केवल छत्तीसगढ़ ने अधिक महिला विधायकों को चुना, महिला सशक्तिकरण में आगे मिजोरम से कोई महिला निर्वाचित नहीं
मुंबई: महिलाओं के रोजगार संकेतकों के रैंक में उच्च स्थान रखने वाले छत्तीसगढ़ ने हाल ही में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में 13 महिला विधायकों को चुना है। 2013 में, यह आंकड़े 10 थे। अन्य चार राज्यों ( मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना ) में हुए चुनावों में कम महिलाएं चुनी गई हैं। यह जानकारी इंडियास्पेंड द्वारा चुनावी आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आई है।
पांच राज्यों में 8,249 प्रतियोगियों में से 696 (8.4 फीसदी) महिलाएं थीं। इनमें से 62 (9.1 फीसदी) अपने राज्य विधानसभाओं में विधानसभा ( एमएलए ) के सदस्य चुनी गई हैं।
छत्तीसगढ़: अप्रैल 2018 में, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में नीती आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने छत्तीसगढ़ को ‘पिछड़ा’ राज्य कहा था। हालांकि, राज्य महिलाओं के रोजगार संकेतकों में देश में सबसे ऊपर है, जैसे कि श्रमिक-जनसंख्या अनुपात ( डब्लूपीआर ), जो प्रति 1,000 व्यक्तियों पर कार्यरत व्यक्तियों की संख्या दर्शाता है।यह पहला राज्य है, जहां भारत के चुनाव आयोग ने सभी महिला 'संगवारी' पोलिंग बूथ की स्थापना की।
रोजगार और सशक्तिकरण संकेतक
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Employment And Empowerment Indicators | ||||
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State | Female Literacy (In %) | Female Worker-Population Ratio (Persons employed per 1,000 persons) | Per Capita Income (In Rs)* | Women Involved In Households Decision-Making (In %) |
Chhattisgarh | 66.3 | 66.6 | 84,265 | 90.5 |
Mizoram | 89.27 | 52.2 | 1,28,998 | 96 |
Madhya Pradesh | 59.4 | 15.9 | 74,590 | 82.8 |
Rajasthan | 56.5 | 18.8 | 92,076 | 81.7 |
Telangana | 57.9 | 42 | 1,59,856 | 81.0 |
Note: Data for 2015-16. *Per capita income data are for 2016-17. The lowest score on an indicator is marked in red.
Source: National Family Health Survey 2015-16, Fifth Annual Employment Unemployment Survey
मिजोरम: यह स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर स्थित है। 89.27 फीसदी की साक्षरता दर वाला एक राज्य, जो राष्ट्रीय औसत (74.4 फीसदी) की तुलना में बहुत अधिक है, और पांच राज्यों में महिलाओं के रोजगार (डब्ल्यूपीआर 52.2 फीसदी) और प्रति व्यक्ति आय (1,28,998 रुपये) के मामले में दूसरे स्थान पर है, वहां 2018 में राज्य विधानसभा में एक भी महिला नहीं चुनी गई है। महिलाओं की तुलना में 19,399 अधिक पुरुषों के साथ वाले राज्य में, पिछले 31 वर्षों में में केवल दो महिला मंत्री रही हैं । 1987 में लालिमपुई हमर और 2014 के उपचुनाव में जीतकर आईं लालवामपुई च्वंगथु । पांच राज्यों में, घरेलू फैसलों में स्वायत्तता जैसे महिला सशक्तीकरण संकेतकों पर भी मिजोरम का सबसे ज्यादा स्कोर ( 96 फीसदी ) है।
महिला सशक्तिकरण संकेतक और विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व के बीच सहज सह-संबंध नहीं है।
मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या 2013 में 29 से गिर कर 2018 में 21 हुई है। राज्य ने महिलाओं के रोजगार (डब्ल्यूपीआर 15.9 फीसदी) और महिलाओं के सशक्तीकरण संकेतकों, जैसे कि निर्णय लेने, संपत्ति के स्वामित्व और व्यक्तिगत एजेंसी में सबसे कम संख्याओं का प्रदर्शन किया है। पांच राज्यों में, मध्यप्रदेश ने सबसे कम प्रति व्यक्ति आय (74,590 रुपये) भी दर्ज की है। भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में महिलाओं के लिए एक अलग घोषणा पत्र जारी किया था। 'नारी शक्ति संकल्प पत्र' के तहत, इसमें मेधावी छात्राओं को अन्य चीजों के अलावा ‘ऑटो-गियर बाइक’ देने का वादा किया गया था।
राजस्थान: पिछली बार, एक महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा शासित राजस्थान ने महिला विधायकों की संख्या में गिरावट देखी है। इस संबंध में आंकड़े 2013 में 27 से गिर कर 2018 में 23 हुए हैं। हालांकि राज्य में महिला मतदाता-मतदान (74.7 फीसदी) पुरुष मतदाता-मतदान (73.8 फीसदी) से अधिक था, 2013 (75.23 फीसदी) से महिला मतदाता में समग्र गिरावट आई है, जैसा कि राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है। राज्य ने सबसे कम महिला साक्षरता दर (56.5 फीसदी) दर्ज की है और 10-11 वर्ष की शिक्षा पूरी करने वाली महिलाओं की सूची में अंतिम स्थान पर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 5 दिसंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। महिलाओं के रोजगार (डब्ल्यूपीआर 18.8 फीसदी )के मामले में इसकी संख्या काफी कम है।
तेलंगाना: हाल ही में बना एक राज्य जहां केवल दो बार चुनाव हुए हैं, वहां 119 विधानसभा सीटों के लिए छह महिला विधायक (5 फीसदी) चुनी गईं हैं, जो कि 2014 के चुनावों से कम हैं, तब नौ महिला विधायक चुनी गईं थीं।
विरासत का प्रभाव
इन विधानसभा चुनावों में विरासत ने अहम भूमिका निभाई है। विरासत की सीटें वे हैं जो लंबे समय से एक ही राजनीतिक परिवार के सदस्यों या राजनीतिक कनेक्शन वाले या विरासत उम्मीदवारों के अधिकृत में हैं।
7 दिसंबर 2018 को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 67 विरासत वाले उम्मीदवार थे। इंडियास्पेंड के विश्लेषण के मुताबिक, इनमें से 35 (52 फीसदी) ने जीत हासिल की है।
मध्य प्रदेश में, 36 विरासत सीटें थीं और नौ पर महिला विरासत उम्मीदवारों द्वारा चुनाव लड़ा गया था। 2018 में चुने गए 21 विधायकों में से सात निर्वाचित महिलाएं राजनीतिक परिवारों से जुड़ी थीं और उन्हें विरासत में राजनीति मिली थी।
राजस्थान में 23 विरासत सीटों पर छह महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। जीतने वाले सभी छह मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए थे।
छत्तीसगढ़ में निर्वाचित 13 महिला विधायकों में से पांच महिलाएं राजनीतिक विरासत की उम्मीदवार थीं।
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय ने इंडियास्पेंड को बताया, "पार्टियों में एक साझा विश्वास है कि महिलाएं पुरुषों की तरह मजबूती से चुनाव नहीं लड़ पाएंगी और इसलिए पार्टियां स्वतंत्र महिला उम्मीदवारों को टिकट देने से इनकार करती हैं। जिन महिलाओं ने लंबे समय तक पार्टी में सेवा की है या जिनका अपना स्वयं का समर्थन आधार है, उन्हें टिकट दिया जाता है।”
कोटा से मदद
चूंकि राजनीतिक दलों के लिए महिला प्रतियोगियों के लिए अलग सीट निर्धारित करना अनिवार्य नहीं है ( जैसा कि पंचायत स्तर पर होता है, जहां महिलाओं के लिए कम से कम 33 फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं ) पार्टियां पुरुष उम्मीदवारों की ओर पक्षपाती होती हैं। पंचायत चुनावों के परिणामों के एक अध्ययन से पता चला है कि इस स्तर का कोटा राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय संसद में उच्च स्तर के पदों के लिए अधिक महिलाओं को सक्षम बनाते हैं। स्थानीय स्तर पर औसतन 3.4 वर्ष के लिंग कोटा के संपर्क में रहने वाली महिलाओं के लिए संसद में 38.75 अतिरिक्त महिला उम्मीदवार थीं, यानी 1991 और 2009 के बीच 35 फीसदी की वृद्धि, जैसा कि ‘आईजेडए इन्स्टिटूट ऑफ लेबर इकोनोमिक्स’ द्वारा जनवरी 2018 में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है। राज्य विधानसभाओं के लिए, कोटा के 2.8 वर्षों के औसत प्रदर्शन के साथ, अतिरिक्त 67.8 महिला उम्मीदवारों ने निर्वाचन क्षेत्र में कार्यालय के लिए भाग लिया, जैसा कि लेख के आधार पर इंडियास्पेंड ने 30 जून, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी’ के निदेशक संजय कुमार ने कहा, "राजनीतिक दलों के लिए एक निश्चित संख्या में महिला उम्मीदवारों को नामांकित करने / टिकट देने के लिए इसे अनिवार्य करना चाहिए।"
(अभिव्यक्ति बनर्जी वडोदरा के एमएसयू में राजनीति विज्ञान में मास्टर की छात्रा और इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 25 दिसंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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