उदारीकरण के दो दशक बाद तक, सृजन की गई 90 फीसदी नौकरियां अनौपचारिक
मुंबई: नेशनल सर्वे सैंपल ऑफिस (एनएसएसओ) के 2011-12 के आंकड़ों के इंडियास्पेंड विश्लेषण के अनुसार, 1991 में अर्थव्यवस्था में उदारीकरण के के 22 वर्षों के बाद भारत में सृजित की गई करीब 6.1 करोड़ नौकरियों में से 92 फीसदी अनौपचारिक थी।
कृषि से ( सबसे बड़े नियोक्ता ) संगठित औद्योगिक क्षेत्र की ओर श्रम के बढ़ने के साथ उदारीकरण के बाद भारत से काफी हद तक अनौपचारिक कृषि अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने की उम्मीद की जा रही थी। औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों को कार्यस्थल के आकार और कार्य के घंटों पर सरकारी नियमों के साथ, 'हायरिंग और फायरिंग' मानदंडों, एसोसिएशन के अधिकार, न्यूनतम मजदूरी और अन्य पहलुओं के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
उदारीकरण का उद्देश्य गरीबी में गिरावट, बेहतर मजदूरी और कामकाजी परिस्थितियों के माध्यम से जीवन स्तर में वृद्धि के रूप में श्रम को औपचारिक नौकरियों की ओर ले जाना था। फिर भी, 2011-12 में, संगठित क्षेत्र में कुल नौकरियों में से 51 फीसदी अनौपचारिक थे, जैसा कि आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है।
अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या 1999-2000 में 34.128 करोड़ से बढ़कर 2011-12 में 38.602 करोड़ हुई है, यानी 13 सालों में 13 फीसदी की वृद्धि। इसी अवधि के दौरान, औपचारिक श्रमिकों की संख्या 81.5 फीसदी बढ़ी, जो 2.046 कोरोड़ से बढ़ कर 3.715 करोड़ हुई है।
हालांकि, 1999-2000 में कुल कर्मचारियों में से 6 फीसदी औपचारिक श्रमिक थे , लेकिन 2011-12 में यह बढ़कर केवल 9 फीसदी हो गया। इससे साफ है कि औपचारिक क्षेत्र में जो नौकरियां पैदा हुई थीं, वे कम कमाई वाले श्रमिकों और सीमित या बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के मुख्य रूप से अनौपचारिक थीं।
हाल के अध्ययनों ने पुष्टि की है कि यह प्रवृत्ति जारी है। दिल्ली स्थित आर्थिक नीति थिंक-टैंक आईसीआरआईईआर की जनवरी 2019 की रिपोर्ट में पाया गया है कि संगठित विनिर्माण क्षेत्र में, 15 वर्षों से 2015-16 तक कुल रोजगार 78 फीसदी बढ़ गया और संख्या 1.37 करोड़ पर पहुंच गई। वहीं कुल रोजगार में ठेका श्रमिकों की हिस्सेदारी 15.5 फीसदी से बढ़कर 27.9 फीसदी हो गई थी और सीधे तौर पर काम पर रखने वाले श्रमिकों की संख्या इसी अवधि में 10.8 प्रतिशत अंक गिरकर 50.4 फीसदी हो गई, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 28 मार्च, 2019 की रिपोर्ट में बताया है। 8.3 फीसदी के आंकड़ों पर, कांट्रैक्ट रोजगार की औसत विकास दर नियमित रोजगार की तुलना में 5 फीसदी अधिक थी।
विनिर्माण कंपनियां ठेकेदारों के माध्यम से कम समय के लिए अधिक संख्या में अनौपचारिक श्रमिकों को और कम लोगों को स्थायी काम पर रख रही हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 28 मार्च, 2019 को राजस्थान के अलवर में एक बहुराष्ट्रीय निर्माता कंपनी के क्षेत्र में एक श्रम-प्रबंध विवाद पर रिपोर्ट किया था। हमारी जांच से पता चलता है कि, ऐसे श्रमिकों को कम वेतन मिलता है, काम करने की स्थिति खराब होती है और नौकरी की सुरक्षा कम होती है।
‘इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन’ और ‘वर्ल्ड एम्प्लॉइमन्ट फेडरेशन’ ने अनौपचारिक रोजगार की बढ़ती प्रवृति को जीवन में निम्न गुणवत्ता का सूचक बताया है। संगठनों का मानना है कि ऐसे कामों में बिना सामाजिक सुरक्षा के मजदूरों को नौकरियों में रखा जाता है।
दूसरी ओर, कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, बेरोजगार रहने की तुलना में काम करके कुछ अर्जित करना बेहतर है।
यह श्रृंखला रिपोर्ट भारत में रोजगार की स्थिति की हमारी पड़ताल करती है। हमारी पड़ताल चल रही है। अन्य रिपोर्ट यहां पढ़ें।
अधिक अनौपचारिक नौकरियां
भारत भर में अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों पर कलकत्ता विश्वविद्यालय की ओर से 2018 के एक अध्ययन से पता चलता है कि 2012 में अनौपचारिक क्षेत्र के आधे से अधिक श्रमिक स्व-नियोजित थे। मोटे तौर पर एक गरीब संपत्ति-बेस के साथ, और लगभग 30 फीसदी दिहाड़ी मजदूर आकस्मिक मजदूर थे। नियोजित लोगों में से लगभग 18 फीसदी नियमित श्रमिक थे, और उनमें से 8 फीसदी से भी कम लोगों के पास सामाजिक सुरक्षा के साथ नियमित, पूर्णकालिक रोजगार था।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन द्वारा 2003 में आयोजित 17 वें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में अनौपचारिक रोजगार को उन नौकरियों के रूप में परिभाषित किया गया है जहां, "... रोजगार संबंध कानून में या व्यवहार में है, राष्ट्रीय श्रम कानून से कोई रिश्ता नहीं है। आयकर, सामाजिक सुरक्षा या कुछ रोजगार लाभों के लिए काम करने वाले पात्रता के अधीन नहीं है ( जैसे कि बर्खास्तगी की अग्रिम सूचना, वेतन का भुगतान, वार्षिक या चिकित्सा छुट्टी... आदि का भुगतान)।"
Source: Azim Premji University, State Of Working India, 2018
संगठित, औपचारिक क्षेत्र में अनौपचारिक काम और असंगठित, अनौपचारिक क्षेत्र में भी औपचारिक काम हो सकता है। एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार, 2004-05 और 2009-10 के बीच संगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर में 8.4 फीसदी की वृद्धि हुई है, लेकिन इस क्षेत्र में अनौपचारिक रोजगार की हिस्सेदारी 1999-2000 में 32 फीसदी से बढ़कर 2004-05 में 54 फीसदी और 2011-12 में 67 फीसदी हुई है।
यहां तक कि अनौपचारिक रोजगार में श्रमिकों की वृद्धि हुई है, असंगठित और संगठित दोनों क्षेत्रों में चढ़ाव पर है, इसकी पुष्टि अप्रैल 2018 में 'इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च जर्नल ऑफ बिजनेस एंड मैनेजमेंट' में प्रकाशित इस अध्ययन में की गई है। अध्ययन में कहा गया है कि औपचारिक क्षेत्र में अनौपचारिक श्रमिकों का प्रतिशत 1999 में 38 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 51 फीसदी हो गया है।
अनौपचारिक श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में वृद्धि,1999-2000 से 2011-12Sources: National Sample Survey, 1999-2011
जबकि सेवा क्षेत्र ने 1991 और 2012 के बीच बनाए गए 6.1 करोड़ नौकरियों में से अधिकांश का योगदान दिया, इनमें से अधिकांश प्रकृति में अनौपचारिक बने रहे। 2011-12 में सेवा क्षेत्र में कार्यरत 12.73 करोड़ लोग, 80 फीसदी अनौपचारिक श्रमिक थे। अनौपचारिक श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में वृद्धि, 1999-2000 से 2011-12।
Sector-Wise Breakup Of Informal Workers, 2004-2011 | ||||||
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Year/ Sector | Organised Sector | Unorganised Sector | Total | |||
2004-05 | ||||||
Formal | Informal | Formal | Informal | Formal | Informal | |
Agriculture | 0.2 | 4.1 | 0.1 | 264.2 | 0.3 | 268.2 |
Manufacturing | 5 | 10.3 | 0.6 | 38 | 5.6 | 48.3 |
Non-manufacturing | 2 | 7.2 | 0.1 | 20.1 | 2.1 | 27.3 |
Services | 19.5 | 10 | 1.1 | 76.8 | 20.6 | 86.7 |
Total | 26.7 | 31.5 | 1.9 | 399 | 28.6 | 430.5 |
2009-10 | ||||||
Agriculture | 0.3 | 13 | 0 | 231.5 | 0.4 | 244.5 |
Manufacturing | 5.3 | 11.1 | 0 | 33.9 | 5.7 | 45 |
Non-manufacturing | 2.5 | 15.8 | 0.4 | 29.6 | 2.9 | 45.4 |
Services | 22.7 | 13.5 | 1.4 | 78.7 | 24.1 | 92.2 |
Total | 30.9 | 53.5 | 2.3 | 373.7 | 33.1 | 427.1 |
2011-12 | ||||||
Agriculture | 0.5 | 17.7 | 0 | 213.6 | 0.6 | 231.3 |
Manufacturing | 6 | 15 | 0 | 38.7 | 6.5 | 53.3 |
Non-manufacturing | 3 | 20 | 0 | 32.7 | 2.9 | 52.3 |
Services | 24.2 | 16.1 | 1 | 85.8 | 25.4 | 101.9 |
Total | 34 | 68 | 2 | 370.8 | 35.4 | 438.9 |
Source: National Institute of Labour Economics Research, 2014 Note: Figures in million
हालांकि अभी भी कृषि में रोजगार का प्रमुख हिस्सा है, लेकिन 2004-05 में इसकी हिस्सेदारी 58 फीसदी से घटकर 2011-12 में 49 फीसदी हो गई। अनौपचारिक कार्यबल बढ़ने के साथ यहां अधिकांश रोजगार अनौपचारिक हैं।मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की कुल रोजगार की हिस्सेदारी 2004-05 में 12 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 13 फीसदी हो गई है।
सेवा क्षेत्र ने भी 2004-05 में 10.73 करोड़ से 2011-12 में 12.73 करोड़ ( 19 फीसदी वृद्धि) की वृद्धि देखी, लेकिन 80 फीसदी नौकरियां अनौपचारिक हैं।
अनौपचारिक नौकरियों में अधिक महिला श्रमिक
अनौपचारिक कार्यबल का एक लिंग-वार ब्रेकअप 1999-2000 में 25.2 करोड़ पुरुष और 11.8 करोड़ महिला श्रमिकों को दर्शाता है। 2009-10 में यह बढ़कर 27.0 करोड़ पुरुष कर्मचारियों तक पहुंच गया, लेकिन इसी अवधि के दौरान महिला कर्मचारियों की संख्या घटकर 10.8 करोड़ हो गई, जैसा कि एनएसएसओ के आंकड़ों से पता चलता है। यह 1983 से 2011-12 तक महिला श्रमिकों के लिए नियमित वेतनभोगी कार्यों में गिरावट और स्व-नियोजित, आकस्मिक श्रम में वृद्धि के साथ है।
महिला और पुरुष श्रमिकों द्वारा लिया गए कामों का प्रकारSource: India’s Informal Employment in the Era of Globalization: Trend and Challenges, IOSR Journal Of Business Management, April 2018
महिला अनौपचारिक कार्यकर्ता मुख्य रूप से कृषि में लगे हुए हैं और कुछ मैन्युफैक्चरिंग, व्यापार, होटल, रेस्तरां, समुदाय, सामाजिक व्यक्तिगत, सेवाओं और कन्सट्रक्शन में शामिल हैं।
अखिल भारतीय स्तर पर, नेशनल सैंपल सर्वे के 68 वें दौर (2011-12) के लिए, शहरी और ग्रामीण दोनों के लिए स्वरोजगार श्रमिकों के लिए पुरुषों (48 फीसदी) की तुलना में महिलाओं (51.2 फीसदी) का अनुपात ज्यादा था।
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नियमित वेतन / वेतनभोगी कर्मचारियों ने शहरी कार्यबल (43.6 फीसदी) के उच्च अनुपात का गठन किया है।
यह भी स्पष्ट है कि ग्रामीण महिला कार्यबल (94.4 फीसदी) के बीच आकस्मिक (अनौपचारिक) श्रम के साथ स्वरोजगार का अनुपात अधिक है, वहीं, शहरी महिलाओं के लिए यह आंकड़े 57.1 फीसदी, शहरी पुरुषों के लिए 56.1 फीसदी और ग्रामीण पुरुषों के लिए 90 फीसदी हैं।
इस प्रकार, भले ही 1983 के बाद से समग्र रोजगार और महिला श्रम बल की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन ज्यादातर नौकरियां अनौपचारिक हैं, जो कि "कार्यबल की अनौपचारिकता " को बढ़ाती है, जैसा कि कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा 2018 के एक अध्ययन में कहा गया है।
कोलकाता के चारुचंद्र कॉलेज की ओर से 2018 के इस अध्ययन के अनुसार, आकस्मिक रोजगार में गिरावट और शहरी महिलाओं के नियमित रोजगार में वृद्धि एक आशाजनक विकास है।
इस अध्ययन के अनुसार, नियमित वेतन / वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी ग्रामीण कार्यबल का केवल 7.8 फीसदी थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 56.8 फीसदी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में कुल श्रमबल का लगभग 92.2 फीसदी हिस्सा कैजुअल श्रम के साथ-साथ स्वरोजगार का था।
क्यों अनौपचारिक नौकरियां?
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा 'स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया -2018' के अध्ययन ने संगठित सेवाओं और मैन्युफैक्चचरिंग क्षेत्रों में अनौपचारिक श्रमिकों में वृद्धि के कारणों के रूप में औपचारिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए औपचारिक शिक्षा की कमी और अन्य बाधाओं की ओर इंगित किया है।
'इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस' द्वारा 2018 के एक अध्ययन के अनुसार मैन्युफैक्चरिंग में, अनौपचारिकता में वृद्धि दो कारणों से होती है: पहला- बड़ी से छोटी इकाइयों में उत्पादन के फैलाव के कारण; और दूसरा- कम नियमों के अधीन एक अनौपचारिक कार्यबल के निर्माण के कारण, एक तथ्य यह है कि कैन्ट्रैक्ट (या अनौपचारिक) श्रमिकों को नियोजित करना नियमित या औपचारिक कार्यकर्ता की सौदेबाजी की शक्ति को कम करता है, कुल मिलाकर मजदूरी की मांग को दबा देता है।
2018 की 'ऑक्सफैम रिपोर्ट' में कहा गया है, आयात की बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण औद्योगिक श्रम का अनौपचारिक रूप से विकास हुआ है, क्योंकि निर्माता अनौपचारिक श्रमिकों को कम वेतन देकर प्रतिस्पर्धा में बने रहना चाहते हैं और श्रमिक लाभों पर कम खर्च करके बचत करते हैं।
(सालवे वरिष्ठ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 9 मई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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