ऑड-ईवन प्रणाली सफल बनाने के लिए दिल्ली बस सेवा को बेहतर बनाने की आवश्यकता
हाल ही में, दिल्ली की सड़कों पर 15 दिनों के लिए फिर से वाहनों के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूला शुरु किया गया है। लेकिन, अनिवार्य अनुपालन और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग करने के प्रोत्साहन के आभाव में, पिछली बार की सकारात्मक प्रतिक्रिया को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
पिछले चार वर्षों के दौरान, आईआईटी दिल्ली में किए गए अध्ययन में, जो वैश्विक पत्रिकाओं तथा सम्मेलनों में प्रकाशित हए हैं (जिनमें से कुछ यहां, यहां और यहां हैं) उन यात्रियों का सर्वेक्षण किया है जो अपने दैनिक कार्यों के लिए बसों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जब हमने उन्हें मासिक आय के आधार पर वर्गीकृत किया तो हमने पाया कि सबसे कम आय वर्ग (30,000 रुपये प्रति माह से कम) में से 39 फीसदी से अधिक यात्री, आने-जाने के लिए कार का इस्तेमाल करते हैं।
इसका मतलब हुआ कि दिल्ली में यात्री, बसों का उपयोग करने के लिए अनिच्छुक हैं, जो कुल यात्रियों में से 42 फीसदी यात्रियों को ले जाने और ले आने का काम करते हैं (25 फीसदी मेट्रो और 25 फीसदी निजी वाहनों का उपयोग करते हैं)। हमारे शोध के अनुसार यात्रियों के बसों का इस्तेमाल न करने का मुख्य कारण शायद बसों में अत्यधिक भीड़ होना हो सकता है। किराया, हिफाज़त और सुरक्षा कुछ अन्य कारण हैं।
दिल्ली वालों का आवागमन
दिल्ली सांख्यिकीय सारांश के अनुसार, भारत का सबसे बड़ा महानगरीय सड़क नेटवर्क होने के बावजूद, दिल्ली की सड़कों पर इसलिए भीड़-भाड़ है क्योंकि भारत के किसी भी अन्य शहर की तुलना में दिल्ली की सड़कों पर सबसे अधिक वाहन हैं : तीन मिलियन कारें (या 30 लाख) और 5.5 मिलियन (या 55 लाख) दोपहिया वाहन। गौर हो कि हर रोज़ 1,000 से अधिक कारें बढ़ती हैं।
क्या चाहते हैं दिल्ली के कम्यूटर : अधिक बसें
हमने शोध में पाया कि मौजूदा बस उपयोगकर्ता बसों की व्यवस्था में और अधिक बसें जोड़ना चाहते हैं और किसी भी प्रमुख प्रणालीगत कानून और व्यवस्था की उलट-पुलट की उम्मीद नहीं करते हैं। लोगों को निजी वाहनों से स्थानान्तरित करने के लिए सार्वजनिक परिवहनों को निजी वाहनों की ही तरह, या उससे भी अधिक, आकर्षक बनाने की आवश्यकता है।
हमारी धारणा विश्लेषण से पता चला कि जो बसों का उपयोग नहीं करते हैं उनके लिए भी बसों में अत्यधिक भीड़ होना चिंता का मुख्य विषय है।
समयबद्धता, निष्कपटता , समय की पाबंदी और पहुंच अन्य चिंता के विषय हैं। ज़ाहिर है, बसों की पहुंच का विस्तार करने और लोगों को कारों से बसों तक लाने के लिए बसों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
दिल्लीवाले क्यों पसंन नहीं करते सार्वजनिक बसें
वैश्विक स्तर पर, कम्यूटर का व्यवहार बदलने के लिए कई हस्तक्षेप किए गए हैं और यात्रियों को सार्वजनिक परिवाहन तक ले जाया गया है। हमारे शोध से पता चला है कि दिल्ली के यात्री भी, यदि इनमें बदलाव किया जाए तो, सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं।
इन बदलाव में, बसों के लिए अलग लेन और निजी वाहनों के लिए कंजेशन शुल्क शामिल है। दोनों एक दोहरे उद्देश्य को पूरा करते हैं : यात्रियों को विशेषाधिकार दे कर उन्हें बसों का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं (जैसा उन्हें करना चाहिए, क्योंकि उनसे कम भीड़ और प्रति यात्री कम प्रदूषण होगा) और निजी वाहनों का उपयोग कम कर, उनके इस्तेमाल को हतोत्साहित कर सकते हैं और प्रति यात्री किलोमीटर अधिक प्रदूषण पैदा करने के लिए निष्पक्ष / स्वीकार्य वित्तीय दंड लगा सकते हैं।
इस तरह के हस्तक्षेप का अंतरराष्ट्रीय अनुभव सकारात्मक है।
इस अध्ययन के अनुसार, उदाहरण के लिए, 2005 में , स्टॉकहोम, स्वीडन में रहने वाले आधे से अधिक निवासी कंजेशन शुल्क के कार्यान्वयन से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन बाद में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया और यात्रा के समय और निजी वाहनों के प्रयोग में कमी की सराहना की है।
इस अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में, यदि ध्यान देकर किया जाए तो, ऐसे कंजेशन शुल्क से अकेले ही बसों का इस्तेमाल न करने वाले 5 फीसदी लोगों को बसों की ओर ले जा सकते हैं।
इसके अतिरिक्त, आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप, जैसे कि बैठने एवं खड़े होने की जगह सुनिश्चित करने के लिए अधि बसें, अधिक प्रत्यक्ष लिंक और परेशानी मुक्त टिकट की प्रणाली से अधिक लोग बसों की ओर आ सकते हैं।
(हमारी चल रही शोध – लगभग समाप्ति पर – किस प्रकार बसों के बेहतर नेटवर्क में विभिन्न मार्गों को फिर नियत जोड़ा जा सकता है /, यह निर्धारित करने के लिए परिष्कृत गणितीय मॉडलिंग का उपयोग करता है। अन्य कम्यूटर चिंताओं को संबोधित करने लिए हम अन्य तरीके विकसित कर रहे हैं।)
यदि सुधार हो जाए तो अधिक किराया देने के लिए तैयार दिल्ली बस यात्री
मौजूदा निजी वाहनों का इस्तेमाल करने वाले 60 फीसदी लोगों ने, अधिक बसों की संख्या होने पर बसों का इस्तेमाल करने की इच्छा व्यक्त की है।
हमने यह भी पाया कि मौजूदा बस यात्री, उच्च किराया को बाधा के रुप में नहीं देखते हैं, जिसका मतलब हुआ कि किराया – न्यूनतम 28 फीसदी है और एसी एवं गैर एसी बसों के लिए मुबंई की तुलना में दिल्ली में 68 फीसदी कम है - सवारियों को प्रभावित किए बिना बढ़ाया जा सकता है ।
गैर- बस उपयोगकर्ताओं पर हस्तक्षेप के प्रभाव (%)
अंत में, पार्किंग शुल्क और बुनियादी ढांचे के रूप में नवीन पार्किंग में बढ़ोतरी, जैसे कि सरोजिनी नगर बहु स्तरीय पार्किंग, यातायात भीड़ और प्रदूषण कम करने के अन्य तरीके हैं। दिल्ली में मासिक पार्किंग शुल्क वैश्विक मानकों से कम है । सामान्य तौर पर, हांगकांग और चीन की तुलना में भारतीय शहरों में 13 गुना कम पार्किंग शुल्क लिया जाता है जबकि सिंगापुर से 20 गुना कम शुल्क वसूला जाता है।
विभिन्न शहरों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि स्मार्ट पार्किंग रणनीतियां, यात्रियों को सार्वजनिक परिवहन की ओर ले जाने में सहायक होता है।
हमारे निष्कर्ष से इस बात की पुष्टि होती है कि, यदि इस पूरी प्रणाली में सुधार हो तो दिल्ली के यात्री सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के लिए इच्छुक हैं।
दिल्ली में वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर नियंत्रण पाने, सड़कों पर भीड़ कम करने एवं सार्वजनिक परिवाहन की ओर यात्रियों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए ऑड-ईवन स्कीम के अलावा भी कई कठिन कदम उठाने पड़ेंगे।
(बोलिया ऑपरेशन रिसर्च में पीएचडी हैं एवं डिपार्टमेंट ऑफ मेकानिकल इंजिनियरिंग, आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 अप्रैल 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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