कृषि के लिए 144 फीसदी अधिक फंड, लेकिन भारत में मौजूदा कृषि संकटों को खत्म करने के लिए प्रयाप्त नहीं
( मुंबई: एक विरोध मार्च में किसान। )
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार द्वारा घोषित अंतरिम बजट में कृषि को आवंटन में अप्रत्याशित 144 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2018-19 के बजट अनुमानों में 57,600 करोड़ रुपये से अंतरिम बजट में 1,40,764 करोड़ रुपये तक। इसने कुल केंद्रीय बजट में कृषि मंत्रालय का हिस्सा 5.2 फीसदी कर दिया है। यह एक ऐसा बेंचमार्क है, जहां तक पहुंचने के लिए आने वाली सरकारों को राजनीतिक कारणों से मजबूर होना होगा। संदर्भ के लिए, 2014-15 के बाद, जब बीजेपी सत्ता में आई थी, तब से शेयर करीब 2.3 फीसदी -2.4 फीसदी रहा है।हालांकि, आवंटन में यह अभूतपूर्व बढ़ोतरी भारत में मौजूदा कृषि संकटों से लड़ने के लिए अपर्याप्त होगी, जिसके कारण भारत में व्यापक कृषि आंदोलन हुए हैं। क्षेत्र के लिए बजट आवंटन पर हमारा विश्लेषण बताता है कि विभिन्न कृषि योजनाओं, जैसे कि महत्वपूर्ण सिंचाई मिशन के लिए प्रावधानित राशि अपर्याप्त है। नई आय सुरक्षा योजना अदूरदर्शी और अपर्याप्त है, जो पात्र किसानों को महज 500 रुपये प्रति माह या प्रति व्यक्ति 3.5 रुपये (पांच के घरेलू आकार पर विचार) प्रदान करेगा, जो कि एक कप चाय खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं है, जैसा कि बताया गया है। यह ओडिशा और तेलंगाना आय सहायता योजनाओं की तुलना में कम प्रभावी कवरेज प्रदान करता है, जिनकी सफलता ने इसे प्रेरित किया है।
लंबे समय तक की उपेक्षा की भरपाई करने के लिए यह पर्याप्त नहीं
रिकॉर्ड कटाई के युग में, कृषि उपज की कीमतें गिर गई हैं। न चुकाए गए कृषि ऋण बढ़ गए हैं, और 60 करोड़ भारतीय, जो खेती पर निर्भर हैं, संघर्ष कर रहे हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 30 नवंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। कृषि संकट का मूल कारण किसानों की अनवरत उपेक्षा और पिछले दो दशकों में लागू की गई कमजोर नीतियां हैं। किसान, कृषि क्षेत्र के लिए प्रमुख कार्यक्रम, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसे कार्यक्रमों के उचित कार्यान्वयन के लिए सार्वजनिक प्रावधान और राज्यों के लिए और अधिक लचीलापन, स्थानीय समस्याओं को दूर करने के लिए आवश्यक हस्तक्षेप को अपनाने के लिए निश्चित कदमों के विस्तार की मांग कर रहे हैं।
कृषि पर सार्वजनिक खर्च के लिए निरंतर कम प्राथमिकता के परिणामस्वरूप मानव संसाधनों की भारी कमी के साथ योजनाओं के कार्यान्वयन में गंभीर गिरावट आई है, विशेष रूप से कृषि विस्तार सेवाओं में, जो कृषि प्रथाओं और किसानों को योजनाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।
कृषि ने लगातार दो सूखे वर्षों का सामना किया है। 2014-15 और 2015-16 में,जब इस क्षेत्र में औसत वृद्धि सिर्फ 0.1 फीसदी प्रति वर्ष थी। आंकड़े बताते हैं कि इन वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिए इस क्षेत्र के लिए आवंटन का अनुपात 2014-15 और 2018-19 के दौरान 0.3 से 0.4 फीसदी के बीच रहा है।
अपर्याप्त सार्वजनिक निवेश ने भी कृषि में निजी निवेश को हतोत्साहित किया है। 2014-15 और 2016-17 के बीच, जीडीपी अनुपात में निजी क्षेत्र का निवेश 2.2 फीसदी से घटकर 1.8 फीसदी हो गया, जिससे निवेश में समग्र गिरावट आई - 2.6 फीसदी से 2.1 फीसदी। इससे ग्रामीण संकट और कृषि संकट बढ़ गया।
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत आवंटन / व्यय
सिंचाई नेटवर्क कम तो आय समर्थन अपर्याप्त
अगर देश में सिंचाई नेटवर्क प्रणाली को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता तो दो साल का सूखा प्रभावी रूप से प्रबंधित किया जा सकता था। लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए बुनियादी ढांचा बनाने के लिए बहुत कम ध्यान या बजट दिया गया था।
2014-15 में लागू होने के बाद से प्रधान मंत्री कृषि सिचाई योजना (प्रधान मंत्री सिंचाई योजना) आवंटन में कोई वृद्धि नहीं हुई है। वैसे भी यह कम है। इस योजना के लिए 2019-20 के बजट अनुमान में पिछले साल के बजट की तुलना में महज 100 करोड़ रुपये की वृद्धि है।
2016-17 में, जब देश सूखे से उबर ही रहा था, सिंचाई योजना के लिए कुल आवंटन 2015-16 में 10,780 करोड़ रुपये से घटकर 2016-17 में 6,134 करोड़ रुपये हो गया था। 2017-18 में, इस योजना पर वास्तविक व्यय प्रस्तावित बजट से भी कम था, जो कि धन के कम और कम होने के संकेत देता है।
कृषि संकट ने सरकार को किसानों की आय में सुधार की ओर अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया है। नीति आयोग के तीन साल के एक्शन एजेंडे में, सरकार ने 2015-16 तक आधार वर्ष के रूप में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था। 2015-16 सूखा वर्ष था, खेत की आमदनी कम थी। निहित है कि किसी भी छलांग को प्रबंधित करना आसान होगा।
कृषक समुदाय अभी भी खेती की लागत को कवर करने के लिए संघर्ष कर रहा है, ताकि कोई आय हो या मुनाफा कमाया जा सके। बीजेपी सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए कुछ अल्पकालिक रणनीतियों का पालन किया। एक तो खेती को अधिक पारिश्रमिक बनाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाना था। खेती की व्यापक लागत से एमएसपी को कम से कम 1.5 गुना बढ़ाने के लिए कृषि संकट से निपटने के तरीकों पर एमएस स्वामीनाथन के नेतृत्व में राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों में से एक था।
2018-19 में, अधिकांश खरीफ फसलों के लिए एमएसपी 23 फीसदी और रबी फसलों के लिए 13 फीसदी बढ़ा। 2014-15 और 2018-19 के बीच अधिकांश फसलों के लिए एमएसपी में वार्षिक औसत 5-10 फीसदी था। लेकिन, सूखे के वर्षों में यह वृद्धि 5 फीसदी से कम थी।
कृषि संकट को दूर करने के लिए दूसरी रणनीति किसानों को न्यूनतम आय सहायता प्रदान करना थी। अंतरिम बजट 2019 में, सरकार ने ‘प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि’ नामक एक योजना के तहत 2 हेक्टेयर से कम भूमि वाले प्रत्येक किसान को 60,00 रुपये की वार्षिक आय सहायता की घोषणा की। यह आय सहायता तीन किस्तों में सालाना प्रदान की जानी है। सरकार के अनुसार, इस योजना के लायक 12 करोड़ किसान हैं, और उन्हें समर्थन देने की वार्षिक अनुमानित लागत लगभग 75,000 करोड़ रुपये होगी।
सरकार ने दिसंबर 2018 से इस योजना को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने का प्रस्ताव रखा है। 2018-19 के लिए, 20,000 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है और यह केवल 10 करोड़ किसानों के लिए पूरा हो सकता है। इसका मतलब चार महीने के लिए प्रति किसान 2,000 रुपये या 500 रुपये प्रति माह का हस्तांतरण है।
(आचार्य ‘सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस एकाउंटेबिलिटी’ के रिसर्च कोर्डिनेटर हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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