उत्तर प्रदेश के पास बिजली है, फिर भी उत्तर प्रदेश के लोग अंधेरे में हैं!
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में अपने घर के बाहर खड़ी दिव्या देवी। देवी गृहणी हैं। यहां से इनके घर का सौर उर्जा पैनल दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा के नीचे रह रहे कई लोगों की तरह ही देवी को भी वर्ष 2005 में मुफ्त बिजली कनेक्शन का वादा किया गया था। छह महीने पहले ही देवी ने एक छोटी सी सौर उर्जा इकाई खरीदी है, जिससे वह घर के दो बल्ब आसानी से जला सकती हैं। इस रौशनी में उनके चार बच्चे शाम के 6 बजे के बाद पढ़ते हैं।
गाजीपुर, वाराणसी, सोनभद्र (उत्तर प्रदेश): दिव्या देवी एक गृहणी हैं। शादी के बाद पिछले 11 वर्षों से मिट्टी के बने घर में रह रही हैं। देवी चोपान गांव की रहने वाली हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में सोनभद्र जिले के उन कुछ गांवों में से एक है, जहां आंशिक रूप से विद्युतीकरण हुआ है।
देवी अपने घर में अपने पति और चार बच्चों के साथ रहती हैं। देवी के पति दिहाड़ी मजदूर हैं। घर के आस-पास से बिजली के हाई-वोल्टेज वाले तारें गुजरीं हैं, जो वहां से मात्र 12 किमी दूर पर स्थित 1,288 मेगावाट क्षमता वाले ओबरा थर्मल पावर स्टेशन की देन है। यहां से राज्य की राजधानी लखनऊ को पर्याप्त बिजली मिलती है। लखनऊ के अलावा चोपान जैसे हजारों गांवों को रौशन करने के लिए भी थर्मल पावर के पास पर्याप्त बिजली है।
देवी गरीबी रेखा के नीचे रहती हैं। हम बता दें कि ग्रामीण इलाकों के लिए प्रति माह प्रति व्यक्ति 816 रुपए की आमदनी वाले लोग आधिकारिक तौर पर गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं। देवी के पास कार्ड है, जिससे उनकी सब्सिडी वाले भोजन तक पहुंच है। छह महीने पहले देवी ने अपनी बचत के साथ एक सौर ऊर्जा इकाई खरीदी है। 12 साल से बिजली के इंतजार में वह थक चुकी थीं। कई लोगों की तरह देवी को भी वर्ष 2005 में पहली बार ‘राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना’ के तहत मुफ्त बिजली कनेक्शन देने का वादा किया गया था। इस योजना को बाद में वर्ष 2014 में ‘दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ के तहत शामिल किया गया था। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को मुफ्त में बिजली कनेक्शन मुहैया कराया जाना था। सौर इकाई की लागत करीब 15,000 रुपए है। देवी इससे दो बल्ब- एक आंगन और दूसरा रसोई में जलाती हैं। देवी कहती हैं, “हम पहले केरोसीन लैंप का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब सरकार ने बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) कार्डधारकों के लिए मात्रा कम कर दी है। सरकार ने हमसे यह भी ले लिया है और बिजली भी नहीं दे रही है। क्या हमें अंधेरे में रहना चाहिए? ”देवी की झल्लाहट बताती है कि बिजली से जिंदगी में बदलाव आता है।
बिजली से स्कूली शिक्षा, नौकरियों में बढ़ावा, बदलता है जीवन
वर्ष 2015 में विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक बेहतर बुनियादी ढांचा, विशेष रूप से ग्रामीण विद्युतीकरण का भारत में बहुत प्रभाव पड़ा है। इस पर इंडियास्पेंड ने 10 अक्टूबर, 2015 को अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।
रिपोर्ट कहती है, “पुरुषों और महिलाओं दोनों की श्रम आपूर्ति में वृद्धि के साथ भारत में ग्रामीण विद्युतीकरण ने आमदनी और खर्च में बदलाव लाया है। इससे पिरुण और महिला दोनों तरह की श्रम शक्ति का विकास हुआ है। साथ ही, इससे लड़कियां अपने कार्य को सही समय पर करके स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित होती हैं। ”
इसके अलावा, नई दिल्ली में स्थित संस्था ‘द एनर्जी एंड रिसोर्स इन्स्टटूट’ द्वारा वर्ष 2015 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार एक विद्युतीकृत घर की औसत आय अविद्युतीकृत घरों की तुलना में ज्यादा पाया गया है।
हमारे विश्लेषण में रोजगार और शिक्षा के आंकड़े कुछ अलग से हैं,हालांकि कारणों को साबित करना कठिन है।
विद्युतीकरण प्रस्तावों का लाभ उठाने में उत्तर प्रदेश की गति धीमी रही है। विकास सूचकांक दिखाते हैं कि वर्ष 2015-16 में, प्रति हजार पर ग्रामीण उत्तर प्रदेश के अधिक लोग (56) बेरोजगार हैं, जबकि भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में औसत 34 का है। इसके विपरीत, तमिलनाडु में जहां 99 फीसदी ग्रामीण परिवार विद्युतीकृत हैं, वहां प्रति 1,000 लोगों पर 39 लोग बेरोजगार हैं और गुजरात में जहां 100 फीसदी विद्युतीकरण है, वहां प्रति हजार पर बेरोजगार लोगों की संख्या 6 है।
इसी तरह वर्ष 2016 की शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 6 से 14 आयु वर्ष के 5.3 फीसदी बच्चे स्कूल में नामांकित नहीं हुए हैं, जबकि इसी संबंध में तमिलनाडु के लिए आंकड़े 0.4 फीसदी और गुजरात के लिए 2.4 फीसदी हैं।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, वाराणसी और सोनभद्र के तीन जिलों में इंडियास्पेंड ने पाया कि कई गांव अब भी बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबकि वाराणसी से करीब 75 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित गाजिपुर जिले के मनौली जैसे कुछ गांव ऐसे भी हैं, जिनका बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भी सर्वेक्षण भी नहीं किया गया था । सोलाभद्र में साल्खान जैसे कई ऐसे गांव हैं, जहां नाम मात्र की बिजली के साथ आंशिक रूप से विद्युतीकरण हुआ है
हमने पाया कि विद्युतीकृत गांवों में जिनके घऱ अब तक नहीं पहुंची है, वहां ग्रामीण बांस डंडे का उपयोग करते हुए मुख्य लाइनों से बिजली ले रहे हैं। जबकि कुछ लोग मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए दुकान के मालिकों को 5-10 रुपए का भुगतान कर रहे हैं।
एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है बिजली
मतदाताओं के लिए बिजली कटौती और बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 6 फरवरी, 2017 को अपनी रिपोर्ट में बताया है। इंडियास्पेंड के लिए डेटा विश्लेषण और जनमत सर्वेक्षण फर्म, फोर्थलायन द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, एक-तिहाई उत्तरदाताओं के लिए बिजली-कटौती एक प्रमुख मुद्दा है।
‘फोर्थलायन’ ने उत्तर प्रदेश में 2,513 पंजीकृत मतदाताओं से टेलीफोन के माध्यम से हिंदी में बातचीत की। ‘फोर्थलायन’ के मुताबिक बातचीत के बाद उभर कर आए संकेत उत्तर प्रदेश के शहरी और ग्रामीण के मतदाताओं के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक, उम्र, लिंग और जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सर्वेक्षण 24 जनवरी से 31 जनवरी 2017 के बीच आयोजित किया गया ।
बातचीत में 28 फीसदी मतदाताओं का कहना है कि बिजली की कटौती राज्य की प्रमुख समस्या है, जबकि 30 फीसदी मतदाताओं का कहना है उन्हें बिजली कटौती का रोज सामना करना पड़ता है। 16 फीसदी का कहना है कि उनके लिए बिजली कटौती की समस्या रोज की नहीं, बल्कि सप्ताह में एक दिन की है।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, जिन घरों में ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रुप में बिजली का इस्तेमाल होता है, उनका प्रतिशत वर्ष 2001 में 31.9 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2011 में 36.8 फीसदी हुआ है। लेकिन बिजली इस्तेमाल के मामले में शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच असमानता है। जैसा कि इंडियास्पेंड ने 6 फरवरी, 2017 को विस्तार से बताया है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011 में 81.4 फीसदी शहरी परिवारों ने ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में बिजली का इस्तेमाल किया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 23.7 फीसदी लोगों के लिए बिजली उर्जा का मुख्य स्रोत दिखा।
तीसरी सबसे बड़ी कोयला आधारित बिजली क्षमता, लेकिन यहां विद्युतीकरण की दर चौथी सबसे कम
उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बद्तर विद्युतीकृत राज्यों में से एक है। जनवरी 2017 के अंत में तीसरी सबसे बड़ी कोयला आधारित बिजली क्षमता होने के बावजूद यहां 51.8 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास अब भी बिजली नहीं है। यह अब भी नीचे से चौथे स्थान पर है। सूची में उत्तर प्रदेश से केवल महाराष्ट्र और गुजरात ही ऊपर हैं।
विद्युतीकृत परिवारों में से केवल 5 फीसदी को 20 या उससे अधिक घंटों की आपूर्ति मिलती है। जबकि 23 फीसदी को चार या उससे अधिक घंटे की शाम में आपूर्ति मिलती है। उत्तर प्रदेश में चार में से तीन ग्रामीण विद्युतीकृत घरों में प्रति दिन 12 घंटे से कम बिजली मिलती है। इसपर इंडियास्पेंड ने 1 अक्टूबर, 2015 की अपनी रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।
उत्तर प्रदेश में भारत का तीसरा सबसे बड़ा कोयला आधारित क्षमता, कुल का 8.4 फीसदी
Source: Central Electricity Authority
हालांकि, उत्तर प्रदेश के लगभग 3.01 करोड़ घरों में से 48 फीसदी से अधिक विद्युतीकृत नहीं हैं। इसकी तुलना में, अन्य चार राज्य जो कोयला आधारित क्षमता के मामले में टॉप पांच हैं, सभी में 70 फीसदी से अधिक घरों में विद्युतीकरण किया गया है।
यूपी: कोयला-आधारित पावर ज्यादा, लेकिन बिजली अब भी कम
Source: Ministry of Power
सोनभद्र में केवल 17 फीसदी परिवारों के पास बिजली, उत्तर प्रदेश में सबसे कम
Source: Ministry of Power*Note: Data only for eastern UP, comprising of 21 of 75 districts, are provided.
परियोजना में विलंब, विद्युतीकरण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार
15 अगस्त, 2016 को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गलती से दावा किया था कि यूपी में नगला फातिला के गांव तक बिजली पहुंचने में 70 साल का समय लगा है, जो राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली से केवल 200 किलोमीटर और तीन घंटे की दूरी पर है।
मीडिया रिपोर्टों द्वारा दावों को गलत बताने के बाद केंद्र ने यह सत्यापित करने के लिए कि क्या वास्तव में आवश्यक बुनियादी ढांचे और बिजली प्रदान की गई है कि नहीं, उत्तर प्रदेश के सभी 1,450 विद्युतीकृत गांवों (अगस्त 2016 तक) की जांच करने का निर्णय लिया।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 21 जिलों को बिजली प्रदान करने वाली दक्षिणांचल विद्युत वितरण लिमिटेड कंपनी ने बाद में स्वीकार किया कि नागला फातिला में लोग अवैध पावर कनेक्शन या कटियां इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसा कि 22 अक्टूबर, 2016 को इकोनॉमिक टाइम्स में इस रिपोर्ट में बताया गया है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई गांवों और जिलों की यात्रा करते हुए हमने पाया कि ऐसे मामले अपवाद नहीं हैं।
इलाहाबाद के उत्तर में प्रतापगढ़ जिले में एक ठेकेदार को जिले के 16 ब्लॉकों में बीपीएल कार्ड धारकों के लिए मुफ्त लागत के कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए पूर्व में ‘राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना’ के तहत एक परियोजना दी गई थी (अब दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना द्वारा निगमित) । यह परियोजना मार्च 2017 तक समाप्त होने की संभावना थी। लेकिन नाम न बताने के अनुरोध पर, अनुबंध फर्म के एक सहायक प्रबंधक ने बताया कि कि इन 16 ब्लॉकों में 4,158 बस्तियां हैं, जिनमें से केवल 415 को कवर किया गया है।
उन्होंने बताया, “हमारा कॉंट्रैक्ट जल्द ही समाप्त हो जाएगा और अब तक मुश्किल से 10 फीसदी क्षेत्र कवर हुए हैं। अब कॉंट्रैक्ट बढ़ाने के लिए हमें अफसरों को रिश्वत देनी होगी। और पहले भी देरी के लिए वही जिम्मेदार हैं।”
बिजली वितरण संस्थाओं के भीतर भ्रष्टाचार और इन परियोजनाओं के लिए समय पर धन वितरण के लिए जिम्मेदार दफ्तर, राज्य भर में विद्युतीकरण की धीमी प्रगति के प्रमुख कारण हैं। मैनेजर बताते हैं, “हरेक दस्तावेज पर, हर हस्ताक्षर के लिए हमें अधिकारियों को पैसे देने पड़ते हैं। बिना पैसे लिए वे पैसा जारी नहीं करते हैं और विलंब होने का यही कारण है। ऐसे में हम कैसे काम कर सकते हैं। ”
वर्ष 2006 से 2016 के बीच, दस वर्षों की अवधि में, केंद्र ने उत्तर प्रदेश को विद्युतीकरण के लिए 22,533 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, जिसमें से केवल 34 फीसदी की इस्तेमाल किया गया है, जैसा कि 22 अगस्त, 2016 को इकोनॉमिक टाइम्स की ने अपनी रिपोर्ट में बताया है।
विद्युतीकरण-कागजों पर, जमीन पर खंबों और बिजली के बिना ट्रांसफार्मर
वित्तीय वर्ष 2015-16 के अंत तक, उत्तर प्रदेश में कुल 224 गैर-विद्युतीकृत गांव थे। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इनमें से 53 निर्जन थे। कागजों पर, जनवरी 2017 के अंत तक, केवल एक गांव जो ग्रिड से जुड़ना था, अविद्युतीकृत था। जबकि 11 में ऑफ-ग्रिड बिजली होना बाकी था।
26 मार्च 2016 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, गर्व ( जीएआरवी ) ऐप पर विद्युतीकरण की प्रगति को चिह्नित करने के लिए सरकार द्वारा स्थापित वास्तविक-समय निगरानी प्रणाली में गलत तरीके से दर्ज आंकड़ों के साथ-साथ निगरानी प्रणाली में विसंगतियों के कारण ये संख्याएं बढ़ी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्राम विद्युत अभियंता, (जो कि विद्युतीकरण की निगरानी के लिए सरकार द्वारा नियोजित हैं) ने गांव को अविद्युतीकृत दर्ज किया है, लेकिन यह ऐप पर विद्युतीकरण के रूप दिखता है। कई निर्जन गांव भी विद्युतीकृत के रूप में चिह्नित थे और कई बार, जिन गांवों में बुनियादी ढांचा खड़ा किया गया था, उन्हें विद्युतीकृत के रूप में चिह्नित किया गया, जबकि कोई बिजली आपूर्ति नहीं की जा रही थी।
342 उदाहरण ऐसे थे. जहां इंजीनियर ने एक गांव को अविद्युतीकृत चिन्हित किया लेकिन एप पर विद्युतीकरण के रूप में दिखाया गया था।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के बेलब गांव में खंभे हैं, लेकिन कोई तार नहीं हैं। पिछले चार महीनों से कोई काम नहीं हुआ है।
नाम न बताने की शर्त पर विद्युतीकरण की प्रगति की निगरानी करने वाले एक निदेशक ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि सब-कांट्रेक्टिंग भी एक बड़ी समस्या है। उप-ठेकेदार अक्सर परियोजनाएं समाप्त नहीं करते हैं और गायब हो जाते हैं या इस्तेमाल की गई सामग्री को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। वह बताते हैं कि, “अगर दस पोल खड़े करने हैं तो बिल रिपोर्ट में हमें पंद्रह दिखाए जाते हैं और अक्सर काम ठीक से पूरा नहीं किया जाता है।”
सोनभद्र के बेलाच गांव की बात करें तो पूरे गांव में पोल और ट्रांसफार्मर लगे हैं, लेकिन वहां कोई तारें नहीं पहुंची हैं। उप-ठेकेदार ने आधा काम किया और गायब हो गया। इस बात को लकर गांव के प्रधान चंद्रामी काफी चिंतित दिखे।
वह कहते हैं, “उन्होंने कहा कि वे नवरात्री (अक्टूबर 2016 में) के बाद लौट आएंगे, लेकिन कभी वापस नहीं आए। अब चुनाव आ रहे हैं, गांव में हमारे पास दो बूथ हैं, कोई बिजली नहीं है। वे चाहते हैं कि हम वोट दें लेकिन वे इन बूथ पर बिजली नहीं देते। ”
(पाटिल विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 7 मार्च 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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