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करीब 6 करोड़ भारतीय – दक्षिण अफ्रिका की आबादी से अधिक संख्या – मानसिक विकारों से पीड़ित हैं। गौर हो कि देश मानसिक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों पर चिकित्सा पेशेवरों और खर्च में दुनिया में पीछे है।

2005 के अंत तक करीब 1 से 2 करोड़ भारतीय (जनसंख्या का 1-2 फीसदी)गंभीर मानसिक विकारों जैसे कि स्किट्सफ्रीनीअ और बाईपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित हैं और करीब 5 करोड़ लोग (जनसंख्या का 5 फीसदी) आम मानसिक विकार जैसे कि अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं। यह जानकारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने मई 2016 को समष्टि अर्थशास्त्र और स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय आयोग, 2005 की उपलब्ध अंतिम रिपोर्ट का हवाला देते हुए लोकसभा को दी है।

भारत मानसिक स्वास्थ्य पर अपने स्वास्थ्य बजट का 0.06 फीसदी खर्च करता है। यह बांग्लादेश (0.44 फीसदी) की तुलना में कम है। 2011 की इस विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश विकसित देश मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान, बुनियादी सुविधाओं, ढ़ांचा और प्रतिभा पूल पर अपने बजट के 4 फीसदी से अधिक खर्च करते हैं।

हालांकि, केंद्र सरकार मानसिक रोगियों पर किसी भी प्रकार का डेटासेट की देखरेख नहीं करता है क्योंकि स्वास्थ्य, राज्य का विषय है जबकि तीन केंद्रीय संस्थानों में मरीजों पर डेटा मौजूद है :

मानसिक रुप से बीमार रोगियों की संख्या में वृद्धि

एक अन्य डेटा सेट जो मानसिक बीमारी के स्तर पर नज़र रखता है उनमें बीमारी के कारण होने वाले आत्महत्याओं के परिणाम हैं।

मानसिक बीमारी से होने वाली आत्महत्याएं

Source: National Crime Records Bureau 2014

हालांकि, विक्षिप्तता के कारण हुई मौतों में गिरावट हुई है। इस संबंध में आंकड़े 2010 में 7 फीसदी से गिरकर 2014 में 5.4 फीसदी हुए हैं जबकि मानसिक विकार से होने वाली मौतों की संख्या 7,000 से अधिक रही है।

सरकार ने मानसिक रोगियों की संख्या का अनुमान लगाने और मानसिक सेवाओं के उपयोग के पैटर्न का पता लगाने के लिए बैंगलुरु के नेश्नल इंस्टट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (निमहांस) को एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण का कार्यभार सौंपा है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से लोकसभा में दिए गए एक जवाब के अनुसार, 1 जून, 2015 में अध्ययन शुरू किया गया था और 5 अप्रैल 2016 तक 27,000 उत्तरदाताओं साक्षात्कार लिया गया है।

मानसिक मुद्दों का समाधान निकालने के लिए भारत में स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है, विशेष रूप से जिला और उप जिला स्तर पर काफी कमी देखी गई है।

दिसंबर 2015 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए एक जवाब के अनुसार, राष्ट्र स्तर पर 3,800 मनोचिकित्सकों, 898 नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक, 850 मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता और 1500 मनोरोग नर्सें हैं।

इसका मतलब हुआ कि प्रति मिलियन लोगों पर मनोचिकित्सक हैं। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार यह राष्ट्रमंडल द्वारा तय किए गए प्रति 100,000 लोगों पर 5.6 मनोचिकित्सक के मानक से 18 गुना कम है।

इस अनुमान के अनुसार, भारत में 66,200 मनोचिकित्सकों की कमी है।

इसी तरह, प्रति 100,000 लोगों पर 21.7 मनोरोग नर्सों की वैश्विक औसत के आधार पर, भारत में 269750 नर्सों की जरूरत है।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2013, 8 अगस्त, 2016 को राज्य सभा में एक मत से सर्वसम्मति से पारित किया गया था। नए विधेयक में मानसिक बिमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों के विभिन्न अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य योजना के लिए फंड

Source: Rajya Sabha

नए विधेयक से मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्कृष्टता के केंद्र के फंड में वृद्धि हुई है। यह फंड प्रति केंद्र 30 करोड़ रुपए से बढ़ कर 33.70 करोड़ रुपए हुए हैं।

मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कम से कम 15 उत्कृष्टता के केंद्र और मानसिक स्वास्थ्य स्पेशल्टीज़ में 35 स्नातकोत्तर प्रशिक्षण विभागों को राष्ट्र स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी से निपटने के लिए वित्त पोषित किया गया है।

(सालवे इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 02 सितम्बर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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