ईरान और प्रमुख शक्तियों के बीच परमाणु करार-भारत को हो सकता है लाभ
9 जुलाई, 2015 उफ़ा, रुस में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ईरान के प्रधानमंत्री हसन रोहानी
अंतरराष्ट्रीय समुदायों द्वारा नौ साल पुराना प्रतिबंध एवं व्यापार प्रतिरोध की मुक्ति पर सहमती के बाद भारत एवंईरान के संबंध और बेहतर होने की उम्मीद है।
14 जुलाई 2015 को ईरान ने पश्चिमी देशों के साथ ऐतिहासिक और विवादास्पद परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इस समझौते का भारत ने स्वागत किया है। परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ईरान के विदेश मंत्री ज़ावद ज़ारिफ ने पहली बार, 14 अगस्त 2015 को भारत की यात्रा की है।
ईरान एवं भारत के संबंध इन क्षत्रों में बेहतर होने की उम्मीद की जा रही है –
1. इस रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत का ईरान को निर्यात कम से कम 6 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है ( हालांकि कुछ व्यापारियों को वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं से प्रतिस्पर्धा का डर ज़रुर सता रहा है )।
2. ईरान के गैस भंडार, जोकि विश्व के सबसे बड़े गैस भंडार हैं, भारत की गैस की कमी से जूझ रही रही बिजली संयंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह गैस भंडार भारत जैसे कोयले पर निर्भर देश में स्वच्छ उर्जा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है।
3. ईरान भारतीय कंपनियों को कई बुनियादी ढ़ाचा परियोजनाओं का प्रस्ताव दे सकता है। इनमें से एक है महत्वपूर्ण बंदरगाहों के विकास, जोकि पाकिस्तान को छोड़ते हुए मध्य एशिया एवं अफगानिस्तान तक पहुंने में सहायक होगा।
पुराने संबंध नया करने का मौका
1947 तक भारत एवं ईरान, दोनों देशों ने एक सीमा साझा किया है एवं दोनों देशों के बीच प्राचीन सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध रहा है। एक समय में फारसी भारत के शासक वर्ग की भाषा रही है।
संयुक्त राष्ट्र के नौ वर्ष के प्रतिबंध के दौरान भारत एवं ईरान ने सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखा है।
चीन के बाद, भारत ईरान का सबसे बड़ा तेल आयातक है। तेल उपभोक्ता के मामले में भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश है। मध्य पूर्व से भारत को तेल आयात करने के मामले में ईरान पांचवें स्थान पर है।
मध्य पूर्व से भारत को कच्चे तेल आयात करने वाले टॉप पांच देश
Source: LokSabha/PIB; Figures in Million Metric Tonnes (MMT)
साल 2009-10 के मुकाबले 2014-15 में ईरान से भारत आयात होने वाले कच्चे तेल की मात्रा में करीब आधे की कमी हुई है। 2009-10 में जहां ईरान से 21 मिलियन मेटरिक टन ( एमएमटी )कच्चा तेल आयात किया गया था वहीं 2014-15 में यह आंकड़े 11 एमएमटी दर्ज की गई है। हाल ही में वाशिंगटन ने माना है कि ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों के समर्थन में भारत को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा है।
कैसे किया भारत ने ईरान के तेल को बंद
मई 2012 में , हिलेरी क्लिंटन, तत्कालिन अमेरिकी विदेश मंत्री, भारत की यात्रा पर आई थी। इस यात्रा को उनके लिए नई दिल्ली से विदाई यात्रा माना गया। बाद में क्लिंटन ने अपनी किताब ‘हार्ड च्वाईस’ में इस बात का खुलासा किया कि उनकी दिल्ली यात्रा पूरी तरह से भारत को ईरान पर तेर की निर्भरता को कम करने के लिए राजी करवाने के मकसद से किया गया था जो भारत ने बाद में किया भी।
इसके बाद ही ईरान से भारत आयात होने वाले तेल में 28 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
अमरिका के दबाव के कारण इस साल मार्चमें ईरान से भारत आयात होने वाले कच्चे तेल की मात्रा शून्य दर्ज की गई थी। हालांकि राउटर के रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की तुलना में मई 2015 में 65 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
अमेरिकी प्रतिबंधों के साथ पालन भी, ईरान एवं भारत के द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित किया है।
2005-06 से 2011-12 के बीच भारत एवं ईरान के द्विपक्षीय व्यापार में आठ गुना वृद्धि दर्ज की गई है। 2005-06 में यह आंकड़े 2 बिलियन डॉलर दर्ज किए गए थे जबकि 2011-12 में यह बढ़ कर 16 बिलियन डॉलर दर्ज की गई है। हालांकि 2014-15 में यह आंकड़े गिरकर 13 बिलियन डॉलर दर्ज किए गए हैं।
भारत-ईरान का द्विपक्षीय व्यापार
साल 2011-12 से 2014-15 के दौरान भारत के आयात में 36 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। 2011-12 में जहां यह आंकड़े 14 बिलियन डॉलर दर्ज किए गए थे वहीं 2015 में यह आंकड़े 9 बिलियन डॉलर दर्ज की गई है। 2014-15 में ईरान से भारत आयात होने वाली प्रमुख मालों में ( बिटुमिनस पदार्थ और खनिज वैक्स सहित)7 बिलियन डॉलर की मूल्य का खनीज ईंधन तेल दर्ज किया गया है।
2014-15 में 4 बिलियन डॉलर का अनाज ईरान निर्यात किया गया है।
यदि अनाज की बात करें तो ईरान ने बड़ी मात्रा में बासमती चावल एवं चीनी खरीदी है। डॉलर व्यापार पर प्रतिबंध के कारण भारत ने रुपए का उपयोग किया है। भारत, ईरान का प्रमुख चावल आपूर्तिकर्ता है।
भारत की गैस आवश्यकता की पूर्ती कर सकता है ईरान
विश्व में कच्चे तेल की चौथे सबसे बड़े भंडार के साथ, ईरान उर्जा समृद्ध देश है। साथ ही ईरान प्राकृतिक गैस भंडार वाले सबसे बड़े देशों में से एक है।
भारत में शुरु हुए कई गैस परियोजनाएं बेहद महत्वपूर्ण हैं। स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में केवल 10 फीसदी हिस्सेदारी गैस आधारित बिजली की है।
इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बतया है कि किस प्रकार 23000 मेगावाट से अधिक प्राकृतिक गैस आधारित विद्युत संयंत्र, ईंधन की कमी के कारण अपनी क्षमता के अंश ( 20 फीसदी ) बराबर ही काम करता है।
भारत की तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम विदेश (ओवीएल) ने 2008 में परसियन खाड़ी में फरज़ाद-बी गैस क्षेत्र की खोज की थी, जिसमें एक अनुमान के अनुसार 12.8 ट्रीलीयन घन फीट के योग्य गैस भंडार था।
रिपोर्ट के मुताबिक 90 मिलियन डॉलर का निवेश करने के बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण भारत को अन्वेषण छोड़ना पड़ा था।
ईरान ने एक बार फिर नीलाम की बोली खोल दी है एवं प्रतिबंध हटने के साथ ही भारतीय कंपनियां, पश्चिमी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
साल 2005 से ईरान-पाकिस्तान-भारत (आईपीआई) गैस पाइपलाइन परियोजना पर चर्चा की जा रही है लेकिन इस मामले में अब तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला है।
भारत के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण परियोजना है 4 मिलियन डॉलर मिडिल-इस्ट डीपवॉटर पाइपलाइन (दक्षिण एशिया गैस उद्यम परियोजना भी कहा जाता है)। इस पाइपलाइन की क्षमता प्रति दिन भारत को 31 मिलियन क्यूबिक मीटर के होने की उम्मीद की जा रही है।
13,00 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन ईरान के चाहबहर से ओमन के रस अल-जीफान तक जाएगा। यह अरब सागर से होता हुआ, पाकिस्तान से बाहर निकलता हुआ गुजरात के पोरबंदर तक पहुंचेगा।
अरब सागर में एक गैस क्षेत्र से ईरान के साथ एक विनिमय व्यवस्था के माध्यम सेतुर्कमेनिस्तान से गैस भारत लाया जा सकता है।
भारत की मध्य एशिया एवं रुस तक पहुंच के लिए ईरान करेगा मदद
Map used with permission from SAGE
ईरान के राष्ट्रपति, हसन रोहानी ने भारत को बुनियादी ढ़ांचे एवं संयोजकता परियोजनाओं में निवेश के लिए अवसर प्रदान किया है। इन परियोजनाओं में करीब 8 बिलियन डॉलर की लागत लगेगी। रुस में हुएब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर रोहानी ने मोदी से मुलाकत की, साथ ही ईरान के राष्ट्रपति ने भारत की बड़ी भूमिका का सुझाव भी दिया।
ईरान के दक्षिण पूर्वी तट पर चाहबहर बंदरगाह विकसित करने के लिए मई 2015 में भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। इस समझौते से, पाकिस्तान को बाईपास करते हुए भारतीय समुद्री भूमि को मध्य एशिया एवं अफगानिस्तान तक पहुंचने में सहायता करेगा।
दो शायिका संगठन के लिए भारत 85 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा, एक कंटेनर टर्मिनल के रूप में एक एवं दूसरा बहु प्रयोजन के कार्गो टर्मिनल के रूप में।
भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर का हिस्सा भी है, एक बहुविध परिवहन प्रणालीजोकि ईरान के माध्यम से भारत , मध्य एशिया और रूस को जोड़ेगा।
परियोजना से रुस तक के लिए माल परिवहन समय को कम किया सकेगा। वर्तमान में रुस तक माल ले जाने में 45 से 60 दिनों का समय लगता है। परियोजना के ज़रिए यह समय केवल 25 से 30 दिनों का वक्त लगेगा। पिछले साल ही इसका सफल पूर्वाभ्यास किया गया है।
( मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। )
Image credit: Press Information Bureau
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 अगस्त 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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