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इलाहाबाद में एक बंद बूचड़खाने के बाहर खड़ी गाय।

उत्तर प्रदेश में बूचड़खाने के बंद होने का प्रभाव राज्य के कुछ लाख लोगों के रोजगार पर हो सकता है। साथ ही इससे संबधित उद्योग भी प्रभावित हो सकता है और गरीब किसानों के लिए छोटे लेकिन महत्वपूर्ण राजस्व प्रवाहों को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से सूखा प्रभावित क्षेत्रों में। यह जानकारी मांस, चमड़े और पशुधन उद्योगों के उपलब्ध आंकड़ों के इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।

उत्तर प्रदेश के आधे लाइसेंस प्राप्त और कई अवैध बूचड़खाने नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के बाद बंद कर दिए गए हैं।

बूचड़खानों के खिलाफ अभियान उत्तर प्रदेश में तीन महत्वपूर्ण उद्योगों को प्रभावित करता है। मांस पैकेजिंग, पशुधन और चमड़ा। जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2017 में बताया है कि उत्तर प्रदेश के कुछ विकास संकेतक देश में सबसे बद्तर हैं। स्थिर कृषि और उद्योग इनमें से एक है इसके साथ ही बेरोजगारी दर के संबंध में यह राज्य दूसरे स्थान पर होने के साथ ही यह देश का आठवां सबसे ज्यादा सामाजिक आर्थिक पिछड़ा राज्य भी है।

20 करोड़ की आबादी के साथ ( ब्राजील की आबादी के बराबर ) उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था मध्य-पूर्वी के छोटे से देश कतर के आकार का है। कतर की आबदी 24 लाख है, जिसे उत्तर प्रदेश के शहर बिजनौर के बराबर माना जा सकता है।

वर्ष 2015-16 में, उत्तर प्रदेश में प्रति 1,000 लोगों पर ज्यादा लोग बेरोजगार थे। यह संख्या 58 थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 37 का रहा है और साथ ही यहां युवा बेरोजगारी भी उच्च थी। उत्तर प्रदेश में 18 से 29 वर्ष की उम्र के बीच प्रति 1,000 लोगों पर 148 लोग बेरोजगार थे। जबकि वर्ष 2015-16 के श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय औसत 102 है।

उत्तर प्रदेश के महत्वूर्ण योगदान के साथ मांस-पैकिंग और चमड़े के उद्योगों में भारत की निर्यात आय का बड़ा हिस्सा है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015-16 में भैंस-मांस निर्यात में उत्तर प्रदेश की करीब 43 फीसदी की हिस्सेदारी रही है, जो किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे ज्यदा है। कौंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स (सीएलई) के अनुसार, जो उत्पादन किया जा रहा है उसमें से 46 फीसदी निर्यात करने के साथ भारत के शीर्ष निर्यात अर्जक में से चमड़ा आठवें स्थान पर है। इनमें से एक तिहाई उत्तर प्रदेश के कानपुर से आता है। इस शहर में चमड़ा उद्योग पहले से ही संकट में है। इस पर इंडियास्पेंड ने फरवरी 2017 में विस्तार से बताया है।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चुनावी घोषणापत्र ने राज्य में सभी अवैध बूचड़खानों को बंद करने का वादा किया था। लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कुछ ‘अति उत्साही’ अधिकारियों ने अंधाधुंध कार्यवाही करते हुए, लाइसेंसधारी बूचड़खानों के साथ-साथ अवैध को भी बंद कर दिय़ा। अब सरकार इस पर विचार कर रही है।

इंडियास्पेंड के शोध से पता चलता है कि बूचड़खाना की पारिस्थितिकि थोड़ी जटिल है । यह विविध, ग्रामीण और शहरी आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों का समर्थन करता है। न केवल उत्तर प्रदेश में, बल्कि देश भर में।

1. मांस: भारत के भैंस-मांस निर्यात में 43 फीसदी हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की

उत्तर प्रदेश सरकार के निशाने पर जो अवैध बूचड़खाने हैं, उनका भारत के मांस बाजार पर प्रभुत्व है। एपीईडीए की इस रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू बाजार को पूरा करने वाले इकाइयों में 4,000 पंजीकृत हैं और 25,000 से ज्यादा पंजीकृत नहीं हैं। एपीईडीए की यह रिपोर्ट कहती है कि यहां तक ​​कि निर्यात बाजार के लिए पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों तरह के बूचड़खाने मांस का उत्पादन करते हैं।

कृषि सांख्यिकी रिपोर्ट -2015 के मुताबिक, भारत में मांस का सबसे बड़ा उत्पादक उत्तर प्रदेश है। वर्ष 2014-15 में, उत्तर प्रदेश ने भारत के मांस उत्पादन में 21 फीसदी योगदान दिया था। मांस निर्यात के लिए एपीईडीए के साथ पंजीकृत 75 बूचड़खानों में से करीब 49 उत्तर प्रदेश में हैं। इसका मतलब है कि राज्य में बड़ी संख्या में बूचड़खाने हैं और इनमें से कई अवैध हैं।

मांस उत्पादन, टॉप पांच राज्य

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Source: Agricultural Statistics At A Glance 2015

भारत से निर्यात होने वाले में से भैंस का मांस प्रमुख है। यह करीब 40 देशों में भेजा जाता है। वर्ष 2015-16 में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक भैंस का मांस का निर्यात दर्ज किया गया। इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान रहा है। वर्ष 2015-16 में भारत ने 26.685.42 करोड़ रुपये के 13.14 लाख मीट्रिक टन (एमटी) भैंस का मांस निर्यात किया है।

राज्य अनुसार भैंस मांस का निर्यात

Source: Compiled from APEDA Agri Exchange data

उत्तर प्रदेश के बूचड़खाने और मांस की दुकानों में नियोजित लोगों का कोई विश्वसनीय आकलन नहीं है, लेकिन इससे कई हजार लोगों के जुड़े होने की बात सामने आ रही है। कृषि सांख्यिकी, 2015 के अनुसार करीब 67 लाख लोग भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कार्यरत हैं, जिसमें बूचड़खानों और मांस प्रसंस्करण इकाइयां शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खाने का मुद्दा नया नहीं है। पूर्व समाजवादी पार्टी सरकार ने जून 2014 में इस मामले में जांच के आदेश जारी किया था। मई 2015 में, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार को उनके द्वारा किए गए प्रदूषण को रोकने के लिए अवैध बूचड़खानो के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था। बीजेपी सरकार की चाल एक कदम आगे बढ़ती है, न केवल अवैध वध पर प्रतिबंध लगा रही है बल्कि लाइसेंस प्राप्त यंत्र संचालित बूचड़खाने को भी रोकने पर जोर दे रही है, जो ज्यादातर कानूनी हैं और निर्यात पर केंद्रित हैं।

पिछली सरकारों ने निर्यात बाजार के लिए उत्पादन में वृद्धि और सुधार में पारंपरिक तरीकों पर मशीनीकृत वध प्रौद्योगिकी के लाभ को स्वीकार करते हुए उन्नयन के लिए वित्तीय सहायता की पेशकश की थी।

2. पशुधन: उत्तर प्रदेश ने 14 फीसदी वृद्धि दर्ज की, आर्थिक निर्भरता की ओर संकेत

मांस उत्पादन पूरी तरह से पशुओं पर निर्भर है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसने वर्ष 2012-13 की मौजूदा कीमतों पर भारत के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 4.11 फीसदी का योगदान दिया है। पशुधन जनगणना रिपोर्ट 2012 के मुताबिक कृषि, मछली पकड़ने और वानिकी क्षेत्रों में वर्तमान कीमतों पर मूल्य के आधार पर उत्पादन का लगभग 25.6 फीसदी का योगदान भी है।

भारत में विश्व पशुधन का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत

Source: Agricultural Statistics at a glance 2015 (in million)

जैसा कि उपर दिए गए टेबल में दिखाया गया है, भारत में दुनिया के पशुधन का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत है। पिछले दो पशुधन गणना की तुलना से पता चलता है कि वर्ष 2007 की तुलना में वर्ष 2012 में पशुओं में 3.33 फीसदी की कमी हुई है। लेकिन गुजरात और असम के साथ उत्तर प्रदेश में वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि 14 फीसदी की है, जो पशुधन और इससे जुड़े व्यवसायों पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को दर्शाता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पशुधन एक महत्वपूर्ण आर्थिक संसाधन हैं। भैंस, बकरी और भेड़ जैसे मवेशी कृषि परिवारों द्वारा रखी जाती हैं, जो ज्यादातर छोटे भूमि वाले हैं और भूमिहीन श्रमिक दूध और मांस के लिए मुख्य रूप से इसका उपयोग करते हैं। कृषि और परिवहन के साधन के तहत मवेशियों को खरीदने के लिए भी ऋण दिया जाता है। गरीब परिवार कसाईयों को थके हुए पशु बेचते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के गरीब और सूखा प्रभावित इलाकों में अक्सर आर्थिक संकटों को पूरा करने के लिए मवेशियों को बेचा जाता है।

3. चमड़ा: उद्योग से जुड़े ज्यादातर लोग वंचित समुदायों से

कौंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स डेटा के मुताबिक वर्ष 2014-15 में भारत के चमड़े के निर्यात का मूल्य 6.4 बिलियन डॉलर (39,097 करोड़ रुपये) और वर्ष 2015-16 में 5.8 बिलियन डॉलर (38,396 करोड़ रुपये) था।

भारत का चमड़ा और चमड़ा उत्पाद निर्यात, 2011-16

Source: Council for Leather Exports

भारतीय चमड़ा उद्योग 25 लाख लोगों को औपचारिक और अनौपचारिक रोजगार प्रदान करता है। इनमें से अधिकतर वंचित समुदायों से हैं। भारत के श्रम ब्यूरो द्वारा वर्ष 2009 के इस अध्ययन के अनुसार, चमड़ा उद्योग में एक तिहाई श्रमिक महिलाएं हैं और चौथाई श्रमिक अनुसूचित जाति और जनजाति से हैं। एक संस्था, ‘सेंटर फॉर एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन’ (सीईसी) के एक अध्ययन के अनुसार, चमड़े के श्रमिक पारंपरिक समुदायों से नहीं हैं और न ही मुस्लिम गरीब कृषि परिवारों से नहीं आते हैं।

(सिंह नई दिल्ली स्थित ‘इन्स्टिटूट फॉर कन्टेम्परेरी स्टडीज’ में एसोसिएट फेलो हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 मार्च 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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