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चंडीगढ़, भारत का पहला नियोजित शहर, जो अपनी चौड़ी सड़कों एवं बड़े सेक्टरों और हरियाली की वजह से जाना जाता है – एक अप्रत्याशित समस्या का सामना कर रहा है: किस प्रकार यह अपने ठोस कचरे के 25 ट्रक को इक्ट्ठा करे, अलग करे और इसका निपटारा करे।

चंडीगढ़ में रहने वाले 1.05 मिलियन (या 10.5 लाख) लोग रोज़ाना 370 टन ठोस कचरा उत्पन्न करते हैं। शहर की सफाई के लिए 4,085 कर्मचारी कार्यरत हैं, यानि कि प्रति किलोमीटर सड़क पर 2.65 कर्मचारी का अनुपात है।

मैसूर - पुराने मैसूर राज्य की पूर्व शाही राजधानी – को केंद्र सरकार के स्वच्छता सर्वेक्षण-2016 में पहला स्थान प्राप्त हुआ है। 0.89 मिलियन (या 8.9 लाख) की आबादी वाले इस शहर में, चंडीगढ़ के मुकाबले आधे से कम सफाई कर्मचारी कार्यरत हैं – प्रति किलोमीटर 1.37 सफाई कर्मचारी - लेकिन उससे अधिक ठोस अपशिष्ट की व्यवस्था करती है, 410 टन, या ठोस अपशिष्ट के 27 ट्रक।

मैसूर में प्रति व्यक्ति 0.45 किलो कचरा उत्पन्न होता है जबकि चंडीगढ़ में प्रति व्यक्ति 0.35 किलो कचरा उत्पन्न होता है।

मैसूर के नागरिकों का योगदान

चंडीगढ़ की 95 फीसदी से अधिक आबादी सीवेज नेटवर्क से जुड़ी है और वहां कोई खुले नाले, उलझे हुए तारों का ढ़ेर, आवासीय स्थान या बाज़ार तक संकीर्ण सड़क मार्ग नहीं हैं।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि चंडीगढ़ स्वच्छता सर्वेक्षण में दूसरे स्थान पर आया है लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि यह शहर पहले स्थान पर क्यों नहीं आया।

चंडीगढ़ बनाम मैसूर

चंडीगढ़ में इधर-उधर कचरा पड़ा भले ही न दिखे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कचरे का निपटारा कुशलतापूर्वक किया जा रहा है।

चंडीगढ़ में जन्म और वहीं पालन-पोषण होने के कारण, मैंने हमेशा इस शहर को साफ और आकर्षक पाया है: छोटे और अपेक्षाकृत कम लोग - 114 वर्ग किलोमीटर, प्रति वर्ग किलोमीटर 9252 व्यक्ति – सचेत प्रशासन, और सड़कों का डिजाइन ऐसा कि आसानी से सफाई हो सके।

हालांकि, स्वच्छता मानक, अधिक घनी आबादी वाले दक्षिणी भागों में गिरती है लेकिन सिस्टम काम करता है।

मैसूर में नागरिकों की भागीदारी अधिक है। शहर में नागरिकों की भागीदारी का कुछ हद तक श्रेय, एक गैर -सरकारी पहल – लेट्स डू इट मैसूर – को जाता है जो लगातार कचरा अलगाव में लोगों को शामिल करती है। चंडीगढ़ में भी कई अभियान चलाए जाते हैं, विशेष कर स्वच्छ भारत अभियान शैक्षिक संस्थानों और कार्यालयों में चलाया जाता है लेकिन या तो इन पर हमेशा ध्यान नहीं दिया जाता है या फिर कुछ धार्मिक समूहों के प्रयासों तक सीमित है।

मैसूर अपना कचरा अलग करती है, चंडीगढ़ नहीं करती

रोज़ाना चंड़ीगढ़ द्वारा उत्पन्न 370 टन कचरे में से 270 टन कचरा प्रसंस्करण संयंत्र के लिए चला जाता है, जो जेपी समूह की एक कंपनी द्वारा चलाया जाता है एवं इससे रेफ्यूज़-डेराइव फ्यूल बनाया जाता है।

शेष 100 टन, डंपिंग साइट जाता है, जो स्वच्छता और प्रशासनिक समस्याओं से घिरा है। भारत भर में सबसे अधिक कचरा पहाड़ों के साथ, जो चंडीगढ़ के आसपास रहते हैं, इसके आदिम तरीकों से पीड़ित हैं। जो कंपनि इसे चला रही है उसने भी संयंत्र को बंद करने की धमकी दी है यदि नगर निगम चंडीगढ़ (एमसीसी) ढोने वाले शुल्क का भुगतान नहीं करता है - संग्रह और अपशिष्ट के प्रसंस्करण के लिए, नगर पालिकाओं द्वारा निजी प्रसंस्करण संयंत्रों को दिया जाने वाला शुल्क। एमसीसी किसी भी तरह के भुगतान के लिए मना करती है क्योंकि यह कचरे को संयंत्र तक ले कर जाती है।

उत्पादित कचरे को कम करने का एक तरीका इसे स्रोत पर अलग कर, पुनः चक्रित करना है। चंडीगढ़ ऐसा नहीं करता है और यही कारण है कि स्वच्छता के मामले में यह मैसूर से पीछे रह गया है।

उत्पन्न कचरा बनाम कर्यरत सफाई कर्मचारी

मैसूर में स्रोत स्थान पर ही कचरे को अलग किया जाता है एवं इसके पास नौ कचरा- पृथकत्व संयंत्र हैं जो गुणवत्ता खाद के उत्पादन पर ध्यान देता है। खाद और प्लास्टिक जैसे सूखे कचरे की बिक्री से नगर निगम के राजस्व में इज़ाफा होता है।

एमसीसी संयुक्त आयुक्त राजीव गुप्ता कहते हैं कि चंडीगढ़ अपना कचरा अलग करना चाहता था। वह कहते हैं कि, “स्रोत-आधारित अलागव के लिए, चार सेक्टरों में हम जल्द ही पायलट शुरु कर रहे हैं। अगले महीने से शुरु हो रही पांच टन बायो-मेथानेशन की क्षमता वाली इस संयंत्र से जैविक कचरे से बिजली भी पैदा की जाएगी।”

चंडीगढ़ में दरवाज़े-दरवाज़े जा कर कचरा संग्रहण,शुरू में निवासियों के कल्याण संघों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित था जो ठेका मजदूरों को काम पर रखते थे, लेकिन अब इस काम पर कुछ निजी ठेकेदारों का बोलबाला है।

2012 में,निगम के एक पायलट परियोजना के लिए अनुबंध पर कर्मचारियों को काम पर रखने पर, कचरा संग्रह करने वाले हड़ताल पर चले गए थे। यह विवाद एक समझौते द्वारा सुलझाया गया जिसके अनुसार, ठेके-श्रमिकों का बाज़ारों में सफाई करने पर प्रतिबंध लगाया गया लेकिन इससे अलगाव प्रयासों बाधित होते हैं एवं दंडात्मक कार्रवाई के लिए मजबूर करता है।

पिछले वर्ष, सार्वजनिक स्थानों पर कचरा फैलाने के अपराध में एमसीसी ने 3543 चालान काटे थे एवं इससे जुर्माने के रुप में 6 लाख की कमाई हुई थी। जिन्होंने भुगतान से मना किया था उन पर मुकदमा चलाया गया था।

(मउदगिल इंडिया वाटर पोर्टल , पानी और स्वच्छता पर एक ऑनलाइन मंच, के साथ स्वतंत्र सलाहकार है।)

यह लेख पहले यहां एवं indiaspend.com पर 11 मार्च को प्रकाशित हुआ है।

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