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जब करुण मिश्रा की मौत हुई – मोटर-साईकिल सवार द्वारा गोली मार कर हत्या की गई – तो पूरे परिवार के लिए यह एक बड़ा सदमा था। करुण मिश्रा अपने पीछे अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चे छोड़ गए हैं। लेकिन करुण मिश्रा, उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर ज़िले में पत्रकार, को उनकी जान खतरे में होने का अंदेशा था। यह जानकारी मिश्रा के साथी, मनीष तिवारी ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए दी।

हिंदी दैनिक अखबार में काम करने वाले आदर्शवादी पत्रकार, 32 वर्षीय करुण मिश्रा, लगातार इलाके में होने वाले अवैध खनन से संबंधित रिपोर्टिंग कर रहे थे। यह उनकी मेहनत का ही असर था जिससे खनन में प्रयुक्त जेसीबी व ट्रैक्टर को सीज कर दिया गया था। मिश्रा के दोस्त कहते हैं कि माफियाओं ने रिश्वत दे कर मिश्रा को खरीदने की कोशिश भी की थी। लेकिन मिश्रा नहीं मानें। मिश्रा के दोस्त के अनुसार, “5 फरवरी जो उन्हें जानकारी मिली थी कि उनके खिलाफ साजिश की जा रही है और 11 और 12 फरवरी को उनके साथ कुछ गलत होने वाला है।”

आंकड़ों को स्वतंत्र रूप संकलित करने वाली संस्था, द हूट और इंडियास्पेंड के अनुसार, करुण मिश्रा के मौत के एक दिन बाद, मार्च 2015 से भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य में पांचवे पत्रकार की हत्या की गई, जो कि देश भर में हुई 10 हत्याओं का आधा है। रिपोर्टस विदआउट बॉर्डरस (आरएसएफ), एक वैश्विक संस्था, के अनुसार “पाकिस्तान और अफगानिस्तान को पीछे छोड़ते हुए, भारत मीडियाकर्मियों के लिए एशिया का सबसे घातक देश है। ” कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ जर्नलिस्ट (सीपीजे) ने भी 2015 के आंकड़ों के अपने संकलन को दिखाते हुए इस बयान की पुष्टि की है। पाकिस्तान में केवल दो पत्रकारों की मौत हुई है जबकि अफगानिस्तान में एक भी पत्रकार की हत्या नहीं हुई है।

करुण का मामला थोड़ा अलग है क्योंकि इस हत्या के पीछे के मास्टरमाइंड और शूटर दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है। ऐसा कम ही होता है। सीपीजे के आंकड़ो के अनुसार, 1992 से लेकर अब तक, काम संबंधित कारणो से कम से कम 24 पत्रकारों की हत्या की गई है। लेकिन 96 फीसदी मामले अनसुलझे हैं। सीपीजे के दंडमुक्ति सूचकांक (इम्प्यूनिटी इंडेक्स) के अनुसार भारत विश्व स्तर पर 14वें स्थान पर है।

परनजॉए गुहा ठाकुरता, मीडिया कमेंटेटर और एडिटर, आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि “इसका कारण यह है कि संबंधित सरकार वास्तव में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है।”

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कहती है कि, “भारतीय पत्रकारों का संगठित अपराध को कवर करने का साहस एवं उनके नेताओं के साथ संबंध को उजागर करना हिंसा तक पहुंच गया है, विशेष कर आपराधिक मूल का जो 2015 से शुरु हुआ है।” विभिन्न प्रकार के रेत एवं खदान के लिए अवैध खनन – विशेष रुप से निर्माण उद्योग के लिए रेत – एक ऐसा अपराध है जो तेज़ी से पूरे देश में फैल रहा है।

आरएसएफ (2015 में) द्वारा निगरानी करने वाले दो मामले अवैध खनन से संबंधित थे, 2015 में आरएसएफ द्वारा जारी की गई रिपोर्ट कहती है कि, “भारत में यह एक संवेदनशील विषय है।” आरएसएफ के आंकड़े कार्य संबंधित कारणों से हुई हत्याओं की पुष्टि का अनुमान है; चार और मामले पुष्टि का इंतज़ार कर रहे हैं।

शक्तिशाली अवैध उद्योग के खिलाफ खड़े हुए जुझारु करुण

करुण के एक और साथी, अनिल दिवेदी कहते हैं कि, “वह केवल किसी घटना को कवर करने में विश्वास नहीं करते थे, बल्कि परिणाम उन्मुख काम करना चाहते थे...वह बहुत ही जुझारु पत्रकार थे। वह कभी पुलिस को फोन कर यह नहीं कहते थे कि फलां जगह फलां हो रहा है आप जाइए बल्कि वह कहते कि हमारे साथ चलिए।”

करुण की हत्या से चार दिन पहले ही अनिल की मुलाकात करुण से हुई थी। मुलाकात को याद करते हुए अनिल कहते हैं कि करुण ने उनसे कहा था कि, “कुछ परेशानियां हैं...कुछ खतरा है...लेकिन मुझे लड़ना है।”

करुण की लड़ाई शक्तिशाली अवैध उद्योग के खिलाफ थी जो जनवरी 2015 में लागू हुए नए कानून के बावजूद तेजी से फैल रहा है। नए कानून के अनुसार अवैध रुप से भूमि खनन करने वाले को पांच साल की जेल या प्रति हेक्टर 500,000 रुपए का जुर्माना भरना पड़ सकता है।

लेकिन पिछले छह वर्षों में अवैध खनन में तेज़ी से वृद्धि हुई है (सिवाए 2013-14 के जब इसमें गिरावट देखी गई थी), जैसा कि राज्यसभा को दिए गए इस सरकारी दस्तावेज़ से पता चलता है। उत्तर प्रदेश में, जहां अवैध खनन की जांच की कीमत करुण को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, वहां पिछले एक दशक में ऐसे मामलों की रिपोर्ट दोगुनी हुई है।

उत्तर प्रदेश में अवैध खनन

Source: Rajya SabhaData for 2015-16 is as of January 2016.

उत्तर प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था और राजनीति में अवैध खनन जुड़े होने के साथ ही करुण के परिवार और दोस्तों ने बताया कि तमाम गिरफ्तारियां होने के बावजूद भी इलाके में अवैध खनन रुका नहीं है।

हमने करुण के जिन दो दोस्तों से बात की, उनका कहना है कि, “जिस कारण करुण की हत्या की गई वह अब भी चल रहा है। पुलिस ने इसे रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।”

करुण के छोटे भाई वरुण अब तक इस सदमें से उबर नहीं पाए हैं। वरुण याद करते हुए कहते हैं कि 13 फरवरी को उन्होंने अपने भाई को फोन किया था लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। वरुण कहते हैं कि, “रात को 11 बजे मेरे चाचा का फोन आया। उन्होंने बताया कि भाई की हत्या कर दी गई है। मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। मैं अब तक सदमें में हूं।”

46 फीसदी भारतीय पत्रकारों की हत्या, पॉलिटिक्स कवर करते हुए काम के दौरान हुई है

सीपीजे आंकड़ों के अनुसार, 1992 से अब तक केवल 3 फीसदी पत्रकार की मौत युद्ध कवर करने के दौरान हुई है और 46 फीसदी पत्रकारों की मौत, पॉलिटिक्स कवर करते हुए काम के दौरान हुई है; 35 फीसदी की भ्रष्टाचार के दौरान हुई है।

आरएसएफ के मुताबिक, ऐसी प्रवृति वाला भारत ही अकेला देश नहीं है: “ 2014 में, विश्व भर में मारे गए पत्रकारों में से दो-तिहाई पत्रकार युद्ध कवर करते हुए मारे गए हैं। 2015 में, ठीक इसका विपरीत हुआ है। दो-तिहाई पत्रकारों की मौत देश में शांति के दौरान हुआ है।”

पीड़ितों द्वारा कवर किया गया बीट

भारतीय पत्रकारों के लिए केवल मौत की चिंता का विषय नहीं है। ताज़ा अमनेस्टी इंटरनेश्नल रिपोर्ट के अनुसार, “मानव अधिकारों के रक्षक, पत्रकारों और प्रदर्शकारियों का मनमाने ढंग से गिरफ्तार करना और हिरासत में लेना जारी है। 2015 में, करीब 32,00 लोगों को प्रभारी या परिक्षण के बिना, कार्यकारी आदेश पर प्रशासनिक हिरासत में लिया गया है।”

सीपीजे के आंकड़ों के अनुसार, “विश्व भर में पत्रकारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है: 71 पत्रकारों की हत्या पुष्टिकृत इरादे के साथ की गई है जबकि 25 की अपुष्टिकृत इरादों के साथ हुई है। आरएसएफ के आंकड़ों के अनुसार 43 पत्रकारों के मौत के पीछे की वजह साफ नहीं है।

करुण के भाई वरुण कहते हैं कि अपराध बड़े और अपराधी शक्तिशाली हो रहे हैं और यही कारण है कि अपराधियों को सज़ा मिलना महत्वपूर्ण है। वरुण कहते हैं कि, “यह किसी के साथ भी हो सकता है। अधिकारियों को मेरी ही अपील है कि त्वरित परीक्षण हो और गंभीर सजा दी जाए।”

(कैम्पबेल फिल्म एवं मीडिया में ओटागो विश्वविद्यालय, न्यूजीलैंड से स्नातक हैं और इंडियास्पेंड के साथ इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 07 अप्रैल 16 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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