एक दशक में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या में 39% वृद्धि
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: !
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया: !
यानि जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवता बसते हैं और जहां नारियों को उचित सम्मान नहीं मिलता वहां कितनी भी कोशिश की जाए, उचित फल नहीं मिलता है।
संस्कृत का यह श्लोक महिलाओं के ( भारत की 1.2 बिलियन आबादी में से 48.9 फीसदी या 587 मिलियन महिलाएं हैं ) एक विशेष जनसांख्यिकीय के लिए प्रसांगिक हैं जिन्हें आमतौर पर सम्मान नहीं मिलता है: 71.4 मिलियन महिलाएं या कुल महिलाओं की जनसंख्या की 12 फीसदी महिलाएं अकेली रहती हैं।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, देश में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या में 39 फीसदी की वृद्धी हुई है। वर्ष 2001 में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या 51.2 मिलियन पाई गई थी जबकि 2011 के आंकड़ों के अनुसार यह आंकड़े बढ़ कर 71.4 मिलियन हुए हैं। अकेली रहने वाली महिलाओं में विधवाएं, तलाकशुदा महिलाएं, अविवाहित एवं पति से अलग रहने वाली महिलाएं शामिल हैं।
एकल महिलाओं के अधिकार के राष्ट्रीय फोरम की अध्यक्ष, निर्मल चंदेल का कहना है कि, “एकल महिलाओं की संख्या में वृद्धि की कारण पति की मृत्यु होना, पति से अलग होना एवं तलाक लेना है।”
एकल महिलाओं की आयु अनुसार वितरण, 2011
एकल महिलाओं की आयु अनुसार वितरण, 2001
25 से 29 आयु वर्ग की बीच एकल महिलाओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि
20 से 24 की आयु वर्ग की महिलाओं (16.9 मिलियन ) में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या 23 फीसदी है। यह आंकड़े संकेत है कि देश में लड़कियों की विवाह की उम्र और उपर हुई है।
जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 1990 में जहां लड़कियों की शादी की आयु 19.3 वर्ष थी वहीं 2011 में यह बढ़ कर 21.2 वर्ष हुई है।
20 से 24 वर्ष के आयु वर्ग के बाद सबसे अधिक अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या 60 से 64 के आयु वर्ग में है। 2011 के आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ग में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या सात मिलियन है।
2001 से 2011 के बीच 25 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि ( 68 फीसदी ) देखी गई है, वहीं 20 से 24 आयु वर्ग में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या 60 फीसदी दर्ज की गई है। यह आंकड़े निश्चित तौर पर विवाह व्यवस्था में विकार का संकेत देती है।
ग्रामीण इलाकों में विधवाओं की संख्या, 29.2 मिलियन, सबसे अधिक दर्ज की गई है। वहीं अविवाहित महिलाओं की संख्या 13.2 मिलियन पाई गई है।
शहरी इलाकों में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। यहां भी विधवा महिलाओं की संख्या सबसे अधिक, 13.6 मिलियन है जबकि अविवाहित महिलाओं की संख्या 12.3 मिलियन दर्ज की गई है।
देश के ग्रामीण इलाकों में करीब 44.4 अकेले रहने वाली महिलाएं रहती हैं यानि देश की 62 फीसदी अकेले रहने वाली महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र से हैं।
हालांकि शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है, शहरों में अकली रहने वाली महिलाओं की संख्या में 58 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़ों के मुताबिक 2001 में शहरी इलाकों में ऐसी महिलाओं की संख्या 17.1 मिलियन थी जबकि 2011 में यह बढ़ कर 27 मिलियन हुए हैं।
सबसे अधिक अकेली रहने वाली महिलाओं वाले राज्य, 2011
Source: Census 2011
उत्तर प्रदेश में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या सबसे अधिक, 12 मिलियन , है। इनमें सबसे अधिक संख्या अविवाहित महिलाओं की है। इस संबंध में दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र में अकेली रहने वाली महिलाओं की संख्या 6.2 मिलियन दर्ज की गई है जबकि 4.7 मिलियन के आंकड़ों के साथ आंध्रप्रदेश तीसरे स्थान पर है।
उत्तर प्रदेश में परिवार चलाने वाली महिलाओं की संख्या भी सबसे अधिक, 2.5 मिलियन है। इस संबंध में आंध्रप्रदेश के आंकड़े भी 2.5 मिलियन ही है जबकि 2.4 मिलियन के आंकड़ों के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है।
महिलाओं द्वारा परिवार चलाने वाले राज्य, 2011
Source: Census 2011
एकल महिलाओं के अधिकार के लिए राष्ट्रीय फोरम ( एनएफएसडब्लूआर ) की रिपोर्ट के अनुसार “ग्रामीण इलाकों में अकेली रहने वाली महिलाएं लगातार सामाजिक पूर्वाग्रहों एवं अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं।”
रिपोर्ट कहती है कि “अपने पति की मौत के बाद ससुराल में अत्याचार झेल रही विधवा महिलाएं कठोर सामाजिक व धार्मिक रीति-रिवाजों के बीच फंस गई हैं।”
अकेली रहने वाली महिलाओं को भेदभाव का करना पड़ता है सामना
अकेली रहने वाली महिलाओं को केवल भौतिक और वित्तीय असुरक्षा का ही नहीं बल्कि भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। पिछले महीने ही एनएफएसडब्लूआर द्वारा आयोजित एक बैठक में इसी बात पर चर्चा की गई है।
महिलाओं द्वारा घर चलाने लेकिन उन्हें उनके हिस्से की पहचान न मिल पाने जैसे कई गंभीर मुद्दों पर इस बैठक में चर्चा की गई है।
सुहागिनी टुडू, सचिव एनएफएसडब्लूआर, ने कहा , “उद्हारण के लिए झारखंड में आदिवासी महिलाएं अपने नाम से भूमि नहीं खरीद सकती हैं और इस कानून को बदलने के लिए हमारी लड़ाई जारी है। यहां तक कि इस संबंध में महिलाओं को जहां कानूनी अधिकार प्राप्त है हमने देखा है कि महिलाओं का भूमि पर वास्तविक अधिकार एवं नियंत्रण सपने जैसा ही है।”
नोट: यह विश्लेषण केवल 20 से अधिक उम्र की महिलाओं पर आधारित है।
( सालवे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 नवंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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