कहानी पिहानी की, 15 वर्षों में नहीं हुआ बदलाव, बची हुई हैं लोगों की उम्मीदें
पिहानी,उत्तर प्रदेश: कैलाश राय ( बदला हुआ नाम ) के लिए वक्त मानो ठहर सा गया है। 49 साल के कैलाश राय को अपने घर से कार्यस्थल तक जाने में रोजाना छह घंटे लगते हैं। 16 साल पहले भी उन्हें इतना ही वक्त लगता था।
राय का घर राज्य की राजधानी लखनऊ में है। वे रोज काम के लिए पिहानी के सरकारी डिग्री कॉलेज जाते हैं, जहां वह राजनीतिक विज्ञान के लेक्चरार हैं। उनकी मुश्किल यह है कि वह अपने परिवार के साथ पिहानी में ही नहीं रह सकते हैं। उन्हें रोज लखनऊ से आना है। पिछले 16 सालों में पूरी दुनिया का भूगोल सिमट-सा जरूर गया, लेकिन लखनऊ से पिहानी की दूरी वही रही- छह घंटे।
पिहानी 100 गांवों का एक छोटा कस्बा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, वहां 40,000 से कम परिवार रहते हैं। वर्ष 2000 में जब राय ने पिहानी के सरकारी कॉलेज में काम करना शुरु किया था तो वहां सार्वजनिक सुविधाओं का भी अभाव था। नियमित रूप से बिजली की आपूर्ति, अच्छी सड़कें, सार्वजनिक परिवहन और अच्छी चिकित्सा सेवाएं जैसी सुविधाएं नहीं के बराबर थी।
पिहानी आर्थिक रुप से पिछड़ा हुआ है। चल रहे विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश के पदधारी और चुनाव में खड़े हुए राजनेता अब भी वही बुनियादी सुविधाएं देने का वादा कर रहे हैं, जो 16 साल पहले कर रहे थे। बिजली, बस सेवा,रोजगार, गरीब युवाओं के लिए लैपटॉप और फ्री डेटा।
उत्तर प्रदेश की कहानी भी पिहानी से अलग नहीं। कस्बे की आबादी 206,743 है और यहां चार कॉलेज हैं। यहां एक सरकारी डिग्री कॉलेज, एक सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) और दो निजी डिग्री कॉलेज हैं। उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण ( एआईएसएचई ) 2014-15 के अनुसार, 18-23 आयु वर्ग में प्रति 100,000 युवाओं पर 27 कॉलेजों के भारतीय औसत से यह अधिक है। लेकिन यह कस्बा स्थानीय शैक्षिक संस्थानों, बैंकों और चिकित्सा केंद्रों को चलाने के लिए प्रतिभा को देने में असमर्थ रहा है।
एआईएसएचई 2014-15 के अनुसार, किसी भी भारतीय राज्य की तुलना में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा कॉलेज हैं, करीब 6,026। लेकिन ये शिक्षा संस्थान प्रगति के लिए योग्य कामगारों को देने असमर्थ रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 11 फरवरी, 2017 को विस्तार से बताया है।
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। यहां आबादी की औसत उम्र 23 वर्ष है, जो देश में सबसे कम है। पिहानी विकास के जिस मॉडल के साथ खड़ा है, उसे देखकर यह समझना कठिन नहीं है कि क्यों यह शहर और 250,000 से कम आबादी वाले गांवों के समूह यहां के लोगों की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरते,विशेष रूप से शिक्षा और रोजगार के मामले में।
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालय स्तर पर ड्रॉप आउट की दर 21 फीसदी से ज्यादा है। पिहानी में यह दर 36 फीसदी है।राज्य के अन्य गांव की तरह यहां के गांवों का बड़े शहरों के लिए संपर्क सीमित है, क्योंकि कुछ ही रेलवे मार्ग हैं और शायद ही कोई राजमार्ग या सुचारू रूप से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन सेवाएं हैं। गांव के आधे से कम घरों में बिजली है।
उत्तर प्रदेश में हर जगह उच्च शिक्षा उपलब्ध कराया गया है, तो क्यों सीखने के लिए यहां राज्य की ओर से एक भी केंद्र नहीं बन पाया है? क्यों भारत में सबसे ज्यादा कॉलेज में दाखिला दिखाने वाला राज्य युवाओं के लिए रोजगार का प्रबंध नहीं करा पाता है?
इसके कुछ जवाब पिहानी में मिल सकते हैं। प्राथमिक कारण शहरों और गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास में राज्य की उदासीनता है, जो अब स्कूलों और कॉलेजों के साथ जुड़ गया है।
संस्थानों का विस्तार, तो फिर शिक्षा का क्यों नहीं?
जिले में कॉलेजों की बड़ी संख्या होने के बावजूद हरदोई की स्कूल शिक्षा प्रणाली की स्थिति सही नहीं है। स्कूल शिक्षा के लिए जिला सूचना 2014-15 सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, जिले के स्कूलों में केवल 64 फीसदी छात्र प्राथमिक से ऊपरी स्तर में जा पाते हैं। प्राथमिक स्तर से उच्च प्राथमिक स्तर जाने का राष्ट्रीय औसत 90 फीसदी है।
पिछड़े वर्ग में उच्च शिक्षा पर जोर देने के लिए उत्तर प्रदेश के कई कॉलेज गांवों और कस्बों में स्थापित किए गए हैं। इस पर सरकारी स्तर पर भी और निजी उद्यमियों द्वारा भी जोर दिया गया। हरदोई जिले में ही 132 कॉलेज हैं, उनमें से आठ सरकारी और 124 निजी कॉलेज हैं।
इन वर्षों में राजकीय डिग्री कॉलेजों ने प्रोजेक्टर, कंप्यूटर और जनरेटर हासिल कर ली है, लेकिन पिहानी में सुधार नहीं हुआ है। कैलाश राय के अनुसार यही कारण है कि वहां काम करने वाले शिक्षक और स्थानीय बैंकों, स्कूलों और अस्पतालों में काम करने वाले कर्मचारी दूर बड़े शहरों से आना-जाना ही पसंद करते हैं। राय कहते हैं कि वे "रिवर्स प्रवासी" हैं, जो गांव में काम करते हैं और शहर में रहते हैं।
ऐसा लगता है कि पिहानी के लोग नौकरियों के लिए शिक्षित या पर्याप्त कुशल नहीं हैं। इसके पीछे का कारण शिक्षा की गुणवत्ता हो सकता है। उत्तर प्रदेश में एक सरकारी डिग्री कॉलेज से सेवानिवृत्त प्राचार्य पी सी जोशी कहते हैं, “सरकारी कॉलेजों में स्टाफ की कमी है। जरूरत के हिसाब से वे एक-तिहाई काम कर पाते हैं। इसका मतलब साफ है कि शिक्षकों के पास अत्यधिक काम है। ”
जोशी का मानना है कि उत्तर प्रदेश में निजी कॉलेज एक बड़ी समस्या है। इंडियास्पेंड से बात करते हुए उन्होंने बताया कि, “सरकारी कॉलेज योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं और भर्ती प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी है। लेकिन निजी स्वामित्व वाले या वित्त पोषित कॉलेजों के पास अक्सर बुनियादी ढांचे की कमी दिखती है। उनकी भर्ती ज्यादातर कागजों पर ही रहती हैं, व्यवहार में, शायद ही वहां कोई पढ़ाई होती है। छात्रों को नियमित रूप से और पर्याप्त रूप से सिखाया जा रहा है या नहीं, इसका पर्याप्त आकलन नहीं होता है।”
अगर उत्तर प्रदेश की तुलना 17 कम आबादी वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से की जाए तो वहां उच्च शिक्षा में नामांकन दर बेहतर है। संघ शासित क्षेत्र चंडीगढ़ में भारत का सर्वोच्च नामांकन दर 56 फीसदी है। इसके बाद पुडुचेरी में 46 फीसदी। उत्तर-पूर्वी राज्यों में मणिपुर के कॉलेजों में 36 फीसदी नामांकन दर है। बड़े राज्यों में, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तामिलनाडु में सर्वोच्च छात्र नामांकन दर दर्ज किया गया है। तमिलनाडु के लिए यह आंकड़े 45 फीसदी हैं।
समस्याएं और भी हैं। उत्तर प्रदेश भर के कॉलेजों में प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता में व्यापक रूप से भिन्नता है। इसका कारण बुनियादी सुविधाओं की कमी होना है। उत्तर प्रदेश में दो कमरे, एक क्लर्क, दो शिक्षक और एक अन्य कामों के लिए व्यक्ति के साथ एक कॉलेज का अस्तित्व, कोई आश्चर्य नहीं। यह सामान्य सी बात है।
दूसरा, कॉलेजों में रोजगारपरक शिक्षा प्रदान नहीं की जाती है। पिहानी सरकारी कॉलेज में स्नातक से नीचे के पाठ्यक्रमों 10 विषय की पढ़ाई होती है, जिसमें मानविकी और वाणिज्य भी शामिल हैं।
कैलाश राय कहते हैं, “ज्यादातर छात्र गरीब परिवारों से आते हैं और खेतों पर भी काम करते हैं। इसलिए वे कॉलेज में उपस्थिति और अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। इन युवाओं के लिए जीवन कठिन है। और पाठ्यक्रम ज्यादा रोजगारपरक शिक्षा प्रदान नहीं करता है। ”
कॉलेजों के प्रसार के अलावा, पिहानी में कुछ ही सुधार हुए हैं। यहां गांवों के लोग अब भी गरीबहैं। बिजली की आपूर्ति अक्सर बाधित रहती है।
उत्तर प्रदेश में एक कस्बा - 100 फीसदी ग्रामीण, 83 फीसदी खेतिहर मजदूर
लखनऊ के उत्तर-पश्चिम में हरदोई जिले का एक सामुदायिक विकास ब्लॉक पिहानी 100 से अधिक छोटे गांवों का समुदाय है। इस ग्रामीण प्रशासनिक प्रभाग को अन्य राज्यों में तालुक या तहसील भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में इस तरह के 901 ब्लॉक हैं, जो खंड विकास अधिकारी द्वारा प्रशासित होते हैं।
Source: Census 2011
पिहानी की एक-तिहाई आबादी अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंधित है। यहां की साक्षरता दर 51 फीसदी है। यहां की आधी से भी कम महिलाएं साक्षर ( 41 फीसदी ) हैं। पिहानी की महिलाएं श्रमशक्ति में 14 फीसदी का योगदान करती हैं, जो कि 27 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से नौ प्रतिशत अंक कम है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अप्रैल 2016 में विस्तार से बताया है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कस्बे में छह वर्ष से कम उम्र में शिशु लिंग अनुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 905 का है। यह 873 के समग्र लिंगानुपात से बेहतर है। उत्तर प्रदेश का 902 का शिशु लिंग अनुपात पिहानी से कम है। उत्तर प्रदेश का समग्र लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 812 महिलाओं का है। यह पिहानी में महिलाओं के लिए बुरे स्वास्थ्य का संकेत है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, पिहानी की 83 फीसदी कामकाजी आबादी को कृषि से रोजगार मिलता है, लेकिन इनमें से 41 फीसदी खेतिहर मजदूर हैं, जो खेतों पर मजदूरी करते हैं । ये खेतों पर काम करने वाले उत्तर प्रदेश की 59 फीसदी आबादी को प्रतिबिंबित करते हैं,जिसमें इनमें से 51 फीसदी खेतों में मजदूर हैं। अन्य लोग शिक्षक, चिकित्सा और प्रशासनिक कर्मचारी, छोटे व्यापारी, बैंक कर्मचारी और सरकारी सेवक के रुप में काम करते हैं।
अब भी उत्तर प्रदेश के 53 फीसदी घरों में बिजली नहीं
उत्तर प्रदेश के गावों में केवल 47 फीसदी घरों में बिजली है। उत्तर प्रदेश का स्थान भारत भर में ग्रामीण विद्युतीकरण की सूची में चौथे नंबर पर है। बिजली मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस संबंध में बद्तर स्थिति झारखंड (39 फीसदी), बिहार (45 फीसदी) और नागालैंड (45 फीसदी) की भी है।
डेटा विश्लेषक और जनता की राय पर काम करने वाली संस्था ‘फोर्थलायन’ द्वारा इंडियास्पेंड के लिए किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश की एक तिहाई मतदाताओं के लिए बिजली की कटौती एक अहम चुनावी मुद्दा है। हरदोई जिले के आधे से कम ग्रामीण घरों में ( 46 फीसदी ) बिजली है। और जिन घरों में बिजली आती हैं, उन्हें दिन में छह से आठ घंटे ही बिजली मिलती है। राय कहते हैं, “डीजल जनरेटर चलाना ही एकमात्र विकल्प है। कॉलेज पर सिर्फ जरूरत के वक्त एक घंटे जेनरेटर चलाने की लागत 50 रुपए आती है।”
उत्तर प्रदेश में सड़कों की हालत लिखती है लोगों की तकदीर
पिहानी का निकटतम रेलवे स्टेशन हरदोई जिला मुख्यालय से 28 किमी दूर पर है। और वहां तक पहुंने के लिए ढाई घंटे का समय लगता है, वह भी कई छोटे-छोटे पड़ाव के बाद। कई बार यात्रियों को भारी भीड़ का सामना भी करना पड़ता है।
लखनऊ से हरदोई तक का रेलवे किराया 65 रुपए होता है। हरदोई और लखनऊ के बीच 29 गाड़ियां हैं और वे दिन में चलती हैं। राय कहते हैं, “लेकिन अप्रत्याशित देरी से रोज यात्रा करने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।”
सभी बसें निजी हैं, और पिहानी से हरदोई के लिए 25 रुपए किराया लेती हैं
भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों में उत्तर प्रदेश की बड़ी हिस्सेदारी है, करीब 9 फीसदी। यह 8,483 किमी लंबी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, जब बात राज्य राजमार्ग की हो तो 7543 किमी लंबाई के साथ यह सातवें स्थान पर है।
हरदोई जिले से होकर कोई राज्य राजमार्ग नहीं गुजरता है। एनएच -24, या दिल्ली-बरेली-लखनऊ राजमार्ग पिहानी से करीब है। सड़कों की ये हालत किसानों के लिए एक बाधा है, क्योंकि यह बाजार से उनके संपर्क को सीमित करता है। या फिर राय और उनके जैसे शहरों से गांव आने वाले मुश्किलों का सामना करते हैं।
शिक्षा और नौकरी के बीच की दूरी: क्यों पिहानी को और अधिक रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रमों की है जरुरत?
19 वर्षीय सीमा गुप्ता ( बदला हुआ नाम ) पिहानी राजकीय डिग्री कॉलेज की छात्रा हैं। यह उसके लिए सुविधाजनक है कि कॉलेज उसके गांव के पास है। लेकिन कला में स्नातक की डिग्री लेने भर से उसके लिए नौकरी पाना संभव नहीं है। वह किसी साइबर कैफे में काम करना चाहती है, जो कुछ इलाकों में अब भी काफी लोकप्रिय है। लेकिन इसके लिए उसे कंप्यूटर सीखना होगा, जो पिहानी में संभव नहीं है।
सीमा हरदोई के कॉलेज जाना चाहती है, जहां तकनीकी पाठ्यक्रम है। लेकिन उसके माता-पिता उसे इतनी दूर यात्रा करने की इजाजत नहीं देते हैं। सीमा कहती है, “पिहानी में महिलाओ के लिए सुरक्षा का मुद्दा बहुत बड़ा है। माता-पिता लड़कों को पढ़ने बाहर गांव से दूर भेजते हैं लेकिन लड़कियों को इसकी इजाजत नहीं है।”
कैलाश राय कहते हैं, “इन कारणों के बावजूद पिहानी राजकीय डिग्री कॉलेज में नामांकित होने वाले छात्रों में 60 से 65 फीसदी लड़कियां हैं। सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और पिछड़ी जातियों के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है और गुप्ता और उन जैसे कई अन्य लड़के-लड़कियों लिए प्रति वर्ष 6000 रुपए एक बड़ी मदद है।”
वैसे राय के लिए वक्त जरूर ठहर गया सा लगता है, लेकिन इस कस्बे के लिए उनकी उम्मीद बची हुई है-“ लेकिन मुझे आशा है कि मेरे छात्रों को बेहतर तकनीकी पाठ्यक्रमों के तहत सीखने की आजादी मिलेगी, जिससे वे रोजगार पा सकेंगे और फिर पिहानी बदलेगा। ”
(मुंबई के ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइंस’ के पीएचडी स्कॉलर सौम्या तिवारी विकास के मुद्दों पर लगातार लिखती रही हैं, इंडिया स्पेंड से जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 फरवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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