2012 के विधानसभा चुनावों में, नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री पद के रुप में उम्मीदवार के साथ, भाजपा ने 182 सीटों में से, इन सीटों में औसतन 53 फीसदी की औसत वोट हिस्सेदारी के साथ 115 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
2012 में, उन चुनाव क्षेत्रों में जहां भाजपा के लिए वोट दिया गया, आधे से अधिक मतदाताओं, या स्पष्ट बहुमत ने पार्टी के लिए मजबूत समर्थन दिखाया है।
Source: Election Commission of India
2012 से 2014 के बीच भाजपा के मतों में 15 फीसदी की वृद्धि
इंडियास्पेंड ने 2012 गुजरात चुनाव में जीते हुए सभी 115 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के वोट शेयर का विश्लेषण किया है और 2014 के संसदीय चुनावों में, उन्हीं विधानसभा क्षेत्रों में, पार्टी को मिले वोटों के साथ तुलना की है।
इन सीटों में, 2012 और 2014 के बीच, गुजरात में बीजेपी के वोटों में 15 फीसदी की वृद्धि हुई है - 9.1 मिलियन से करीब 10.5 मिलियन। 2012 में भाजपा द्वारा जीती गई विधानसभा क्षेत्रों में,पार्टी के वोट शेयर में 12 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। यह 2012 में 53 फीसदी से बढ़कर 2014 में 65 फीसदी हुई है।
भाजपा ने 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 115 में 31 सीटों पर जो जीत दर्ज की थी, उनमें 10,000 वोटों से कम का अंतर था- इस निर्वाचन क्षेत्र में कुल पड़े वोटों का 0.5 फीसदी से 8 फीसदी मत।
एक 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ में, जहां दो से ज्यादा पार्टियों के बीच चुनाव होता है, उम्मीदवार जिसे सबसे ज्यादा वोटों की संख्या मिलती है, वह विजेता होता है। कम मतों अंतर का मतलब है बहुत ही कड़ी प्रतियोगिता है और बाद के चुनावों में उपविजेता को पार्टी को हराने के लिए कुछ हजार अतिरिक्त मतदाताओं का पीछा करना पड़ सकता है, जो पिछली चुनाव जीत गए थे।
लेकिन गुजरात में, 2012 में भाजपा (10,000 से कम वोटों) की जीत के सबसे कम अंतर के साथ वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भी, दो निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा के लिए वोटों में वृद्धि देखी गई है।
केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में (दक्षिण-पश्चिम गुजरात में निजार और अहमदाबाद जिले में स्थित जमालपुर-खादिया) कांग्रेस के उम्मीदवारों को भाजपा से अधिक वोट प्राप्त हुए हैं। इससे पता चलता है कि 2012 और 2014 के बीच बीजेपी के मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र और विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं में बदलाव नहीं हुआ है।
इन प्रवृत्तियों से पता चलता है कि गुजरात का यह चुनाव पिछले चुनाव से अलग है। जबकि राज्य में नरेंद्र मोदी का नेतृत्व अभी नहीं है। 2014 तक पार्टी के खिलाफ बहुत कम विरोधी लहर है। फिर भी, मोदी के प्रधानमेंत्री बनने के बाद गुजरात में भाजपा स्थिर नहीं है। 2014 में आनंदीबेन ने गुजरात के मुख्यमंत्री का पद संभाला और अगस्त 2016 में पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र, राजकोट से विजय रूपाणी ने पद संभाला।
Source: Election Commission of IndiaNote: *Vote-share in the assembly segment derived from the Lok Sabha constituency
2014 की राष्ट्रीय जीत के बाद राज्यों में भाजपा की जीत की लकीरें
29 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों (जिनमें विधानसभाएं हैं और मुख्यमंत्रियों हैं) में से 13 में मुख्यमंत्री भाजपा से हैं।
2014 के आम चुनावों में भाजपा के व्यापक जीत के बाद, मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस के साथ, 2014 में पहली बार भाजपा ने महाराष्ट्र में जीत दर्ज की है। इसी वर्ष, भाजपा ने हरियाणा और झारखंड भी जीत दर्ज की । 2016 में असम के उत्तर-पूर्वी राज्य ने भी अपना पहला भाजपा मुख्यमंत्री नियुक्त किया। मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश (यूपी) में भाजपा 15 साल बाद सत्ता में आई और उत्तराखंड में भी जीत हासिल की है।
महाराष्ट्र और यूपी भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण जीत है, क्योंकि ये जनसंख्या के मामले में भारत में सबसे बड़े राज्य हैं ।
जम्मू-कश्मीर के 2014 के चुनावों में, भाजपा ने ( जिसने जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (जेकेपीडीपी) के बाद सीटों के मामले में दूसरे स्थान पर जीत हासिल की और वोट शेयर हासिल किया ) साथ ही जेकेपीडीपी के साथ राज्य सरकार का गठन किया।
2017 में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( जनता दल युनाइटेड ) ने लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन तोड़ दिया और वह भाजपा के साथ हो गए।
गुजरात में, भाजपा दो दशक से सत्ता में है और सबसे अधिक वोट शेयर है!
गुजरात उन कुछ भारतीय राज्यों में से एक है, जहां मुख्यमंत्री और राजनीतिक दल लंबे समय से सेवारत रहे हैं। एक मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी का लंबा शासन, पार्टी के लिए बहुमत वोट शेयर का योगदान देते है, जैसा कि राज्य चुनाव आंकड़ों से पता चलता है।
उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में जहां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-सीपीआई(एम)) ने 34 साल तक शासन किया, 2006 में उनके पास 50.8 फीसदी वोट शेयर था। इसी तरह, ओडिशा में, जहां बीजू जनता दल 2000 से सत्ता में रहा है, 2014 के चुनावों में इसका 43.4 फीसदी वोट शेयर था।
लंबे समय तक सेवा देने वाले मुख्यमंत्रियों के पार्टियों के लिए वोट शेयर | ||||
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State | Chief Minister | Political Party | Last Election Won | Contested vote share |
West Bengal | Budhadeb Bhattacharjee (2000-2011) | Communist Party of India (M) | 2006 | 50.8% |
Odisha | NavinPatniak (Since 2000) | Biju Janata Dal | 2014 | 43.4% |
Gujarat | NarendraModi (2001-2014) | Bhartiya Janata Party | 2012 | 48.3% |
NCT Delhi | Sheila Dixit (1998-2013) | Indian National Congress | 2008 | 40.3% |
Chhattisgarh | Raman Singh (Since 2003) | Bhartiya Janata Party | 2013 | 41.2% |
Source: Election Commission of India
लेकिन पिछले एक दशक में, इनमें से दो राज्यों ने, महत्वपूर्ण वोट शेयर के नुकसान के साथ इन लंबे समय से रह रही सरकारों के खिलाफ मजबूत विरोधी लहर देखा है।
पश्चिम बंगाल में, सीपीआई (एम) वोट शेयर में नौ प्रतिशत अंक की गिरावट ( 50.8 फीसदी से 41.4 फीसदी ) के साथ सीपीआई (एम) 2011 के चुनावों में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) से हार गयी। एआईटीसी ने चुनाव लड़े गए सीटों पर अपने वोट शेयर में 20 प्रतिशत अंक की वृद्धि हासिल की है, जैसा कि लगातार दो चुनावों के आंकड़ों से पता चलता है।
Source: Election Commission of India
इसी तरह दिल्ली में कांग्रेस सरकार, जो 15 साल से सत्ता में थी, 2013 में चुनाव हार गई, जिसके परिणामस्वरूप एक त्रिशंकु विधानसभा हुई, और कांग्रेस की वोट की हिस्सेदारी 40.3 फीसदी से घटकर 24.7 फीसदी हो गई।कांग्रेस-आम आदमी पार्टी (एएपी) गठबंधन टूट जाने के बाद फरवरी 2015 में, आप पार्टी ने नई दिल्ली में बहुमत से सरकार बनाई थी।
इसके अलावा, 2014 के संसदीय चुनावों में दिल्ली में कांग्रेस का वोट शेयर भाजपा में गया, जैसा कि जनवरी 2015 में विधानसभा क्षेत्रों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है।
Source: Election Commission of IndiaNote: Vote share is the proportion of votes every individual party got in the seats it contested for, it is not the proportion of overall votes the parties got hence it may add up to more than 100%.
(तिवारी मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के ‘स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज ’ में पीएचडी स्कॉलर हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 2 दिसंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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